Monday 30 July 2018

भारत माता का महान सपूत था अमर शहीद ऊधम सिंह


13 मार्च 1940 की उस शाम थी लंदन का कैक्सटन हॉल लोगों से खचाखच भरा हुआ था. मौका था ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक का. हॉल में बैठे कई भारतीयों में एक ऐसा भी था जिसके ओवरकोट में एक मोटी किताब थी. यह किताब एक खास मकसद के साथ यहां लाई गई थी. इसके भीतर के पन्नों को चतुराई से काटकर इसमें एक रिवॉल्वर रख दिया गया था.


बैठक खत्म हुई. सब लोग अपनी-अपनी जगह से उठकर जाने लगे. इसी दौरान इस भारतीय ने वह किताब खोली और रिवॉल्वर निकालकर बैठक के वक्ताओं में से एक माइकल ओ’ ड्वायर पर फायर कर दिया. ड्वॉयर को दो गोलियां लगीं और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई. हाल में भगदड़ मच गई. लेकिन इस भारतीय ने भागने की कोशिश नहीं की. उसे गिरफ्तार कर लिया गया. ब्रिटेन में ही उस पर मुकदमा चला और 31 जुलाई 1940 को उसे फांसी हो गई. इस क्रांतिकारी का नाम उधम सिंह था.

इस गोलीकांड का बीज एक दूसरे गोलीकांड से पड़ा था. यह गोलीकांड 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुआ था. इस दिन अंग्रेज जनरल रेजिनाल्ड एडवार्ड हैरी डायर के हुक्म पर इस बाग में इकट्ठा हुए हजारों लोगों पर गोलियों की बारिश कर दी गई थी. बाद में ब्रिटिश सरकार ने जो आंकड़े जारी किए उनके मुताबिक इस घटना में 370 लोग मारे गए थे और 1200 से ज्यादा घायल हुए थे. हालांकि इस आंकड़े को गलत बताते हुए बहुत से लोग मानते हैं कि जनरल डायर की अति ने कम से कम 1000 लोगों की जान ली. ड्वॉयर के पास तब पंजाब के गवर्नर का पद था और इस अधिकारी ने जनरल डायर की कार्रवाई का समर्थन किया था.

उधम सिंह भी उस दिन जलियांवाला बाग में थे. उन्होंने तभी ठान लिया था कि इस नरसंहार का बदला लेना है. जनरल डायर को मारने के बाद बैरिक्सटन जेल में रहे ऊधम सिंह को पूरा आभास था कि जल्द ही उन्हें फांसी दी जाएगी और उन्हें इसकी जरा भी परवाह नहीं थी। ऊधम सिंह फांसी से इतने बेखौफ थे कि वो फांसी के फंदे को वरमाला के रूप में देख रहे थे। जेल में रहते हुए उन्हें इस बात का मलाल भी था कि उनके मुकद्मे पर भारी पैसा खर्च हो रहा है और उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की जाए।

उक्त जज्बात खुद ऊधम सिंह ने अपने हस्तलिखित पत्रों में जाहिर किए हैं। अंग्रेजी में लिखे इन पत्रों को पंजाबी में अनुवाद करके महान शहीद ऊधम सिंह के पैतृक घर में लगाया गया है और इन पत्रों को पढ़कर लोगों में देशभक्ति की भावना पैदा हो रही है। 
फांसी का फंदा चूमने से महज पौने चार माह पहले बैरिकस्टन जेल से लंदन में मित्र शिव सिंह जौहल को लिखे पत्र में ऊधम सिंह ने कहा कि मुझे मालूम है कि जल्द ही मेरी शादी मौत से होने वाली है। मैं मौत से कभी नहीं डरा और मुझे कोई अफसोस नहीं हैं। क्योंकि मैं अपने देश का सिपाही हूं। दस वर्ष पहले मेरा दोस्त मुझे छोड़ गया था। मरने के बाद मैं उसे मिलूंगा और वह भी मेरा इंतजार कर रहा होगा।

अगर आपको पता है कि मेरी मदद कौन कर रहा है तो कृपा करके उन्हें ऐसा करने से रोकें। मुझे खुशी होगी। यह पैसा जरूरतमंदों की पढ़ाई पर खर्च करें। इसके अलावा कई अन्य पत्रों में ऊधम सिंह ने उस वक्त के देश की दयनीय हालात बयां की है। इसके लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद को जिम्मेदार ठहराया है। शहीद ऊधम सिंह ने इन पत्रों में देश प्रेम का जज्बा कूटकूट कर भरा है। आज के नौजवानों को इस जज्बे से अवगत करवाने की जरूरत है। 31 जुलाई आज के दिन जलियांवाला बाग हत्याकांड के दोषी जनरल डायर को मौत के घाट उतारने वाले भारत के मां के वीर सपूत महान क्रांतिकारी अमर शहीद ऊधम सिंह जी की पुण्यतिथि पर आर्य समाज की विनम्र श्रद्धांजलि..

आर्य समाज

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