किसी गली,
मौहल्ले या किसी चौराहे पर यदि दो बच्चे एक
दूसरे की जाति या धर्म का उपहास उड़ाते दिख जाएँ तो चौकिये मत क्योंकि धर्म,
जाति और गोत्र अब राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र
में आ चुके हैं तो कह सकते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति के हिसाब से उन बच्चों ने
प्रगति की है। पिछले दिनों राजस्थान चुनाव के दौरान पुष्कर में खुलासा होता है कि
राहुल गाँधी का गोत्र दत्तात्रेय है। इसके बाद देश के प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार
के दौरान ही पूर्वांचल पहुंच कर अपनी जाति का ऐलान करते है। इसके बाद राजनितिक
हलकों में राहुल के गौत्र और धर्म को लेकर बखेड़ा खड़ा होता है। बार-बार उनके धर्म
और गोत्र को लेकर प्रश्न किये जाते हैं। उनसे उनके हिन्दू होने के प्रमाण मांगे जाते
हैं।
प्रमाण
देने या स्वयं की भक्तिभाव के कारण राहुल कभी खुद को जनेऊ धारी पंडित बताते हैं,
खुद को शिव भक्त बताते हैं और तत्पश्चात् कैलाश
मानसरोवर यात्रा पर निकल जाते हैं वापस आते हैं तो अपना गोत्र कौल दत्तात्रेय
बताते हैं। विरोधी हँसते हैं उपहास उड़ाते हैं और उनके दादा का नाम लेकर फिर उनसे
उनके धर्म का प्रमाणपत्र मांगते हैं। इससे राजनितिक खिचड़ी तो पता नहीं कितनी पक
जाती है पर वह लोग जरूर भयभीत हो जाते हैं जो सनातन धर्म के आध्यात्मिक दर्शन से
प्रेरित होकर पुनः हिन्दू धर्म में लौटे थे।
असल में
आज जो यह हो रहा है ये कोई नया कार्य या राजनीति नहीं है ये हमारा हजारों साल
पुराना इतिहास रहा है कि हम अपने धर्म में किसी का स्वागत करने के बजाय उपहास
उड़ाते रहे हैं। कहा जा रहा है राहुल के दादा पारसी समुदाय से आते थे तो राहुल
पारसी हुए जबकि इस पर पुरोहित बता रहे हैं कि पारसी समुदाय में पत्नी को हिंदू
धर्म की तरह पति का गोत्र नहीं दिया जाता है। ऐसे में पिता के गोत्र का इस्तेमाल
हो सकता है। इसी वजह से इंदिरा गांधी ने भी पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू का गोत्र
कौल दत्तात्रेय ही रखा, विवाह
जरूर एक पारसी से किया किन्तु खुद के धर्म का त्याग नहीं किया बल्कि इसके उलट जब
फिरोज गाँधी को पहली बार दिल का दौरा पड़ा था तभी उन्होंने अपने मित्रों से कह दिया
था कि वह हिंदू तरीकों से अपनी अंत्येष्टि करवाना पसंद करेंगे। जब उनकी मृत्यु हुई
तो तब 16 साल के राजीव गांधी ने दिल्ली निगमबोध
घाट पर फिरोज की चिता को आग लगाई। उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीतिरिवाजों से किया
गया था।
शायद
किसी भी इन्सान का अंतिम संस्कार काफी होता है उसका धर्म जानने के लिए फिरोज ने
हिन्दू दर्शन और संस्कारों को स्वीकार कर लिया इसके अलावा हिंदू बनने का मान्य
तरीका क्या है? किस नदी में
डुबकी लगाने पर लोग हिंदू धर्म में प्रवेश कर लेते हैं? उस नदी का नाम किस वेद में कहाँ लिखा है? किसी के पास स्पष्ट जानकारी हो अवगत जरूर कराएँ। एक ओर तो वर्तमान
सत्ताधारी दल धर्म और धर्मांतरण को लेकर आध्यात्मिक चिंता व्यक्त करते दीखते हैं।
दूसरी ओर अपने ही धर्म को मानने वाले का उपहास उड़ाते दिख जाते है। तब उनसे यह भी
पूछा जाना चाहिए कि आध्यात्मिक उच्चता या किसी का धर्म मापने का कोई फीता या
सूचकांक उनके पास कहाँ से आया और क्या वह किसी विश्व धर्म संसद से मान्यता प्राप्त
है? यदि नहीं तो आखिर क्यों धर्म प्रमाणपत्र
की दुकान खोलकर बैठ गये।
किसी के
धर्म से जुड़े होने या उसकी आस्था का पैरामीटर नहीं होता पर यह जरूर है कि ये उसी
पुरानी बीमारी का नया लक्षण हैं जिसने इस महान सनातन संस्कृति को मिटाने का कार्य
किया। जिसे यह जानना हो वह भारतीय संघर्ष का इतिहास नामक पुस्तक से इस विषय को
गहराई से जान सकते हैं। पुस्तक के लेखक डॉ नित्यानंद लिखते हैं कि रिनचिनशाह नाम
का एक साहसी बौद्ध युवा कश्मीर के राजा रामचंद्र की हत्या कर कश्मीर का स्वामी बन
गया था और रामचंद्र की पुत्री कोटारानी से विवाह कर लिया था। इसके बाद रिनचिनशाह
की इच्छा हुई कि वह सनातन धर्म ग्रहण कर ले। तब वह हिन्दू धर्माचार्य देवस्वामी की
शरण में गया। परंतु देवस्वामी ने रिनचिन को हिन्दू धर्म में शामिल करने से मना कर
दिया था। यह बात रिनचीन शाह को काफी बुरी लगी और वह सुबह होते ही सूफी बुलबुलशाह
की अजान सुनकर उनके पास गया तो बुलबुलशाह से रिनचिन ने इस्लाम की दीक्षा ली थी।
जिसके बाद इसी राजा के राज्य में अधिकतर हिंदुओं को मुसलमान बनाने का एक गंदा और
घिनौना खेल हुआ था।
यही हाल
बंगाल में भी हुआ था जब कालाचंद राय नाम के एक बंगाली ब्राह्मण युवक ने पूर्वी
बंगाल में उस वक्त के मुस्लिम शासक की बेटी से शादी की इच्छा जाहिर की थी। लड़की भी
इस्लाम छोड़कर हिंदू विधि से उससे शादी करने के लिए तैयार हो गई लेकिन इन धर्म के
तथाकथित ठेकेदारों ने न केवल कालाचंद का विरोध किया बल्कि उस मुस्लिम युवती के
हिंदू धर्म में प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी। इसके बाद कालाचंद राय को अपमानित
किया गया। अपने अपमान से क्षुब्ध होकर कालाचंद ने इस्लाम स्वीकारते हुए उस युवती
से निकाह कर लिया और गुस्से में बंगाल का धार्मिक समीकरण बदलकर रख दिया।
ऐसा ही
हाल साल 1921 में केरल के मालाबार में मोपला विद्रोह
के दौरान हजारों हिंदुओं का कत्लेआम हुआ और हजारों हिंदुओं को धर्म बदलने के लिए
बाध्य होना पड़ा। वो तो शुक्र है आर्य समाज का कि उससे जुड़ें लोगों ने शुद्धि
आंदोलन चलाया तो जिन हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बना दिया गया था, उन्हें वापस हिंदू धर्म में लाया गया। वरना वो लोग भी आज इसी उपहास
और अपमान का जीवन जी रहे होते। किन्तु इतना सब कुछ होने के बाद भी यदि आप अब भी
अपने धर्म से जुड़ें लोगों का उपहास उड़ायेंगे या बात-बात पर उससे धर्म प्रमाणपत्र
मांगेंगे तो इसे सबसे बड़ी मूर्खता कही जाएगी क्योंकि आपने अपने इतिहास से कुछ सीखा
ही नहीं बेशक आप राजनीति कीजिए सत्ता सुख प्राप्त कीजिए लेकिन धर्म से जुड़ें लोगों
का उपहास करना बंद कीजिए आज देश का भविष्य आपके हाथों में है काश ऐसा न हो कल का
भविष्य आपके उपहासात्मक बयानों का मूल्य चुकाए।
No comments:
Post a Comment