जिन
लोगों ने मुगलों का शासन नहीं देखा वो एक बार यजीदियों पर हो रहे आइ.एस.आइ.एस के
आतंकियों के द्वारा जुल्म देख लें, शायद
फिर से इतिहास की समीक्षा करने का मन कर आये और पता चले इस देश के जवान महान थे या
बाहरी लुटेरे! बाबर भी एक ऐसा ही लुटेरा था जो 1400 लुटेरों का झुण्ड लेकर भारत की सीमा में घुसा था, जिसका
नतीजा एक हजार साल की धर्मिक और सामाजिक दासता की जकडन यहाँ के निवासियों को
भुगतनी पड़ी थी| वो तो भला हो महान माताओं का जिन्होंने अपनी कोख से इस देश की
मिट्टी को वो लाल दिए जो उन देश धर्म के दुश्मनों से लड़ते,लड़ते अपने प्राण भारत
माता के लिए न्योछावर कर गये|
हमारे
हिन्दुस्तान के कुछ चाटुकार वामपंथी इतिहासकारों ने मुगल शासनकाल में भारतीय राष्ट्रीयता की के स्वरूप को मनमाने ढंग से प्रस्तुत किया है। इन्होंने मुगल शासनकाल को भारत का 'शानदार युग' तथा मुगल शासकों को 'महान' बताया है। इन्होंने मुगल शासक अकबर, औरंगजेब आदि खलनायकों को पहली श्रेणी में तथा महाराणा प्रताप, शिवाजी जैसे नायकों को दूसरी श्रेणी में रखा। यह लोग
इतिहास कुछ इस तरह लिखते है जैसे अंग्रेजो ने भारत को मुगलों से छिना हो जबकि ब्रिटिश इतिहासकारों तथा प्रशासकों ने माना है कि अंग्रेजों ने भारतीय सत्ता मुगलों से नहीं बल्कि मराठों तथा सिखों से छीनी थी। अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर तो नाममात्र का शासक था, जो दिल्ली के लाल किले तक सीमित था। किन्तु फिर भी यदि हम मुग़ल और अंग्रेज शासन
की तुलना करे कोई भी कह सकता है कि ब्रिटिश शासन मुगलों से बेहतर था। हो सकता है अकबर ने अपने शासनकाल में कुछ सुधार किए हो । परन्तु केवल इस कारण ही उसके राज्य को 'राष्ट्रीय राज्य' या उसे 'राष्ट्रीय शासक' नहीं कहा जा सकता। कुछ आधुनिक मुस्लिम इतिहासकारों के एक वर्ग ने सत्य को छिपाते हुए मुगल साम्राज्य की सफलताओं को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया, परन्तु साथ ही उन्होंने मुगल शासकों की असफलताओं तथा कमियों को बिल्कुल भुला दिया या छिपाया। खेर
विचारणीय व गंभीर प्रश्न यह है कि भारतीय राष्ट्रीयता का प्रतीक साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षी अकबर है या देशाभिमान पर शहीद होने वाली रानी दुर्गावती, भारतीय स्वतंत्रता के लिए मर मिटने वाले सुभाष चन्द्र बोस, करतार सिंह सराभा, भगत
सिंह, राजगुरु,सुखदेव महान थे या वो मुस्लिम शासक जो नंग्न
ओरतों के स्तन पकड़कर सीढियाँ चढ़ते थे? मुगलों से आजादी के लिए जंगलों में भटकने वाले महाराणा प्रताप महान थे या वो अकबर है जो छल-कपट तथा दूसरों पर आक्रमण कर उसे जीत लेने के पागलपन से युक्त था| मीना बाजार से अय्याशी के लिए महिलाओं को उठवाने वाला अकबर
महान था या शत्रु द्वारा पकड़े जाने व अपमानित होने की आशंका के स्वयं छुरा घोंप कर बलिदान देने वाली रानी? क्या राष्ट्र का प्रेरक चित्तौड़ में 30,000 हिन्दुओं का नरसंहार करने वाला अकबर है या महाराणा प्रताप का संघर्षमय जीवन, जिन्होंने मुगलों की अजेय सेनाओं को नष्ट कर दिया था।
आज फिर विद्वानों द्वारा किसी भी शासक का मूल्यांकन राष्ट्र के जीवन मूल्यों के लिए किए गए उसके प्रयत्नों के रूप में आंका जाना चाहिए| जहांगीर तथा शाहजहां-दोनों ही अत्यधिक मतान्ध तथा विलासी थे। दोनों सुरा के साथ सुन्दरी के भी भूखे थे। अकबर के बिगड़ैल पुत्र जहांगीर ने स्वयं लिखा कि वह प्रतिदिन बीस प्याले शराब पीता था। दोनों ने हिन्दू, जैन तथा सिख गुरुओं को बहुत कष्ट दिए थे। शाहजहां की ही मजहबी कट्टरता तथा असहिष्णुता ने औरंगजेब की प्रतिक्रियावादी शासन पद्धति को जन्म दिया था। उसने भारत को दारुल हरब से दरुल इस्लाम बनाने के सभी घिनौने प्रयत्न किए। उसके ही शासन काल में गुरु तेग बहादुर का बलिदान हुआ, गुरु गोविन्द के चारों पुत्रों का बलिदान हुआ था। इसके बावजूद कुछ चाटुकार तथा वामपंथी इतिहासकारों ने उसे 'जिंदा
पीर' का भी खिताब दिया है।
आज इतिहास फिर वहीं प्रश्न हाथ में लिए खड़ा है कि औरंगजेब भारत का राष्ट्रीय शासक था अथवा शिवाजी तथा गुरु गोविन्द सिंह राष्ट्रीय महापुरुष थे? वामपंथी इतिहासकार औरंगजेब की तुलना में शिवाजी को राष्ट्रीय मानने को तैयार नहीं हैं। गुरु गोविन्द सिंह जी का व्यक्तित्व भारतीय इतिहास का एक
स्वर्णिम पृष्ठ है। किन्तु इन इतिहासकारों को उनके संघर्ष को देश के साथ जोड़ने में लज्जा आती है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मुगल
शासक विदेशी, साम्राज्यवादी, क्रूर, लुटेरे तथा मतान्ध थे। उन्हें न भारत भूमि
से कोई लगाव था और न ही
भारतीयों से। अभारतीयों को राष्ट्रीय शासक कहना सर्वथा अनुचित है तथा
देशघातक है। इसके विपरीत राणा प्रताप, शिवाजी, गुरु गोविन्द सिंह, राणा सांगा, हेमचन्द्र विक्रमादित्य, रानी दुर्गवती विदेशी शासकों को खदेड़ने वाले
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानी थे, जिन्होंने भारत में सांस्कृतिक जीवन
मूल्यों की पुन:स्थापना के लिए अपने जीवन का सर्वस्व बलिदान दिया।...लेखक राजीव चौधरी
aapka aabhar
ReplyDeleteKafi hd tk shi bat h pr angrejo ka shasan behter nhi battar tha mughal desh ko loot khasot to rhe the pr deemak ki trh khokhla ni kr rhe the angrejo ne bhartiya shiksha paddhati ka nash kr ke bharat ko khokhla kr dala....
ReplyDeleteBased on true analysis...
Mughlo ne janvaro jaisa vyavhar kiya pr angrejo ne janvaro jaisa bna diya...
ReplyDeleteMughlo ne janvaro jaisa vyavhar kiya pr angrejo ne janvaro jaisa bna diya...
ReplyDeleteMughal kal me bhartiy apni asmita kho chuke the jise marathone jagrut karne ka kam kiya. Lekin Angrejone to samaj me vidvesh ke vish ke bijo ko piroya hai.............. Jitne mughal krur aur vaishi the utanehi angrej makkar aur ghinone the
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