1. यह कामधेनु मंत्र है, सविता
मंत्र है। सावित्री मंत्र है।
2. इसे एक बार नहीं, कम से कम
तीन बार गाओ, अनेक बार गाओ, प्रतिदिन
गाओ।
3. यह गाने वाले की प्राणरक्षा करता है।
4. ‘भूः- भुवः -
स्वः’’ तीनों व्याहृतियों के लिये गाओ। परमात्मा ने यह खजाना
औषधियों-वनस्पतियों, वृक्षों जल, वायु,
अग्नि, पर्वत, आकाश, सूर्य,
चन्द्र, नक्षत्र, दूध,
दही, घृतादि चिकित्सा में सर्वत्र फैला रक्खा है। यह
त्रिक परमात्मा की परम- औषधि है - मन से गाओ। निर्विकार रहोगे।
5. उदात्त - अनुदात्त - स्वरित स्वरों में गाओ। ,
6. हृस्व - दीर्घ - प्लुत स्वरों में गाओ।
7. ईश्वर - जीव - प्रकृति के लिये गाओ।
8. ज्ञान - कर्म - उपासना के लिये गाओ।
9. त्रयी विद्या के लिये गाओ।
10. त्रिलोकी के ज्ञान के लिये गाओ। गायत्री वेद
का मुख है। ईश्वर की गर्भित वाणी है।
11. त्रिताप निवारण के लिये गाओ।
(आध्यात्मिक-अधिभौतिक-अधिदैविक) (दैहिक-दैविक-भौतिक)
12. तीनों लोगों की ज्ञान गंगा के लिये गाओ।
13. वर्तमान - भूत - भविष्य के लिये गाओ।
14. ईड़ा - पिंगला - सुपुम्ना नाड़ियों की दृढ़ता के
लिये गाओ। ये देह का मूलाधार है। प्राणाधार है।
15. देह के अष्ट - चक्रों की योग - क्रियाओं के
लिए गाओ। ब्रह्मरन्ध्र में वास मिलेगा।
16. तीनों एषणाओं से ऊपर उठकर गाओ। (वित्तैषणा – पुत्रैषणा – लोकैषणा)
17. आनन्द - रस में गाओ।
18. प्रातः - माध्यदिन - सायं सवनों के लिये गाओ।
19. भौतिक - विद्युत् - सूर्याग्नि के अद्भुत
ऊर्जा सामर्थ्य - प्राप्ति के लिए गाओ।
20. तीनों अनलों की शान्ति - पाचक शक्ति के लिये
गाओ। (दावानल-वडवानल-जठरानल)
21. तीनों शरीरों में गाओं। (स्थूल - सूक्षम - कारण
(लिड्.ग) शरीर)
22. आचमन - त्रच के लिये गाओ।
23. पूर्णाहुति के लिये गाओ।
24. सामवेदोक्त वामदेव्य - गान में गाओ। ऐश्वर्य
मिलेगा, सम्मान मिलेगा।
25. माता – पिता - गुरू भक्ति के लिये गाओ।
26. तीनों वचनों में गाओ। पुरूषों में गाओ।
27. श्रद्धा - भक्ति - निष्ठा से गाओ।
28. मन - वचन - कर्म से गाओ।
29. सूर्य - चन्द्र - नक्षत्र - आकार तारागण
विज्ञान के लिये गाओ। ज्योतिष का ज्ञान मिलेगा। द्वार मिलेगा।
30. स्वर्ग सुख के लिये गाओ।
31. तीनों गुणों के फलोदय परिणाम के लिये गाओ।
प्रकृति का खुला साम्राज्य मिलेगा।
32. मधु - सर्पि - क्षीर - दधि की पूर्ण प्राप्ति
के लिए गाओ, पूर्णायु मिलेगी।
33. ऋत्विकों के यज्ञ.साफल्य के लिये गायत्री में
रमे रहो। यज्ञरूप गायत्री में होती - अध्वर्यु - उद्गाता - ब्रह्मा से वेद - पाठक
ज्ञानी मिलेंगे, दानी मिलेंगे, महर्षिवत्
अतिथि मिलेंगे।
34. प्रभाव - उत्साह - मंत्र शक्तियों के अक्षय
अर्थ के लिये गाओ। प्रातः - सायं गाओ। त्रिशक्ति मिलेगी।
35. यज्ञोपवीत - शिखा मेखला से बन्धे ब्रह्मचर्य -
शक्ति स्थायित्व के लिये सहजता से गाओ निर्भयता मिलेगी।
36. गायत्री गान की शरण में रहो - आत्मा पवित्र
रहेगी। आत्मिक ज्ञान मिलेगा।
37. प्राण मिलेगा, निराकार
मिलेगा, सर्वाद्यार मिलेगा।
38. सुखीजीवन मिलेगा।
(‘‘ऋग्वेद
10- 75-5’’)
39. बुद्धि चातुर्य (चारों बुद्धियों) का गायत्री
विलक्षण सोपान है। इस पर चढो और गाओ इतना कि शयनकाल में भी गायत्री गुंजन होता रहे।
‘‘पराविद्या (यया तदक्षरं अधिगम्यते - जिस विद्या से ईश्वर की प्राप्ति
होती है) का संसार मिलेगा।
40. गायत्री छन्द का स्वर षड्ज स्वर है। (स्वरित
प्रभवा होते षड्ज मध्यम पंचमाः) षड्ज स्वरित - प्रभावी ऊंचा स्वर है - जिसे (षड्जं
मयूरो वदति) राष्ट्रीय मयूर पक्षी गायत्री गीत स्वरित (ऊंचे) स्वर में गाता है।
वेद का आदेश है - ‘‘रे मानव! मयूर पक्षी के समान ते भी प्रकृति के
पहाडी दर्रोंं, गुफाओं, आकाश और
दिशाओं को षड्ज गायत्री से गुंजित कर- सुगन्धित, अनुकूल
वायु बहेगी। वर्षा गिरेगी। कृषक सम्पन्न होंगे। महर्षि सी सन्तान मिलेगी।
(नारदीयशिक्षा,
रघवंश - कालिदास, विष्णु शर्मा पंचतंत्र)
41. गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं। 24
तत्वों से ही मानव शरीर का निर्माण होता है। गायत्री ध्वनि का प्रकृति से सीधा
सम्बंध होने से शरीर में प्रकृति के शुद्ध परमाणु प्रविष्ट होने लगते हैं।
दत्त चित्त होकर, गायत्री
गाते रहो।
42. अज्ञान-अभाव-अन्याय तीनों महापाप गायत्री गान
में बह जाते हैं।
विद्या वाचस्पति
वेदपाल वर्मा शास्त्री
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