Sunday 8 April 2018

क्या बृहदारण्यक उपनिषद में मांसाहार का विधान है?

समाधान
बृहद अरण्यक उपनिषद् ६/४/१८ में मांसाहार के विषय में शंका आती है कि उत्तम संतान कि प्राप्ति के लिए मांस ग्रहण करना चाहिए।
मांसमिक्षमोदनं मांसौदनम्. तन्मांसनियमार्थमाह – आक्षौण वा मांसेन. उक्षा सेचनसमर्थः पुंगवस्तवीयं मांसम्। ॠरिषभस्ततोSप्यधिकवयास्तदीयमार्षभं मांसम्।
शंकराचार्य द्वारा किये गए अर्थ से मांस का ग्रहण करना प्रतीत होता है।
जबकि इसका अर्थ पंडित सत्यव्रत जी सिद्धान्तालंकार अपने एकादषोपनिषद प्रथम संस्करण के पृष्ठ 585 में इस प्रकार से करते है-

जो चाहे कि मेरा पुत्र पंडित हो, प्रख्यात हो, सभा में जाने वाला हो, प्रिय वाणी बोलने वाला हो, सब वेदों का ज्ञाता हो, पूरी आयु भोगे, तो माष अर्थात उड़द के साथ चावल पकवाकर पति-पत्नी दोनों खावें। ऐसा करने से वे दोनों ऐसा पुत्र उत्पन्न करने में समर्थ होते हैं जो शरीर में बैल के समान और ज्ञान में ऋषियों के समान होता है। इस स्थल में ‘माँसौदन की जगह माषोदान पाठ ठीक है। दही, घी, चावल, तिल आदि के प्रकरण में उड़द प्रकरणसंगत है, मांस सर्वथा असंगत है। -
उपनिषद् के इस वचन में तीन पदों ‘माँसौदन’, ‘औक्ष्णन’ , ‘ऋषभेण’ को लेकर मुख्य रूप से भ्रान्ति होती है।
पंडित जे.पी. चौधरी काव्यतीर्थ अपनी पुस्तक वेद और पशुयज्ञ प्रथम संस्करण के पृष्ठ 45-46 में माँसौदन का अर्थ उड़द और चावल करते है, औक्ष्णन और ‘ऋषभेण से ‘ऋषभक नामक औषधि का ग्रहण करते है।
गर्भावस्था में चरक ऋषि मद, मांस भक्षण का अध्याय 4 मेंस स्पष्ट रूप से निषेध करते है। सुश्रुत भी शरीराध्याय में गर्भावस्था में दूध के साथ चावल, भात, तिल, उड़द दी आहार को ग्रहण करने का आदेश देते हैं।
अथर्ववेद 3/23/4 में वेद भगवान आरोग्यवृद्धक ओषधि के रूप में ऋषभ के बीजों के प्रयोग का सन्देश देते है।
पंडित शिवशंकर शर्मा काव्यतीर्थ अपने बृहदारण्यक उपनिषद् के भाष्य में सम्पूर्ण प्रकरण को इस प्रकार से समझाते है-
जो कोई चाहे की मेरा पुत्र कपिल वर्ण- पिंगल हो और दो वेदों का ज्ञानी बन सम्पूर्ण आयु को प्राप्त करे तो दंपत्ति दही के साथ ओदन बनवा कर घृत मिलाकार दंपत्ति खावे मन चाही संतान उत्पन्न होगी। ६/४/१५
जो कोई चाहे की मेरा पुत्र श्याम वर्ण- रक्ताक्ष हो और तीन वेदों का ज्ञानी बन सम्पूर्ण आयु को प्राप्त करे तो दंपत्ति जल के साथ चरुनवा घृत मिलाकर दंपत्ति खावे मन चाही संतान उत्पन्न होगी। ६/४/१६
जो कोई चाहे की मेरा कन्या पंडिता होवे और सम्पूर्ण आयु को प्राप्त करे तो दंपत्ति तिल के साथ ओदन बनवा कर घृत मिलाकार दंपत्ति खावे मन चाही संतान उत्पन्न होगी। ६/४/१७
जो कोई चाहे की मेरा पुत्र पंडित , सुनने के योग्य भाषण देने वाला हो और सब वेदों का ज्ञानी बन सम्पूर्ण आयु को प्राप्त करे तो दंपत्ति उड़द मिला कर घृत मिलाकार दंपत्ति खावे मन चाही संतान उत्पन्न होगी। ६/४/१८
यहाँ तिलौदन का अर्थ तिल आदि पदार्थ है। जिसके पश्चात मांसोदन आया है जिससे की मांस की प्रतीति होती हैं।यहाँ मांस का अर्थ पशु का मृत शरीर होने के स्थान पर जिससे मन प्रसन्न हो और जो शास्त्रों में माननीय हो उसे माँस कहते है होना चाहिए।
क्यूंकि इससे पूर्व के मन्त्रों में भी दही, जल , उरद आदि के साथ घृत का प्रयोग करने का विधान आता हैं।
आगे उक्ष शब्द आता हैं जिसका अर्थ सींचना है।
इससे यह सिद्ध होता है कि उपनिषद् में दंपत्ति को उत्तम पदार्थ ग्रहण करने का सन्देश है। नाकि मांस आदि के ग्रहण करने का।
सन्दर्भ बृहद अरण्यक उपनिषद्-शिवशंकर शर्मा काव्यतीर्थ। पृष्ठ- ८९६
इसके अतिरिक्त महात्मा नारायण स्वामी ( बृहद अरण्यक उपनिषद् भाष्य में), पंडित बुद्धदेव विद्यालंकार (पुस्तक-किसकी सेना में भर्ती होंगे? कृष्ण की या कंस की?), आचार्य रामदेव (भारतवर्ष का इतिहास-वैदिक तथा आर्ष पर्व, पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी संस्मरण ), आर्यमुनि जी ( वैदिक काल का इतिहास) एवं डॉ शिवपूजन सिंह कुशवाहा (वेदी सिद्धांत मार्तण्ड) , में यही अर्थ करते हैं।

इस प्रकार से यह सिद्ध होता है कि बृहदारण्यक उपनिषद् में मांसाहार का कोई विधान नहीं हैं।

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