Friday, 13 November 2015

जाति नही, देश बचाओं

पाकिस्तान के समाचार पत्रों में जिस तरीके से बिहार चुनाव के नतीजे प्रथम पृष्ट पर  छपे भारत के एक राजनैतिक दल बीजेपी की हार को प्रमुखता से छापा और बाद में वहां के आर्मी चीफ व् अन्य राजनेतिक दलों ने ट्वीट किये ये विदेशी शुभकामनायें भले ही चुनाव जीतने वाले दल के लिए के लिए ख़ुशी का विषय रहा पर देश के लोगों के लिए जरूर आत्म मंथन का विषय है!! क्योंकि जब-जब भारत जातिवाद में बटता है भारत कमजोर होता है और उसकी कमजोरी ही दुश्मनों की मजबूती है और उसका जीता जागता उदहारण है ये विदेशी शुभकामनायें! हमें  यह कहना तो नहीं चाहिए था|  क्योंकि हम किसी राजनैतिक पार्टी या दल के ध्वज के मुकाबले भारतीय तिरंगे का सम्मान करना पसंद करते  हैं, और चाहते है समस्त भारत जातिवाद और क्षेत्रवाद के दलदल से बाहर आकर एक सूत्र में पिरोई हुई भारत माता के कंठ की माला बने| लेकिन दुर्भाग्य से देश फिर जातिवाद और भाषावाद और क्षेत्रवाद की तरफ जा रहा है!
कहते है, हमेशा किसी  देश का बुद्धिजीवी वर्ग , विद्वान वर्ग, समाचार पत्र और मीडिया कलम के बल पर देश को एकता अखंडता में बांधते है किन्तु जब यह बात भारत पर लागू  करके देखते हैं तो नतीजा बड़ा भयानक दिखाई देता हैं| और स्वार्थ की अग्नि में जले लोग भारत की एकता को जलाते दिख जायेंगे| मुझे ये सब कहना और लिखना तो नहीं चाहिए पर सच के सूरज को झूट की चादर से नहीं छिपाया जा सकता बिहार चुनाव में बाहरी और बिहारी का मुद्दा बड़ा उछला मीडिया ने इसे बड़ा रंग दिया क्या बिहार देश का हिस्सा नहीं है जो उसे बाहरी और बिहारी में बाँट दिया गया ? कैसे एक मीडिया कर्मी बिहार की गलियों में लोगों से पूछता है आप किस जाति के हो और आप किस पार्टी को वोट करेंगे! क्या यह पत्रकारिता का ओछा उदहारण नहीं है? पत्रकारों का काम होता हैं लोगों से उनकी समस्याएं, उनके मौलिक अधिकार, उनकी मौलिक जरूरते, शिक्षा, रोजगार आदि समस्याओं को सार्वजनिक मंचो पर उठाये, न की उन्हें जातिवाद, भेदभाव, छुआछूत आदि में डुबाये|
सब का मानना है इस समय इस देश को औधोगिक विकास की आवश्यकता है लेकिन उससे  पहले मेरा मानना है इस देश को सामाजिक विकास की जरूरत है, इसके बाद ही यहाँ आर्थिक और औधोगिक विकास हो सकता है क्योंकि अभी तो यह देश सामाजिक विकास में ही दिन पर दिन पिछड़ता दिखाई दे रहा है, भारत में चुनाव में जातिवाद के बेहद गाढ़े रंग की बड़ी लंबी दास्तान है। यह प्रकट तौर पर जीत का सबसे बड़ा उपाय है। बात कभी वोट हमारा, राज तुम्हारा नहीं चलेगा, नहीं चलेगा, से शुरू हुई थी और अब जाति से जाति को काटने की नौबत आ गई है। हर एक प्रान्त में चुनाव जाति के आधार पर ही हो रहा है और खुलेआम हो रहा है। मीडिया इस खेल में खुद शामिल होकर जातिगत वोटों की बन्दर बाँट करता दिख जायेगा, सबका एक ही फॉर्मूला है, उसी जाति के उम्मीदवार को टिकट, जिसके वोट की गारंटी हो। जाति की काट में जाति। ऐसा हाल तब है,  जब देश को विकास की खास दरकार है। मगर यह सब भूल कर देश के लोग अपनी-अपनी जाति को देख रहे है, चुनाव से पहले लोगों के पास मुद्दे होते है, शिक्षा, स्वास्थ , रोजगार, सड़क, लेकिन जब वो वोट डालने जाता हैं तो उसके दिमाग में सिर्फ एक चीज रहती है जाति,जाति,अपनी जाति
अब देश के लोग यह सोच रहे हो कि उन्हें जातिवाद के कुचक्रों से निकलने कोई अवतार या राजनैतिक दल आएगा तो भूल जाओ! निकलना खुद ही पड़ेगा, अब निकल जाओंगे तो संभल जाओंगे  नहीं तो न जाति बचेगी न देश बचेगा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा

राजीव चौधरी 

Monday, 9 November 2015

..दया के धनी देव दयानन्द

महर्षि दयानंद सरस्वती जी के निर्वाण पर्व पर विशेष 


जब जगन्नाथ ने अंग्रेजो के बहकावे में आकर ऋषि दयानन्द जी को दूध में जहर मिलाकर दे दिया, स्वामी जी की  हालत बिगड़ने लगी, डॉ अलीमरदान ने दवा के बहाने स्वामी जी के शरीर में जहर से भरा इंजेक्शन लगा दिया और स्वामी जी के शरीर से जहर फूटने लगा अतः रसोईये को अपनी गलती महसूस हुई, तो उसने स्वामी जी के पास जाकर माफी मांगी। मुझे क्षमा कर दिजिए, स्वामी जी। मैने भयानक पाप किया हैं, आप के दूध में शीशायुक्त जहर मिला दिया था।
ये तुने क्या किया? समाज का कार्य अधुरा ही रह गया। अभी लोगों की आत्मा को और जगाना था, स्वराज की क्रांति लानी थी|  पर जो होना था हो गया तु अब ये पैसा ले और यहां से चला जा नहीं तो राजा तुझे मृत्यु दंड दे देगें। ऐसे थे हमारे देव दयानन्द जी, दया का भंडार,करुणा के सागर आकाश के समान विशाल ह्रदय जो अपने हत्यारे को भी क्षमा कर गये थे। जिसका दुनिया में कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलेगा और दीपावली की रात लाखो दिए जलाकर वो ज्ञान और दया का दीप खुद बुझ गया जिसका दुनिया में कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलेगा
यू तो स्वतन्त्र भारत में ऋषि निर्वाणोत्सव पहली बार सन 1949  में मनाया गया और इस अवसर पर मुख्य वक्ता स्वतन्त्र भारत के राष्ट्रध्यक्ष चक्रवर्ती राजगोपालचारी थे इस अवसर पर समारोह की अध्यक्षता कर रहे  केन्द्रीय मंत्री श्री नरहरि विष्णु गाडगिल जी ने बोलते हुए कहा कि यदि यह देश स्वामी दयानन्द के मार्ग पर चला होता तो कश्मीर पाकिस्तान में न जाता।,,  इस बात को अल जमीयत अखबार ने मोटे अक्षरो में मुख्य पेज पर दिया। इसकी एक प्रति लेकर मौलाना अबुल कलाम आजाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के पास लेकर पहुंचे और शिकायत की कि आपका मन्त्री शुद्धी का प्रचार कर रहा है।   अगले साल (1950) मुख्यवक्ता के रुप में सरदार बल्लभभाई पटेल पधारे और उन्हौनें अपने भाषण में कहा कि यदि हमनें स्वामी दयानन्द की बात मानी होती तो आज कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में लटका न होता। इसके कुछ दिन बाद ही बम्बई में सरदार पटेल जी का निधन हो गया और उनके इस कथन के अभिप्राय को पूरी तरह  न जाना जा सका। लेकिन इंडियन एक्सप्रैस नई दिल्ली के 7  जून 1990 के अंक में प्रकाशित एक व्क्तव्य से पूरी तरह स्पस्ट हो गया उसमें लिखा था। देश के स्वतंत्र हो जाने पर यहां रहे ब्रिटिष सैनिकों अधिकारियों ने भारत सरकार को कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र संघ को सौंपने की सलाह दी थी। इससे पाकिस्तान को कश्मीर के मामले को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाने का अवसर मिला। इसी के परिणाम स्वरूप भारत को पाकिस्तान के तीन चार आक्रमणों का सामना करना पड़ा। इसी संदर्भ में सरदार पटेल के अनुसार यह सब ऋषि दयानन्द की बात न मानने के कारण हुआ। सत्यार्थ प्रकाश के छटे सम्मुलास में उन्होंने लिखा है कि मंत्री स्वराज स्वदेश में उत्पन्न होने चाहिए। वे जिनकी जड़े अपने देश की मिट्टी में हो, जो विदेश से आयातीत न हो और जिनकी आस्था अपने धर्म संस्कृति , सभ्यता, परम्पराओं में हो। दयानन्द के उक्त लेख की अवेहलना के कारण ही हमने इतनी हानि उठाई है। विदेशी प्रशासक कुशल तो हो सकता है, पर हितेषी नहीं।
स्वामी दयानन्द जी का मत था भिन्न-भिन्न भाषा प्रथक-प्रथक शिक्षा और अलग-अलग व्यवहार का छूटना अति दुष्कर है। दयानन्द के शब्दों में जब तक एक मत एक हानि-लाभ, एक सुख-दुःख न मानें तब तक उन्नति होना बहुत कठिन है। जब भूगोल में एक मत था उसी में सबकी निष्ठा थी और एक दूसरे का सुख-दुःख, हानि-लाभ आपस में सब समान समझते थे तभी तक सुख था। स्वामी जी हमेशा कहते थे एक धर्म, एक भाषा और एक लक्ष्य बनाए बिना भारत का पूर्ण हित होना कठिन है। सब उन्नतियों का केन्द्र स्थान एक है। जहां भाषा व भावना में एकता आ जाए वहां सागर की भांति सारे सुःख एक-एक करके प्रवेश करने लगते हैं। मैं चाहता हूं कि देश के राजा महाराजा अपने शासन में सुधान व संशोधन करें। अपने-अपने राज्य में धर्म भाषा और भाव में एकता करें। फिर भारत में आप ही आप सुधार हो जाएगा।राजीव चौधरी 


आओ कश्मीर को सहिष्णु बनाये

सितम्बर, 1920 में असहयोग आन्दोलन छिड़ा था आज 95 साल बाद देश के अन्दर सहिष्णुता का आन्दोलन छिड़ा है| अब हम चाहते है जब देश को सहिष्णु बना ही रहे है तो क्यों न पुरे देश को ही सहिष्णु बनाया जाये क्योंकि ये क्षेत्रवाद देश के लिए घातक है सबसे पहले सहिष्णु टीम को मेरा आमन्त्रण कश्मीर घाटी के अन्दर है, जहाँ रोजाना कश्मीर बनेगा पाकिस्तान। के नारों के साथ सेना के जवानों और हिन्दुओं पर हमले होते हैं| दादरी में इखलाक की हत्या के बाद से देश को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने निकले इन सेकुलर जमात के ठेकेदारों से मेरा पहला प्रश्न यह  है कि क्या ये लोग इस भारतीय क्षमा सहिंता का यह पाठ कश्मीर को भी पढ़ा सकते है? जहाँ के अखबार भी मजहबी मानसिकता का शिकार होकर लिखते है कि कश्मीर घाटी में हिंदुओं को बसाकर, लाखों सैनिकों को तैनात कर और तथाकथित चुनावों के जरिए कठपुतली सरकार बनवाने से कश्मीर भारत का अटूट अंग नहीं बन जाता है।
दूसरा प्रश्न क्या यह लोग वहां के उन मजहबी ठेकेदारों जो मस्जिद की मीनार से कहते है कि कश्मीरियों ने अपनी तीन पीढियां स्वतंत्रता के लिए बलिदान की हैं, वो भला कैसे भारत के गुलाम रह सकते हैं, इसलिए दुनिया जल्द वो दिन देखेगी जब कश्मीर में स्वतंत्रता का सूरज निकलेगा। उन्हें भी सहिष्णुता का पाठ पढ़ा सकते है? या फिर कश्मीरी पंडितो को वापिस कश्मीर में बसाने की बात करना ही इन लोगों को असहिष्णुता नजर आती है आज देश में इन लोगों ने एक नई विडम्बना पैदा कर दी हैं गौहत्या के खिलाफ बोलना, कश्मीर, बंगाल के हिन्दुओं की बात करने को यह लोग साम्प्रदायिकता कहते है जो  गाय को इनका निवाला बना दे तो वो इन्हें सहिष्णु और धर्मनिरपेक्ष नजर आते हैं| आखिर कौन है ये लोग कहीं ये वो ही तो नहीं जो याकूब की फांसी के खिलाफ पूरी रात सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर खड़े रहे थे? या वो जो आतंकी अफजल गुरु की फांसी पर रोये थे? पर यह लोग जब कहाँ थे जब चट्टीसिंहपूरा में मजहबी पागलों के झुण्ड ने निर्दोष हिन्दुओं  को सामूहिक रूप से कत्ल किया था चलो ये घाव पुराना है शायद इन्हें अपने सेकुलर चश्मे से दिखाई न दे पर अभी हाल ही में जम्मू कश्मीर में बुरहान वानी की मौत के बाद  नकाबपोश प्रदर्शनकारियों ने तिरंगा जलाया. उनके और सुरक्षाबलों के बीच झड़प में 14 सेना के जवानों समेत करीब हजारों लोग घायल हो गए है अब इनका यह सहिष्णुता का झुनझुना कहाँ है ? अभी कुछ दिन पहले पीडीपी विधायक पीर मंसूर जी ने आम जनता को संबोधित करते हुये कहा था कि कश्मीर मे मुसलमान बहू संख्यक है, इसलिये कोई गैर मुस्लिम मुख्य मंत्री नही बन सकता है क्यों नही बन सकता जबकि इस देश मे महबूबा जी के पिता जी ग्रह मंत्री भी रह चुके है और देश मे तीन राष्ट्रपति भी हो चुके है [जाकिर हुसैन जी ,फ़ख़रुद्दीन जी , कलाम जी] और आज भी उप राष्ट्र पति जी एक मुस्लिम है क्या यह सहिष्णुता सिर्फ हिन्दुओं के लिए हैं ? क्योंकि भारत के अन्य राज्यो मे भी मुस्लिम मुख्य मंत्री रह चुके है राजस्थान महाराष्ट्र असम और बिहार आदि शामिल रहे है| लेकिन इस बात को कहते वक्त ये तथाकथित बुद्दिजीवी धर्मनिरपेक्षता की जुगाली कर जाते है आज कसूरी की किताब के विमोचन पर यह लोग सहिष्णुता का पाठ पढ़ा रहे है लेकिन जब सलमान रुश्दी की किताब शैतानी आयते (सेटेनिक वर्सेस ) पर प्रतिबंद लगाया जब ओवैसी बंधू 15 मिनट पुलिस हटाकर हिन्दुओं को देख लेने की बात कहता है तब इनके असहिष्णुता के मापदंड क्या थे ? शायद वरिष्ठ लेखिका कृष्णा सोबती सही कहती है कि ये लोग लेखक और इतिहासकार नहीं सत्ता के माफिया हैं जो इखलाक पर रोते है पर कश्मीर पर इनके हलक सूख जाते हैं इखलाक की मौत पर अपने पैने पंजे ज़माने वाले राजनेता और कलाकार एक बार जनेऊ धारण कर सर पर शिखा रख श्रीनगर लाल चौक पर घूम आये शायद सहिष्णुता की सही परिभाषा का पता लग जाये !

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा ....
राजीव चौधरी 

Thursday, 5 November 2015

अभी बहुत गीताएँ बाकी है।

पाकिस्तान ने भारत की गीता सकुशल लौटा दी जिसकी चहुँ ओर प्रशंसा हो रही है। 23 साल की हो चुकी गीता उस समय महज सात या आठ साल की थी, जब वह आज से 15 साल पहले पाकिस्तानी रेंजर्स को लाहौर रेलवे स्टेशन पर समझौता एक्सप्रेस में अकेली बैठी मिली थी. पाकिस्तान में मानव अधिकार संगठन और सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाली संस्था बिलकीस एदी ने मूकबधिर गीता को गोद ले लिया था और तब से वह उनके साथ कराँची में ही रहती थी। गीता की कहानी फिल्मी कहानी की तरह है। गीता ने अपने परिवार को एक तस्वीर के जरिए पहचाना था। यह तस्वीर उसे इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग ने भेजी थी। गीता का परिवार कथित तौर पर बिहार से है फैजल एदी के अनुसार, गीता ने उन्हें साकेंतिक  भाषा में बताया था कि उसके पिता एक बूढे व्यक्ति थे और उसकी एक सौतेली मां और सौतेले भाई-बहन   थे। बहरहाल गीता वापिस आ गयी अब उसके असली माता-पिता खोजे जाने बाकी है। भारत सरकार की ओर से गीता की वापिसी पर एदी फाउन्डेशन को 1 करोड रुपये इनाम सहायता राशि देने की जो पेशकश की थी उसे भी बिलकीस बानो ने यह कहकर लेने से मना कर दी कि उनका संस्थान सरकारी धन इस्तेमाल नहीं करता।
पर फिर भी हमे शुक्रिया अदा करना चाहिए एदी फाडन्डेशन का जिसने आज के वेह्शी समाज और पाकिस्तान जैसे इस्लामिक मुल्क में जहां नारी को पैर की जूती समझा जाता है वहां इस मासूस को छत और मां-बाप की तरह प्यार दिया। उसकी वतन वापिसी के भावुक क्षण पर एदी फाउन्डेशन की अध्यक्ष बिलकीस बानो ने भावुक होते हुए कहा हम पाकिस्तान चले जायेगे, पर दिल में इसकी यादें रह जायेगी। लेकिन जिस तरह पूरा देश इसे हाथों-हाथ ले रहा है, वह एक समाज के तौर पर हमारे संवेदनशील होने का सूचक है। यह  बताता है कि हमें दूसरे के दुख-दर्द में खुद को शामिल करना आता है। भारत नाम के इस देश का अस्तित्व कागज पर खिंची कुछ लकीरो में नहीं है यह एक दूसरे के दिल में भी बसता है।
अब यदि हम एक गीता की वापिसी का जश्न हर रोज मनायें तो हमको यह शोभा नहीं देगा क्यूकि यहां तो हर रोज सैंकडो गीता गायब होती है जिनका कोई अता-पता नहीं चलता। एक गैर सरकारी स्वयं सेवी संस्था का मानना है कि दिल्ली व अन्य मेट्रो शहरों से बच्चों को उठाकर भीख मांगने, बालमजदूरी, वेश्यावृत्ति व अन्य गैरकानूनी कामों में लगा दिया जाता है। लापता होनें वाले इन बच्चों की पारिवारिक पृष्टभूमि पर नजर डाले तो पाएंगे कि गायब होने वाले अधिकांश बच्चे गरीब परिवार के होते है। देखा जाए तो इनके मां-बाप के बीच मारपीट,लडाई झगड़ा आदि बेहद आम घटना है इससे निजात पाने के लिए  भी कई बार बच्चे शुरू में घर से भाग जाते है। लेकिन उनमें से कुछ तो महीनों बाद लौट भी आते है और कुछ हमेशा के लिए गायब हो जाते है। दूसरा हमारे देश  में बेहद बडे स्तर पर बच्चों की चोरी हो रही है  लेकिन प्रशासन की ओर से कोई सार्थक कदम नहीं उठाया जा सका। जिसका परिणाम यह है कि हर साल   गुम होते बच्चों की संख्या में इजाफा ही हो रहा है। समाचार पत्रों के अनुसार इस साल देश में अप्रैल 2015 तक 130 बच्चे प्रतिदिन गायब हुए। कुल मिलाकर 15,988 बच्चे गायब हुए। इनमें 6,981  खोजे नहीं जा सके। देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि इन गुम होने वाले बच्चों में लड़कियां 55 फीसदी से ज्यादा है। और 45 फीसदी बच्चें अब तक नहीं मिल पाए है। ये या तो मार दिये गये या भिक्षावृति या वेश्यावृति के रैकेट में धकेल दिए गये है। कुल गुम हुए बच्चों 3,27,658  है जिनमें 1,81, 011 (गीता) यानि के लड़कियां है। अगर देखा जाये तो भारत में बच्चों की तस्करी के व्यापार में सामाजिक, आर्थिक कारण ही मुख्य भूमिका निभा रहा है। अशिक्षा, गरीबी, रोजगार  का अभाव आदि भी कई बार बच्चों को बाहर निकलने को मजबूर का देता है या फिर अभिावक उन्हें बाहर भेजते है। लेकिन उनमें से अधिकतर तस्करों के जाल में फंस जाते है। इस अवैध कारोबार को कडे कानून के द्वारा रोकने की बात की जाती है पर नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहा।
लापता बच्चों का ना मिलना उन माता-पिता की अंतहीन पीड़ा है उन्हें जीवनपर्यंत अपने बच्चे से अलग हो जाना पडता है। इसलिए गीता की वापिसी पर सरकार द्वारा कुछ नयें आयामों पर नजर डाली जाये जो गुमशुदा बच्चों को तलाशने में मददगार हो और इनकी तस्करी पर पैनी नजर रखी जाए। केन्द्रीय स्तर पर कोई मंत्रालय कोई टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए जाहिर सी बात है कि उन बच्चों को किसने उठाया? वो कौन लोग है? क्या ममता के टुकडें इसी तरह लापता होते  रहेंगे?  आदि सवाल खड़े होते है । लेकिन इन सवालों का जबाब मिलना बाकी है!  क्योंकि अभी डेढ़ करोड़ से ज्यादा गुमशुदा गीता बाकी है।

राजीव चौधरी 

Friday, 30 October 2015

अबकी बार जला देना मां

कभी-कभी समाचार पत्रों में कुछ खबरें ऐसी होती है जो हृदय को व्यथित तो करती ही है साथ ही  समाज में फैली गंदगी को यह कहकर दर्शाती है, कि देखो विश्व की सर्वश्रेष्ठ कही जाने वाली हमारी वैदिक संस्कृति को वासना की दीमक किस तरह धीरे-धीरे चट कर रही है। और भय ये है की शायद आने वाले दिनों में पूर्ण रुप से चट न कर जाये!
कल गाजियाबाद के मोदीनगर में तलहेटा गांव से एक ऐसा ही मामला सामने आया जिसे पढ़कर लगा कि क्या इंसान इससे भी नीचे गिर सकता है! यदि इस प्रकार के कुकृत्य कर सकता है तो फिरमेरा मानना है कि इंसान भगवान की सबसे सुन्दर कृति नहीं है। खबर थी, जिसमें कब्र खोदकर महिला की लाश निकाली गयी है और फिर उसके साथ बलात्कार जैसा घिनोंना कृत्य किया गया है। बता दूँ कि 26 वर्षीय महिला की दिल का दौरा पडने से मौत हो गयी थी, जिसके बाद उसे दफना दिया गया था। अगली सुबह उस महिला की लाश कब्र से करीब 20 फीट की दूरी पर आपत्तिजनक स्थिति में मिली। इसकी सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची । शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया। पुलिस की नजरों में यह महज एक घटना है जिसे कुछ अराजक तत्वों ने अंजाम दिया होगा। पर मानव जाति के लिए इससे शर्मनाक कृत्य क्या होगा! यह एक अकेली घटना नहीं है अभी कुछ दिन पहले पाकिस्तानी मिडिया के हवाले से खबर थी कि पाकिस्तान के कई प्रान्तों से अलग-अलग कब्रिस्तानों में इस प्रकार के कई सारे मामले संज्ञान में आये जिसमें कब्र खोदकर रेप की घटना सामने आई जिनमें अधिकतर नाबालिग बच्चियों और युवतियों को शिकार बनाया गया।
अब यदि इस प्रकार के मामलों का गहराई से अध्ययन करें तो पता चलता है कि इस प्रकार के कृत्य करने वाले लोग संकीर्ण, कुठिंत मानसिकता के रोगी होते है जो यौंन संबध स्थापित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते है। छोटे बच्चों से लेकर वर्द्ध महिला और तो और कई बार इस प्रकार की बीमारी से ग्रसित रोगी जानवरों तक में योंन सुख की प्राप्ती खोजते हैं। अब यदि हम मूल घटना पर आयें तो कब्र खोदना और उसके बाद युवती के शव के साथ रेप की घटना निंदनीय विषय के एक विचारणीय विषय भी है कि आखिर ये इस प्रकार के रोगी हमारे समाज में कैसे पनपें? दरअसल आज हमारा समाज बेहद   दूषित संस्कृति और खान-पान से जुझ रहा है, जिसे हम लोग आधुनिकता भी कहते है। मनोरंजन के नाम पर अश्लील फिल्में, अश्लील  गीत संगीत और विज्ञापनों के द्वारा लोगों के मस्तिक्ष में नंगता, सेक्स घुसेडा जा रहा है। अब जो मस्तिक्ष में जायेगा वो कल्पना कभी-कभी प्रयोगात्मक कृत्यों के द्वारा बाहर भी आती है जिनमें कुछ योन कुंठा के शिकार रोगी इस प्रकार की घ्रणित अशोभनीय घटनाओं को जन्म तक दे देते है। इस प्रकार की घटनाओं पर यदि कुछ मनोचिकित्सको की माने तो इस प्रकार के रोगी कई बार कुक्रर्म करने के बाद हत्या तक कर डालते है। उस वक्त इन्हें रिश्तें नातें समाज की मर्यादा का भी ख्याल नहीं रहता जैसे  अभी कई रोज पहले मुंबई के बाहरी इलाकें में एक बेटे के द्वारा अपनी मां के साथ रेप के बाद हत्या का मामला सामने आया था। इस तरह की अनेकों घटनाऐं ऐसी भी होती है जो समाज के सामने नहीं आती | 
आज  बच्चों का पालन-पोषण बेहद विपरीत परिस्थियों में हो रहा है। जिसमें उसे पारिवारिक   सामाजिक ज्ञान नहीं मिल पाता और वो अपनी वैदिक संस्कृति शाकाहारी खान-पान से दुर हो जाता है।   जिसका नतीजा ये इस प्रकार की घटनाओं का होना है और आज जिस तरीके से आधुनिकता की आड में समाज का निर्माण हो रहा है। उसे देखकर लगता है कि आने वाले समय में इस प्रकार की घटनाएं कम होने की बजाय और बढेगी। क्योंकि जो वासना का जहर आज खुले तौर पर बिक रहा है वो जब भी अपना असर दिखायेगा तो कभी जिन्दा तो कभी मुर्दा नारी शिकार जरुर बनेगीं। बहरहाल अब राजनेता कुछ कहे या समाज कुछ कहे लेकिन उस लडकी की आत्मा क्या कहती होगी यही कि अबकी बार दफ़नाने की बजाय जला देना माँ  भले ही लोग तुझे कहे काफिर पर मेरे जिस्म को जला देना मां।

राजीव चौधरी 

Tuesday, 27 October 2015

लाशो का धर्म तलाशो ?

एक अजीब तरह का माहोल खडा किया जा रहा। कि देश में अल्पसंख्यक सुरिक्षत नही है माहौल खराब हो चुका है एक अजीब विस्मय के साथ भय पैदा किया जा रहा है, बिलकुल ऐसे जैसे  पहले छोटे बच्चों को कुछ अनदेखे जीवों से डराया जाता था बेटा चुप हो जाओं वरना हाऊ आ जायेगा,  काट लेगा आदि,आदि । दिन पर दिन जितना इखलाक की कब्र मंहगी हो रही है, या यह कहो जितना  माहौल बिगडने का नाटक किया जा रहा है, उतनी ही कब्र महंगी हो रही है|   मिडिया के मुताबिक माने तो करीब 45 लाख सरकारी मदद और अन्य राजनैतिक दलों की तरफ से 30 लाख अब नोयडा के अन्दर चार फ्लेट और आवंटित किये जा रहे है। ये सब उस देश में हो रहा है जहां भूख के कारण  पता नही रोजानां कितने गरीब मुस्लिम बच्चें दम तोड देते है। पर सरकार की तरफ से गरीबों  की फ़िक्र की बजाय लाशो को धार्मिक आधार पर देखा जा रहा है। वरना कई रोज पहले मैगलरु से करीब 20 किलोमीटर दूर मूदबिद्री गाँव में फूल विक्रेता प्रशांत पुजारी की सरेआम हत्या कर दी गयी पर वो  बहुसंख्यक वर्ग से था मुस्लिम संगठन आरएफडी के लोगों ने प्रशांत की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि प्रशांत ने गायों के अवैध  तस्करों के खिलाफ सक्रिय होकर बडे़ पैमाने पर छुडाया था। शायद यही वजह कही जा सकती है कि बहुसंख्यक होने की वजह से उसकी चिता को मुल्य तो दूर की बात सात्वना की एक आवाज तक नहीं सुनायी दी। क्योकि फिलहाल भारत के राजनीति के बाजार में क्रब मंहगी और चिता सस्ती बिक रही है। भारत की मीडिया का एक बडा धडा अपनी तेज नाक से कब्र तो खोज लेता है पर चिता से उठता धुआं उसे दिखायी नहीं देता। यदि ये लोग सही खबर रखे तो शायद इतना शोर न हो! आज भारत के साहित्यकार अफसोस मना रहे है, दुखी है, रो रहे है, लेकिन यह सरस्वती के पुजारी इस बात को क्यों नही सोचते की  हिंसा कही भी हो सकती और हिंसा किसी की  भी जान ले सकती है राम की भी और रहीम की भी। देश के अन्दर कानून है, संविधान है  न्यायपालिका है फिर  यह उपद्रवी मानसिकता क्यों? या फिर यह लोग अपना हिंसा का मापदंड सामने रखे पर क्रब पर या चिता पर राजनीति इन तथाकथित बुद्धिजीविता के ठेकेदारों को शोभा नहीं देती इसे देखकर तो यह लोग साहित्कार कम और किसी मदारी के बन्दर ज्यादा नजर आते है कि जैसे चाहों इनसे उछलकूद करा लो।
दूसरी बात यह लोग चिल्लाकर कह रहे है कि देश में अल्पसंख्यक त्रस्त है वो हर पल खतरे में जी रहा है तो इसे मैं बकवास के अलावा कुछ नहीं कहूँगा क्योकि जो लोग दहशत में जीवन जीते है वो पलायन कर जाते है, सीरिया में मुसलमानों के द्वारा मुसलमान त्रस्त था जर्मनी में शरण ली हजारों लाखों हिन्दू बांग्लादेश और पाकिस्तान के अन्दर दहशत में थे भारत में शरण ली कश्मीर में अपना सब कुछ गवांकर हिन्दू शरणार्थी आज जम्मू व भारत के अन्य  राज्यो में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है पर कोई एक ऐसा मुसलमान इस देश में नहीं जो दहशत के कारण भारत छोडकर पडोसी देश में जाकर बसा हो! उल्टा यहां का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना देखकर बांग्लादेश से करोडो मुसलमान ही आकर बस गये। तीसरा इखलाक की हत्या देश में  कोई पहली हिंसा नही है जो यह लोग सार्वजनिक मंचो से लेकर विश्व के मंचो तक शोर मचा रहे है। इस देश के  लोगों ने बडे-बडे दुख झेले है। 1990 में कश्मीर जल उठा था तब क्या यह साहित्यकार बहरे हो गये थे हजारों लोग की चींखे तब इन्हें क्यों सुनायी नहीं दी, इखलाक के शव को तो दो गज जगह और मिटटी भी नसीब हो गयी पर कश्मीर की हिंसा और  बटवारे की हिंसा ने न जाने कितने शव जंगली जानवरों का निवाला बने। खैर प्रसंग बडा है और प्रश्न लाखों, जिनका जबाब यह प्रमाण पत्रो के साहित्कार नही दे पायेगें अतः मेरी सरकारो और मीडिया से इतनी विनती है कि हालात ऐसे न बने की हिंसा हो यदि हो   कहीं हो भी  पर उसमें पडने वाली मिटटी और चिता के घुऐं को बराबर सम्मान दें चिता और कब्र को मिलने वाली सात्वना राशी बराबर हो वरना दिन पर दिन कबर महंगी होती जायेगी और यह हाऊ का खेल बंद करे


राजीव चौधरी 

Tuesday, 20 October 2015

क्या आज आपने "Rapes of India" और "RapeTimes" अख़बार पढ़ा?

अंग्रेजी में दो प्रसिद्द अख़बारों के नाम हैं "Times of India" और Hindustan Times  भारत में जिस गति से बलात्कार या रेप की घटनाएँ बढ़ रही हैं उस हिसाब से कुछ दिनों में इन अख़बारों के नाम बदल कर "Rapes of India" और "RapeTimes" करना पड़ेगा। अचरज में मत पड़े। जब दिल्ली का नाम परिवर्तन कर उसे "Rape Capital" की संज्ञा से पुरस्कृत किया जा सकता है तो फिर यह संज्ञा देने वाले समाचार पत्रों का यथास्वरूप नामकरण क्यों नहीं हो सकता। सोचिये इन बलात्कार समाचार पत्रों के पृष्ठ  कैसे होंगे?

पृष्ठ 1 

आज दिल्ली में 3 और बलात्कार हुए। 
तीनों बलात्कार की पीड़ित लड़कियां 5 वर्ष की आयु से कम निकली। 
बलात्कार करने वाले सभी लड़के नाबालिग। 
एक लड़की शौच करने निकली तब शिकार बनी। 
दूसरी खेल रही थी टॉफी दिलाने के बहाने शिकार बनी। 
तीसरी के किरायेदार ने उसके साथ दुष्कर्म किया। 
तीनों बच्ची विभिन्न हस्पतालों के चक्कर खाते के पश्चात सफदरजंग हस्पताल में भर्ती। 
तीनों की हालत गंभीर, तीनों को अनेक बार सर्जरी की आवश्यकता।      
सभी नाबालिग रिमांड पर। सबसे छोटे की आयु 9 वर्ष। 

पृष्ठ 2 

केजरीवाल ने दिल्ली पुलिस को बलात्कार के लिए दोषी बताया। 
केजरीवाल द्वारा यह बयान दिया गया की दिल्ली पुलिस उनकी सलाह पर ध्यान नहीं देती।
जब तक उन्हें दिल्ली पुलिस का कार्यभार, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा और सबसे आवश्यक उन्हें भारत का प्रधान मंत्री नहीं बनाया जायेगा तब तक दिल्ली में बलात्कार नहीं रुकेंगे। 
मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने आज दिल्ली पुलिस भवन के आगे प्रधान मंत्री नरेंदर मोदी का पुतला दिल्ली में हुए बलात्कारों के विरोध में फूंका। उनका कहना था जब से दिल्ली में नरेंदर मोदी जी की सरकार आई हैं तब से बलात्कार के मामलों में जबरदस्त वृद्धि हुई हैं। 
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का बयान लड़कों और लड़कियों दोनों से गलती हो जाती हैं। माँ-बाप को अपनी बच्चियों का ध्यान रखना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के दूसरे मंत्री आजम खान का बयान की वह बढ़ते बलात्कार के लिए संयुक्त राष्ट्र को चिट्ठी लिखेंगे। 

पृष्ठ 3 

कुछ संगठनों ने बढ़ते बलात्कार का कारण बढ़ती फिल्मों, अश्लील साइट्स आदि के माध्यम से बढ़ती अश्लीलता बताया तो कुछ आधुनिक बुद्धिजीवी जिसमें अश्लील उपन्यास लिखकर पेट भरने वाली  लेखिका, अर्धनंग और अश्लील फिल्में बनाकर पेट भरने वाले फ़िल्म निर्देशक, अपना जिस्म दिखाकर पेट भरने वाली अभिनेत्रियां मीडिया में आकर बयानबाजी करने लगे की खुले विचार हिन्दू समाज का अभिन्न अंग है। 
हिन्दू धर्म कामसूत्र और खजुराओ की मूर्तियों का प्रचारक हैं।
हिन्दुत्ववादी लोग नारी को कपड़ों में कैद करना चाहते हैं। 
अश्लील साइट्स देखना सभी की नजदीकी स्वतंत्रता हैं। 
लिव-इन-रिलेशन में रहना, समलैंगिक होना, विवाह पूर्व या पश्चात अनेकों से सम्बन्ध होना आधुनिक विचारों का प्राय: हैं। 
 शर्लिन चोपड़ा और पूनम पाण्डेय ने कपड़ों के स्थानों पर अजग़र लपेट का अपना प्रतीरोध प्रदर्शित किया।
महेश भट्ट ने सन्नी लियॉन को उसकी बेदाग छवि, नैतिकता, समाज को देन के लिए भारत रत्न की मांग कर डाली।

पृष्ठ 4 

फुल पेज पर विज्ञापन ही विज्ञापन 

पहला सन्नी लेओनी के कंडोम का विज्ञापन 
दूसरा DeoSpray में एक अर्ध नग्न मॉडल के चारों और deo लगाने पर लड़कियां मक्खियों के समान भिन्नभिना रही हैं। 
तीसरा एक लड़की ब्राण्डेड जीन्स पहन कर अपनी figure दिखा रही हैं। 
चौथा एक पुरुष अंडरवेअर पहन कर अपनी मर्दानगी से महिलाओं को आकर्षित कर रहा हैं। 

अगले दिन, अगले सप्ताह , अगले साल भर Rape Times अखबार में यही ख़बरें अपने नाम बदलकर फिर से छपती रही। नतीजा वहीं का वहीं । भारत की मासूम लड़कियां ऐसे ही पीड़ित होती रहेगी। हर रोज अनेक लड़कियां "निर्भया" के समान अत्याचार का सामना करती रहेगी। नेता अपनी राजनैतिक रोटियां सकते रहेंगे। जिनका धंधा अश्लीलता परोस कर चलता है। वो कभी मंद नहीं होगा। व्यापारी कम्पनियां NGO धंधे वालो के साथ मिलकर अभिव्यक्ति और नीज स्वतंत्रता के नाम पर अपने उत्पाद बेचकर भारी मुनाफा कमाने के लिए युवाओं की सोच को प्रदूषित करती रहेगी। हमारी सरकार अश्लीलता को रोकने का जैसे ही कोई उपाय करेगी। सेक्युलर गैंग वाले उसकी इतनी आलोचना करेंगे की वह वोट के भय के चलते अपने पांव पीछे खींच लेगी।  

अंत में ---
  
मेरे देश की बेटी यूँ ही पिसती रहेगी !
मेरे देश की बेटी यूँ ही मरती रहेगी !

(समाज में नारी जाति को देवी कहा गया हैं। उनका सम्मान करना सभी का दायित्व हैं। आईये इस अश्लीलता रूपी दानव का देवी हाथों नाश कर एक आदर्श समाज का निर्माण करे।इस लेख को हर अश्लीलता के विरुद्ध समर्थन करने वाला मित्र शेयर अवश्य करे)
 
डॉ विवेक आर्य