Thursday 11 July 2019

कब तक पलायन करते रहेंगे हिन्दू?


कैराना के बाद अब इसी उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर का प्रहलादनगर भी अखबारों की सुर्खियों में है वजह यहां से भी बड़ी तादाद में हिंदू परिवारों के पलायन का मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है सन 1947 में देश की आजादी के दौरान बंटवारे के बाद मेरठ की प्रहलादनगर कॉलोनी शरणार्थी कॉलोनी के रूप में बसाई गई थी लेकिन आज 70 साल बाद एक बार फिर लोगों को यहां से जाने के हालात पैदा हो रहे हैं यहाँ से भी पलायन करने का वही है जो पाकिस्तान बांग्लादेश और कश्मीर में रहा था आए दिन मोहल्ले की महिलाओं, बेटियों से छेड़खानी की घटनाएं आम बात होना, गलियों में मुस्लिम समुदाय के लड़के बेखौफ आए दिन बाइकों पर गलियों मे चक्कर लगाते हैं और परेशान करते हैं मेरठ के इस मुहल्लेवासियों का आरोप है, युवतियों पर फब्तियां कसना और मारपीट करना इन युवकों का शगल बन चुका है इन सभी बातों और वारदातों से परेशान होकर इन्होने अपना यहां का घर बेच दिया और परिवार सहित मेरठ के किसी दूसरे मुहल्ले में जाकर बस गए यह सिर्फ प्रह्लाद नगर में ही नहीं बल्कि इस मोहल्ले से सटी दूसरी कालोनियां जैसे कि स्टेट बैंक कॉलोनी, राम नगर, हरिनगर, इश्वरपुरी, विकासपुरी जैसे दर्जनों मोहल्ले ऐसे हैं जो एक खास समुदाय के लोगों के कब्जे आ चुके हैं और हिंदू परिवारों का पलायन हो चुका है

कुछ समय पहले दिल्ली के सराय रोहिल्ला में स्थित तुलसीनगर और दिल्ली के नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र में स्थित ब्रह्मपुरी इलाके से लोगों के पलायन की खबरें आई थीं यहां भी लोगों ने अपने घरों के बाहर यह मकान बिकाऊ है लिखना शुरू कर दिया था यही नहीं इस समय देश में कम से कम 17 राज्य है, जहां से हिंदुओं को अपनी जन्मभूमि वाले स्थानों को छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है यह एक किस्म से जमीन जिहाद है यानि हिन्दुओं के मोहल्लों में ऐसी हरकते की जाये ताकि वह अपनी जमीन ओने पौने दामों में बेचकर दूसरी जगह चले जाएँ! जम्मू कश्मीर, हरियाणा का मेवात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के कई इलाके, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के अनेकों जिलों में हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर करने के अलावा उनकी लड़कियों को अपमानित किया जा रहा है, उनकी जमीन जबरन कब्जाई जा रही है, मंदिरों पर हमले हो रहे हैं, उन्हें अपने त्योहारों को नहीं मनाने दिया जाता है

एक समय कश्मीरी पंडितों को रातों रात अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ा था पाकिस्तान से जिया-उल-हक की तानाशाही से लेकर तालिबान के अत्याचारों तक पाकिस्तानी हिन्दुओं का जीवन दूभर ही रहा है आजादी के वक्त पाकिस्तान में कुल 428 मंदिर थे, जिनमें से अब सिर्फ 26 ही बचे हैं मानवाधिकार आयोग की वर्ष 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में हर महीने 20 से 25 हिन्दू लड़कियों का अपहरण होता है और जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया जाता है इसी तरह अब भारत में भी हिन्दू जाति कई क्षेत्रों में अपना अस्तित्व बचाने में लगी हुई है इसके कई कारण हैं, इस सच से हिन्दू सदियों से ही मुंह चुराता रहा है जिसके परिणाम समय-समय पर देखने को भी मिलते रहे हैं इस समस्या के प्रति शुतुर्गमुर्ग बनी भारत की राजनीति निश्चित ही हिन्दुओं के लिए घातक ही सिद्ध हो रही है पिछले 70 साल में हिन्दू अपने ही देश भारत के 8 राज्यों में अल्पसंख्यक हो चला है

कश्मीर में हिन्दुओं पर हमलों का सिलसिला 1989 में जिहाद के लिए गठित संगठनों ने शुरू किया था जिनका नारा था- तुम भागो या मरो इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए असम कभी 100 प्रतिशत हिन्दू बहुल राज्य हुआ करता था किन्तु आज असम के 27 जिलों में से 9 मुस्लिम बहुल आबादी वाले जिले बन चुके हैं, जहां आतंक का राज कायम है पिछले चार दशक से जारी घुसपैठ के दौरान बंगलादेशी घुसपैठियों ने वहां बोडो हिन्दुओं की खेती की 73 फीसदी जमीन पर कब्जा कर लिया अब बोडो के पास सिर्फ 27 फीसदी जमीन है सरकार ने वोट की राजनीति के चलते कभी भी इस सामाजिक बदलाव पर ध्यान नहीं दिया इसी कारण असम के लोग अब अपनी ही धरती पर शरणार्थी बन गए हैं

वोट की राजनीति के चलते राजनितिक दलों ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को असम, उत्तर पूर्वांचल और भारत के अन्य राज्यों में बसने दिया राजनीति के कारण ही बंगाल के कई इलाके मुस्लिम बहुल हो चुके हैं और हिंदुओं का इन इलाकों में जीना भी दूभर हो गया है राज्य में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या एक करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है अवैध घुसपैठ ने राज्य की जनसंख्या का समीकरण बदलकर  दिया है उन्हें सियासत के चक्कर में देश में वोटर कार्ड, राशन कार्ड जैसी सुविधाएं मुहैया करवा दी जाती हैं और इसी आधार पर वे देश की आबादी से जुड़ जाते हैं और कुछ दिन बाद दूसरे समुदाय की महिलाओं और जमीन पर कब्जे की कोशिश शुरू कर देते है बंगाल से केरल तक अनेकों खबरें अखबारों से लेकर मीडिया में शोर सुनते आ रहे है

जम्मू बंगाल और केरल की बात बहुत दूर की है आज हालात ये हो गये है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी में लोगों को असुरक्षा के कारण पलायन करना पड़े, उनके सामने दुर्गा, शिव, राम, हनुमान समेत अन्य हिन्दू देवी देवताओं की झांकियों वाले मंदिर में तोड़फोड़ कर दी जाये लेकिन इसके बावजूद लुटियंस मीडिया को अब तक दिल्ली में रहने वाले हिंदुओं की पीड़ा नजर नहीं आई ये वही मीडिया है जो सीरिया और बाग्लादेश के लोगों के पलायन करने पर खूब मातम मनाती है रोहिंग्या को लेकर रोती दिखती है लेकिन जब देश की राजधानी के आसपास हिंदू पलायन करने पर मजबूर हैं तो उसने चुप्पी साध रखी है सवाल पलायनवादी हिन्दुओं से भी है कि कब तक, कहाँ तक पलायन करेंगे?
राजीव चौधरी 

जीसस ही ईश्वर है ?


जीसस के अनुयायियों ने कब और क्यों जीसस को भगवान के रूप में कहना शुरू किया और इसका क्या कारण था ऐसे कई सवाल अभी भी मिथकों में लिपटे पड़े है। कुछ लोग कहते हैं कि जीसस सिर्फ एक आदमी था जिसे उनकी मृत्यु के बाद भगवान बना दिया गया। जबकि बाइबल कहती है कि जीसस ईश्वर के पुत्र और स्वयं पूरी तरह से ईश्वर थे। हालाँकि ऐसा बाइबिल में करीब 2500 साल पहले लिखा गया था। परन्तु अब कुछ जिज्ञासु लोग प्रश्न करते है कि भगवान कैसे एक आदमी बन गया या एक आदमी कैसे भगवान बन गया?

हम इस सवाल पर नहीं ठहरते कि क्या जीसस ईश्वर थे या वो ईश्वर के पुत्र। या फिर क्या जीसस वास्तव में मरने के बाद जिन्दा हुए थे और क्या वह मरे हुए लोगों को जिन्दा कर दिया करते थे। हम इन तमाम प्रश्नों को खुले छोड़ देते हैं। ये सब धार्मिक विश्वासों, आस्थाओं पर आधारित धार्मिक प्रश्न हैं। किन्तु हम एक इतिहासकार के रूप में यह जानने की कोशिश तो कर सकते कि क्या वास्तव ऐसा ही था या कुछ और था?

असल में ये ठीक उसी समय की कहानी है जब रोमन जनता अपने सम्राटों को ईश्वर कहा करती थी। ये सच है कि जीसस एक अध्यात्मिक व्यक्ति थे कुछ लोग उनका अनुसरण भी करते थे। तो यह एक शाब्दिक दुर्घटना हो सकती है। जैसे भारत में ही सन 1830 में मृत्यु को प्राप्त हुए स्वामिनारायण  उर्फ सहजानन्द स्वामी को सब अवतारों का अवतार घोषित कर भगवान बनाकर आज उनके नाम से अक्षरधाम मंदिर देश विदेश में खड़े कर दिए इसी तरह जीसस को भी सम्राट की उपाधि दे दी हो या फिर जीसस और वहां तत्कालीन सम्राटों के बीच एक प्रतियोगिता हो कि भगवान कौन? हालाँकि इस प्रतियोगिता में जीसस की हार हुई और दंड स्वरूप जीसस को सूली पर चढ़ा दिया गया।

कहा जाता है मृत्यु के पश्चात जीसस को एक कब्र में रखा गया था और तीन दिन बाद जब कुछ महिलाएं वहां पहुंची तो उस कब्र को खाली पाया। इसके बाद उनके स्वर्ग में जाने की कहानियों का अविष्कार हुआ। लेकिन क्या सिर्फ खाली कब्र की वजह से लोग उनके ईश्वर होने पर विश्वास करने लगे? सोचिए आप किसी को कब्र में दफनाते हैं और उसके तीन दिन बाद आप वापस जाते हैं और शरीर कब्र में नहीं है, तो आपके मन पहला विचार क्या आएगा! क्या किसी ने शरीर चुराया है? या किसी ने शरीर को स्थानांतरित कर दिया हो? ये आ सकता है कि अरे कहीं में मैं गलत कब्र पर तो नहीं आ गया हूँ? या इन सबके विपरीत ये विचार आएगा कि वाह वह स्वर्ग में ले जाया गया है और ईश्वर का बेटा बन गया है?

हालाँकि ऐसे सब विचार लोगों की सोच और विवेक पर निर्भर करते है। किन्तु कब्र का खाली पाया जाना एक ऐतिहासिक सवाल है और स्वर्ग में जाना धार्मिक आस्था का और आस्था सवालों को ढक देती है; परन्तु इतिहास तो हमेशा नये सवाल कुरेदता है। इसलिए इतिहास कहता है खाली कब्र भ्रम पैदा कर सकती है, अगर भ्रम के बजाय विश्वास पैदा हो तो इसे आध्यात्मिकता की कमी समझी जाये।

बताया जाता है जीसस को सूली रोमन गवर्नर पोंटियस के आदेश पर हुई थी। एक अपराधी मानते हुए उन्हें यह सजा दी गयी थी तो जाहिर है उनका शव किसी तरह की आम कब्र में दफना दिया गया होगा! जीसस की मृत्यु के बाद कब्र से गायब होने की घटना की अफवाह रोमन साम्राज्य में फैलती गयी लोगों ने अलग-अलग तरीकों से घटना का चमत्कारिक ढंग से उल्लेख किया कि रोम में जबरदस्त बदलाव आ गया। सम्राट कॉन्सटेंटाइन को धर्म की समझ कितनी थी कह नहीं सकते लेकिन राजनीति की समझ थी, विद्रोह का भय था अतरू सम्राट कॉन्सटेंटाइन जनता के इस विचार के साथ खड़ा हो गया और जीसस को मरणोप्रान्त अपने समकक्ष ईश्वर की उपाधि तक प्रदान कर दी।

यदि रोम का इतिहास देखा जाये तो उस समय का रोम आज की तरह शिक्षित नहीं था। जीसस यदि स्वयं के ईश्वर होने का दावा कर रहे थे तो सोचिए वह उन लोगों से कह रहे थे जो कबीलों और गुफाओं में रहते थे। बिखरा हुआ समाज था, लोग एक मत नहीं थे। जीसस की मृत्यु के बाद रोमन सम्राट ने इसका लाभ उठाया और रोम को ईसाई धर्म राज्य बना डाला यदि वह ऐसा नहीं करते तो रोम कभी भी प्रमुख धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक ताकत नहीं बन पाती। और यह सब इस दावे पर टिका था कि जीसस ही ईश्वर और ईश्वर के पुत्र थे। यदि इसे धार्मिकता के आधार पर भी देखें तो जैसा कि घोषणा की गयी कि जीसस ईश्वर थे और वह ईश्वर के बेटे थे क्या इस हिसाब ईश्वर दो नहीं हो गये? तो एक समय दो ईश्वर कैसे हो सकते हैं? क्योंकि एक ही समय में एक आदमी कहे कि वह ही ईश्वर है और वह ही ईश्वर का बेटा है तो दुविधा खड़ी हो जाती है। फिर तो ईश्वर की पत्नी भी होगी और ईश्वर की ससुराल भी, उसके माता पिता भी होंगे भाई बंधू भी तब क्या यह माना जाये कि इंसानों की तरह ईश्वर का भी अपना पूरा परिवार है?
राजीव चौधरी