Wednesday 27 March 2019

शादी के बाद आत्महत्या के बढ़ते मामले


बांदा जिले की बबेरू कोतवाली के पतवन गांव में  22 फरवरी शुक्रवार की रात 28 साल के विकास ने आत्महत्या कर ली. विकास की शादी 21 फरवरी गुरुवार को हुई थी. शनिवार सुबह परिजनों की सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव फंदे से नीचे उतार कर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया.

विकास का शव तो पोस्टमॉर्टम के लिए चला गया लेकिन सवाल घर और समाज में जरुर चीख रहे है कि आखिर ऐसा क्या कारण हुआ जो पहले दिन शादी के सात फेरों पर सात जन्मों के बंधन और रिश्ते को निभाने की शपथ लेकर उठे विकास ने अगली ही रात खुद को मिटा डाला.

वैसे देखें तो हर रोज अखबारों और न्यूज चैनलों में ऐसी खबरें आम होती हैं कि शादी का प्रस्ताव ठुकराए जाने से आहत एक प्रेमी ने खुदकुशी कर ली, शादी के बाद महिला ने आग लगाकर आत्महत्या कर ली या शादी के बाद युवक ने जहर खाकर जान दी और प्रेम प्रसंग के चलते नवविवाहिता ने पंखे से लटककर जान दी आदि-आदि

क्या ये सिर्फ महज संयोग है या मौजूदा दौर का चलन यदि आत्महत्या से जुड़े आंकड़ों पर नजर डालें तो वह हैरान करने वाले हैं कि मानो आज युवा जीने की चाहत भूलकर सिर्फ मौत के बहानों का इंतजार कर रहा हो..

कितना आसान भी है न आत्महत्या करना. घर में रखा कोई कीटनाशक पी लो, या फिर पंखे में रस्सी डालकर लटक जाओ, इतना नहीं हो सकता तो फिर किसी ऊंची जगह से कूद जाओ, ट्रेन की पटरी पर लेट जाओ, ब्लेड से नस काट लो... और भी न जाने कितने तरीके हैं इस जीवनलीला ख़त्म करने के. अब तो इंटरनेट भी ऐसी सुविधाएं देने लगा है जिससे लोगों को नए-नए तरीके मिल रहे है जीवन को समाप्त करने के.

पिछले वर्ष जारी इस रिपोर्ट दावा किया गया है कि भारत में आत्महत्या करने वालों में किसान नहीं बल्कि सबसे ज्यादा युवा हैं. आत्महत्याओं के मामलों को ठीक से जान लेने का यह बिलकुल सही समय है. हमारे देश में हर साल करीब एक लाख लोग आत्महत्या करते हैं. 1994 में जहां 89195 आत्महत्याओं के मामले रिकार्ड किए गए, वो 2004 में 113697 हो गए और 10 साल बाद यानि 2014 में कुल 131666 मामले सामने आए. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल की इस रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या की घटनाओं में 15 साल में 23 प्रतिशत का इजाफा हुआ. साल 2015 में एक लाख 33 हजार से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की जबकि 2000 में ये आंकड़ा एक लाख आठ हजार के करीब था.
आत्महत्या करने वालों में 33 प्रतिशत की उम्र 30 से 45 साल के बीच थी, जबकि आत्महत्या करने वाले क़रीब 32 प्रतिशत लोगों की उम्र 18 साल से 30 साल के बीच थी.

अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्या कारण कि जीवन से इतनी बड़ी संख्या में लोग भाग क्यों रहे है. परिस्थितियों से जूझने का जज्बा समाप्त हो गया या रिश्तों की जिम्मेदारी से भाग रहे है. या फिर अपरिपक्वता के कारण आज का युवा आत्महत्या को ही एक बेहतर विकल्प समझने लगा है.

फिल्मी जीवन से प्रेरित है या फिर गलत आदतों का शिकार आखिर क्यों असंतोष, निराशा एवं कुण्ठा जीवन पर अधिकार कर बैठी है प्रश्न यह भी है कि जिस जिन्दगी से हम इतना प्यार करते हैं, यह अचानक हमें बोझ क्यों लगने लगती हैं? आखिर रिश्तों के भूमि इतनी बंजर क्यों हो गयी कि अचानक उसमें एहसास, भावनाएं और अपनेपन के अंकुर फूटने बंद हो गये.

ध्यान रखिए हमारे आस पास भी एक दुनिया है उसे देखिए एहसास हर रिश्तें को खास बनता है. क्योंकि एहसास ही है जो रिश्तों  को एक  दूसरे से जोड़े रखता है. रिश्तों से भागिए मत रिश्ते ही  है जो जिन्दगी से हार चुके व्यक्ति को फिर से  जीने की  नई  राह  दिखाते है, जो हर दुःख को झेलने की ताकत देते है
हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि आत्महत्या, मृत्यु का सबसे बेकार कारण है. यानी इसे रोका जा सकता है. आत्महत्या को रोकने की जिम्मेदारी हम सब पर है क्योंकि आत्महत्या करने वाले हर व्यक्ति की मौत का असर उसके परिवार, माता-पिता बच्चों से लेकर पूरे समाज पर पड़ता है.
 विनय आर्य 

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