Monday 29 May 2017

मर जाऊँगी, लेकिन अपना धर्म नहीं छोड़ूंगी

नेशनल शूटर तारा शाहदेव की कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है ये साल 2014 में सबको भावुक कर देने वाला वाक्या बना था। उसके शरीर पर प्रताड़ना के घाव, सुबकते, सिसकते होटों से उसके बयान, हर किसी की पलकें भिगो गये थे। अब तीन साल बाद जो सच सामने निकलकर आया वह और भी हैरान कर देने वाला है। लव जिहाद में फंसी नेशनल लेवल की शूटर तारा शाहदेव के मामले में सीबीआई ने कोर्ट में इस केस की चार्जशीट दाखिल की है। सीबीआई की जांच में जो बातें सामने आई हैं वह इस बात का सबूत हैं कि लड़कियों को धोखे में डालकर उनके धर्मान्तरण का बाकायदा अभियान चल रहा है। सीबीआई ने तारा शाहदेव से शादी करने वाले रकीबुल उर्फ रंजीत कुमार कोहली और उसकी मां कौशर के खिलाफ चार्जशीट जमा की है। इसके मुताबिक रकीबुल और उसकी मां तारा से जबरन इस्लाम धर्म कबूल करवाने पर अड़े थे। तारा की सास ने उसे धमकी देते हुए कहा था कि इस्लाम कबूल कर लो, अगर नहीं किया तो तुम्हारा बिस्तर यही रहेगा लेकिन आदमी बदलता रहेगा।’ 

पूरा मामला जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा दरअसल रांची की 23 साल की नेशनल शूटर तारा शाहदेव की रंजीत कोहली उर्फ रकीबुल से 7 जुलाई 2014 को हिन्दू रीति-रिवाज से शादी हुई थी। तारा उसे रंजीत कोहली के नाम से जानती थी और इसी नाम से शादी के कार्ड वगैरह भी छपे थे। लेकिन जब शादी हो गई तो तारा को पता चला कि जिसके साथ वो ब्याहकर आई है वह कोई हिन्दू नहीं, बल्कि एक मुसलमान के घर गई है। उसका पति रंजीत नहीं, बल्कि रकीबुल हसन है। पहली ही रात में रकीबुल और उसकी मां ने तारा से कह दिया कि अब तुम्हें अपना धर्मांतरण करके मुसलमान बनना होगा। जब वह नहीं मानी तो उस पर अमानवीय जुल्म किए गए। जबरन उसका धर्म परिवर्तन भी करा दिया गया।

इस केस की अगली सुनवाई 1 जून को होगी। सीबीआई ने चार्जशीट के साथ वे तमाम सबूत और गवाहों के बयानों को भी पेश किया है, जिससे यह साबित होता है कि तारा शाहदेव को सोची-समझी साजिश के तहत फंसाया गया और उसे झांसे में डालकर शादी की गई। इस सारे खेल का मकसद एक हिन्दू लड़की को मुसलमान बनाना था। सीबीआई ने चार्जशीट में जिक्र किया है कि कैसे 9 जुलाई 2014 के दिन 25 मौलवियों को बुलाकर तारा पर दबाव बनाया गया और उसे धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया। जब वह नहीं तैयार हुई तो उसे बुरी तरह पीटा और कुत्ते से कटवाया गया। यह खबर शायद उन इस्लामविदों को सोचने पर मजबूर कर दे जो न्यूज रूम में बैठकर इस्लाम में नारी के सम्मान की बड़ी-बड़ी डींगे हांकते दिखाई देते हैं।

हर वर्ष भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों में इस मजहबी मानसिकता का शिकार हुई न जाने कितनी तारा शाहदेव किसी खौफ के कोने में दुबकी सिसकती मिल जाएंगी, तारा शाहदेव की कहानी से मिलती एक घटना अभी पिछले दिनों पाकिस्तान में घटी थी। जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी थी। यहाँ तो प्रेम और प्रलोभन जैसे हतकंडे अपनाये जाते है लेकिन वहां तो प्रेम को भी फालतू का स्वांग समझा जाता है। बस जिसका मन करता है वह दिन दहाड़े अन्य समुदायों की खासकर हिन्दू लड़कियों को उठा लिया जाता है। 

पाकिस्तान के मीरपुर खास से डेढ़ घंटे की दूरी पर स्थित एक गांव निवासी अंजू अपने मुसलमान अपहरणकर्ताओं की हिंसा सहने के बाद हाल ही में घर लौटी है। हिन्दू समुदाय के अधिकारों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता राधा बहेल बताती है कि मीरपुर खास जिले में पिछले तीन महीने में तीन हिन्दू लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन करने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। अंजू का पांच मुसलमान पुरुषों ने अपहरण कर लिया था। उसे कुछ महीने कैद में रखा गया ताकि उसका धर्म परिवर्तन किया जा सके। अदालत के दखल के बाद ही अंजू वापस अपने गांव लौट सकी है। जिस 16 साल की उम्र में अंजू को शोख और चंचल होना चाहिए था, लेकिन उनका चेहरा फीका है। अपनी आपबीती सुनाते हुए भी उनकी आँखों में नमी न थी जैसे रोने के लिए उनके पास आंसू भी न बचे हों। 

वह बताती है मैं अपनी मां के साथ खेतों में घास लेने गई थी। पांच लोग बंदूक लेकर आए और बोले कि हमारे साथ चलो नहीं तो गोली मार देंगे। मैं डर के मारे चली गई। वे मुझे बहुत दूर लेकर गए और एक घर में जाकर रस्सियों से बांध दिया। "अंजू का कहना है तीन चार महीनों तक उसे बहुत पीटा गया और ज्यादती की गई, वह बोलते थे कि इस्लाम अपना लो अन्यथा नहीं छोड़ेंगे, लेकिन मैंने कहा कि मैं मर जाऊँगी, लेकिन अपना धर्म नहीं छोड़ूंगी।"

अक्सर हर एक छोटी बड़ी घटना के पीछे कोई न कोई पर्दे के पीछे जरुर खड़ा होता है। जिस तरह तारा शाहदेव के मामले में झारखंड के दो मंत्रियों का नाम आया था, उसी तरह पाकिस्तान की अंजू के मामले में दीनी जमातों और उलेमाओं की एक राय थी कि अंजू के मामले में पुलिस की कार्यवाही इस्लाम के खिलाफ है तो कोई मुसलमान ये कैसे बर्दाश्त कर सकता है। ऐसा नहीं है पाकिस्तान की पुलिस इतनी सक्रिय है कि इस तरह के मामलों में फौरी एक्शन लेती हो! बस जो मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठ जाता है वहां उसे खुद को सेकुलर और प्रशासनिक पाकिस्तान दिखाने का ढोंग करना पड़ता है अंजू के मामले में भी छः महीने बाद कार्यवाही की गई थी।
इस सबसे यही प्रतीत होता है कि किस तरह सत्ता और मजहब की मिली भगत से ही ऐसे घिनौने कृत्यों को अंजाम दिया जाता रहा है। लेकिन सवाल यह है कि इस्लाम के नाम पर अंजू और तारा जैसी मासूम लड़कियों के साथ होने वाली ज्यादती को कैसे रोका जाए? हालांकिअंजू हो या तारा ऐसी मजबूत लड़कियों को हृदय से नमन जिन्होंने इतनी प्रताड़ना, घाव सहकर और विकट परिस्थितियों में रहकर भी अपना धर्म नहीं छोड़ा।
-राजीव चौधरी


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