जिस गुरुकुल में
महामना मदनमोहन मालवीय से लेकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य
विनोबा भावे का इसके प्रांगण में पदार्पण हुआ हो, जो स्थान महावीर प्रसाद दिवेदी,
भगवतीचरण वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, पंडित
रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हजारीप्रसाद दिवेदी, रामधारी
सिंह दिनकर जैसे अनेक साहित्कारों विद्वानों के आगमन की भूमि एवं तीर्थस्थली रही
हो आज उस आध्यामिक सांस्कृतिक धरोहर को सरकार रोंद रही है. आर्य समाज ये हमला
स्वीकार नहीं करेगा. हम विकास के विरोधी नहीं है लेकिन अपनी विरासत की रक्षा करने
के लिए कटिबद्ध है. सांस्कृतिक भावना से छेड़छाड़ मंजूर नहीं है. विकास के लिए जमीन
अधिग्रहण के मामले में सभ्यता और संस्कृति के सिद्धांत के साथ समझौता नहीं किया जा
सकता आवश्यकता पड़ी तो जबरदस्त आन्दोलन होगा. गुरुकुल की रक्षा हर कीमत पर
करेंगें...
समाज की शैक्षिक
और सामाजिक उन्नति के लिए झारखण्ड देवघर में 100 वर्षीय पुरातन धरोहर गुरुकुल
महाविद्यालय वैधनाथधाम को आज विकास के नाम पर तोडा जा रहा है. ये बुलडोजर गुरुकुल
पर नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति पर चला है. जो गुरुकुल वैदिक परम्परा से परिपूर्ण,
भेदभाव से ऊपर उठकर बच्चों को उच्च कोटि की शिक्षा दे रहा हो जो गुरुकुल
राष्ट्र के लिए अपने प्राण तक न्योछावर करने वाले वीर, विद्वान
और चरित्रवान नागरिक पैदा कर रहा हो. उस सांस्कृतिक विरासत (गुरुकुल) को विकास के
नाम पर खतम करने का कार्य किया जा रहा है.
इस गुरुकुल की
स्थापना आचार्य रामचन्द्र दिवेदी ने १९१९ में की थी. उनका उद्देश्य था कि सामायिक
शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को शारीरिक, मानसिक, नैतिक
और उनका आत्मिक उन्नयन कर राष्ट्र और समाज के लिए सुयोग्य नागरिक बनाना. अध्ययन और
अध्यापन चरित्र और सांस्कृतिक व्यवस्था, अनुशासन
उत्कृष्टता और दक्षता का प्रतीक इस गुरुकुल में अनेके भारतीय महापुरुषों के पांव
पड़े और उनसे जुड़ें किस्से यह शिक्षा का मंदिर समेटे हुए है
इस शनिवार 7
अक्तूबर को गुरुकुल महाविधालय का हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के नाम पर एक हिस्सा
जेसीबी से गिरा दिया गया. जबकि इस एतिहासिक शिक्षण संस्थान की जमीन के अधिग्रहण का
मामला झारखण्ड हाईकोर्ट में लंबित पड़ा है. इस दौरान गुरुकुल प्रबंधन डीसी देवघर,
एसडीओ देवघर, मुख्यमंत्री झारखण्ड और तो और
प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक पत्राचार के माध्यम से इस धरोहर को बचाने की
गुहार लगा चूका है. लेकिन इसके बावजूद विकास का ढोंग दिखाकर झारखंड सरकार महर्षि
स्वामी दयानन्द सरस्वती की १०० साल पुरानी सांस्कृतिक, धार्मिक
विरासत को तोड़ने का प्रयास जारी है.
गुरुकुल
महाविद्यालय की जमीन को अनवाद प्रति कदीम दिखाकर गलत अधिग्रहण नीति को तैयार किया
गया है. गुरुकुल के मुख्यभवन जहाँ शिक्षण भवन, यज्ञशाला,
छात्रावास पुस्तकालय एवं अन्य भवन है वहां शिक्षण का कार्य निरंतर चल
रहा है. लेकिन लूट के अर्थशास्त्र में सियासत की आँखे इतनी पथरीली हो गयी है कि
शिक्षा के मंदिर को तोड़कर उसकी जगह कंक्रीट के जंगल उगाना चाह रही है. गुरुकुल
हमारा इतिहास है,
हमारी पहचान हमारी शिक्षा पद्धति गुरुकुल के
माध्यम से जानी जाती है. हम जब तक अपनी इस अति प्राचीन पद्धति के साथ जुड़े हुए हैं
तब तक हम आर्य वैदिक समाज के लोग हैं.
संस्कृति और पद्धति उजड़ने के बाद हमारा अस्तित्व-पहचान, भाषा-संस्कृति
और इतिहास अपने आप मिट जाएगी. क्या स्वामी जी की सांस्कृतिक विरासत (गुरुकुल देवघर
झारखंड) को बचाने का कार्य नहीं होना
चाहिए? ताकि आनेवाली पीढ़ी हमें यह न कहे कि इस प्राचीन शिक्षा पद्धति एवं उस
के माध्यम से सदियों तक विश्व को रास्ता दिखाने संस्कृति को बर्बाद कर विकास और
भारतीय गणतंत्र का निर्माण किया गया.
कल तक वहां पढने
वाले जो बच्चें हाथ में कलम थामते अब वह हाथ बेबस हैं. आज वही हाथ गुरुकुल के टूटे
प्राचीन भवन की दीवारें और बिखरी खपरैल को समेट रहे है. क्योंकि वहां विकास के नाम
पर उनके सपने को तोडा जा रहा है. विकास की इसी अविरल धारा में सिर्फ गुरुकुल ही
नहीं बल्कि वैदिक कालीन सभ्यता को नष्ट किया जा रहा है. क्या राष्ट्र निर्माण की
आड़ में संस्कृति विनाश का यह कदम उचित है?
आज तो आर्य समाज में स्वार्थियों पद लोगों लोगों चरित्रहीन उ और पौराणिक लोगों का जमावड़ा है इतिहास से हम प्रेरणा लेने के लिए तैयार नहीं है पद लोलुपता इतनी ज्यादा है कि बिना पद के रह नहीं सकते और उस पद के आड़ में लूट-खसोट समेत जितने भी भ्रष्टाचार के अंग हो सकते हैं सब कुछ करने के लोग तैयार हैं सार्वदेशिक में दो-दो तीन-तीन सभाएं हैं प्रादेशिक में दो-दो तीन-तीन सभाएं हैं केवल आर्य लिख देने मात्र से कोई आर्य नहीं हो जाता या स्वयं को देख धोखा देना है और दूसरों को भी धोखा देना है एक सच्चे अर्थों में आर्य बनना है दयानंद के सिपाही हैं आर्य समाज के मिशनरी हैं तो हम पद लोलुपता से दूर हो जाएं आज की कुटिल राजनीति से दूर हो जाएं दूसरों को परेशान करने से बाज आएं केवल लेख लिख दे नया समाचार प्रकाशित करने से समाज का सुधार नहीं होता है इसके लिए त्याग चाहिए ज्ञान चाहिए और स्वयं का बलिदान चाहिए दूसरों के कंधों पर रख कर के बंदूक चलाने वाले आर्य समाज के मित्र नहीं शत्रु है इसलिए अपने दुर्गुणों को देखो दूसरे के अच्छाइयों को देखो आर्य समाज सुधरेगा सही को सही करने की ताकत चाहिए हिम्मत चाहिए अगर मेरे अंदर साधना नहीं है हिम्मत कहां से आएगी और समाज के जो लोग दुरुपयोग कर रहे हैं वह कर्म सिद्धांत के अनुसार महा पापी हैं ऐसे पापियों का बहिष्कार होना चाहिए तभी आर्य समाज में नई क्रांति आएगी नई शांति आएगी और नया मिशन शुरू होगा
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