आज से 18 साल
पहले की दीपावली की बात है. जब उस रात भारतीय समाज ज्ञान रुपी प्रकाश के दीये
जलाकर अज्ञानता के अंधेरे को भगाने की प्रार्थना कर रहा था. ठीक उसी समय राजधानी
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में रोमन कैथोलिक चर्च के पोप जान पाल द्वितीय
अपने अनुयायियों को बता रहे थे कि ईसा की पहली सहस्राब्दी में हम यूरोपीय महाद्वीप
को चर्च की गोद में लाये, दूसरी सहस्राब्दी में उत्तर और दक्षिणी
महाद्वीपों व अफ्रीका पर चर्च का वर्चस्व स्थापित किया और अब तीसरी सहस्राब्दी में
भारत सहित एशिया महाद्वीप की बारी है. इसलिए भारत के मतांतरण पर पूरी ताकत लगा दो.
पोप दावा कर रहे थे,
“ईसा और
चर्च की शरण में आकर ही मानव की पापों से मुक्ति व उद्धार संभव है.” उनका यह कथन
भारत की एक प्रसिद्ध पत्रिका में प्रकाशित भी हुआ था. जब पॉप भारत की धरती पर खड़े
होकर ईसाइयत की महानता का बखान कर रहे थे उसी समय अमरीका और यूरोप के लोग पोप के
दरबार में गुहार लगा रहे थे कि हमें अपने बिशपों-पादरियों के यौन शोषण से बचाओ,
तुम्हारा चर्च ऊपर से नीचे तक पाप में डूबा हुआ है.
लेकिन यह
प्रसंग धर्मांतरण की चर्चा से थोडा अलग होकर पॉप के उस दावे पर सवाल उठा रहा है कि
ईसा और चर्च की शरण में आकर ही मानव की पापों से मुक्ति व उद्धार कैसे संभव है. जबकि
हाल ही में इसी वेटिकन सिटी के पॉप ने एक फैसले द्वारा मानवता को शर्मशार किया है.
खबर है 30 बच्चियों से रेप के मामले में एक कैथोलिक पादरी को रोम के वेटिकन सिटी
चर्च ने माफी दे दी है. बताया जा है कि इसके पीछे अहम वजह चर्च में प्रशासन की
मजबूत पकड़ है. पोप की ओर से कहा गया कि मामला खत्म हो गया है। अब इसमें कुछ नहीं
हो सकता है इसी वजह से पादरी पर कोई केस नहीं चल सका जबकि 30 बच्चियों से रेप की बात
उक्त आरोपी पादरी स्वीकार भी कर चूका है. अब सवाल यह है कि क्या ईशा इस पाप को
क्षमा कर देंगे यदि हाँ तो फिर ये जरुर बताया जाये कि ऐसा कौनसा पाप है जिसे चर्च
या ईशा क्षमा नहीं करते?
कहते है बच्चें
भगवान का रूप होते है लेकिन यदि चर्चों और पादरियों के किस्से पढ़े तो लगता है इनकी
नजर में बच्चें सिर्फ शोषण के लिए मानव शरीर होते है. साल 2010 न्यूयॉर्क टाइम्स
में छपी एक खबर के अनुसार 90 के दौर में एक मामला पादरी लॉरेंस मर्फी को लेकर उठा
था. पादरी पर आरोप था कि उन्होंने 230 ऐसे बच्चों का यौन शोषण किया जो सुन नहीं
सकते थे. अख़बार के मुताबिक वर्तमान पोप ने इस मामले पर कोई कदम नहीं उठाया था.
कुछ साल पहले पोप बेनेडिक्ट ने आयरलैंड में कैथलिक पादरियों द्वारा बच्चों के यौन
शोषण के मामले में पीड़ितों से माफ़ी माँगी थी. मामला इतने पर ही खत्म नहीं होता
अमरीका में बच्चों के यौन शोषण मामले में संदिग्ध 21 रोमन कैथलिक पादरियों को
निलंबित कर दिया गया था. जिसके बाद उसी महीने ही ज्यूरी की रिपोर्ट आई थी जिसमें
कहा गया था कि कम से कम 37 पादरी ऐसे हैं जो आरोप लगने के बावजूद काम कर रहे हैं. रोम
के अख़बारों में ये ख़बर पहले पन्ने की सुर्ख़ियों में छपी थी. कुछ अख़बारों ने
इसे वैटिकन सेक्स स्कैंडल तक का नाम दिया था.
ऐसा नहीं है कि
यह मामले किसी संज्ञान में नहीं आते आते लेकिन चर्चों की बेशर्मी के आगे यूरोप के
कानून हासियें पर चले जाते है. संयुक्त राष्ट्र ने कई बार बच्चों के यौन शोषण को न
रोक पाने के लिए वैटिकन की निंदा की है और उन पादरियों को हटाने की मांग की है
जिनपर बच्चों के साथ बलात्कार या छेड़छाड़ करने का संदेह है. लेकिन वेटिकन ने
संयुक्त राष्ट्र को भी धता बताते हुए कहा था कि संयुक्त राष्ट्र चर्च से उम्मीद
नहीं कर सकता कि हम अपनी नैतिक सीखों में बदलाव लाए.” इसके बाद भी वेटिकन द्वारा यौन शोषण
और ऐसा घिनोना काम करने वालों का दंड से बचाना आज तक जारी है. जबकि चर्चों के
अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र की समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कैथोलिक गिरजे
में विश्व भर में करीब दस हजार बच्चों का सालों से व्यवस्थित रूप से यौन शोषण किया
गया है.
ऑस्ट्रेलिया में
धार्मिक और गैर धार्मिक जगहों पर होने वाले यौन शोषण की जांच करने की सबसे शीर्ष
संस्था रॉयल कमीशन के अनुसार यौन शोषण की पीड़ितों की कहानियां काफी अवसाद भरी हैं. जिसमें
बच्चों की उपेक्षा की गई, उन्हें सजा भी दी गई. आरोपों की जांच
नहीं हुई. पादरी और धार्मिक गुरू आसानी से बच गए. संस्था के अनुसार 1980 से 2015
के बीच ऑस्ट्रेलिया के 1000 कैथोलिक इंस्टीट्यूशनों में 4,444 बच्चों का यौन
उत्पीड़न हुआ. इन बच्चों की औसत आयु लड़कियों के लिए 10.5 साल
रही है, वहीं लड़कों के लिए 11.5 साल. बच्चों के यौन शोषण से जुड़े मामलों पर
नजर रखने वाली रॉयल कमीशन के पास 1980 से 2015 के बीच करीब 4,500 लोगों ने यौन
शोषण होने की शिकायत दर्ज कराई थी.
चर्चों के पाप
और अपराधियों की सूची इतनी लम्बी है कि उसे दोहराना व्यर्थ है. इस पापाचार में
वेटिकन की संलिप्तता इतनी स्पष्ट है कि अब निराश श्रद्धालु विद्रोह करने पर उतारू
हो गए हैं. आज हालात यह कि यूरोप के लोग चर्चों से किनारा करने को बाध्य हो गये
है. लेकिन यूरोप और अमरीका से उखड़ने के बाद अब चर्च भारत जैसे देश में गरीब और
अबोध जनजातियों व दलित वर्गों के मतांतरण पर पूरी शक्ति लगा रहा है. जबकि
महत्वपूर्ण धर्मांतरण के बजाय यह इस किस्म का पाप रोकना है. जहाँ आज चर्च को ऐसे
पापाचारी पादरियों से मुक्त करना उसकी पहली चिंता होनी चाहिए. पर वेटिकन किन्हीं
अन्य हितों की रक्षा के लिए इन पापाचारियों को संरक्षण दे रहा है और नये-नये
क्षेत्रों में मतांतरण की फसल काटने में जुटा हुआ है. यदि वेटिकन अपने अध्यात्मिक
क्षेत्र में सुधार नहीं करता तब वेटिकन के कार्यों पर उसकी लीपापोती पर सवाल उठते
रहेंगे.. लेखक राजीव चौधरी
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