खबर है की अब बांग्लादेश देश से हिन्दू पलायन
कर रहे है. हालाँकि हिन्दुओं के पलायन की यह कोई नई खबर नहीं है. कभी पाकिस्तान से
पलायन, तो कभी कश्मीर और कैराना से, पलायन ही तो कर रहे है. हाल ही में ढाका
यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. अब्दुल बरकत ने अपनी किताब में लिखा है कि अगर में
बांग्लादेश से इसी प्रकार हिन्दुओं का पलायन होता रहा तो अगले 30 साल में
बांग्लादेश में एक भी हिंदू नहीं बचेगा. अब्दुल बरकत के अनुसार औसतन 632 हिंदू
रोजाना बांग्लादेश छोड़ रहे है. दैनिक ट्रिब्यून की रिपोर्ट में प्रोफेसर बरकत के
हवाले से कहा गया है अगले तीन दशक में बांग्लादेश में एक भी हिंदू नहीं बचेगा.
हालाँकि उन्होंने साथ ही हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर स्नेहलेप करते हुए कहा
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं. ऐसे में हर विवेकशील बांग्लादेशी
नागरिक को उनकी हिफाजत के लिए उठ खड़ा होना चाहिए.
यह एक घटना नहीं है. न एक देश की कहानी ये वो
दर्द है जो पड़ोसी देशों में रहकर एक अल्पसंख्यक हिन्दू हर रोज सहता है. धार्मिक
कट्टरपंथी समाज के बीच विभाजन के बीज बो रहे हैं. जिनसे अल्पसंख्यक समुदायों को
कठघरे में खड़ा किया जा सके. भारत में हर एक साम्प्रदायिक घटना के बाद सेकुलर
समुदाय चिंतित होकर विश्व समुदाय से न्याय की गुहार लगाता दिखाई दे जाता. चाहे वो
महाराष्ट्र विधानसभा के अन्दर एक मुस्लिम समुदाय के युवक को रमजान के महीने में रोटी खिलाना ही
क्यों न हो. परन्तु जब बात पड़ोसी देशों या भारत के अन्दर किसी राज्य में
अल्पसंख्यक हिन्दू की आती है तो इन लोगों की जबान पर ताला लटका दिखाई दे जाता है.
पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे
अल्पसंख्यक समुदाय की लगातार बिगड़ती सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जानकारी दुर्दशा और
उनके मानवाधिकारों के हनन देखे तो 1947 में पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 20
फीसदी थी, जो घटकर अब सिर्फ दो फीसदी रह गई है.
पाकिस्तान से बांग्लादेश स्वतंत्र होने के बाबजूद भी यह सिलसिला जारी रहा क्योंकि
बांग्लादेश में 1981 में यह संख्या 12.1 प्रतिशत रह गई और लेकिन 2011 के आंकड़ों के
मुताबिक हिन्दुओं की आबादी मात्र 8.5 प्रतिशत रह गई है और बची खुची हिंदू आबादी भी
भारत में ही आकर बसना चाहती है.पर कमाल देखिये कि कोई अन्य समुदाय या धर्म के या मुस्लिम ही भारत से जाकर वहां बसना नहीं चाहते.
इस्लामी देशों की तो बात छोड़िए, हिंदुस्तान में ही ऐसे अनेक राज्य और
स्थान हैं जहां हिन्दुओं पर अत्याचार होते हैं. उन्हें अपनी बेटी, बहुओं की इज्जत के साथ घर-परिवार भी
छोड़ना पड़ता है लेकिन किसी भी दल का कोई भी ढोंगी धर्मनिरपेक्षतावादी इस विषय पर
अपना मुंह नहीं खोलता। उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल इलाकों, कश्मीर, केरल, तमिलनाडु और बंगाल के एक बड़े हिस्से में ऐसा होता है, लेकिन वोटों के लालच में कोई दल या नेता
इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाता है.कभी बांग्लादेश की नींव भी भारत की तरह
धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों पर रखी गई थी. वहां की आजादी के लिए हिन्दुओं के बलिदान
काम नहीं थे. मुस्लिमों के साथ आजादी की लड़ाई और इकट्ठा जश्न मनाने के बाद आज समय
के साथ वहां की राजनीति और नैतिक सिद्धांतो पर कट्टरपंथी हावी हो गये. मुस्लिम
बहुल बांग्लादेश में भी अल्पसंख्यकों को धर्मनिपेक्षता का पाठ पढ़ाया जा रहा है
लेकिन इसका तरीका पूरी तरह से मुस्लिम है, जैसा कि मुस्लिम देशों में गैर-मुस्लिमों के साथ होता है. वास्तव में
ऐसे देशों में हिंदुओं और उनकी लड़कियों, महिलाओं को बाजारू सामान से भी गया गुजरा समझा जाता है. अक्टूबर, 2001 जब पूर्णिमा रानी के घर पर करीब
30 लोगों ने हमला किया. उनका कुछ लोगों से जमीन को लेकर विवाद था. जिसकी कीमत
मासूम पूर्णिमा ने चुकाई. हमलावरों ने माता पिता के सामने ही पूर्णिमा को हवस का
शिकार बनाया था. मुझे आज यह वाक्या लिखने में शर्म आ रही है किन्तु इन तथाकथित
धर्मनिरपेक्ष चोले में बैठे लोगों के कानों तक एक माँ की तड़फ जानी चाहिए जब दर्द
से तड़फती बेटी की हालत को देख एक मां को भी उनसे कहना पड़ा, था “अब्दुल अली” मैं तुमसे रहम की भीख मांगती हूं, जैसा तुमने कहा मै मुसलमान न होने की
वजह से अपवित्र हूं लेकिन मेरी बच्ची पर रहम करो. मै तुम्हारे पांव पडती हूं, वह अभी 14 साल की है, बहुत कमजोर है. अपने अल्लाह के लिए कम
से कम एक-एक कर बलात्कार करो.
अप्रैल, 2003 में एक किशोरी विभा सिंह स्कूल जाने के लिए घर से निकली थी जहाँ
से उसका अपहरण कर लिया और अगले छह दिन तक खुलना शहर में उसे तीन अलग-अलग घरों में
रखा गया जहां बड़ी निर्ममता से उसको शारीरिक यातनाएं दी गईं। इतना ही नहीं, गुंडों ने बर्बरता की सभी सीमाएं
लांघीं और उसके शरीर के विभिन्न अंगों पर ब्लेड और चाकू से चीरा लगाया. न जाने इन
देशो में ऐसी कितनी घटना धर्म के नाम पर होती है. लेकिन भारत के बहुत पढ़े लिखे और
अत्यधिक शिक्षित कथित धर्मनिरपेक्षवादी, अभिव्यक्ति के नाम पर छाती कूटने वाली सेकुलर
जमात को इन मासूमों की सिसकियाँ सुनाई नहीं देती. धर्मनिरपेक्षता का अर्थ होता है
कि आपका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।’ लेकिन हमारे देश में धर्मनिपेक्षता का अर्थ है मुस्लिमों के वोट और
इन वोटों को पाने की खातिर आप अपने धर्म को गाली देकर तुष्टिकरण की सारी सीमाएं
लांघ सकते हैं. लेख राजीव चौधरी चित्र गूगल से साभार
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