Wednesday 2 August 2017

अभी जिन्दा है जिन्ना!!

मद्रास हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि राष्ट्रगीत ‘‘वन्दे मातरम्’’ सभी स्कूलों, कॉलेजों और शिक्षण संस्थानों में हफ्ते में एक दिन गाना अनिवार्य होगा। इसके साथ ही सभी सरकारी और निजी कार्यालयों में महीने में एक दिन ‘‘वन्दे मातरम’’ गाना ही होगा। जस्टिस एम.वी. मुरलीधरन ने यह भी आदेश दिया है कि वन्दे मातरम् को तमिल और अंग्रेजी में अनुवाद करना चाहिए और उन लोगों के बीच भी बांटना चाहिए जिन्हें संस्कृत या बंगाली में गाने में समस्या होती है। अदालत ने अपने आदेश में  कहा है कि शैक्षणिक संस्थान हफ्ते में सोमवार या शुक्रवार को वंदे मातरम गाने के लिए चुन सकते हैं।

अदालत ने यह भी कहा, ‘‘इस देश’’ में सभी नागरिकों के लिए देशभक्ति जरूरी है। यह देश हमारी मातृभूमि है और देश के हर नागरिक को इसे याद रखना चाहिए। आजादी की दशकों लम्बी लड़ाई में कई लोगों ने अपने और अपने परिवारों की जान गंवाई है। इस मुश्किल घड़ी में राष्ट्रगीत वंदे मातरम् से विश्वास की भावना और लोगों में भरोसा जगाने में मदद मिली थी।


लेकिन कोर्ट के इस फैसले से अचानक मुस्लिम धर्म गुरुओं का एक तबका फिर से उठ खड़ा हुआ है कि ये वन्दे मातरम् तो मजहब के खिलाफ है! कुछ मौलाना कह रहे हैं कि इस्लाम अल्लाह को नमन करना सिखाता है माँ-बाप या मुल्क को नहीं! क्या इन मौलानाओं का यह विरोध आज भी मध्ययुगीन समाज के अतार्किक होने का एक रूप है या फिर 1938 में मुहम्मद अली जिन्ना ने जब खुले तौर पर पार्टी के अधिवेशनों में वन्दे मातरम् गाए जाने के खिलाफ बगावत की थी क्या आज भी जिन्ना वाली सोच को जिन्दा रखने का काम हो रहा है? इस एकछत्र धार्मिक नियंत्रणवाद ने इस्लाम के दिल में खतरनाक घाव कर दिया है आज फिर  मद्रास कोर्ट के एक फैसले के बाद इसकी कराह सुनी जा सकती है। इस्लाम के झंडे तले दुनिया को देखने की ख्वाहिश रखने वाले लोग ‘‘देश’’ या ‘‘देश या देशप्रेम’’ जैसी किसी विचाधारा  से ही मतलब नहीं रखते?

देश का बँटवारा हुआ। पाकिस्तान बन गया। जिन्ना चले गए। लेकिन वह सोच यहीं रह गयी। अगर चरखा, सत्याग्रह और अहिंसा आजादी की लड़ाई के हथियार थे तो वन्दे मातरम् भी उनमें से एक था। फिर वन्दे मातरम् के लिए आज तक अदालती लड़ाइयाँ क्यों चल रही हैं?  सवाल ये भी है कि मुहम्मद अली जिन्ना के नींद से जागने के बाद सिखाया गया कि इस्लाम में वन्देमातरम् हराम है? क्योंकि 1905 में बंगाल विभाजन रोकने के लिए जो बंग-भंग आंदोलन चला उसमें किसी ने हिन्दू मुसलमान के आधार पर वन्दे मातरम् का बहिष्कार नहीं किया। हिन्दू और मुसलमान एक साथ एक सुर में वन्देमातरम् का जय घोष कर बलिदान की वेदी पर चढ़ गये थे, लेकिन बाद में जिन्ना आया और जिन्ना के साथ ये विचार कि वन्देमातरम गीत इस्लाम का हिस्सा नहीं है।

देश के ऊपर प्राण न्योछावर करने वाले वीर अब्दुल हमीद या शहीद अश्फाक उल्लाह खां ने वन्दे मातरम के नारे लगा कर जो शहादतें दीं क्या वह भी अब धर्म के पलड़े में रख के तौली जाएँगी? हालाकि यह स्पष्ट कर दूँ ये सभी मुस्लिमों की आवाज नहीं है लेकिन जिनकी है उनकी सोच पर आज भी मोहमद अली जिन्ना सवार है। जो लोग आज कह रहे हैं कि इस्लाम में एक सजदा है वह सिर्फ उनके खुदा के लिए है चलो इस एकेश्वाद का स्वागत है किन्तु इस एकेश्वरवाद में राष्ट्र के राष्ट्रीय गीत, प्रतीकों और चिन्हों को मजहब के नाम पर क्यों हासिये पर धकेला जा रहा है? आप अपने मजहब से जुडे़ रहिये लेकिन राष्ट्र की एकता के मूल्यों से मजहब को दूर रखिये। यहां तो मामूली आलोचनाओं पर भी लोग मजहब के नाम पर भीड़ इकट्ठी कर बाजार को आग के हवाले करने निकल आते हैं। श्रीलंका या इंडोनेशिया के मुसलमान अगर देश के सम्मान में लिखा गया गीत शान से गाते हैं तो क्या वह भारतीयों से कम मुसलमान हो जाते हैं

कांग्रेस पार्टी के सारे अधिवेशन वन्दे मातरम् से शुरू होते रहे, तब तक जब तक कि मुस्लिम लीग का बीज नहीं पड़ा था। 1923 के अधिवेशन में मुहम्मद अली जौहर ने कांग्रेस के अधिवेशन की शुरुआत वन्दे मातरम् से करने का विरोध किया और मंच से उतर के चले गए। दिलचस्प ये है कि इसी साल मौलाना अबुल कलाम आजाद कांग्रेस के अध्यक्ष थे तभी से जिन्ना का समर्थन करने वालों ने वन्दे मातरम् का विरोध करना शुरू कर दिया। जिन्ना पाकिस्तान चले गये लेकिन वन्देमातरम् का विरोध यहीं रह गया।

रही बात मजहब के आदर की तो वह कौन तय करेगा। कब और कहां से तय होगा। क्योंकि आप कहते हैं कि न हम भारत माता की जय बोलेंगे, न ही वन्देमातरम बोलेंगे। आज मैं इन सभी इस्लाम के कथित ठेकेदारों से पूछना चाहता हूँ कि वे हमें बताएं कि आखिर किस तरह से कुरान देश विरोधी नारेबाजी लगाने वालां को गलत नहीं मानती लेकिन देशभक्ति के नारे लगाना गलत मानती है। वह जरा विस्तार से बताएं कि कुरान की किस आयत में ये सब लिखा है और यदि कुरान में ऐसा कुछ नहीं लिखा है तो "कृपया अपनी ओछी राजनीति के लिए इस देश के मुसलमानों को गुमराह करना बंद कर दें। इस्लाम के इन सभी कथित ठेकेदारों की राजनीति की वजह से इस देश में मुसलमानों एवं अन्य धर्मों के लोगों के बीच एक गहरी खाई बनती जा रही है।  मैं एक बार फिर इस देश के सभी मुसलमानों से यही कहूँगा कि अपना सही आदर्श चुनें एवं समाज में जहर घोलने वाले इन लोगों से दूर रहे एवं इनका खुल कर विरोध करें।"
-राजीव चौधरी


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