Wednesday 13 January 2016

क्या मौन स्वीकृति का लक्षण है?

सिहांसन के मौन होने के कुछ भी कारण हो सकते है किन्तु शहीदों के घर से निकली मासूम बच्चों की किलकारी, एक शहीद की बहन का मूक दर्द उसकी आँखों से छलकता पानी एक पत्नि की वेदना में लिपटी सिसकियाँ और माँ बाप की ममता के बुझे चिराग जहाँ सब एक दुसरे को सात्वना देकर छुप करते है| उनके बहते आंसू पर हमारी कलम भला क्यों चुप रहे? पठानकोट हमले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भेड़िया के साथ कोई भेड़ लाख बार संधि करे किन्तु भेड़िया अपना स्वभाव नहीं बदलेगा| मालदा और पठानकोट दो घटना एक दिन में घटित हुई और दोनों में अल्लाह हु अकबर का नारा था एक घटना को मीडिया ने दबा दिया और दूसरी का खूब विश्लेषण हुआ और शुरू से अंत तक एक बात सामने आई कि घटना हमेशा की तरह पाक प्रायोजित थी|
पठानकोट हमला पाक प्रायोजित था किन्तु प्रश्न यह है कि मालदा पश्चिम बंगाल की घटना किसके द्वारा प्रायोजित थी क्या उसमे भी पाकिस्तान का हाथ था? आखिर किसके कहने पर दो से ढाई लाख लोग सड़क पर उतर आये? किसके कहने पर करोड़ों की सम्पत्ति को आग के हवाले कर दिया? आखिर इसका सूत्रधार कौन था? और सरकार इस मामले पर मौन क्यूँ है? कहीं यह मौन अगली घटना की स्वीकृति का लक्षण तो नहीं है?
कल भारत सरकार ने एक बार फिर पाकिस्तान को पठानकोट हमले के सारे साक्ष्य सौप दिए और पाकिस्तान के तरफ से हमेशा की तरह कड़ी कारवाही आश्वासन दिया गया पर क्या इतने आश्वासन से काम चल जायेगा! साक्ष्य तो भारत सरकार ने ताज हमले के बाद भी सौपे थे क्या हुआ? 250 लोगों का हत्यारा हाफिज सईद अब भी पाकिस्तान में खुला घूम रहा है| कंधार विमान अपहरण कांड में छोड़ा गया आतंकी संगठन जैश ए मोह्हमद का सरगना अजहर मसूद आज भी पाकिस्तान में बैठ खुले आम भारत सरकार को चुनौती दे रहा है| उन पर पाकिस्तान ने कितनी कारवाही की है? हजार बार दाउद इब्राहीम के पाकिस्तान में होने के सबूत भारत ने पाकिस्तान को सौप दिए क्या कारवाही हुई? जो अब पाकिस्तान से कारवाही की आशा की जाये! 
जब कुरुक्षेत्र में दोनों सेनाओं के बीच धनुष उठाकर अर्जुन ने योगिराज कृष्ण से कहा था हे माधव! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच खड़ा कीजिये ताकि में युद्ध के अभिलाषी लोगों को भली प्रकार देख लूँ कि मुझे किन-किन लोगों से युद्ध करना है और भली प्रकार ध्रतराष्ट्र के पुत्रों का हित अनहित चाहने वालों को देख ना लूँ तब तक मेरे रथ को खड़ा रहने दिया जाये| ठीक वो हालात लिए आज हम इस देश में कलम लिए खड़े है ताकि इस देश का हित अनहित चाहने वालों की पहचान की जा सके| आज देश दो हमलावरों के बीच खड़ा है एक बाहरी आतंक और दूसरा आंतरिक आतंक और सरकारों को इन दोनों के बीच खड़ा होकर तय करना चाहिए कि पहले किस से निपटा जाये क्योंकि जब तक बाहरी आतंक को आंतरिक आतंक की मदद मिलती रहेगी आतंक समाप्त नहीं हो सकता और इस बात समझने के लिए इतिहास का एक वाक्य काफी है कि जयचंद ने गौरी का साथ न दिया होता तो भारत का सर्वनाश ना हुआ होता|
 केंद्र और राज्य सरकारों ने मालदा की घटना पर पर्दा डाल दिया या ये कहों मौन साध लिया| किन्तु कब तक? चलो मान लेते है कि हिन्दू महासभा के अध्यक्ष कमलेश ने विवादित बयान दिया था लेकिन भारतीय सविंधान के अनुसार उन पर गिरफ्तारी के तहत कारवाही हुई तो 96 करोड़ लोगों ने सविंधान का सम्मान किया और इस कारण अब वह जेल के अन्दर है किन्तु यह भीड़ कौन थी? जो उसके एक महीने बाद उनकी फांसी की मांग कर रही थी| घरों दुकानों को लूट रही थी थानों और गाड़ियों में आग रही थी|  और अब सरकार उनके खिलाफ कारवाही से क्यों बच रही है? जो मुस्लिम धर्मगुरु पठानकोट हमले पर पाकिस्तान की निंदा (मजम्मत) कर रहे है वो मालदा हिंसा पर मौन क्यूँ है कहीं यह मौन अगली हिंसा की स्वीकृति का लक्षण तो नहीं?

राजीव चौधरी 

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