बेशक आज जमाना तकनीक, ज्ञान, विज्ञान का कहा जाता हो पर विज्ञान के
माध्यम से भी अज्ञानता आज मनुष्य के जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रही है कहने
को आज हर एक मनुष्य धार्मिक है लेकिन धार्मिकता स्थाई नहीं है। किसी के जीवन में
एकदिवसीय तो किसी के जीवन में साप्ताहिक उदाहरण स्वरूप एक कबूतर शाकाहारी है तो
क्या ऐसा हो सकता है सप्ताह में एक दिन मांसाहारी भोजन ले? शायद नहीं! क्योंकि उसका धर्म उसे इस
कृत्य के लिए बिल्कुल प्रेरित नहीं करेगा। और कबूतर अपने धर्म की इस धार्मिकता का
आजीवन पालन करता है।
लेकिन इन्सान के मामले में ऐसा नही है। यहाँ लोग सप्ताह में दिखावे को एक
दिन धार्मिकता का बखान करते हैं। कई रोज पहले दो लोग मेट्रो में बात कर रहे थे, एक ने दूसरे से कहा चल पार्टी करते है, दूसरे ने कहा- नहीं यार आज मंगलवार है, आज के दिन मैं शराब और मांस नहीं लेता।
मतलब यह था कि ये बंधुवर सिर्फ सप्ताह में एक दिन धार्मिक होते हैं। बाकी दिन ये
हर वह कार्य करेंगे जो अनुचित है। इस कारण आप इन्हें एकदिवसीय धार्मिक कह सकते
हैं।
सवाल यह भी यदि कोई इन्सान धार्मिक है तो सिर्फ सप्ताह में एक ही दिन धार्मिक
क्यों? क्या अब
धार्मिकता सिर्फ साप्ताहिक बनकर रह गयी? खुद से सवाल कीजिये जो लोग शनिवार को
लोहा नहीं खरीदते, मंगलवार
को दारू नहीं पीते, फला दिन
शेविंग या बाल नहीं कटाते, क्या वे
धार्मिक है? यदि नहीं
तो यह साप्ताहिक धार्मिकता का दिखावा क्यों? सिर्फ अपने इर्द-गिर्द जमा समाज या
रिश्तेदारों को दिखाने के लिए?
देश की तमाम अज्ञानता आज सर्वोच्च शिखर की बुलंदियों को साप्ताहिक
धार्मिकता बनकर छू रही
है। मसलन शुभ कार्य कौन से दिन करने चाहिए शुभ कार्यों के लिए सही दिन, अशुभ कार्यों के लिए सही दिन, सप्ताह के इन दिनों में ये काम करने
चाहिए, हफ्ते के
कौन से दिन कौन सा कार्य करें, हफ्ते के
हर दिन का महत्व आसानी से बेचा जा रहा है।
साप्ताहिक धार्मिकता यहीं नहीं रुकती आप किसी धार्मिक वेबसाइट पर जाइये या
किसी चबूतरे पर बैठे पंडित के पास, वह तुरन्त
बतायेगा कि महिलाओं को गुरुवार के दिन बाल नहीं धोना चाहिए इस दिन शेविंग नाखून
काटने से उम्र कम हो जाती है, गृह कमजोर
हो जाते है आदि आदि। ये लोग हर बात में यह बोलना नहीं भूलते कि हिन्दू मान्यताओं
वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिन यह नहीं करना चाहिए वह नहीं करना चाहिए। ऐसी ही
एक वेबसाइट है- शुभतिथि डॉट कॉम यह तो और भी चार कदम आगे है। इस पर लिखा है कि
मंगलवार के दिन दो लोगों में फूट डालना, चोरी करना, विष पीना, अग्नि का कार्य करना, शास्त्र से संबंधी क्रय-विक्रय करना, किसी से लड़ाई करना, किसी के साथ धोखा करना, रत्नों से जुड़े कार्य करना आदि ठीक
माना जाता है। अब सोचिये सीधे तौर पर यह वेबसाइट धर्म के नाम पर मंगलवार को चोरी, हिंसा जैसे कार्यों की प्रेरणा
मंत्रमुग्ध भाव से परोस रही है।
बाबा महाकाल नाम की वेबसाइट तो धर्म को पुर्जो की भांति बेच रही है जिसे
देखकर लगता है कि यदि ये लोग ‘न’ होते तो संसार दुःख के सागर में डूबकर
मर जाता। इस पर लिखा है शनिवार के दिन सरसों का तेल खरीदना बहुत अशुभ माना जाता
है. इससे घर में अशान्ति फैलती है लेकिन सरसों के तेल का दान करना बहुत शुभ माना
जाता है इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं. रविवार के दिन बाल न कटवाएं, सरसों के तेल की मालिश न करें, तांबे की चीजों का क्रय-विक्रय न करें, इत्यादि भला जब शनिवार को तेल खरीद
नहीं सकते जो घर में था उसका दान कर दिया रविवार को लोग सरसों के तेल की मालिश
कैसे करेंगे?
ये पौराणिक वेबसाइट ही नहीं आप देश के प्रमुख न्यूज चैनलों अखबारों की
वेबसाइट और फेसबुक पेज भी देख लीजिये उन पर भी अंधविश्वास का डमरू कितनी शालीनता
और धार्मिक भावना से ओतप्रोत होकर बजाया जा रहा है। खबर इंडिया डॉट कॉम लिख रहा है
कि अगर आप भी माता की कृपा पाना चाहते है तो शुक्रवार के दिन
उस जगह जाए। जहां पर मोर नृत्य करते हैं। वहां की मिट्टी लाकर एक लाल रंग के कपड़े
में बांधकर पवित्र जगह में रख दें और उसकी रोज पूजा करें। साथ ही कभी शाम के समय
घर में झाडू न लगाए इससे घर की लक्ष्मी बाहर चली जाती है। घर पर ऐसी पेड़ की टहनी
लेकर आएं जिसमें चमगादड़ बैठते हां और ऐसी जगह पर रखे जहां पर उसे कोई देख न पाए।
स्कूल में बचपन से किताबों में यही पढ़ाया जाता रहा है कि सदा सच बोलो और
झूठ बोलना पाप के समान है। मगर इसी झूठ से आज अंधविश्वास की दुकानों में खूब
मुनाफा कमाया जा रहा है, वह भी उसी
धर्म के नाम पर जिसमें सच बोलने की सीख दी जाती है। 21वीं सदी में विज्ञान इंसान को चांद पर
बसाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन विज्ञान से ज्यादा आज लोग अंधविश्वास और
साप्ताहिक धार्मिकता में अपनी मुसीबतों का इलाज तलाश रहे हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन ज्योतिष बाबाओं को मीडिया का सहयोग हासिल
है। इनकी साइटें हैं, ब्लॉग हैं
और जिन पर गरीबी, बीमारी को
दूर करने से लेकर हर समस्या के समाधान की बात लिखी हुई है। इक्कीसवीं सदी में
अंधविश्वास वैज्ञानिक सोच वालों के लिए चुनौती है। सरकारें चुप हैं और मीडिया ऐसे
ढ़ोंगियों के प्रसार का सहयोगी। इसी अनदेखी का ही नतीजा है कि अंधविश्वास फैलाने
वालों का बड़ा नेटवर्क इंटरनेट पर छाया हुआ है। विडम्बना तो यह है कि जिस
अन्धविश्वास को विज्ञान मानने से इन्कार करता रहा है आज उसी विज्ञान की तकनीक के
सहारे यह जाल बिछा लिया गया है. इसमें अंतिम सवाल यह है कि यदि कोई धर्मगुरु आपको
कहे कि गंगा का उदगम स्थल हरिद्वार है तो आप कहेंगे जी नहीं, हमने भूगोल में पढ़ा है गंगा का उद्गम
स्थल हरिद्वार नहीं, बल्कि
गंगोत्री है। लेकिन जब बात धर्म की आती है लोग अपने वेद ग्रन्थ छोड़कर बिना
सोचे-समझे बिना विचार किये किसी भी धर्म गुरु, ज्योतिष, पंडित की कोई भी बात मान लेते है ऐसा
क्यों?........विनय आर्य
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