आर्य समाज के वीर
सिपाहियों की बदोलत शुद्धिकरण का कार्य बड़ी तेजी से कर रहे थे. परन्तु मुसीबत बहुत
भारी थी कि और अधिक काम करने वालों की आवश्यकता थी. विशेषकर जबदस्ती मुस्लिम बनाये
गये हिन्दुओं की सुध लेने और उनके विषय में आवश्यक कार्य करने के लिए आर्य समाज की
आवश्यकता अनुभव की गई; इसलिए आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा पंजाब, सिंध,
बलूचिस्तान और लाहौर ने मालाबार के पीड़ितों हिन्दुओं को सहायता देने और बलात
मुस्लिम बनाये हिन्दुओं को पुन: हिन्दू बनाने के लिए प्रस्ताव पास किया जिसमें
महात्मा हंसराज जी ने एक अपील प्रकाशित की-
अपील का कुछ अंश-
यह गुप्त रहस्य प्रकट हो चूका है कि मालाबार में मोपला लोगों ने हिन्दुओं के साथ
घ्रणित क्रिया की है. इस बात को सरकार और कांग्रेस दोनों की ओर से स्वीकार भी किया
गया है. अत: अब इस पर संदेह नहीं रहा हाँ, मतभेद इस बात पर है कि कितने हिन्दुओं
पर अत्याचार किया गया है कोई तीन हजार कहता है तो कोई 500 संख्या कितनी भी हो
परन्तु इस बात से तो इंकार नहीं किया जा सकता कि मोपलों ने कुछ नही किया है.
मुस्लिम नेता इसे इस्लाम के खिलाफ बता निंदा कर रहे है. पर निंदा करने से इस भारी
जन-धन और धर्म की क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती. हिन्दू नेताओं और मठाधीश जबरन पतित
किये गये लोगों की घर वापिसी की आज्ञा देकर सुगमता प्रस्तुत कर रहे है. यदि इस समय
हिन्दुओं में सम्मिलित होकर अपनी पूरी शक्ति के साथ हिन्दुओं को वापिस अपनी गोद
में ले लिया तो भविष्य में उन लोगों का दुबारा साहस नहीं होगा क्योंकि वह समझेंगे
कि हिन्दू भाई अपने भाइयों की हर प्रकार से सहायता करने के लिए तैयार है. मैं अपने
हिन्दू भाइयों से अपील करता हूँ जिनके ह्रदय में अपने पवित्र धर्म के लिए श्रद्धा
और प्रेम है और जो अपने धर्म की लाज रखने के लिए अपने भीतर कोई भाव रखते है अपनी
सहायता का हाथ आगे बढायें ताकि हम अपने भाइयों की सहायता शीघ्र से शीघ्र कर सकें.
(हंसराज प्रधान आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा अनारकली लाहौर)
आर्य समाज की इस
अपील का प्रभाव हर एक हिन्दू के मन पर हुआ जिस कारण तत्काल प्रभाव से कार्य करना
शुरू किया जिसका विवरण पिछले अंक में दिया गया था. पंडित मस्तानचंद जी बीए के अधीन
केम्प में करीब 4 हजार महिलाएं और बच्चे आ गये थे. इनमे कुछ महिलाएं गर्भ से तो
वृद्ध और युवा थी. ऐसी माताएं भी थी जिनकी गोद में 10 से 15 दिन के बच्चे थे. बहुत बच्चें केम्प में आने से कुछ माह पहले तक लखपतियों की आँखों के तारे थे परन्तु अब अनाथ हो चुके थे. बहुत सी महिलाओं और बच्चें ऐसे थे जिनके घर जलाये जा चुके थे. अब जाएँ तो
कहाँ जाये? इसके अलावा दुसरे केम्प में जो ऋषिराम जी की देखरेख में कालीकट में चल
रहा था. उसमें भी 2 हजार से ज्यादा स्त्री पुरुष और बच्चें थे. उस समय दिल्ली से
लेकर लाहौर तक संयुक्त प्रान्त के दानी हिन्दू आर्यों के दान की बदोलत करीब 6 हजार
से ज्यादा स्त्री, पुरुष और बच्चें अपनी भूख की अग्नि को मिटा रहे थे.
इस सहायता
सम्बन्धी काम के साथ-साथ शुद्धी का कार्य बराबर चल रहा था. सारे इलाके में यह
प्रसिद्ध हो चूका था कि आर्य समाज के लोग जबरन मुसलमान बनाएं गये हिन्दुओं को
विशेष रूप से सहायता देते है. परन्तु फिर भी ऐसी खबरें आ रही थी कि मालाबार के
भीतरी इलाकों में बहुत से ऐसे हिन्दू है जो मोपला भेष में रह रहे है. जान-माल का
भय उन्हें हिन्दू बनने से रोक रहा है. इस बात के आवश्यकता थी कि कोई मनुष्य भीतरी
इलाकों में जाकर पता लगायें| लेकिन वहां पहुचना अपने आप को खतरे में डालना था
क्योंकि वहां ऐसा बताया जाता था कि मालाबार कांड उपद्रव के कारण जान गवाए लोगों की
खोपड़ियाँ रास्तों में पड़ी मिलती है. सड़कें अधिक नहीं थी, अधिकतर जंगल और पहाड़ियाँ
थी, नदियाँ और उनसे घिरे इलाकों में यह हिंसा का तांडव ज्यादा जोर से हुआ था. अत: इन
सब की चिंता किये बगेर आर्य समाज के वीर लाला खुशहालचंद खुरसंद ने यह काम अपने
कंधो पर लिया और भीतरी इलाकों का दौरा करके ऐसे लोगों को कालीकट पहुँचने की
प्रेरणा की. उनके इस परिश्रम का फल यह हुआ कि बहुत से लोग हिन्दू बनने के लिए
कालीकट पहुँच गये 15 मई से पहले दो हजार दो सौ मुसलमान हुए हिन्दू फिर अपने धर्म
में लौट चुके थे. जून और जुलाई माह में 400 और जबरन मुस्लिम हुए हिन्दू अपने धर्म
में सम्मलित किये गये.
कहां चली गयी बलिदानों की टोली
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