Wednesday 14 September 2016

गाय का दुश्मन कौन ?

12 सितम्बर को नजीबाबाद उत्तर प्रदेश वन प्रभाग की बढ़ापुर रेंज की सीमा से सटे गांव जहानाबाद खोबड़ा में गाय की वफादारी निभाने की अनूठी घटना सामने आई है। खेत में चारा चरते समय अचानक एक बाघ ने पशुपालक पर हमला किया। इस पर उसकी 40 गायों के झुंड ने मुकाबला करते हुए बाघ को वहां से भगा दिया।, गायों ने अपने स्वामी की जान बचा ली। ये तो गाय की वफादारी थी पर देखिये इन्सान की वफादारी क्या कहती है पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने तथाकथित गौरक्षा के नाम पर दुकान चलाने वालों को आड़े हाथों लिया था जिसके बाद पुरे देश में प्रधानमंत्री की आलोचना सुनी गयी थी तब न जाने कितनी कविता कितने लेख प्रधानमंत्री के इस बयान पर सोशल मीडिया में पढने को मिले. आए दिन देश के किसी न किसी क्षेत्र से गाय से भरे ट्रक, गौरक्षकों अथवा पुलिस द्वारा पकड़े जाने की खबरें आती रहती हैं. इन खबरों के सामने आने के बाद वातावरण तनावपूर्ण हो जाता है. कई बार ऐसे  वातावरण के मध्य हिंसा अथवा सांप्रदायिक हिंसा भी भडक चुकी है. परंतु ऐसे अवसरों पर यह तो देखा जाता है कि अपने ट्रक में बेरहमी से भरकर इन गायों को कौन ले जा रहा था तथा क्यों ले जा रहा था? परंतु इस बात की चर्चा करना कोई जरूरी नहीं समझता कि हत्यारों के हाथों में इन गायों को पहुंचाने का जि़म्मेदार कौन है? यदि सही मायने में देखा जाए तो गौवध की शुरुआत वहीं से होती है जहां कि कम दूध देने अथवा दूध देना बंद कर देने वाली गायों को किसी खरीददार के हवाले कर दिया जाता है.
 अभी हाल ही में इंडिया टुडे की एक टीम ने एक खबर जारी की जिसे पढ़कर सर शर्म से झुक गया. हमारा उद्देश्य किसी गौशाला के प्रति या गौरक्षक के लिए हीन भावना जगाना नहीं है. बस एक वो सच जो इसकी आड़ में छिपा बैठा है. उसे उजागर करना है. या ये कहो जो लोग खुद को हिन्दू कहकर अपनी आत्मा को बेचकर इन गौमाता को कटान के लिए बेच रहे है उनके चेहरे से नकाब हटाना है बीते कुछ साल में देश में जिस तरह गाय हाईलाइट हुई है, वैसे और कुछ नहीं हुआ. गाय की पूजा करने वाले गौभक्तों की देश में कमी नहीं. लेकिन स्वयंभू गौरक्षक दस्तों की कारगुजारियां भी हाल के दिनों में खूब देखने को मिली. देश के 29 में से 24 राज्यों में गोवध पर प्रतिबंध है. उत्तर प्रदेश भी ऐसा ही राज्य है जहां गोवध पर सख्त सजा का प्रावधान है. जाहिर है कि कानून का पालन करने के लिए गायों पर यहां पुलिस की भी नजर रहनी चाहिए. पवित्र गायों के लिए सबसे सुरक्षित और अच्छी जगह कोई मानी चाहिए तो वो देश का गाय-पट्टी (काऊ बेल्ट) क्षेत्र है. इस क्षेत्र का बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश में है. लेकिन इसी क्षेत्र में गाय की स्थिति का जो सच सामने आया, वो हैरान कर देने वाला है. सबसे सुरक्षित माने जाने वाले क्षेत्र में ही गाय को कैसे-कैसे खतरों का सामना करना पड़ रहा है. कैसे यहां गौशाला संचालकों, दलालों और भ्रष्ट पुलिसवालों का नापाक गठजोड़ कर रहा है गायों और बछड़ों की खरीद-बेच का गोरखधंधा? उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के सैफनी कस्बे में पशुओं के बाजार. यहां बकरीद पर कुरबानी के लिए गाय और बछड़ों को लेकर खुले तौर पर मोलभाव किया जा रहा था. रिपोर्टर ने खुद को खरीददार बताते हुए कीमत जाननी चाही तो पता चला कि 16,000 से लेकर 22,000 हजार रुपए में गाय खरीदी जा सकती है. यहां देखकर सबसे ज्यादा हैरानी हुई कि सब कुछ बेखौफ चल रहा था.

रिपोर्टर ने एक पशु विक्रेता से कहा, बकरीद के लिए एक गाय चाहिए.? इस पर जवाब मिला- यहाँ बाजार में घूमकर देखिए, बहुत मिल जाएंगी.! एक और पशु विक्रेता ने क्रीम रंग की गाय के लिए 17,000 रुपए की मांग की. टीम को रामपुर में सिर्फ जीवित पशु ही नहीं बिकते दिखे. यहां बीफ मार्केट में मीट का भी धड़ल्ले से कारोबार होते दिखा. मीट विक्रेताओं ने ये भी माना कि वो गोमांस बेच रहे हैं. रिपोर्टर ने जब एक मीट दुकानदार से पूछा, क्या तुम्हारे पास गाय (मीट) है? इस पर दुकानदार का जवाब था- हाँ जो मीट दुकानदार बेच रहा था, उसकी कीमत उसने 160 रुपए प्रति किलो बताई. एक और दुकानदार ने दावा किया कि पुलिस ने यहां सब (दुकानदारों) को आगाह कर रखा है कि जो भी मीट दुकान पर लटकाओ, उसकी स्किन पूरी तरह साफ होनी चाहिए. जिससे कभी अचानक इंस्पेक्शन हो तो कुछ पकड़ा ना जाए. रामपुर में एक गौशाला के संचालक का बर्ताव सबसे ज्यादा झटका देने वाला था. कान्हा गौशाला को चलाने वाले सुंदर पांडेय से रिपोर्टर ने पूछा- बकरीद पर कुरबानी के लिए वो गाय का इंतजाम कैसे करा सकता है? इस पर पांडेय का जवाब था, दो दिन में वो इसे त्योहार के लिए उपलब्ध करा देगा, अभी जो यहां (कान्हा गौशाला) में जो मौजूदा स्टॉक है वो कुरबानी के लिए फिट नहीं है, कुछ के सींग टूटे हैं, कुछ की टांगे क्षतिग्रस्त हैं. आप को कुरबानी के लिए बेदाग पशु चाहिए.? पांडे की बातों से ये भी साफ हुआ कि यहां से मीट के लिए बछड़े को भी खरीदा जा सकता है.
अगले दिन टीम अलीम नाम के एक दलाल तक पहुंची. अलीम ने बताया कि ये पूरा गोरखधंधा कैसे चलता है. अलीम ने कहा, पुलिस (गायों) को पकड़ती है और पुलिस स्टेशन लाती है. यहां से उन्हें गौशाला वाले खरीद कर ले जाते हैं. पशुओं की संख्या और सेहत के हिसाब से दो, तीन, चार लाख रुपए का भुगतान किया जाता है. इसके बाद गौशाला वाले इन गायों का अपना पैसा वसूलते हैं. वो उन्हें बेच देते हैं (कालाबाजार में). हालाँकि यह एक खबर नहीं है इससे पहले भी उत्तर प्रदेश में गजरौला से प्रकाशित अमर उजाला अमरोहा के पेज पर दस नवम्बर 2015 को एक  खबर प्रकाशित हुई थी जिसमे बताया गया था कि गौ समिति के ही गौ रक्षकों ने गायों को संभल के कसाईयों को बेच दिया ! इसके बाद उसी दौरान दूसरी खबर मुरादाबाद के ही काँठ से आई थी कि कान्हा समिति ने भोजपुर में ही 9 लाख में गौ का सौदा कर डाला अब बताएये इससे बड़ी बेशर्मी कहाँ मिलेगी? कि धर्म और मर्यादा ताक पर रखकर माता को ही बेच दिया जाए! समाज में वैमनस्य फैलाने वाले यह तथाकथित सफेदपोश किस तरह धर्म की आड़ में न सिर्फ पैसा बना रहे हैं बल्कि समाज के एक बड़े हिस्से में गुंडागर्दी और अराजकता के बल पर साम्प्रदायिकता को मजबूत कर रहे हैं इसलिए इन तथाकथित गौ सेवकों के चेहरों से नकाब उठाना कितना जरूरी है यह यह खबरें बताने के लिए काफी हैं और समाज और प्रशासन को इन कथित गौ व्यापारियों की गतिविधियों से कितना होशियार रहने की जरूरत है यह यहाँ बताने की कोई जरूरत नहीं है!........(दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा) चित्र साभार गूगल राजीव चौधरी 

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