6, 7, 8 अक्टूबर 2017
ब्रह्म देश कालान्तर में बर्मा और वर्तमान में म्यांमार के नाम से जाना
जाता है। यहां आर्य समाज की स्थापना यहां वर्ष1903 में हुई थी। आर्यों का पुरुषार्थ वैदिक
धर्म प्रचार की लगन और संस्कृति के प्रति समर्पण ने यह इतिहास रचा था। बाद में
भारत से समय-समय पर विद्वान और सन्यासीगण वहां जाकर प्रचार-प्रसार करते रहे।
किन्तु विगत 25-30 वर्षों से
एक सूना पन आ गया प्रचार-प्रसार में शिथिलता आई, किन्तु वैदिक विचारधारा की अग्नि बनी
रही। अनेक आर्य विचारधारा के व्यक्तियों के मन में अपने वैदिक धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा
तो थी किन्तु मार्गदर्शन और साधनों के अभाव में वे अपने कार्य को गति नहीं दे पा
रहे थे।
दिल्ली में सन् 2006 में
सम्पन्न हुए अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था कि भारत
के बाहर पॉंच आर्य महासम्मेलन अन्य देशों में आयोजित किए जावें, उसी श्रृंखला में 11 वॉं आर्य महासम्मेलन 6, 7, 8 अक्टूबर 2017 को सम्पन्न हुआ। एक लम्बे अन्तराल के
पश्चात् म्यांमार में आर्य समाज की स्थापना के एक शताब्दी पश्चात् इस महासम्मेलन
का आयोजन माण्डले में किया गया।
सभा प्रधान श्री सुरेशचन्द्र जी आर्य के साथ मैं व श्री विनय आर्य माण्डले
विगत 1 वर्ष
पूर्व गए। वहां जाकर इसे करने की चर्चा की। इस हेतु रंगून से माण्डले के मध्य
स्थापित अनेक आर्य समाजों में जाकर जन सम्पर्क कर सम्मेलन की जानकारी दी गई। संगठन
की इस चर्चा ने आर्यों में एक उत्साह और नई आशा की किरण दिखाई दी। रंगून और
माण्डले में म्यांमार देश के प्रमुख कार्यकर्ताओं की बैठक में इस सम्मेलन को मनाने
पर अनेक प्रकार की शंकाएं और असमर्थता की भावनाएं सामने आई। अनुभव और साधनों के
अभाव से घिरे आर्य निर्णय नहीं ले पा रहे थे। किन्तु सभा प्रधान श्री सुरेशचन्द्र
जी आर्य के द्वारा तन मन धन से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।
इसके पश्चात निरन्तर सम्पर्क और बर्मा आने जाने का क्रम बना, सभा प्रधानजी से विचार विमर्श पश्चात्
फिर मैं व विनय आर्य ने 3 बार आकर
आगामी रूपरेखा व अन्य तैयारियों में सहयोगी बन उत्साहवर्धन करते रहे।
अन्त में वह घड़ी आ गई जिसका हजारों बर्मा निवासी इन्तजार कर रहे थे।
भारत से लगभग 160 तथा
मॉरिशस, अमेरिका, न्यूजीलैण्ड, कैनेड़ा, नेपाल, आदि स्थानों से लगभग 50 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
कार्यक्रम माण्डले शहर के महत्वपूर्ण आबादी वाले तथा नगर के प्रसि( स्थान
अम्बिका मन्दिर में आयोजित किया गया था। अत्यन्त सुविधाजनक मन्दिर के मैदान में
सुन्दर साज सज्जा के साथ भव्य यज्ञ शाला, पण्डाल और आकर्षक मंच का निर्माण स्वतः
ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। जो भी देखता वह सराहना किए बिना नहीं रहता।
साहित्य विक्रय तथा अन्य सामग्री विक्रय स्टॉल भी बनी थी। इस प्रकार का आयोजन
बर्मा के लिए शायद पहला ही आयोजन था।
म्यांमा सभा के प्रधान श्री अशोक क्षेत्रपाल जी अपने उद्बोधन में कहा, ‘‘म्यांमा के गांव-गांव में वर्षों से
आर्य समाज की जड़ें जमी हुई हैं। आज के इस सम्मेलन में आश्वासन देता हूं कि
आर्य समाज म्यांमा देश के विभिन्न शहरों में हर वर्ष क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित
करेगा साथ ही आर्य वीर दल/युवा दल का संगठन भी तैयार करेगा जिससे म्यांमा के आर्य
समाज में युवाओं की जबरदस्त भागीदारी स्थापित हो।’’ श्री अशोक क्षेत्रपाल और उनकी पूरी टीम
जिसमें महिलाएं, नवयुवक, बालक-बालिकाएं सभी पूरी निष्ठा और
पूर्ण शक्ति से लगे थे। यह एक विशेषता यहां सबने देखी जो प्रेरणास्पद थी।
म्यांमा सभा के अनुमान से दोगुने प्रतिनिधियों ने कार्यक्रम के पूर्व अपना
पंजीयन करा लिया था। सम्मेलन में विद्वान, सन्यासी, गायक, वक्ता, बड़ी संख्या में पधारे थे।जिसमें प्रमुख
रूप से स्वामी धर्मानन्दजी (आमसेना), स्वामी देवव्रतजी, स्वामी सुमेधानन्द जी, स्वामी राजेन्द्रजी, आचार्य ज्ञानेश्वरजी, डॉ. सोमदेवजी शास्त्री, आचार्या नन्दिताजी शास्त्री, डॉ. रामकृष्णजी शास्त्री, आचार्य सनत कुमार, आचार्य आनन्द प्रकाश, डॉ. सत्यकाम शर्मा, प्रो. ओमकुमार जी आर्य, आदि के द्वारा सम्मेलन को सम्बोधित
किया गया।
इसके अतिरिक्त कैनेड़ा के श्री हरीश वाष्णेय, श्रीमती मधू वाष्णेय, श्री दीनदयालजी गुप्त, श्री धर्मपाल आर्य, श्री वाचोनिधी आर्य, श्री हंसमुख भाई परमार भी उपस्थित रहे।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में माण्डले के मुख्यमन्त्री और मन्त्री मण्डल के
अनेक विभागों के मन्त्री, भारत के
राजदूत, मेयर, नेता तथा आर. एस. एस., सनातन धर्म सेवक संघ, हिन्दू संगठन के अनेक नेता उपस्थित
हुए। स्वामी सुमेधानन्द जी द्वारा दिये गये अपने उद्बोधन में कहा ‘‘देश की सुरक्षा, अखण्डता व शान्ति के लिए उठाए जा रहे
म्यांमा व भारत सरकार के हर कदम का आर्य समाज समर्थन करता है।’’
ओ3म्
ध्वजारोहण सभा प्रधान जी द्वारा, दूसरा
ध्वज स्वामी सुमेधानन्द जी द्वारा तथा म्यांमार देश का ध्वज म्यांमार सभा प्रधान
श्री अशोक क्षेत्रपाल द्वारा किया गया। ध्वजा रोहण के पश्चात मुख्य मंच पर
मुख्यमन्त्री तथा अन्य शासकीय उच्चाधिकारियों द्वारा दीप प्रज्वलित किया गया।
कार्यक्रम में आशा से कहीं अधिक उपस्थिति हो गई, पूरा पण्डाल भर गया खड़े रहने का स्थान
भी नहीं बचा।
प्रतिदिन प्रातः 5 से 6 बजे तक स्वामी देवव्रतजी द्वारा योग
आसन प्राणायाम प्रशिक्षण दिया गया, जिसमें बड़ी संख्या में आर्यजनों की
उपस्थिति होती थी।
रखाइन प्रान्त में घटित घटना पर शोक व्यक्त किया गया। प्रतिदिन प्रातः एवं
सायं यज्ञ होता रहा, यज्ञ की
ब्रह्मा आचार्या नन्दिताजी शास्त्री थी। पॉंच कुण्डीय यज्ञ में 40 से 50 यजमान और उनके आसपास सैकड़ों की संख्या
में श्रद्धालु बैठकर यज्ञ का आनन्द ले रहे थे।
इन दिनों में विभिन्न सम्मेलनों का आयोजन 4 सत्रों में होता रहा, जिसमें वेद, आर्य समाज, महिला आर्य समाज के सैधांतिक व
अन्धविश्वास निवारण विषयों पर विद्वानों ने चर्चा की। डॉ. सुखदेव चन्द सोनी परिवार
ने अपने श्वसुर स्व. डॉ. ओम प्रकाश जी की स्मृति में 5000 डॉलर की दान राशि भेंट कर प्रचार निधि
की स्थापना की। महाशय धर्मपाल जी ने भेजे अपने सन्देश में कहा-‘सर्वप्रथम न आने का दुःख, किन्तु सम्मेलन की सफलता की प्रभु से
प्रार्थना करता हूं। मैं वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए हर सम्भव सहयोग का
सदैव प्रयास करूंगा साथ ही म्यांमा में कन्या गुरुकुल आरम्भ करने क लिए अपना भरपूर
सहयोग करने का आश्वासन देता हूं।’ महात्मा
आनन्द स्वामी जी के सुपौत्र श्री पूनम सूरी जी ने अपने शुभकामना सन्देश में
सम्मेलन की अभूतपूर्व सफलाता के लिए शुभकामनाएं दी।
100 साल पुराने आर्य समाज के गीतों को आर्य
समाज म्यांमा ने बहुत ही सुन्दर ढंग से संजोकर रहा हुआ है जिसकी संगीतमयी
प्रस्तुति म्यांमा के अनेक समूहों द्वारा की गई। प्रातः से रात्रि (भजन
संध्या) तक लगभग 40 से 50 भजनों की प्रस्तुति मॉरिशस व म्यांमार
देश की महिलाओं नवयुवकों व छोटे-छोटे बच्चों द्वारा दी गई।
विशेष आकर्षण था - 100 स्थानीय
व्यक्तियों द्वारा एक साथ अपने-अपने हवन कुण्ड में सामूहिक यज्ञ किया गया।
संकल्प - आचार्या नन्दिता जी शास्त्री ने अनेक व्यक्तियों को नित्य यज्ञ
करने की प्रेरणा दी, परिणाम
स्वरूप अनेक व्यक्तियों ने दैनिक यज्ञ करने का संकल्प लिया।
गुरूकुल स्थापना - म्यांमार में गुरूकुल स्थापना का निर्णय लिया गया। इस
हेतु आर्थिक सहयोग की घोषणा भी होने लगी। तभी स्वामी धर्मानन्दजी ने कहा शिक्षण
व्यवस्था हेतु आचार्य, शास्त्री
वे उपलब्ध करवा देगें।
नशाबन्दी निषेध प्रस्ताव - कार्यक्रम में भारत से पहुंचे कार्यकर्ताओं ने
विशेष सहयोग दिया, जिनमें
श्री बृजेश आर्य, एस. पी.
सिंह, नरेश पाल
आर्य, विजेन्द्र
आर्य, सुभाष
कोहली प्रमुख थे।
ईश्वर की महती कृपा से म्यांमार निवासियों के अथक परिश्रम ने सम्मेलन को यादगार बना दिया। जितनी संभावना थी
उससे कई गुना ज्यादा उसका परिणाम संगठन हित में प्राप्त हुआ। अनेक आर्यजन तो
कार्यक्रम के पश्चात चर्चा करते करते भावुक हो जाते और इस कार्यक्रम की सफलता के
लिए सार्वदेशिक सभा का आभार मानते, निश्चित रूप से यह कार्यक्रम केवल
संख्या की दृष्टि से नहीं सार्थकता की दृष्टि सफल रहा।
100 नव प्रशिक्षित याज्ञिकों द्वारा
प्रस्तुत अद्भुत दृश्य
गांव-गांव में बसी हैं आर्यसमाज की जड़ें
हर वर्ष क्षेत्रीय आर्यसम्मेलन होगा म्यांमा के विभिन्न शहरों में
आर्य वीर दल/युवा दल का गठन होगा।
युवा विनयम कार्यक्रम करेंगे। भारत व म्यांमा का आर्यसमाज
आर्य युवाओं की जबरदस्त भागीदारी
100 साल पुराने आर्यसमाज के गीतों को
सम्भाल कर रखा है आर्यसमाज म्यांमा ने
महिलाओं एवं बच्चों द्वारा प्रस्तुत संगीत का कार्यक्रम अद्वितीय
रखाइन प्रन्त में घटित घटना पर शोक व्यक्त करता है आर्यसमाज
देश की सुरक्षा, अखण्डता व
शान्ति के लिए उठाए जा रहे म्यांमा/भारत सरकार के हर कदम का समर्थन करता है
आर्यसमाज
डॉ. सुखदेव चन्द सोनी परिवार ने अपने श्वसुर स्व. डॉ. ओम प्रकाश जी की
स्मृति में स्थापित की 5000 डॉलर की
प्रचार निधि।
महाशय धर्मपाल जी ने भेजे सन्देश में कहा - न आने का दुःख किन्तु सम्मेलन
की सफलता के साथ-साथ वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए करुंगा हर सम्भव सहयोग।
म्यांमा में कन्या गुरुकुल आरम्भ करने के लिए भरपूर सहयोग करने का आश्वासन
दिया।
महात्मा आनन्द स्वामी जी के सुपौत्र श्री पूनम सूरी जी ने भेजी सम्मेलन की
अभूतपूर्व सफलता के लिए शुभकामनाएं।
- प्रकाश आर्य,
सभामन्त्री, सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली
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