Sunday 30 December 2018

क्या वाकई में देश में डर का माहौल है.?


जब हम टीवी ऑन करते है तब टीवी पर एंकर चीख रही होती है कि क्या देश में डर का माहौल है? फिर वह कहती है कि यह मैं नहीं कह रही, यह तो फलां नेता, अभिनेता या बुद्धिजीवी कह रहा है। इसके बाद स्टुडियों में कुछ लोग बैठे होते है, जो अखलाक, पहलु खान या गौरक्षकों की दनदनाहट का हवाला देकर कहते है कि जी हाँ देश में डर का माहौल है?

फिर अचानक दूसरा पक्ष पूछ उठता है कि आज एक घटना पर डरने वाले ये लोग 1984 के दंगों पर क्यों नहीं डरे? 90 के दशक में कश्मीर में पंडितों के साथ हुई भयानक साम्प्रदायिक त्रासदी के वक्त इनका डर कहाँ था? ताज होटल पर हमले के वक्त या दिल्ली-मुम्बई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के समय इन लोगों को डर क्यों नहीं लगा?  सवालों और जवाबों से स्टुडियों का माहौल गर्मा जाता है। अंत में हमेशा की तरह शो खत्म हो जाता है।

असल में सच यही है कि देश में कुछ लोग डरे हुए है और कुछ लोग डरा रहे है।  डरे हुए ये कुछ लोग वो है जिनके पास करोड़ों अरबो की संपत्ति, नाम और पहचान है या जो सत्ता की कुर्सी से बाहर है।
 अब इन्हें डरा कौन रहा है बस कुछ ऐसे ही लोग है जो इन्हें डरा रहे है। ऐसे माहौल को लेकर कुछ लोग चिंतित भी जरुर हैं। इनमें चिंता करते हुए कुछ पत्रकार है, कुछ नेता है और कुछ अभिनेता भी शामिल हैं।  देश का आम आदमी अपनी रोजी रोटी के लिए दिन रात मेहनत कर रहा है, वह अभी इस डर से बाहर हैं पर कोशिश जारी है कि वह भी कुछ इसी तरह का अपना डर व्यक्त करे।

यह डर का माहौल कुछ इस तरह खड़ा किया जाता है जब एक अतिउत्साहित नेता ताव में आकर बयान देता है, तब अचानक डर के कई बयान सामने आते हैं। मीडिया डर की इस व्यवस्था का हिस्सा बनी हुई है।  बहुत पहले मीडिया का जुनून सार्वजनिक हित के मुद्दे होते थे पर आज उसका जुनून इस डर का माहौल खड़ा करने का रह गया है।
जब नेता डरे हुए बयान नहीं देते तब यह लोग चोटी कटने की घटनाओं को लेकर खौफनाक साउंड के साथ लोगों को डराते है। कभी बुराड़ी में एक परिवार की आत्महत्या को लेकर डरावने एपिसोड बना डालते है। यकीन न हो देखिये सुबह-सुबह सभी चैनलों पर बैठे बाबा किस तरह राहु-केतु से लेकर शनि मंगल, अमंगल, और राशियों से डरा रहे होते हैं।
हिंसा और  हत्या हर एक शासक के काल में होते रहे है इससे कोई भी युग अछूता नहीं रहा है, बड़े-बड़े सम्राटों से लेकर आज की वर्तमान लोकतान्त्रिक प्रणाली तक, कोई एक वर्ष ऐसा नहीं रहा होगा, जब काल के चेहरे पर रक्त के छींटे न पड़े हों।

परन्तु  उस इतिहास के एक भी पन्ने पर हमने अपनी एकता, समरसता से कभी डर को निकट नहीं आने दिया, लेकिन आज स्वतंत्र रूप से बड़े-बड़े आलीशान बंगलों में सुरक्षाकर्मियों के बीच रहते हुए यदि हम भय महसूस करें तो इसमें राजनीति कितनी है और डर कितना आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं?
मुझे नहीं पता अचानक सुप्रीम कोर्ट के बड़े जज क्यों डर जाते है।  अचानक नसीरुद्दीन शाह क्यों डर जाते है।  डर कुछ ऐसा है कि कभी अचानक से राहुल गाँधी डर कर कहते है कि देश में डर का माहौल है और पाकिस्तान जैसी स्थिति हैं।  कभी आमिर खान, इसी डर के बारे में सुरक्षित देश खोजने की बात करते है तो कभी अरुण शौरी बात करते हुए कहते है कि देश में डर और बेबसी का माहौल है।

हालाँकि यह डर सबको नहीं डराता सिर्फ उन्हें डराता है, जिनको इससे डर लगता है। ऐसे ही लोगों के आस-पास डर का माहौल रचा जाता है। यही वह माहौल है जहां से एक बुद्धिजीवी दूसरे बुद्धिजीवी को, एक नेता दूसरे नेता को, एक अभिनेता दूसरे अभिनेता को डरा रहा है, इसके बाद इस डर को मीडिया परदे पर लेकर आती है ताकि देश के लोग भी इस डर को महसूस करें।

इन लोगों के मुताबिक देश का आम आदमी कुछ बोल नही पा रहा हैं, वह डरा हुआ है लेकिन क्या सच में ऐसा हो रहा है? या फिर डर का एक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि मुझे बाजारों में, सड़कों पर, मेट्रो या किसी सार्वजनिक स्थान पर डरे हुए लोग नहीं मिल रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि लोग बिलकुल निडर हैं, कभी डरते नहीं है। लोग डरते हैं पर तब डरते है, जब एक मासूम बच्ची को उठाकर कुछ दरिन्दे रेप कर देते है।  लोग तब डर जाते है, जब सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नहीं मिलता। हम तब तक डरे रहते है जब तक शाम को बेटी सकुशल घर वापिस नहीं आ जाती।  हम तब तक डरे हुए रहते है, जब तक बिना रिश्वत दिए बेटे की नौकरी नहीं लग जाती और बिना दहेज के बेटी की शादी नहीं हो जाती।  बिना रिश्वत और चक्कर काटे थाने से एक इन्क्वारी तक पूरी नहीं हो जाती या बिना पैसे और विनती के बिजली का बिल ठीक नहीं हो जाता।
हमारे तो बस ये डर है बाकी हमारे डर नहीं है। ये जो हर रोज जो बयानों के डर खड़े किये जाते है ये आम आदमी के डर नहीं है।  ऐसे डर देश को आर्थिक, राजनीतिक और विदेशी ताकतों से कैसे निकाल पाएंगे फिलहाल ये सोचने का समय किसी के पास नहीं हैं।  बस कोई एक डरा रहा है और दूसरा डर रहा है, मुझे नहीं पता इससे देश के आम नागरिक को क्या मिल रहा है।



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