Tuesday 30 October 2018

भारत अपने लिए नहीं बल्कि विश्व कल्याण के लिए ताकतवर बनना चाहता है –

भारतीय संस्कृति एवं एकजुटता ही भारत की ताकत – राजनाथ सिंह

नई दिल्ली, 28 अक्टूबर, 2018 : भारतीय संस्कृति एवं एकजुटता ही भारत की ताकत है। भारत केवल अपने लिए ताकतवर नहीं बनना चाहता बल्कि विश्व के पूरे मानव समाज के कल्याण के लिए ताकतवर बनना चाहता है, ये उक्त बातें भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रोहिणी के जापानी पार्क में चल रहे अंतरराष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन के समापन सत्र के दौरान कही।

उन्होंने आगे कहा कि आर्य समाज के इस सम्मेलन में अनुशासन और शान्ति है, यह केवल संस्था नहीं बल्कि क्रांतिकारी विचार है जो सोए हुए आदमी को भी जगा दें। हम तो आर्य हैं और पूरे विश्व को आर्य बनाना चाहते हैं।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आगे कहा कि महर्षि दयानंद जी का ह्रदय जितना बड़ा था, कल्पना नहीं की जा सकती। उन्हें अपनी चिंता नहीं थी बल्कि उनका मन दूसरों की चिंता हमेशा लगा रहता था। वसुधैव कुटूंबकम का संदेश कोई छोटे मन वाला आदमी नहीं दे सकता बल्कि बड़े मन वाला ही ऐसा कर सकता है। यही तो भारत की सांस्कृतिक पहचान है। वृक्ष न काटना, बेटियों को पढ़ाना ये हमारे देश की संस्कृति है। महर्षि दयानंद जी काफी दूरदर्शी थे, उन्हें पता चल गया था कि आगे क्या होने वाला है। जो कुछ भी ज्ञान हमारे वेदों में है वो दुनिया के पास नहीं है। भारत की संस्कृति स्वयं में आधुनिक है और इसे आधुनिकता की आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने लोगों को आश्वासन दिलाते हुए कहा कि मैं मोदी जी से बात करूंगा और मुझे विश्वास है कि वो इस चीज में अपनी सहमति देंगे कि 2024 में जो अंतर्राष्ट्रीय आर्य सम्मेलन होगा, उसमें दयानंद सरस्वती जी की जन्म शताब्दी पूरे विश्व में मनाई जाए। वहीँ सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया ने कहा कि दुनिया में शांति चाहिए तो हमें पुनः वेदों से लौटना होगा। उन्होंने इस महासम्मलेन में शामिल पाकिस्तान के आर्य प्रतिनिधिमंडल के लिए गृहमंत्री द्वारा वीजा दिलाने में मदद करने के लिए ख़ुशी जताई। जब कि केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने कहा कि दयानंद जैसा व्यक्तित्व पूरे विश्व में नहीं हो सकता। यदि हमलोगों को गृहमंत्री राजनाथ सिंह का साथ मिलता रहा तो हम पूरे विश्व में आर्य संस्कृति का डंका बंजा सकते हैं।

वहीं भारत के प्रथम अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने कहा कि हमारा परिवार दादाजी के मूल सिद्धांतों पर चलता आया है और यही वजह है कि देश की सेवा के लिए कुछ काम आया। ज्ञात हो कि अंतरराष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन का यह चार दिवसीय कार्यक्रम का समापन समारोह था , जिसमें सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया, बीजेपी दिल्ली विधानसभा के प्रतिपक्ष नेता विजेन्द्र गुप्ता, प्रथम अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा, सीकर के सांसद स्वामी सुमेधानंद जी, स्वामी देवव्रत समेत कई जानी-मानी हस्तियों ने हिस्सा लिया। इस चार दिवसीय सम्मेलन में 28 देशों के तीन हजार से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

जातिविहीन समाज के निर्माण का श्रेय आर्य समाज को जाता है

दिल्ली में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन के तीसरे दिन योग, यज्ञ, धार्मिक गीतों, देशभक्ति से परिपूर्ण नाट्य मंचन के बीच मंच पर देश के अनेकों समाजसेवी और राजनीती से जुडी हस्तियाँ उपस्थित रही. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ, हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहरलाल खट्टर, हरियाणा सरकार में वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु, उत्तर प्रदेश बागपत से सांसद डॉ सत्यपाल सिंह, एमिटी युनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष श्री अशोक चौहान एवं महाशय धर्मपाल (एमडीएच) ने मंच साझा किया.


स्वागत भाषण हरियाणा सभा के प्रधान मास्टर रामपाल ने किया, इस अवसर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहरलाल खट्टर  ने आर्य समाज की उपलब्धियों को गिनाते हुए कहा कि प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के बाद आजादी की लौ को यदि किसी ने जीवित रखा तो वह सिर्फ आर्य समाज था. हरियाणा सरकार में वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने देश में आर्य समाज के कार्यो पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आर्य कोई जातिसूचक शब्द नहीं बल्कि हमारी प्राचीन परम्परा, इतिहास और संस्कृति से जुड़ा शब्द है. उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए डॉ सत्यपाल ने देश की शिक्षा नीति, भ्रष्टाचार पर प्रहार बोलते हुए कहा आज उत्तरप्रदेश में योगी सरकार वह कार्य कर रही है जैसा स्वामी दयानन्द सरस्वती जी चाहते थे. उन्होंने भारतीय इतिहास, दर्शन से कई प्रेरक उदहारण देते हुए कहा कि अनिवार्य शिक्षा का जो मन्त्र भारत सरकार ने 2009 में दिया यह ही मन्त्र तो स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने 135 वर्ष पहले दिया था.

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए योगी आदित्यनाथ ने मंच साझा करते हुए कहा कि स्वदेशी का आन्दोलन सबसे पहले आर्य समाज ने चलाया था महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने सत्यार्थ प्रकाश में स्वदेशी राजा का होना ही अनिवार्य माना है. उन्होंने कहा कि आर्य समाज को इस देश में अनेकों श्रेय जाते है जिनका वर्णन अल्प समय में नही हो सकता. एक जातिविहीन समाज के निर्माण का श्रेय यदि किसी को जाता है तो आर्य समाज को जाता है. इस अवसर पर हजारों की संख्या में आर्य समाज से जुड़े लोगों की गरिमामयी पूर्ण उपस्थिति रही मंच का संचालन डॉ विनय विद्यालंकार ने किया सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान सुरेशचंद अग्रवाल जी, हरियाणा सभा के प्रधान मास्टर रामपाल जी ने सभी का स्वागत किया, दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान धर्मपाल आर्य, मंत्री प्रकाश आर्य जेबीएम ग्रुप के चेयरमैन एस. के आर्य जी समेत अनेकों गणमान्य लोग मौजूद रहे…

Friday 26 October 2018

बिगुल बजा आज आर्यों वीरों फिर से हुंकार भरों,


अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन दूसरा दिन
आर्य समाज द्वारा रोहिणी दिल्ली के स्वर्ण जयंती पार्क में आयोजित चल रहे चार दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन के दूसरे दिन धर्म जगत से लेकर राजनीति एवं विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों के अनेकों गणमान्य लोगों की भारी उपस्थिति रही. योग गुरु स्वामी रामदेव, केन्द्रीय परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी, आसाम के राज्यपाल श्री जगदीश मुखी एवं सिक्किम के राजपाल श्री गंगाप्रसाद समेत अनेकों लोग पधारें.

32 देशों से पधारे लोगों के बीच इस अवसर पर आरम्भ में आर्य वीर दल के आर्य वीरों ने भजन बिगुल बजा आज आर्यों वीरों फिर हुंकार भरों, ऋषि की जय-जयकार करोसे शुरुआत की तत्पश्चात अफ्रीकी बच्चों द्वारा मंच पर यज्ञ का आयोजन हुआ. इस सुंदर कार्यक्रम से समूचा पंडाल भावविभोर हो गया. इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आर्य समाज देश का प्राण है देश की आजादी में आर्य समाज का बलिदान हमेशा याद रखा जायेगा. वरिष्ठ भाजपा नेता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि वेदों की जो विचार धारा है वही आर्य समाज की विचार धारा है जिसे आर्य समाज ने अपनी कथनी करनी में धारण किया है.
मंच को संबोधित करते हुए केन्द्रीय परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी ने कहा कि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने जो विचार हमें दिया है वही विचार हमें विश्व गुरु बना सकता है. उन्होंने परिवहन मंत्रालय की ओर किये जा रहे विकास कार्यों से भी उपस्थित जनसमुदाय को अवगत कराया. इस अवसर पर आसाम के राज्यपाल श्री जगदीश मुखी ने कहा कि देश के युवा आर्य समाज से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ें उन्होंने लोगों को आर्य समाज के योगदान को स्मरण कराते हुए कहा कि देश में शिक्षा की कमी को सर्वप्रथम स्वामी दयानंद सरस्वती जी महसूस किया.
कार्यक्रम में पधारें योग गुरु स्वामी रामदेव जी महाराज ने मंच को शुशोभित करते हुए अपने उदबोधन में कहा कि देश में गुरु शिष्य की परम्परा प्राचीन रही यदि पुनर्जागरण काल के बाद के इतिहास को देखें तो स्वामी दयानन्द सरस्वती जी हम सबके गुरु है. हम सभी को स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के चरित्र से शिक्षा लेकर आगे बढ़ना होगा. पूरे कार्यक्रम का मंच संचालन राजेन्द्र विद्यालंकार जी ने किया सार्वदेशिक सभा के प्रधान श्री सुरेश चंद्र आर्य ने सभी का आभार व्यक्त किया. 28 अक्तूबर तक चलने वाले इस महासम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने किया था. इस अवसर पर दिल्ली सभा के प्रधान धर्मपाल आर्य, महाशय धर्मपाल (एमडीएच) सभा मंत्री प्रकाश आर्य, भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी, साध्वी उत्तमा आर्य सन्यासिन संयासिनो समेत हजारों लाखों की संख्या आर्यजन उपस्थित रहे. कार्यक्रम का आयोजन अगले दो दिन जारी रहेगा....राजी चौधरी   

Thursday 25 October 2018

अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन का उद्धाटन - सत्र 2018


अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन का  उद्धाटन - सत्र 2018
अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन, दिल्ली 2018 के उद्घाटन समारोह का शुभारंभ महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी के कर-कमलों के द्वारा हुआ। दीप प्रज्वलन, दीर्घ शंखनाद एवं वैदिक मंत्रोच्चार के साथ उद्घाटन सत्र प्रारंभ हुआ। महामहिम राष्ट्रपति जी ने आर्यों के महाकुंभ को संबोधित करते हुए महर्षि दयानंद सरस्वती के धर्म संस्कृति व राष्ट्र निर्माण में अद्वितीय योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। देश की आजादी के आंदोलन में आर्य समाज की विशेष भूमिका उनके बलिदानी इतिहास के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की।

उन्होंने कहा- यहाँ महर्षि दयानंद के प्रति समर्पण एवं उत्साह लेकर देश के सभी प्रान्तों के लेकर 32देशों से आए आर्य-प्रतिनिधियों को देखकर अपार प्रसन्नता हो रही है। महर्षि अरविंद जी ने कहा था - ष् स्वामी दयानंद सरस्वती मनुष्यों व संस्थाओं के मूर्तिकार हैं। दयानंद सामाजिक एवं आध्यात्मिक सुधार के निर्भीक योद्धा थे। उनके जीवन से प्रभावित होकर स्वामी आत्मानन्द जी, महात्मा हंसराज जी, पण्डित गुरूदत्त विद्यार्थी, स्वामी श्रद्धानंद जी, लाला लाजपत राय जैसे अनेक क्रांतिकारियों ने क्रांति मार्ग में अपना जीवन समर्पित किया। 19वीं सदी म़े महर्षि दयानंद ने अस्पृश्यता निवारण, महिला सशक्तिकरण, समान शिक्षा व्यवस्था, जाति उन्मूलन, पर्यावरण संरक्षण आदि अनेक समस्याओं का समाधान दिया जो आज भी पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक बना हुआ है।  वेदमंत्र धर्म और संप्रदाय से उपर उठकर मानवता के लिए एक आह्वान है। अपने हृदय के उद्गार प्रकट करते हुए बताया -कानपुर के एक आर्य संस्थान में उन्होंने पांच वर्ष तक शिक्षा ग्रहण की। उनके माता पिता का आर्य समाज से गहरा संबंध रहा। आर्यसमाज सम्पूर्ण विश्व को एक सार्थक गति दे सकता है।
             कार्यक्रम की अन्य गरिमामयी उपस्थितियों में केंद्रीय राज्य मंत्री सतपाल सिंह ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ अपना वक्तव्य आरंभ किया जिसके अंत में उन्होंने महर्षि दयानंद के संदर्भ में एक कविता-पराई पीड में जलना, मरीजों की दवा होना अरे कोई जाने दयानंद से, धर्म पै जां फिदा होना धर्म पै जां फिदा होनाकविता के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त की।
साथ ही गुरूकुल कुरूक्षेत्र के पूर्व कुलपति व तत्कालीन हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत, केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन जी ने भी आर्यसमाज के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। पूरे कार्यक्रम का मंच संचालन दिल्ली सभा महामंत्री विनय आर्य ने किया। सार्वदेशिक सभा के प्रधान श्री सुरेश चंद्र आर्य ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आर्यसमाज का सम्पूर्ण संगठन राष्ट्र सेवा के लिए सदैव तत्पर रहा है और रहेगा। सार्वदेशिक सभा के महामंत्री प्रकाश आर्य जी ने राष्ट्रपति जी को स्मृति चिन्ह देकर व महाशय धर्मपाल जी ने महर्षि दयानंद का चित्र भेंट कर सम्मानित किया। लाखों की संख्या में सम्पूर्ण वसुंधरा के आर्यजन उपस्थित रहे और अगले तीन दिन तक इस कार्यक्रम का आयोजन जारी रहेगा। इस अवसर पर सिक्किम के राज्यपाल श्री गंगाप्रसाद जी, सांसद स्वामी सुमेधानन्द जी, उत्तरी दिल्ली नगर निगम महापौर श्री आदेश गुप्ता जी, स्वामी धर्मानन्द जी, दिल्ली सभा प्रधान श्री धर्मपाल आर्य समेत अन्य आर्य महानुभावों की उपस्थिति में सुमुधुर वैदिक मंत्रो एवं गीतों से उद्घाटन हुआ  


Wednesday 17 October 2018

क्यों आएं आप आर्य महासम्मेलन में?


आर्य समाज के सर्वोदय संगठन सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा द्वारा 25 से 28 अक्तूबर 2018 को दिल्ली के स्वर्ण जयन्ती पार्क रोहिणी में अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन आयोजिकिया जा रहा है। जिसकी गत वर्ष से ही तैयारी की जा रही है। भारत के कोने-कोने में जहां भी आर्य समाज की छोटी सी भी इकाई है वहां तक उत्साह की लहर है। भारत के बाहर भी अनेक देशों के आर्यजन इस सम्मेलन में आने का कार्यक्रम बनाकर आयोजकों को सूचित कर चुके हैं। लाखों आर्यजनों के सम्मिलित होने की सूचना है। यह तो ठीक है कि सम्मेलन की तैयारी भी हो रही है, लोगो के आने की भी सूचना है, ऐसे में आपके मन में एक प्रश्न उपस्थित हो रहा होगा कि आखिर इन सम्मेलनों का लाभ क्या है? क्यों इतना काम किया जाता है? संस्था के पदाधिकारियों द्वारा प्रत्येक देश, राज्य, नगर में जाकर इसका प्रचार किया जाता हैं, धन संग्रह करते हैं, विद्वानों, संन्यासियों, उपदेशकों, गुरुकुलों के संचालकों व आचार्यों के साथ-साथ राजनेताओं को बुलाया जाता है। इन सबके अतिरिक्त हम जैसे आर्यजन अपने काम पर कहां जाते है आदि-आदि।

       आर्य समाज एक सुधारवादी संस्था और संगठन है, जो 1875 से निरन्तर समाज की कुप्रथाओं, धर्म की अवैदिक मान्यताओं, शिक्षा की अपूर्ण विधियों, संस्कृति के दोषों और व्यक्तिगत जीवन के दुर्गुण-दुव्यस्थियों को दूर करने का संकल्प लेकर कार्य कर रहा है। इस संस्था के गौरवशाली इतिहास से हम सभी परिचित है। समय के साथ-साथ चुनौतियां बदलती रहती हैं। कभी आर्य समाज के सन्मुख सती-प्रथा, बाल विवाह, स्त्री-शिक्षा का न होना, विधवा विवाह न होना एवं भारत की पराधीनता जैसी समस्या थी, जिनके समाधन के लिए पूरी शक्ति से कार्य किया और उन कुरीतियों का उन्मूलन भी हुआ। आर्य समाज के विद्वान् सन्यासियों व उपदेशकों ने ऋषि की मुख्य योजना, वेदों की सार्वभौमिकता, सार्वकालिकता व सार्वजनीनता को सिद्ध करने का भी प्रमुख कार्य किया। प्रचुर साहित्य वेद सम्मत लिखा। वेद की प्रतिष्ठता के लिए पौराणिकों, जैन-बौद्ध, इस्लाम-ईसाई मत के बड़े-बड़े मठाधीषों से लाभार्थ हुए ग्रंथ लिखे गये और साथ ही बड़े-बड़े सम्मेलन करके भी आर्य समाज की शक्ति का अहावन कराते रहे। जिनमें ऋषि जन्म शताब्दी 1924 ई. में, सत्यार्थ प्रकाश शताब्दी, आर्य समाज स्थापना शताब्दी, ऋषि निर्वाण शताब्दी आदि प्रमुख है। मध्य में जब संगठन कुछ शिथिल हुआ तो पुनः अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन 2006 में दिल्ली में आयोजित हुआ जिसमें भारत के अतिरिक्त अनेक देशों का प्रतिनिध्त्वि रहा और निर्णय किया गया कि प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलन आयोजित किए जाएं। भारत के बाहर 5 वर्ष तक अलग-अलग राष्ट्रों में सम्मेलन होंगे और छटे वर्ष भारत में होगा। इसका लाभ यह होगा कि जिस देश में यह सम्मेलन होगा उस देश की आर्य समाजें सक्रिय होंगी उनकी उर्जा का परिचय होगा वहां की सुंदर प्राय इकाइयां भी जाग्रत होंगी।
       अब प्रश्न उठता है कि इन सम्मेलनों का संगठन को कितना लाभ होता है? इसका उत्तर सकारात्मक दृष्टि से विचार करने पर बिन्दुवाद प्रस्तुत करना उचित है-
1.जब कोई छोटी इकाई अपने क्षेत्रा में कार्य करती है तो उसके कार्यों में कई बार निराशा उत्पन्न करने वाले लोग सम्मिलित हो जाते है और कहते है अब आर्य समाज कहां सक्रिय है यह तो मृतप्राय संस्था है, इसके लोग तो केवल उंगलियों पर गिनने नामक है तो ऐसी इकाई को जब इन बड़े सम्मेलनों में आने का अवसर मिलता है तो पता चलता है कि आर्य समाज वर्तमान में भी एक वटवृक्ष के समान है। अनेक संस्थाएं, अनेक गुरुकुल, अनेक विद्यालय, अनेक लेखाप्रकल्प कार्य कर रहे हैं।
2.आर्य समाज क्योंकि वैचारिक आन्दोलन है इसलिए प्रत्येक इकाई में विचार के प्रचार का कार्यक्रम संमालित होना अनिवार्य है जिसके लिए विद्वान, उपदेशक, भजनोपदेशक व प्रचारकों की महती आवश्यकता होती है। प्रत्येक इकाई में अन्य महासम्मेलनों के विचारों का टकराव होना भी स्वाभाविक है, ऐसी स्थिति मे जब वे आर्यजन सम्मेलन में आते है तो अनेक विद्वान, उपदेशकों के विचारों का श्रवण करने से तर्क शक्ति सुदृढ़ होती है। सम्मेलन स्थल पर मुख्य मंच के अतिरिक्त अनेक समानान्तर सत्र चलते है जिनमें शंका समाधन, वेदगोष्ठी प्रमुख है। जहां आर्य जगत के उच्चकोटि के विद्वान्, संन्यासी, विचारक एक साथ मिल जाते है उनकी तर्कता से साक्षात होता है, सनिध्य मिलता है।
3.प्रायः आर्य समाजों में वही वृद्व आर्यजन ही उपस्थित रहते है तो ऐसा लगता है कि आर्य समाज में पुनःशक्ति है ही नहीं, परन्तु जब सम्मेलन में देशभर से आए हुए हजारों आर्यवीर व आर्य वीरांगनाएं व्यवस्थित रूप् से सम्मेलन की व्यवस्थाएं सम्भाल रहे होते हैं जो विध्वित प्रशिक्षित होते है। वे बौद्धिक व शारीरिक दोनो दृष्टियों से आर्य समाज की शक्ति का प्रदर्शन करते है तो पता चलता है कि आर्य समाज केवल वृद्धों की संस्था नहीं यहा युवाशक्ति को भी विधिवत प्रशिक्षित किया जा रहा है।
ऐसे ही अनेक बिन्दु और हो सकते हैं जिनकी भी चर्चा की जा सकती है परन्तु अभी इतनी चर्चा करके पाठकों से अनुरोध् करना चाहूंगा कि हम आप सभी सुधार व संसार को श्रेष्ठ (आर्य) बनाने का संकल्प लेकर चले जिसमें सभी कार्य महत्वपूर्ण है-स्वाध्याय, यज्ञ, सत्संग, वेद प्रचार कार्यक्रम शास्त्रार्थ एवं सम्मेलन आदि। अतः ये अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन भी उसी का महत्वपूर्ण अंग है। आप स्वयं विचार करें कि- आपकी उपस्थिति परस्पर उत्साह को बढ़ाने वाली होगी, आयोजक भी आप ही है। कृण्वन्तों विश्वमार्यम लेख विनय विद्यालंकार (प्रधान) आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तराखंड


सीएल अग्रवाल सेक्टर सात चंडीगढ़ ने किया भजन संध्या के साथ यज्ञशाला का उद्घाटन


सीएल अग्रवाल डी.ए.वी माडल स्कूल के प्रांगण में नवनिर्मित यज्ञशाला का मन्त्र, उच्चारण व यज्ञ की सुगन्धित ऊष्मा के साथ अनावरण किया गया. इस यज्ञशाला का निर्माण विद्यालय ने श्री रघुनाथराय आर्य जी व उनकी पत्नी ईश्वरी हिन्दुजा जी के सहयोग से कराया. आदरणीय श्री रविन्द्र तलवार जी सचिव डी.ए.वी कालेज प्रबन्धन कमेटी नई दिल्ली ने सपत्नी यज्ञ में सम्मलित होकर कार्यक्रम की शोभा बढाई. इस अवसर पर डीएवी आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि उपसभा चंडीगढ़ के सदस्य विभिन्न आर्य समाजों के सदस्य डी.ए.वी ट्राईसिटी के प्रधानाचार्य उपस्थित रहे. विद्यालय की प्रधानाचार्य ने आये उपस्थित सभी अथितियों तथा भजनउपदेशकों का लघु पौधे देकर अभिनंदन किया. विद्यालय के विद्यार्थियों ने मन्त्र उच्चारण एवं सुमुधुर भजनों द्वारा सबका मन मोह लिया.
प्रधानाचार्या जी ने महान गुरु विरजानंद तथा महान शिष्य स्वामी दयानंद जी के गुरु शिष्य संबंधो से बच्चों को अवगत कराया और स्वामी जी का युग परिवर्तन के लिए जो योगदान रहा उस पर प्रकाश डाला. मुख्य अतिथि आर्य समाज का आधुनिक प्रवेश में महत्व उपस्थित जन को वैदिक प्रचार हेतु आर्य समाज से जुड़ने का आवाहान किया. मुख्य भजन उपदेशक श्री उपेन्द्र आर्य जी ने अपने भजनों से लोगों को मन्त्र मुग्ध कर दिया. सभी ने शांति पाठ के पश्चात ऋषि लंगर का आनंद लिया...

Monday 1 October 2018

श्राद्ध पूर्वजों का यह कैसा सम्मान


एक पंक्ति में एक छोटा वाक्य है कि आत्मा अजर-अमर है। शरीर जन्म लेता है और अंत में महायात्रा पर निकल जाता है। यह जीवन का एक ऐसा कटु सत्य है जिसे प्रत्येक व्यक्ति जानता है किन्तु इसके बावजूद भी अंधविश्वास की एक दुनिया है जो कहती कि पाखंड भी अजर है। इस अलग दुनिया के अपने-अपने पाखंड और अंधविश्वास है जो परम्पराओं के नाम पर और भय के आधार पर खड़े किये गये हैं। हर वर्ष आश्विन मास में पितृपक्ष एक ऐसा चरण है जिसमें आत्मा को तृप्त करने की और पितरों को खुश करने की क्रिया का कार्य होता है। पूर्वजों के सम्मान के नाम पर यह रस्म बड़े सम्मान से अदा की जाती है जिसे श्राद्ध कहा जाता है। इस माह में कर्मकांडी पंडित इस महाअभियान में व्यस्त हो जाता है।

कर्मकाडी लोगों का प्रचार है कि श्राद्ध के महीने में परलोक सिधार चुके पितर अपनी संतान को आशीर्वाद देने पृथ्वी पर आते हैं, ये अदृश्य अपनी संतान या पीढ़ी को देखते हैं आनंद मनाते हैं। स्वादिष्ट पकवान खाते हैं और चले जाते हैं। ये पितर पशु-पक्षी बनकर कई रूप में आते हैं पर कर्मकांडी पंडितों के अनुसार अधिकांश कौवे ही बनकर आते हैं। इस मौसम में दान, ब्राह्मण भोजन आदि का बड़ा महत्त्व बताया जाता है। आजकल कुछ लोग अपने पित्तरों को खुश करने के लिए आधुनिक संसाधनों का दान भी करने लगे हैं। मतलब पितरों को गर्मी न लगे उसके लिए एसी, ठंडा पानी पिए इसके लिए फ्रिज, वाशिंग मशीन से लेकर मोबाइल तक दान कर रहे हैं।
वैसे हमारे धार्मिक शास्त्र कहते हैं कि यह शरीर तो सिर्फ एक चोला है, इन्सान का पुनर्जन्म होता है, मृत्यु अटल सत्य है तो उसके बाद जीवन भी उतना ही अटल सत्य है अब प्रश्न यही है कि जब मृत्यु के बाद जीवन है तो फिर कौन और कैसे भटक रहा है जिसका मैं श्राद्ध करूँ? और अगर जन्म नहीं लिया तो मतलब आत्मा की मोक्ष प्राप्ति हो गयी तो फिर आधुनिक संसाधनों से लेकर भोजन तक किसे और क्यों प्रदान किया जा रहा है? अगर आत्मा ने जन्म ले लिया तो वह भी मेरे जैसे इन्सान होंगे कहीं ऐसा तो नहीं जब मैंने जन्म लिया मेरे पिछले जन्म का बेटा मेरा अभी तक श्राद्ध कर रहा हो?
क्या ऐसा हो सकता है कि  कैलकुलेटर से नम्बर डायल कर हम किसी को फोन मिला देंगे? यदि नहीं तो फिर स्थूल शरीर छोड़ चुके लोगों के लिए बनी व्यवस्था, जीवित प्राणियों पर कैसे काम कर रही हैं? किन्तु सदियों से पंडे-पुजारी अपनी कुटिल बुद्धि का प्रयोग कर स्वयं को देवता एवं पूजयनीय बताते हुए अपनी सेवा कराते आ रहे हैं। इनका कहना है कि पितृपक्ष के दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वे अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
सत्यार्थ प्रकाश में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी श्राद्ध के असल रूप को प्रकट करते हुए पितृयज्ञ के दो भेद बताये हैं एक श्राद्ध और दूसरा तर्पण। श्राद्ध यानि जिस क्रिया से सत्य का ग्रहण किया जाय उस को श्रद्धा और जो श्रद्धा से कर्म किया जाय उसका नाम श्राद्ध है तथा जिस-जिस कर्म से तृप्त अर्थात् विद्यमान माता-पिता प्रसन्न हों उसका नाम तर्पण है। परन्तु यह जीवितों के लिये है। मृतकों के लिये नहीं है। किन्तु इसके विपरीत पितृपक्ष के दौरान हमारे घरों में कई तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं। उन पकवानों को पत्तों पर सजा कर रखते हैं, जिन्हें कुछ देर बाद कौए आ कर खा लेते हैं। तब उनकी आत्मा को शांति मिलती है वरना पूरा साल घर में परेशानी रहती है।
ऐसा न करने से यदि पूर्वज नाराज हो गए तो उन्हें जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे धनहानि, संतान पक्ष में समस्याएं, बने काम बिगड़ जाते हैं  इत्यादि। शास्त्रों का हवाला दे देकर धर्मगुरुओं और कर्मकांडी लोगों ने हजारों सालों से यह बात आमजन के दिमाग में बैठा रखी है, उनके मन में आत्माओं का डर पैदा कर रखा है, जिसका वे हजारों वर्षों से फायदा उठा रहे हैं।
विचारहीन समाज में जागरूकता की कमी के कारण कभी सच जानने का प्रयास नहीं किया जाता अतः नुकसान का डर लोगों में इस कदर फैला है कि वे किसी भी तरह का खतरा मोल लेना ठीक नहीं समझते, न ही किसी भी वैज्ञानिक तर्क को स्वीकार करते हैं। एक तरफ अशुभ होने का भय तो दूसरी तरफ सांसारिक सुखों की तलाश में दिखावा करने के हथकंडे सहज ही अपना लेते हैं। चाहे वह कौओं को खाना खिलाना हो या ब्राह्मणों में देवता के प्रवेश की बात हो। लोग सवाल और तर्क करने के बजाय जैसे चल रहा है वैसे ही स्वीकार कर लेने को उचित समझते हैं, जिसे एक तरह की मूर्खता और अंधविश्वास ही कहेंगे।

पढ़े-लिखे और शिक्षित परिवारों में ऐसी मूर्खतापूर्ण और विरोधाभाषी चीज सिर्फ विश्वगुरु के पास ही मिल सकती है। एक तरफ तो ये माना जाता है कि पुनर्जन्म होता है, मतलब कि घर के बुजुर्ग मरने के बाद अगले जन्म में कहीं पैदा हो गए होंगे। दूसरी तरफ ये भी मानेंगे कि वे अंतरिक्ष में लटक रहे हैं और खीर पूड़ी के लिए तड़प रहे हैं क्या यह अंधविश्वास नहीं है यदि आपको श्रद्धा से श्राद्ध करना है तो माता-पिता या परिवार का कोई बुजुर्ग आपके साथ रहता है तो आप सच्चे दिल से उनकी सेवा करिये। पारिवारिक विषयों पर उनसे सलाह लें। उनका सम्मान करें। बुजुर्गों द्वारा दिए गये आशीर्वादों में बहुत शक्ति होती है। जब आपकी संतान आपको अपने माता-पिता की सेवा करते हुए देखेगी तो वह भी आपकी सेवा करेगी।
परिवार और समाज के बुजुर्ग लोगों की सेवा सर्वोत्कृष्ट मानवीय कार्य है। सेवा हमेशा कृतज्ञता और सद्भावना की सुगंध समाज को तृप्त करती है। ध्यान रखिये! श्रद्धा , कृतज्ञता और सेवा हमारे धार्मिक जीवन का मेरुदण्ड है। जो संतानें श्रद्धापूर्वक अपने माता-पिता तथा बुजुर्गों की सेवा करती हैं उन्हें सुख, सम्रद्धि यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है न कि मृतक के नाम पर किये श्राद्ध से।
राजीव चौधरी 


क्या वाकई हम ऐसे आधुनिक कानून के लिए तैयार हैं?


हमारी नैतिक और सामाजिक परम्पराओं में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना जाता है, जहाँ  अग्नि के सात फेरे लेकर दो तन, दो मन एक पवित्र बंधन में बंधते हैं। दो लोगों के बीच यह एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है। जिसे अब शादी भी कहा जाता है। सभी सभ्य समाजों में इसे एक पवित्र कर्त्तव्य भी समझा जाता है। किन्तु इन दिनों आई.पी.सी. की धारा 497 चर्चाओं में बनी हुई है। इस धारा के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी शादीशुदा महिला के साथ रजामंदी से संबंध बनाता है तो उस महिला का पति एडल्टरी के नाम पर इस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज कर सकता है लेकिन वह अपनी पत्नी के खिलाफ किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर सकता था।

कुछ समय पहले केरल निवासी जोसफ शिन ने धारा 497 के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर कर इसे निरस्त करने की गुहार लगाई थी। याचिका में कहा गया है कि धारा 497 के तहत व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में तो रखा गया है लेकिन ये अपराध महज पुरुषों तक ही सीमित है। इस मामले में पत्नी को अपराधी नहीं माना जाता जबकि अपराध साझा है तो सजा भी साझी होनी चाहिए।
अब सुप्रीम कोर्ट ने अडल्ट्री यानी व्यभिचार को अपराध बताने वाले कानूनी प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम. खनविलकर, जस्टिस आर.एफ. नरीमन, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि व्यभिचार से संबंधित भारतीय दंड संहिता यानी आई.पी.सी की धारा 497 संविधान के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ये कानून मनमाना है और समानता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है और स्त्री की देह पर उसका अपना हक है। इससे समझौता नहीं किया जा सकता है। यह उसका अधिकार है। उस पर किसी तरह की शर्तें नहीं थोपी जा सकती हैं। 
अब इसके बाद समाज का कितना स्वरूप बदलेगा साफ तौर पर अभी कहा नहीं जा सकता, हाँ इशारा किया जा सकता है या भविष्य की कल्पना कि आगे आने वाला समाज ऐसा होगा। क्योंकि अभी तक सामाजिक नजरिये से एक पुरुष और महिला के बीच रिश्ता शादी के अनुरूप ही समझा जाता था। किन्तु इस रिश्ते को क्या कहें? शायद ‘‘सहावासी-रिश्ता’’ यानि लोग जब चाहें किसी से भी अनैतिक संबन्ध स्थापित कर सकते हैं। भले ही कानून की इस धारा की समाप्ति को एक तबका आधुनिकता से जोड़ रहा हो या महिला सशक्तिकरण से किन्तु ये भी नहीं नाकारा जा सकता कि यह रिश्ते समाज को तोड़ने का कार्य करेंगे।
हाल ही में देखें तो भारत में कानून बदल रहे हैं। पिछले दिनों ही अदालत ने समलैंगिकों को मान्यता दी है। अब धारा 497 को भी असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है। किन्तु यदि हम भारतीय समाज का मनोविश्लेषण करें तो एक सहज सवाल यह खड़ा होता है कि क्या वाकई हम ऐसे आधुनिक कानून के लिए तैयार हैं? क्या हमारा समाज इस कानून को स्वीकार कर पाएगा? क्या शादियों को बनाए रखने के लिए कोई कानून हो सकता है, जो विवाह को टूटने से बचाए और यदि टूटने से नहीं बचा सकता तो कोई ऐसा करार जो दोनों ही पक्षों के लिए राहत देने वाला हो। क्योंकि जब भी शादी टूटती है तो सबसे ज्यादा असर निराश्रित की देख-रेख पर ही पड़ता है। जो भी सदस्य पैसा नहीं कमाता है, उसके लिए जीवन जीना मुश्किल हो जाता है। 
देखा जाये इस कानून की समाप्ति को महिला सशक्तिकरण से जोड़कर देखा जा रहा है। किन्तु मुझे लगता है इस कानून की समाप्ति से उन्हें कमजोर किया गया है क्योंकि अधिकांश महिलाएं वित्तीय रूप से कमजोर होती हैं, वे लंबी अदालती लड़ाई का भार वहन नहीं कर पाती हैं। अब उनके सहवासी होने का आरोप संबंध विच्छेद में अनाप-शनाप मुआवजे की मांग को नहीं मानना पड़ेगा 
अब कानून को हटा दिए जाने के बाद से ये चर्चा शुरू हो गई है कि इससे देश में शादियां खतरे में पड़ जाएंगी, जो जिसके साथ चाहे संबंध बना लेगा या फिर कानून के हट जाने से भारत में शादियां टूटने लगेंगी? पत्नियाँ पतियों की कद्र करनी छोड़ देगी ऐसे सवाल समाज में खड़े हो रहे हैं लेकिन मेरा मानना है जितना कहा जा रहा है उतना तो नहीं होगा। क्योंकि हमारे यहाँ शादी विवाह जैसे पवित्र रिश्ते सिर्फ लड़की या लड़के के बीच नहीं बल्कि दो परिवारों के बीच स्थापित होते हैं यही सफल विवाहित जीवन मनुष्य के सुख की एक आधारशिला भी है। 
दूसरा भारतीय समाज में पति हो या पत्नी अपने शारीरिक सुख के बजाय परिवार और अपने बच्चों के अच्छे भविष्य पर ध्यान देते हैं यानि वैवाहिक जीवन में संतान का भी महत्त्वपूर्ण स्थान होता है और पति-पत्नी के बीच के संबंधों को मधुर और मजबूत बनाने में बच्चों की भूमिका रहती है। वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी का एक दूसरे के प्रति पूरा समर्पण और त्याग होता है। एक-दूसरे की खातिर अपनी कुछ इच्छाओं और आवश्यकताओं को त्याग देना या समझौता कर लेना रिश्तों को मधुर बनाए रखने के लिए जरूरी होता है यही वैवाहिक जीवन का मूल तत्त्व होता है। हाँ कुछ असंस्कारी लोग इस कानून की समाप्ति का स्वयं की वासनाओं की पूर्ति के लिए लाभ जरूर उठाएंगे पर ऐसे लोग तो समाज में पहले से ही मौजूद रहे हैं। 
राजीव चौधरी