Friday 19 August 2016

70 साल बाद याद आया कि हिन्दू भी विवाह करते है!

पाकिस्तान में दशकों की देरी और निष्क्रियता के बाद हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के पास अब जल्दी ही एक विवाह कानून होगा। पाकिस्तान के संसदीय पैनल ने हिंदू विवाह विधेयक को मंजूरी दे दी है। नेशनल असेंबली की कानून एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति ने सोमवार को हिंदू विवाह विधेयक, 2015 के अंतिम मसौदे को सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी। इस पर विचार के लिए खास तौर पर पांच हिंदू सांसदों को पैनल ने आमंत्रित किया था। मतलब अब पाकिस्तान का हिन्दू अपनी पत्नी को सरकारी और गैरसरकारी मंचो पर अपनी पत्नी कह सकेगा| हिंदू समुदाय के लिए परिवार कानून तैयार करने में लंबे समय से रणनीतिक रूप से की गई देरी पर खेद जताते हुए संसदीय समिति के अध्यक्ष चैधरी महमूद बशीर विर्क ने कहा, देर करना हम मुसलमानों और खासकर नेताओं के लिए मुनासिब नहीं था। हमें कानून को बनाने की जरूरत थी न कि इसमें रुकावट डालने की। अगर 99 फीसदी मुस्लिम आबादी एक फीसदी हिन्दू आबादी से डर जाती है, तो हमें अपने अंदर गहरे तक झांकने की जरूरत है, कि हम खुद को क्या होने का दावा करते हैं और हम क्या हैं। इस कानून के मंजूर हो जाने के बाद, जो कोई हिंदू विवाहिता का अपहरण करेगा, वह दंड का अधिकारी होगा क्योंकि पीड़िता का परिवार शादी का सबूत दिखा सकेगा|
पाकिस्तान में करीब 21 लाख से ज्यादा हिंदू रहते हैं। अर्थात पिछले 69 साल से अपनी शादियों को कानूनी मान्यता और उनके पंजीकरण के लिए विशेष कानून बनवाने के लिए हिंदू संघर्ष कर रहे हैं। 13 अगस्त 1947 तक उपमहाद्वीप के बंटवारे के बाद, पश्चिमी पाकिस्तान या मौजूदा पाकिस्तान में, 15 प्रतिशत हिंदू बचे थे उससे पहले उन्हें वो सब अधिकार प्राप्त थे जो भारत में मुस्लिमो को है| पर मजहब का जहर पीने वालों ने 14 अगस्त 1947 से उनकी जिन्दगी को नरक से भी बदतर बना दिया| मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि पाकिस्तान से पलायन या जबरन धर्मांतरण कर गई हिंदुओं की नब्बे प्रतिशत आबादी का कारण बढ़ती असहिष्णुता और सरकार की उदासीनता है| वर्ष 2012 में अमेरिका के कई प्रभावशाली सांसदों ने पाक के सिंध प्रांत में अल्पसंख्यक हिंदुओं की दुर्दशा पर गहरी चिंता जताई थी । उनका कहना था कि पाकिस्तान के इस प्रांत में हिंदुओं को कोई मौलिक अधिकार नहीं मिला है। पाक मानवाधिकार की स्थिति बदतर है। अमेरिकी संसद में सिंध में मानवाधिकार पर ब्रीफिंग के दौरान एक सांसद ने आरोप लगाए, सिंध का हिंदू समुदाय अपनी औरतों के जबरन इस्लाम में धर्मांतरित करने के लगातार आशंका में जीता है।
पाकिस्तान में हिन्दू लड़कियों का अपहरण करके उनकी शादी उनकी इच्छा के विरुद्ध मुस्लिम पुरुषों के साथ कराए जाना आम बात है| सिंध प्रांत में अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय की महिलाओं और लड़कियों का अपहरण और बलात धर्मान्तरण करा कर जबरदस्ती विवाह कराना एक आम बात हो चुकी है आजादी के बाद के कुछ सालों से यह कुत्सित खेल बड़े पैमाने पर चल रहा है। ऐसी ही कुछ घटनाएँ हैं जो यह सोचने पर मजबूर करती है कि जो भारतीय मीडिया अखलाख, बुरहान वानी के परिवारों को लेकर रोता रहता है उनके कानों में पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं की चीखें क्यों नहीं पहुँचती? एक मुस्लिम परिवार को हिन्दू द्वारा किराये पर मकान न देने की बात हो तो तीन दिनों तक वो मुद्दा भारतीय मीडिया में छाया रहता है, जिसे लेकर धर्म को दोष एवं धार्मिक परतें खोली जाती है| किन्तु जब किसी मुस्लिम देश में अल्पसंख्यक हिन्दू पर अत्याचार होता है उसकी पत्नी या बेटी धर्म के बहाने अपह्रत कर ली जाती है तो मीडिया मूक-बाधिर हो जाती है|वर्ष 2012 में हिन्दू लड़की रिंकल कुमारी का मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गूंजा था लेकिन उसके बाद भी उसका धर्म परिवर्तन कराकर उसे मुसलमान बनाया गया इसके बाद नावीद शाह नाम के एक मुस्लिम युवक से उसकी शादी करा दी गई थी। उस समय रिंकल के वकील अमरलाल ने पत्रकारों के सामने दुखी मन से कहा था ,"कि कभी अनिता को बेचा जाता है, कभी ज़ैकबाबाद से कविता को उठा कर ताक़त के ज़ोर पर मुसलमान किया जाता है, कभी जैकबाबाद से सपना को उठाते हैं तो कभी पनो आकिल से पिंकी को ले जाते हैं|"

रिंकल अविवाहित थी लेकिन इसके बाद तो धारकी कस्बे से एक हिन्दू विवाहित महिला का अपहरण करके उसका जबरन धर्म परिवर्तन किया गया। बाद में उसे एक स्थानीय अदालत में पेश कर उससे जबरन बयान दिलवाया गया कि उसने मुस्लिम लड़के से निकाह कर लिया है। बाद में उस इस हिन्दू महिला ने किसी तरह अपने माता-पिता से सम्पर्क करके बताया कि किस तरह उसका अपहरण किया गया और क्या-क्या जुल्म ढाये गए। इसके बाद जब उसका परिवार व अन्य हिन्दू इस संबंध में आगे आये तो उच्चाधिकारियों ने उसे बुरे परिणाम भुगतने की धमकी दी गयी। यह कोई एक या दो घटना नहीं है बल्कि ऐसी घटनाएँ पाकिस्तान में रह रहे हर तीसरे हिन्दू परिवार के साथ हो रही है। रबीना पाकिस्तान के सकूर में रहती थी और डॉक्टर बनना चाहती थी। इन्टरमीडिएट की परीक्षा में अच्छे अंक लेकर वह शहर के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए गई। उसे सिर्फ इस वजह से प्रवेश नहीं दिया कि वह हिन्दू है और एड्मिसन के लिए उसे धर्म परिवर्तन की सलाह दी गयी|
अक्सर हमारे देश से गाजा पट्टी, के लिए प्रदर्शन होते है, इस्लाम पर कोई विवादित टिप्पणी वो चाहे यूरोप के अन्दर हो या अमेरिकी प्रायदीप में उस समय तथाकथित सेकुलर दल और मौलाना भीड़ के साथ सड़कों पर उतरते दिखाई देते है| पर इस तरह के अपराधों पर इनकी मानवीय सवेंदना और धार्मिक चेतना मरी नजर आती है| एक गैर सरकारी संस्था मूवमेंट फॉर पीस एंड सॉलिडेरिटी इन पाकिस्तान के अनुसार हर वर्ष करीब 5 सौ से हजार ईसाई और  हिंदू लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है।  इतना ही नहीं उनकी इच्छा के विरुद्ध उनकी शादियां मुसलमानों से कराई जाती है वो बताते है कि 12 से 25 साल उम्र की लड़कियों का पहले अपहरण कर लिया जाता है, फिर उन्हें इस्लाम कबूल करने को कहा जाता है. उसके बाद उसका किसी से निकाह करवा दिया जाता है। इसमें यह भी दिखाया जाता है की उन्होंने अपनी इच्छा से इस्लाम धर्म कबूल किया है। मगर ऐसा होता नहीं। इससे अगर होता है तो सिर्फ यही की उसके अपहरणकर्ताओं के खिलाफ मामला खत्म हो जाता है। इसके बाद उनके  साथ पाशविक  व्यवहार किया जाता है।  बलात्कार होता है और कई बार तो उन्हें वेश्यालय में धकेल दिया जाता है। पाकिस्तान का संविधान कहता है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सरकार को हिफाजत करनी पड़ेगी और उन्हें नौकरियाँ देनी होंगी, लेकिन हकीक़त में ये कागजों पर ही सीमित है। क्योंकि पाकिस्तान के संविधान पर मजहब और मुल्ला हमेशा भारी रहे है| इस सब के बावजूद अब सिर्फ आशा ही कि जा सकती है कि इस विधेयक के पास हो जाने के बाद पाकिस्तानी प्रशासन और सरकार मानवीय बिंदु को ध्यान रखते हुए मजहब से ऊपर उठकर इसे वहां सख्ती के लागू करे! चित्र साभार गूगल लेख राजीव चौधरी 



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