धर्म जगत की परिभाषा में नास्तिक उस व्यक्ति को समझा जाता है जो ईश्वर के
अस्तित्व को नकारता है, उसके होने
या न होने में संदेह पैदा करता है। लेकिन जो लोग ईश्वर से भी अलग किसी मजार, कब्र, मूर्ति या पीर आदि में अपार श्रद्धा और
विश्वास व्यक्त करते हो उन्हें क्या कहा जाये? देखा जाए तो दुनिया में सबसे अधिक
तादात आज इन्हीं लोगों की है। पर प्रश्न हमारी बौद्धिक क्षमता पर तब खड़ा होता जब
हम यह तय न कर पाए कि इन लोगों को आस्तिक कहें या नास्तिक, धार्मिक ढोंगी कहे या अंधविश्वासी?
बहराल हाल ही में भारतीय टीम के सलामी बल्लेबाज शिखर धवन ख्वाजा मोइनुद्दीन
हसन चिश्ती की दरगाह अजमेर शरीफ पहुंचे। जहां उन्होंने अपने परिवार के साथ अकीदत
की चादर और फूल पेश किए। बताया जा रहा है कि शिखर धवन अभी क्रिकेट में चोट और
अच्छा न खेल पाने से दुखी है इस कारण वह रूहानी ताकतों का सहारा लेना चाह रहे हं।
इस रूहानी ताकत को आप कुछ इस तरह समझ सकते कि शिखर धवन के बल्ले के सामने
गेंद आये और वह चौंके या छक्के पर चली जाये शायद कुछ ऐसी ही ताकत वे दरगाह पर
मांगने गये थे। मेरा मकसद किसी की आस्था पर सवाल करना नहीं है लेकिन क्या कोई बता
सकता है कि जिसकी दरगाह में वे गये हैं वह जीवन में कितना क्रिकेट खेला जो यह
रूहानी ताकत उन्हें बक्श देंगे? बेहतर
होता शिखर धवन फिटनेस के लिए किसी अच्छे ट्रेनर और खेलने के लिए किसी अच्छे
बल्लेबाज से सलाह मशविरा लेते।
भारत धार्मिक आस्थाओं के देश के रूप में जाना जाता था लेकिन अब यह
धीरे-धीरे अंधविश्वास और पाखण्ड का देश बन चुका है। आज हम गहराई से देखें तो एक तो
मजार और दूसरे कथित बाबा भारतीय समाज का अहम हिस्सा बन चुके हैं। लोगों की दैनिक
की जिंदगी में कथित बाबा या पीर मजार अब एक सेवा प्रदाता कम्पनी की तरह बन चुके
है। जिसको जो चाहिए वह मिल जायेगा अर्थात् यह लोग जनता को वह जरूरी सेवाएं देने का
कार्य कर रहे हैं जैसे फ्लिपकार्ड और स्नेपडील जैसी कम्पनियां यानि इन्हें कुछ
पैसा देकर इनसे बदले में सामान के बजाय पैसा पावर, नाम, रुतबा शोहरत आदि जितना चाहो लिया जा
सकता हैं। हालाँकि गारंटी कुछ नहीं है एक चादर से लेकर कोई मोटी रकम चुकाकर भी आप
विश्वास के सहारे ही लौट सकते हैं।
इन कम्पनियों के कर्मचारी जिन्हें भक्त या सेवक कहा जाता है इनकी तारीफ इस
ढ़ंग से करते हैं जैसे बस इनके पास जाने की देर है इसके बाद दुनिया को अपनी मुट्ठी
में करना कोई बड़ी बात नहीं है। वे बताते हैं खर्चा कुछ खास नहीं, बस श्रद्धा से जो चढ़ाना हो चढ़ा दो, बिगड़े सारे काम मिनटों में बन जायेंगे।
मजार या बाबा की कृपा हुई तो झमाझम खुशियों की बरसात होगी। मुंह से निकलते ही हर
मुराद पूरी होगी। इस तरह के झूठ बोलते हुए उनकी आँखों में एक विशेष चमक देखी जा
सकती है।
जो मीडिया शिखर धवन के दरगाह पर जाने को जियारत बता रही है। आज इसे बहुत
बड़ी भक्ति साधना और शांति के मार्ग रूप में दिखा रही है। कल परसों उसी मीडिया के
यहाँ अंधविश्वास पर कार्यक्रम चल रहे थे। आसाराम के जेल जाने के बाद बताया जा रहा
था कि गरीब लोग कैसे इन बाबाओं के झांसे में आ जाते हैं।
बाबा और अन्धविश्वास की खबरों के बीच विज्ञापन को सेंडविच की तरह परोसने
वाले लोग अब क्यों नहीं बताते कि ये बाबा और मजार गरीबों ने खड़ें नहीं किये, इन्हें खड़े करने वाले लोग भी ये अमीर
और सेलिब्रेटी हैं। ये नेता हैं, अभिनेता
हैं, लेकिन
गरीब जब सुख की तलाश में किसी मजार और बाबा की शरण में जाता है तो अंधविश्वासी हो
जाता है, लेकिन जब
अमीर सुख और लालसा पाने के नाम पर किसी मजार पर जाता है तो वह खबर धर्म शांति और सदभावना की खोज बन जाती
है। इसे भी बेखोफ अंधविश्वास कहिये वरना आपकी जिम्मेदारी भी संदेह के दायरे में
खड़ी दिखाई देगी।
गरीब अपनी गरीबी के लिए जिम्मेदार हो सकता है लेकिन अपने अंधविश्वास के लिए
वह जिम्मेदार नहीं है उसकी जिम्मेदार है ये लोग जो सब कुछ पाने के लालच में जियारत
कर चादर चढ़ा रहे हैं। ये लोग और मीडिया ही मिलकर बाबा खड़े करते हैं, पीर और मजार खड़ें करते हैं बाद में ये
लोग अपने चैनल खड़े कर समाज की धार्मिक सोच को अपने चंगुल में जकड़ लेते हैं। इतने
बड़े समाज को प्रभावित करने वाले इन कार्यक्रमों की कोई समीक्षा पेश नहीं की जाती
है।
टी.वी. पर सुबह खबर चल रही होती है कि ‘सात जनम तक कैसे मिलेगा पैसा ही पैसा’ इस उपाय से मिलेगी अखण्ड लक्ष्मी, इस यंत्र और इस पूजा के तरीके से होगा
बेड़ा पार। सोचिए कौन इस लालच में नहीं पड़ेगा जो लोग एक जन्म में दो वक्त की रोटी
के लिए दिन रात मेहनत मजदूरी कर रहे हैं आखिर वे इसमें क्यों निवेश न करे?
देश में बीपीओ जैसे सेक्टर का व्यापार घट रहा हैं लेकिन बड़ी तेजी से मजारों, पीरां और बाबाओं का कारोबार बढ़ रहा है।
यदि रफ्तार यही रही जल्दी भारतीय अर्थ व्यवस्था भी इसी अंधविश्वास के दल-दल में
लिपटी खड़ी मिलेगी। आज भारत के किसी भी छोटे शहर या कस्बे में यहाँ तक कि गांवों
में यह कारोबार अपनी जड़ें जमा चुका है। अमीर लोगों के अंधाधुंध धार्मिक करण का
नतीजा यह हुआ कि अब हर गली में सौतन-दुश्मन से छुटकारा दिलाने वाले, जमीन जायदाद के मामले मिनटों में
सुलझाने वाले, सेकेण्डां
में सब दुःख दर्द हरने वाले बंगाली बाबा बैठ गये। दिल्ली के जमनापार में आप किसी
ओटो में बैठ जाईये हर ओटो में पांच दस बाबाओं के विजिटिंग कार्ड सीट के ऊपर नीचे
जरूर मिलेंगे।
दुःख की बात यह है कि आज आम भारतीय को जीने के लिए धर्म के नाम पर पाखंड की
खुराक चाहिए. कोई भी सफलता पाने के लिए प्रार्थना की जगह ढ़ोंग सिखाया जा रहा है
प्रयास और आत्मविश्वास को समाप्त कर मायावी दुनिया खड़ी की जा रही है। लोग इतने डरे
हुए है कि दुनियावी चुनौतियों से निपटने की अपनी शक्ति समाप्त कर चुके हैं।...लेख राजीव चौधरी चित्र साभार गूगल
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