Thursday 11 January 2018

विवाद की जड़ पुरातन गौरव तो नहीं

खबर हैं कि महाराष्ट्र में पुणे के नजदीक कोरेगांव भीमा में दलितों पर हुए कथित हमले के बाद मंगलवार को महाराष्ट्र के कई इलाकों में दलित संगठनों ने प्रदर्शन किया. कोरेगांव भीमा की घटना के 200 साल पूरे होने की खुशी में सोमवार को एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस दौरान अचानक हिंसा भड़क उठी थी. घटना में एक शख्स की मौत हो गई.
मंगलवार दोपहर तीन बजे के आसपास मुंबई के चेंबूर, गोवंडी और घाटकोपर इलाकों में रास्ता जाम किया गया और पत्थरबाजी हुई. इन इलाक़ों में दलित आबादी काफी है. प्रदर्शनकारियों ने आगजनी भी की. पुणे के पिंपरी में शाम साढ़े पांच बजे के आसपास चक्काजाम शुरू हुआ और कई कारों को आग लगा दी गई. पुणे में मुख्यमंत्री फडणवीस को एक कार्यक्रम में शामिल होना था लेकिन इसे रद्द कर दिया गया. बुधवार को विपक्ष के नेता इस मामले में काफी नाराज दिखे उन्होंने लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के सामने कागज पर लिखे विरोध पत्र को पढ़कर सबको सुनाया.
हो सकता है एक दो दिन में भड़की हिंसा शांत हो जाये, धारा 144 हट जाये, जनजीवन सामान्य होकर ऑटो रिक्शा वाला बिना जाति-मजहब का सवाल किये सवारी उठाए, लेकिन जातिवाद का ये हिंसा और तांडव बर्षो तक नेता याद दिला-दिलाकर वोट जरुर लेते रहेंगे.

जातीय गर्व और उनकी मांग की बात करें तो हरियाणा में जाट आन्दोलन हुआ 28 मरें, गुजरात में पटेल आन्दोलन, दार्जलिंग में भाषा और क्षेत्र के लिए आग लगाई गयी, ऊना में दलितों की पिटाई करके कथित गौरक्षक दलों का छलकता गर्व सबने वीडियो में देखा ही था. इसके बाद बाबाओं की भक्ति ने भी कुछ जाने ली. पिछले साल जातीय गौरव ने ही सहारनपुर के शब्बीरपुर में आग लगाई थी. . कल सुखबीर फल वाला कह रहा था कि भाई लोकतंत्र में वोटों की बंदरबाट युहीं होती है देश में दो तरह के लोग ज्यादा मरते है एक तो वो जो बाट जोह रहे होते है कि सरकार हमारे लिए कुछ करेगी और दूसरा वो जो यह सोचकर देश में आग लगाते है कि चलो हम ही कुछ करते है.

कहा जा रहा है दो सौ साल पहले हुए भीमा-कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं सालगिरह मनाई जा रही थी. हर साल यह दिन बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है. पर इस वर्ष फिजा बिगड़ गयी जिस पर मायावती ने कहा, महाराष्ट्र में कार्यक्रम के दौरान सरकार को सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए थी. ये नहीं चाहते कि दलित वर्ग के लोग अपने इतिहास को बरकरार रखें. ये नहीं चाहते हैं कि दलित सम्मान और गर्व के साथ जिंदगी बिताएं.

पता नहीं नेताओं और मीडिया में कौन ज्यादा दूध का धुला है पर मायावती के इस बयान के बाद मामला समझ में आ गया कि देश में जातिवादी राजनीति करने वाले नेता इतिहास से गर्व और गौरव टटोलकर लोगों को थमा रहे है. पर दूसरी बात ये समझ से परे है कि लोगों को रोटी, मकान, दवा या रोजगार की जरूरत है या ऐतिहासिक पुरातन गर्व की? किसी की समझ में आ जाये तो मेरे जैसे संता-बंता, पप्पू, बिट्टू टाइप के लोगों को जरुर बताना. मैं भी किसी भूखे नंगे को एक दो कटोरी पुरातन गर्व और इतिहास थमा दूंगा.

कुछ लोग कह रहे कि दलितों का अंग्रेजों के साथ मिलकर पेशवाओं को हराने में अपने ही भाई बंधुओं से लड़ने में कैसा गर्व? बात भी सही है. ये बिलकुल ऐसा ही है जैसे 21 बार धरती को क्षत्रीय विहीन करने वाले महापुरुष भगवान की जयंती मनाना, गर्व से कहना की हमने 21 बार इस धरा को क्षत्रियों से विहीन कर दिया था.
पता नहीं उन क्षत्रियों की मौत का गर्व मनाना कौनसी मानवता है यदि है तो फिर पेशवाओं की हार को अपमान क्यों समझ रहे हो यदि एतिहासिक गर्व ही चाहिए तो संविधान के अनुसार सबको जातीय गर्व मनाने में समानता का अधिकार होना चाहिए ना?

पर ये बात कौन करें? देश की संसद को और बहुतेरे काम है इसलिए अब देश में धर्म संसद शुरू हो गयी है वो बता रही है कि कि हिंदू मोबाइल फोन फेंककर अपने हाथों में शस्त्र धारण करें, सब कुछ इसी तरह गर्व के साथ चलता रहा तो कुछ दिन बाद जातीय संसद फिर उपजातीय संसद भी शुरू हो जाएगी भगवान ने चाहा तो ज्यादा दिन नहीं लगेंगे विश्व गुरु को कबीलो में तब्दील होने में. सुखबीर फल वाले की माने तो यहां दो तरह के लोग हैं एक तो वह जिन्हें मौका मिल गया. दूसरा वह जिन्हें अभी मौका नहीं मिला. फुल स्टॉप ...लेख राजीव चौधरी 




No comments:

Post a Comment