Saturday 7 May 2016

बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ पर तमाचा!!

इतिहास में नारी के सफ़र कि बात न करो,  बस हमे अगला कदम रखने के लिए जमीन दे दो| शायद यह बोल रेवाडी सुमाखेडा और कतोपुरी गाँवो की वो 50 के करीब बेटियां बोल रही होगी जिन्होंने छेड़छाड़ और युवको की अश्लील हरकतों से स्कूल जाना छोड़ दिया| जिनमें दो लडकियां राज्य स्तरीय कब्बडी खिलाडी भी शामिल है| लड़कियों के अभिभावकों का आरोप है कि उनकी बच्चियों के साथ पडोस के लाला गाँव के लड़के आये दिन छेड़छाड़ करते है| 18 अप्रैल को कक्षा 9 में पढने वाली एक छात्रा को लाला गाँव के ही एक व्यक्ति ने उसके साथ दुष्कर्म किया था| इसके बाद पंचायत ने लाला गाँव का सामाजिक बहिस्कार कर दिया था| लेकिन घटना यहीं नहीं थमी तीन रोज पहले जाटूसाना स्कुल से लौट रही छात्रा के सामने नदी में नहा रहे युवकों द्वारा अपने कपडे उतारने की अश्लील हरकतों की बात सामने आई| जब इस बारे में लड़कियों से पूछा गया तो वो रोने लगी| इन  हरकतों पर गुस्साए लोगों ने लड़कियों को लाला गाँव भेजना बंद कर दिया| इस घटना के बाद क्या हम कह सकते है कि हरियाणा से शुरू हुई “बेटी बचाओं, बेटी पढाओं की मुहीम हरियाणा में ही दम तोडती नजर आ रही है| शिक्षा का अधिकार मांग रही इन बच्चियों की आवाज़ क्या हरियाणा सरकार सुनेगी? आज़ाद भारत में बच्चियो को स्कूल छोड़ के घर बैठना पड़े इसलिए कि गुंडे छेड़खानी करते हैं, इससे शर्मनाक क्या होगा? क्या ये बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ पर तमाचा नहीं है?

यह पहली घटना नहीं है इससे पहले उत्तर प्रदेश के बरेली में करीब 400 बच्चियों ने स्कुल जाना तब छोड़ दिया था जब वो मासुस स्कुल जाने के लिए तख्तों के सहारे नदी पार करती थी और ठीक उसी समय नदी में नहाने के बहाने कुछ लड़के अश्लील इशारे करते उन्हें गलियां बकते लड़कियां इतनी छोटी थी कि वो सही से बोल भी नही प् रही थी| हमने 3 अगस्त 2015 को आर्य सन्देश के 38 वें अंक में उस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था| हमने तब भी महिला आयोग को प्रश्नचिन्ह करते हुए लिखा था कि आखिर ऐसे मौकों पर महिला आयोग खामोश क्यों पाया जाता है? दिसम्बर 2012 में दिल्ली के वसंत विहार इलाके में निर्भया कांड के बाद लगा था कुछ बदलेगा, समाज की सोच में कुछ परिवर्तन होगा राह चलती बच्चियों को देखने का नजरिया बदलेगा पर क्या हुआ? केरल में फिर एक छात्रा को निर्भया बना दिया गया| 28  अप्रैल को एर्नाकुलम जिले के पेरूम्बवूर में गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली कानून की इस छात्रा से उसके ही घर में बलात्कार किया गया और उस पर धारदार हथियार से नृशंस वार किया गया एवं उसकी हत्या कर दी गई। बताया जा रहा है कि महिला पर 20  बार चाकुओं से हमला किया गया। महिला के निजी अंगों पर ही हमला किया गया। महिला की आंतें बाहर आ गई थीं। 4 साल बीत गये वो ही समाज है वो ही सोच और वो ही राजनेता जो सिर्फ इन सवेदनशील मुद्दों राजनीती करते दिखाई देते है| जिस कारण आज देश में हर 26 वें मिनट में एक लड़की या महिला छेड़खानी का शिकार होती है| यदि बात राजधानी दिल्ली की करे तो यहाँ तो हर 25 वें मिनट पर छेड़खानी की वारदात सामने आती है| 51 फीसदी महिलाओं का मानना है कि सार्वजनिक स्थानो पर रोजाना फब्तियों का शिकार होना पड़ता है| ऐसा नही है कि इन घटनाओं को अंजाम देने वाले कोई बाहरी लोग है सब इसी देश के लोग है| आखिर हमारे समाज में पनपने वाली यह बीमारी कहाँ से पैदा हुई क्या इसमें काफी हद तक सिनेमा का योगदान नहीं माना जाना चाहिए? जब फिल्म में नायिका को नायक छेड़ता है तो पूरा सिनेमाहाल तालियों सीटियों से गूंज उठता है इसका क्या मतलब है ? यही कि यह एक नैतिक कार्य है हमे नायक की हरकत पर कतई आपत्ति नहीं है| क्या ऐसे चित्रण से युवा सोच प्रभावित नहीं होती? क्योकि कई बार मनचले भी फ़िल्मी अंदाज़ में छेड़खानी करते दिखाई देते है| आज समाज के साथ फ़िल्मी मानसिकता में भी बदलाव जरूरी हो गया है|


यह सब सहना एक बेटी के लिए दिन पर दिन बड़ा मुश्किल सा होता जा रहा है| अक्सर देश के लोग अच्छे संस्कारों की बात कर अपना पल्ला झाड़ता दिखाई देते है| हमेशा बेटी को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है जिस तरह निर्भया कांड के बाद आरोपी मुकेश ने कहा था कि लड़कियां बाहर जाएगी तो छेड़खानी तो होगी ही| मुलायम सिंह यादव ने रेप जैसे घिनोने कृत्य पर कहा था कि लड़कों से गलती हो जाती है| तो क्या सब जिम्मेदारी लड़कियों की है, क्या लड़की के रूप में पैदा होना पाप हो गया है? हमारी वैदिक संस्कृति तो ऐसी नहीं थी फिर आज यह सब क्या हुआ| आज एक बेटी के सामने अपने सम्मान, से लेकर परिवार और समाज तक कि चुनोती का सामना करती दिखाई दे रही है| आधुनिक भारतीय समाज में नारी के प्रति बढ़ती हिंसा को लेकर भारत दुनिया के निशाने पर है। दिल्ली निर्भया कांड हो, उबर कैब कांड या फिर बदायूं जैसे अपराध पर संयुक्त राष्ट्र भी चिंता जता चुका है। बदायूं कांड विदेशी मीडिया की सुर्खियां बन चुका है। अब विदेशी मीडिया भारत में घटती इस तरह की घटनाओं में अपना बाजार तलाश रहा है। अब महिलाओं की सुरक्षा पर खाली चिंता जाहिर करने से कुछ नहीं होगा अब समाज को इन असामाजिक तत्वों का सामना करना होगा मेरी बेटी उसकी बेटी का भेद भूलकर हम सबकी बेटी है नारा देना होगा| यदि आज बेटी सुरक्षित नहीं है, तो कल देश का भविष्य भी असुक्षित होगा Rajeev choudhary 

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