नवम्बर, 2017 में
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू जी सी) ने विश्वविद्यालयों से
दयानन्द चेयर स्थापित करने के लिए आवेदन मांगे थे। पूरे भारत से 750 विश्वविद्यालयों ने इसके लिए मांग की
गयी थी। लेकिन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से हरियाणा की महर्षि दयानन्द
यूनिवर्सिटी, जम्मू की
जम्मू यूनिवर्सिटी व गुजरात की सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी का ही इसके लिए चयन किया गया
है।
परन्तु इसके बाद 27 फरवरी 2018 को चंडीगढ़ से प्रकाशित चण्डीगढ ट्रिब्यून
अखबार के पेज 2 पर छपी
खबर के अनुसार पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ में 1975 से प्रतिष्ठित् ‘दयानन्द चेयर’ को संस्कृत विभाग में जोड़ने के बहाने
खत्म करने की योजना बनाई जा रही है। जबकि यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि वह
इसे केवल विलय ही कर रहा है। जबकि विश्लेषक कह रहे हैं कि यह सरासर धोखा
है-संस्कृत के साथ, वेद के
साथ, आर्य समाज
के साथ और भारतीय परम्परा के साथ क्योंकि यही धोखा पहले कालिदास चेयर के साथ हुआ
था और युनिवर्सिटी ने कालिदास की वैचारिक हत्या की थी। कालिदास चेयर को संस्कृत
में विलय कर दिया गया था। आज उसकी सत्ता खत्म और कोई कार्य भी नहीं हो रहा है। आज
कालिदास केवल प्रश्नपत्रों में सवाल बनकर रह गया। हम यह धोखा महर्षि दयानन्द
सरस्वती जी के साथ नहीं होने देंगे।
गुरुविरजानन्द गुरुकुल महाविद्यालय, करतारपुर जालन्धर के प्राचार्य डॉ.
उदयन आर्य ने इस मामले में सवाल उठाते हुए लिखा है कि एक तो दयानन्द चेयर को करीब 30 साल से कोई स्थाई अध्यक्ष नहीं मिला
है। दूसरा इसमें टीचिंग स्टाफ भी पूरा नहीं है। इसे पूर्ण स्थान भी नहीं दिया गया
है। इसे एक क्लास रूम में लावारिस सा छोड़ दिया गया है। लाइब्रेरी का लाभ भी छात्र
नहीं उठा पा रहे हैं, जिससे
छात्रों को भारी नुकसान हो रहा है।
पंजाब विश्वविद्यालय में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के साथ ऐसा होगा ऐसी
आशंका नहीं थी क्योंकि पंजाब से स्वामी दयानन्द का विशेष सम्बन्ध रहा है। उनके
गुरु स्वामी विरजानन्द भी पंजाबी थे। लाहौर उनकी विशेष कर्मभूमि रही है। पूरी
दुनिया को पंजाब ने ‘पाणिनि’ जैसा व्याकरण विद्वान दिया। इसके बाद
दूसरा पाणिनि स्वामी विरजानन्द भी पंजाब में ही पैदा हुए। उनके शिष्य स्वामी
दयानन्द द्वारा अनेक ग्रन्थ इसी पंजाब में लिखे गये हैं। स्वामी जी शास्त्रों के
कुशल व्याख्या की, स्वाधीनता
के अग्रदूत, महिला व
पिछड़ों के स्वाभिमान के रक्षक, भला उनके
इस विराट् स्वरूप और साहित्य तथा सिद्धांत
का अध्ययन करने के लिए पंजाब से अच्छी भला क्या जगह हो सकती थी। इसलिए 1975 में पंजाब विश्वविद्यालय में दयानन्द
चेयर की स्थापना की गई। दयानन्द चेयर में 70 से अधिक पी.एच-डी. हो चुके हैं। इस
दीक्षान्त-समारोह में भी दयानन्द चेयर के चार छात्रों को पीएचडी की उपाधि प्राप्त
हुई है। चेयर के माध्यम से इसमें प्रोफेसरों और छात्रों ने जो अनुसन्धान किया है, उसकी पूरे विश्व में प्रतिष्ठा है।
उदयन आर्य का कहना है कि आज आर्थिक तंगी का हवाला देकर सिर्फ दयानन्द चेयर
और संस्कृत की हत्या क्यों की जा रही है? जिस संस्कृत विभाग की स्थापना पीयू
लाहौर के कुलपति ए.सी. वूल्नर ने की थी, उसी को आज ये काले अंग्रेज बर्बाद करने
पर तुले हैं। क्या संस्कृति, वेद व
भारतीय शास्त्रों के अध्ययन को तबाह करने की साजिश की जाँच नहीं होनी चाहिए? क्या आज विश्वविद्यालयों का उद्देश्य
सिर्फ रुपये कमाना ही रह गया है। जबकि विश्वविद्यालयों का ध्येय अपनी ज्ञानसम्पदा
की रक्षा करना होना चाहिए। सम्पूर्ण संस्कृत जगत् और आर्य समाज कालिदास चेयर को
खत्म करने की के साथ दयानन्द चेयर को विलय करने के नाम पर वेद और संस्कृत की हत्या करने वालों का विरोध करता है तथा
इसकी रक्षा के लिए देशव्यापी आन्दोलन करने में संकोच नहीं करेगा। अतः सादर
प्रार्थना है कि दयानन्द चेयर की स्वतन्त्रता बरकरार रखी जाए और इसे सही जगह दी
जाए व अलग विभाग रखकर संस्कृत अध्ययन को भी सुरक्षित किया जाए तभी देश हित, संस्कृति हित, धर्म हित तथा पूर्ण संसार का हित होगा।
विनय आर्य
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