Wednesday 24 May 2017

गारंटी दो, फिर बेटी बचाएंगे!!

हरियाणा के रेवाड़ी में स्कूली छात्राओं के कई दिनों के अनशन के बाद समाचार पत्रों की खबर बनी कि रेवाड़ी की छोरियों ने सरकार को झुका दिया. राज्य के शिक्षा विभाग ने स्कूल के अपग्रेडशन का नोटिस जारी कर दिया है जिसकी एक प्रति अनशन पर बैठीं छात्राओं को भी दी गई है. भले ही लोग इस घटना को छेड़छाड़ से पीड़ित छात्राओं की जीत के तौर पर देख रहे हो लेकिन सच यह कि इस पुरे घटनाक्रम में वो अराजक तत्व, जीत गये जो हर रोज छेड़छाड़ की घटना को अंजाम देते थे और प्रशासन उनके आगे हार गया. गौरतलब है कि 10 मई को राज्य के रेवाड़ी के गोठड़ा टप्पा डहेना गांव की तकरीबन 80 स्कूली छात्राएं भूख हड़ताल पर बैठ गई थीं. उनकी मांग थी कि उनके गांव के सरकारी स्कूल को 10 वीं कक्षा से बढ़ाकर 12वीं तक किया जाए. दरअसल गांव में स्कूल न होने के चलते इन लड़कियों को 3 किलोमीटर दूर दूसरे गांव के स्कूल जाना पड़ता है, जहां रास्ते में आते-जाते अक्सर उन्हें छेड़छाड़ का सामना करना पड़ता है. इस वजह से वे गांव के स्कूल को 12वीं तक करने की मांग कर रही थीं. हरियाणा सरकार ने गांव के स्कूल को 12वीं तक करने की उनकी मांग मान ली जिसके बाद इन छात्राओं ने भूख हड़ताल वापस ले ली.

अभी पिछले दिनों हरियाणा प्रशासन ने लड़कियों और महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ रोकने के लिए ऑपरेशन दुर्गा चलाया था. इसके बाद भी सोनीपत से एक युवती का अपहरण करके उसे रोहतक ले जाया गया और फिर उसके साथ सामूहिक बलात्कार, हत्या के बाद शव को बुरी तरह क्षत-विक्षत कर दिया गया था. दिल्ली के निर्भया कांड को दोहराती इस घटना अपराधियों के बढे होसले दर्शाकर साथ ही देश में बेटियों की सुरक्षा के सवाल पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. जबकि हरियाणा ही वह राज्य है जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटी बचाओ-बेटी पढाओं अभियान की शुरुआत की थी.

यह कोई पहली घटना नहीं है साल 2015 में बरेली से 45 किलोमीटर दूर एक दर्जन गांवों के लोग छेड़छाड़ की वजह से अपनी बेटियों को स्कूल भेजने से रोक लिया था. स्कूल जाने के लिए करीब 200 लड़कियों को नदी पार कर अपने स्कूल शेरगढ़ जाना पड़ता था. लेकिन नदी के उस पार पहुंचते ही गुंडे उनसे छेड़छाड़ करते थे. विरोध करने पर उनके साथ मारपीट की जाती थी. ठीक उसी तरह की घटना अब हरियाणा में हुई. धरने पर बैठी लड़कियां बताती है कि लड़के कभी चुन्नी खींच लेते हैं, कभी कुछ और. ये दुबकती हुई जाती हैं. वो बताती है श्लड़के पीछे से बाइक पर नकाब पहनकर आते हैं, चुन्नी खींचते हैं. रास्ते में प्याऊ के मटके रखे होते हैं, हमें देखकर उन्हें फोड़ते हैं और हमारे ऊपर पानी गिराते हैं. दीवारों पर मोबाइल नंबर लिखकर चले जाते हैं. हम मीडिया के आगे हर चीज तो बता नहीं सकते. लिमिट होती है.


हालांकि शिक्षा मंत्री ने गांव के स्कूल को बारहवीं तक अपग्रेड करवाने का वादा कर दिया है. लेकिन प्रदर्शनकारी इस पर लिखित में आश्वासन चाहते थे. वो कहती है श्वादे हर साल होते हैं, एक भी पूरा नहीं हुआ. फिर भी लगा रखा है- बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ. क्या मतलब है इस नारे का. बंद कर देना चाहिए. क्यों यह मुहिम छेड़ रखी है? या फिर सुरक्षा की पूर्ण गारंटी दो इसके बाद लोग बेटी बचा भी लेंगे और पढ़ा भी लेंगे.

ऐसा नहीं है यह कोई दुर्लभ घटना है और साल दो साल में एक आध बार घट गयी, नहीं यह हर रोज की कहानी है. बस स्टैंड हो या निजी व सरकारी बसों तक में भी बेटियों की हिफाजत के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है. यह भी कड़वा सच है कि पुलिस को ऐसे मामलों में लिखित में शिकायत देने से बच्च्यिां कतराती हैं और शायद कानूनी पचड़ों से बचने के लिए आम नागरिक भी कुछ नहीं करते लेकिन ऐसे मामलों में लड़कियों को सुरक्षित माहौल देने के लिए पुलिस के स्तर पर कड़ी कार्रवाई की जरूरत जरूर महसूस की जा रही. लेकिन बावजूद इस तरह के अराजक तत्वों पर पुलिस कार्रवाई के बजाय बाहर ही समझौता करा दिया जाता है. इस वजह से भी पीडिता कमजोर पड़ जाती है वरना देश की बच्चियां कभी भी पूरी तरह से कमजोर नहीं रहीं और अब तो वो अपने लिए और सुरक्षित जगह ढूंढ रही हैं.

सवाल और भी है कि आखिर यह बीमारी भारत में दिन पर दिन क्यों बढ़ रही है. आप हिंदी फिल्म देखिये अमूमन हर एक फिल्म में नायक स्कूल जाती, ऑफिस जाती नायिका का रास्ता रोककर प्रेम निवेदन करता है उसके कपडें, उसकी चाल, उसकी नजर पर कमेन्ट करता है. तब सिनेमा घर में उपस्थित लोग तालियाँ बजा रहे होते है, सीटियाँ बजाते आसानी से देखे जा सकते है. जिनमे कुछ लोग इसे जायज कृत्य समझकर निजी जीवन में इसका प्रयोग करने से नहीं चुकते है. हरियाणा की ताजा घटना इसका सबसे बड़ा उदहारण है.

इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर एक महिला की पोस्ट ने समाज की आंख खोलते हुए लिखा कि हरियाणा में छेड़छाड़ से तंग आकर लडकियों ने धरना प्रदर्शन किया और अपने ही गांव में स्कूल खुलवा लिया. धरना देने वाली लड़कियां दसवीं की छात्रा थीं. मतलब लगभग 16-17 आयु वर्ग की? इस उम्र में पलायन वादी सोच? गम्भीर बात है. अराजक तत्वों का डटकर मुकाबला करना चाहिए. कल अगर इस स्कूल में कोई परेशानी हुई, तो क्या पढाई छोड़ देगी या स्कूल घर में खुलवा लेगी? घर में शोषण हुआ फिर? पलायनवादी सोच को त्याग कर संघर्षशील प्रवृत्ति को अपना होगा. सरकार भी चंद आपराधिक प्रवृति के लोगों के सामने कैसे झुक गयी? गौरतलब है कि 2016 में रेवाड़ी जिले में ही स्कूल जाते समय एक छात्रा के साथ बलात्कार होने के बाद दो गांवों की लड़कियों ने डर के कारण स्कूल जाना छोड़ दिया था. मुद्दे की एक बात ये भी है कि महिलाओं के कपड़े, मोबाइल फोन और चाउमिन को रेप आदि के लिए जिम्मेदार बताने वाले नेता अगर समाज की मानसिकता को दोषी मान ले तो शायद स्थिति ओर बेहतर हो सके वरना दीवारों पर लिखे नारे बेटी बचाओं सिर्फ हास्य का प्रतीक बनकर रह जायेंगे.
विनय आर्य 


No comments:

Post a Comment