Monday 29 January 2018

तो फिर इस देश में धर्मनिरपेक्ष क्या हैं?

विश्व की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया की जलसेना का ध्येय वाक्य हैं जलेष्वेव जयामहे संस्कृत भाषा में हैं लेकिन ये कभी वहां साम्प्रदायिक नहीं हुआ. पर विश्व में तीसरे नम्बर पर बोली जाने वाली भाषा हिंदी और संस्कृत में गाये जाने वाली स्कूल की प्रार्थना हिंदुस्तान में साम्प्रदायिक हो गयी. जब 10 जनवरी को विश्वभर में विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाये प्रेषित की जा रही थी तब माननीय उच्च न्यायालय केंद्र सरकार से सवाल पूछ रहा था कि विद्यालयों में हिंदी और संस्कृत भाषा में गाई जाने वाली प्रार्थना कहीं साम्प्रदायिक तो नही?

हालाँकि लोगों को उस समय ही समझ जाना चाहिए था जब बच्चों की किताब में से गणेश सांप्रदायिक हुआ और उसकी जगह से गधे धर्मनिरपेक्ष ने ले ली थी. लेकिन इसके बाद भारत माता की जय साम्प्रदायिक हुआ, फिर राष्ट्रगीत वंदेमातरम् और राष्ट्रगान भी साम्प्रदायिक हुआ. अब देश के एक हजार से ज्यादा केंद्रीय विद्यालयों में बच्चों द्वारा सुबह की सभा में गाई जाने वाली प्रार्थना भी साम्प्रदायिक हो गयी? हो सकता हैं कुछ दिन बाद देश का नाम भी साम्प्रदायिक हो जाये और इसे भी बदलने के लिए नये नाम किसी विदेशी शब्दकोष से ढूंडकर सुझाये जाने लगे. इस हिसाब तो अब तय हो जाना चाहिए कि आखिर इस देश में धर्मनिरपेक्ष क्या हैं?

देश की सबसे बड़ी न्यायिक संस्था द्वारा पूछा गया सवाल किस और इशारा कर रहा है समझ जाईये सुप्रीम कोर्ट पूछ रही है कि क्या विद्यालयों में सुबह गाये जाने वाली प्रार्थना क्या किसी धर्म विशेष का प्रचार है? लगभग पचास सालों से गाई जा रही प्रार्थना सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द का प्रतीक थी और अब अचानक धर्म विशेष का प्रचार करने वाली बन गई. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीर संवैधानिक मुद्दा मानते हुए कहा है कि इस पर विचार जरूरी है. कोर्ट ने इस सिलसिले में केंद्र सरकार और केंद्रीय विश्वविद्यालयों नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

यदि केन्द्रीय विद्यालयों के मानव कल्याण के गीत साम्प्रदायिक हैं तो कश्मीर की मस्जिदों मदरसों में जब ये गीत गाए जाते हैं कि खुदा के दीन के लिए, ये सरफरोश चल पड़े, ये दुश्मनों की गर्दनें उड़ाने आज चल पड़े किसी में इतना दम कहां कि इनके आगे डट सके तो इन्हें क्या कहेंगे? कमाल हैं ना पुरे देश में एक साथ एक ऊँचे स्वर में दिन में पांच बार गूंजने वाली अरबी भाषा में अजान धर्मनिरपेक्ष हैं और स्कूलों में सत्य और मानवता की राह सिखाने वाले हिंदी और संस्कृत के कुछ वाक्य साम्प्रदायिक? इन प्रार्थनाओं में कौनसे धर्म का या किस धर्म के भगवान का नाम आ रहा है ? क्या सभी के कल्याण की प्रार्थना ऐसे शब्दों में जिसमें किसी धर्म या भगवान का नाम नहीं है, नही की जा सकती?

ऐसा क्यों हैं थानों में तहरीर से लेकर तहसील में बेनावे रजिस्ट्री के सारे काम उर्दू में होते है वो सब धर्मनिरपेक्षता है और भारतीय भाषा में बोले जाना वाला अभिवादन शब्द नमस्ते साम्प्रदायिक? माननीय उच्च न्यायालय में ही जिरह, बहस, वहां के अधिकांश कार्य उर्दू भाषा में होते आ रहे हैं क्या सर्वोच्च अदालत ने कभी इस पर सवाल क्यों नहीं पूछा? हो सकता हैं कल हिंदी सिनेमा से भी पूछ लिया जाये आप हिंदी में फिल्में बनाते है क्या यह किसी धर्म विशेष का प्रचार तो नहीं हैं? या फिर हिंदी सिनेमा के गानों पर भी सवाल खड़े होने लगे?

दूसरी बात यदि स्कूल में प्रार्थना में बोले जाने वाला संस्कृत का श्लोक साम्प्रदायिक हैं तो माननीय उच्च न्यायालय जी उच्चतम न्यायालय के चिन्ह नीचे से यतो धर्मस्ततो जयः का वाक्य हटाकर कलमा लिखवा दीजिये? भारत सरकार के राष्ट्रीय चिन्ह से सत्यमेव जयते, दूरदर्शन से सत्यं शिवम् सुन्दरम,  आल इंडिया रेडियो से सर्वजन हिताय सर्वजनसुखाय‌, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी से हव्याभिर्भगः सवितुर्वरेण्यं और भारतीय प्रशासनिक सेवा अकादमी से योगः कर्मसु कौशलं शब्द भी इस हिसाब से साम्प्रदायिक हैं? दरअसल ये 21 वीं सदी का भारत है जिसे यहाँ कुछ काम नहीं होता वो यहाँ कि सांस्कृतिक विरासतों, धरोहरो, से छेड़छाड़ करने लगता हैं बाकि बचा काम मीडिया में बैठे कथित बुद्धिजीवी पूरा कर देते है.
दया कर दान विद्या का हमें परमात्मा देना
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना
हमारे ध्यान में आओ प्रभु आंखों में बस जाओ
अंधेरे दिल में आकर के प्रभु ज्योति जगा देना

या फिर असतो मा सदगमय॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥ अर्थात हमको असत्य से सत्य की ओर ले चलो. अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो. मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो. इसमें कौनसा ऐसा शब्द है जो किसी धर्म या पंथ की भावना पर हमला कर रहा हैं? क्या अब संस्कृत और हिंदी के श्लोको और वैदिक प्रार्थना पर अदालत की कुंडिया खटका करेगी? किसी भी देश की संस्कृति उसका धर्म उसी की भाषा में ही समझा जा सकता हैं हिंदी और संस्कृत तो हमारे देश के मूल स्वभाव में हैं क्या अब देश के मूल स्वभाव को बताने के लिए न्यायालय की जरूरत पड़ेगी. यदि प्रार्थना के यही शब्द उर्दू या अरबी में लिख दिए जाये तो क्या इसमें धर्मनिरपेक्षता आ जाएगी?
किसी ने इस याचिका पर सही लिखा कि इस प्रार्थना के एक-एक शब्द पर गौर करें तो भी कहीं यह संकेत नहीं मिलता कि यह किसी धर्म विशेष का प्रचार कर रही है. इस प्रार्थना में मेलजोल, सद्भाकव, वतनपरस्ती, ईमान, प्रेम, आत्मिक शुद्धता की कामना की गई है. यदि हम अपने बच्चों को यह नहीं सिखाएंगे तो क्या आईएसआईएस और कश्मीरी पत्थरबाजों की भाषा सिखाएंगे. या फिर हम जेएनयू की तरह पाकिस्तान के समर्थन में और भारत के विरुद्ध नारेबाजी केन्द्रीय विद्यालयों या अन्य विद्यालयों में भी सिखाना चाहेंगे. यदि हमारी सोच भारतीय प्रतीकों, चिन्हों आत्मबल पैदा करते गीतों का सिर्फ विरोध करने की है तो हमें डूब मरना चाहिए...राजीव चौधरी 



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