Wednesday 25 October 2017

ताजमहल एक विरासत या कलंक

हाल ही में उत्तर प्रदेश के सरधना से विधायक संगीत सोम ने कहा है कि बहुत-से लोग इस बात से चिंतित हैं कि ताजमहल को यूपी टूरिज्म बुकलेट में से ऐतिहासिक स्थानों की सूची से हटा दिया गया. किस इतिहास की बात कर रहे हैं हम.? जिस शख्स (शाहजहां) ने ताजमहल बनवाया था, उसने अपने पिता को कैद कर लिया था. वह हिन्दुओं का कत्लेआम करना चाहता था. अगर यही इतिहास है, तो यह बहुत दुःखद है, संगीत सोम ने आगे कहा कि मुगल बादशाह बाबर, औरंगजेब और अकबर गद्दार हैं और ताजमहल एक कलंक है.

हालाँकि इससे पहले वर्ष 2015 में भारत सरकार ने इस दावे को ख़ारिज कर दिया था कि ताजमहल कभी हिंदू मंदिर था. तब केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने कहा था कि सरकार को ताजमहल के हिंदू मंदिर होने के दावे से जुड़ा कोई सबूत नहीं मिला है. जबकि आगरा के छह वकीलों ने उसी दौरान अदालत में एक याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि ताजमहल एक समय में हिंदुओं का शिव मंदिर था और इसे हिंदुओं को सौंप दिया जाना चाहिए.

कहते है ताजमहल को 17वीं सदी में शहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था. मुमताज महल की मौत अपनी 14वीं संतान को जन्म देते हुए हो गई थी और ताजमहल मुमताज़ का मकबरा है. इतिहास के पन्नो में लिखा है कि ताजमहल को शाहजहां ने मुमताज के लिए बनवाया था. वह मुमताज से प्यार करता था. दुनिया भर में ताजमहल को प्रेम का प्रतीक माना जाता है, लेकिन कुछ इतिहासकार इससे दोराय रखते हैं. उनका मानना है कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था वह तो पहले से बना हुआ था. उसने इसमें हेर-फेर करके इसे इस्लामिक लुक दिया था. हालाँकि दुनिया भर में मशहूर ताजमहल को देखने हर रोज करीब 12 हजार पर्यटक पहुंचते हैं. और इस खुबसूरत बेजोड़ स्मारक ताजमहल को 1983 में यूनेस्को ने विश्व विरासत घोषित किया.

ताजमहल एक मकबरा हैं या एक मंदिर सबके अपने-अपने दावे और राय है यह विश्व विरासत है या कलंक इस पर भी कोई एक राय नहीं है. लेकिन कुछ सवाल जरुर है जिन पर चर्चा होनी चाहिए क्योंकि जिस प्रकार मध्यकाल में प्राचीन भवन, धार्मिक स्थल, महल और किले तोड़े गये उन्हें नवीन आकार दिया गया तो क्या गारंटी है कि इस तोड़फोड़ से इतिहास अछुता रहा हो? बस यह है कि परिस्थिति वश कई बार लोग किसी झूठ को भी स्वीकार कर लेते है.  इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपनी किताब में लिखा है कि ताजमहल के हिन्दू मंदिर होने के कई सबूत मौजूद हैं.

वह लिखते है कि मकबरे के मुख्य गुम्बद के किरीट पर जो कलश है वह हिन्दू मंदिरों की तरह है. यह शिखर कलश शुरू में स्वर्ण का था और अब यह कांसे का बना है. आज भी हिन्दू मंदिरों पर स्वर्ण कलश स्थापित करने की परंपरा है. यह हिन्दू मंदिरों के शिखर पर भी पाया जाता है. दूसरा इस कलश पर चंद्रमा बना है. अपने नियोजन के कारण चन्द्रमा एवं कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाती है, जो कि हिन्दू भगवान शिव का चिह्न है. इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है. यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है. उसके मध्य दंड के शिखर पर नारियल की आकृति बनी है. नारियल के तले दो झुके हुए आम के पत्ते और उसके नीचे कलश दर्शाया गया है. उस चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचोबीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बना है.  हिन्दू और बौद्ध मंदिरों पर ऐसे ही कलश बने होते हैं.


इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ. अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना‍ दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था.

दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ. 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं. इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्दू  शैली का छोटे गुम्बपद के आकार का मंडप है और अत्यंत भव्य प्रतीत होता है. ओक की पुस्तक के अनुसार ताजमहल के हिन्दू निर्माण का साक्ष्य देने वाले काले पत्थर पर उत्कीर्ण एक संस्कृत शिलालेख लखनऊ के वास्तु संग्रहालय में रखा हुआ है. यह सन् 1155 का है. हिन्दू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाए जाते हैं. ताज भी यमुना नदी के तट पर बना है, जो कि शिव मंदिर के लिए एक उपयुक्त स्थान है. शिव मंदिर में एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में दो शिवलिंग स्थापित करने का हिन्दुओं में रिवाज था, जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर में देखा जा सकता है.

ताज के दक्षिण में एक प्राचीन पशुशाला है. वहां पर तेजोमहालय की पालतू गायों को बांधा जाता था. मुस्लिम कब्रिस्तान में गौशाला होना एक असंगत बात है. ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं, जो कि हिन्दू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है. ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है. हिन्दू मंदिरों के लिए गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है. ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुए हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है. इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दीये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था.

यदि इस विवाद में मूल में जाये तो ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है. वह लिखते है कि महलशब्द अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता. इसके बाद इसका वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा, प्रवेश द्वार पर बने लाल कमल, पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजे, मकबरे के पास संगीतालय जिसकी मजहब ए इस्लाम कतई इजाजत नहीं देता है. इसके बाद दीवारों पर बने हुए फूल जिनमे छुपा हुआ है ओ३म् ॐ  संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहजहां के समय से भी पहले की थी जब ताज शिव मंदिर था. यदि ताज का निर्माण मक़बरे के रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता. देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है. इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज के मक़बरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है.


अब ताजमहल एक खुबसूरत विरासत है या बदसूरत इतिहास. आखिर इसे आस्था के प्रकाश में देखे या प्यार के महल के रूप में ये तो लोगों के मनोभाव पर निर्भर करता है. किन्तु प्रो ओक को गलत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि इसके बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे. या फिर इतिहास के हजारों दर्द की भांति इसे भी ऐसे ही पी जाये?....फोटो साभार गूगल- राजीव चौधरी 

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