एनसीईआरटी से गायब
किया वैदिक इतिहास, क्या व्यर्थ जाएगी इस देश के लिए आर्यों की कुर्बानियां?
सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए
एक प्रश्न के जवाब
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और पशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) का कहना है कि उसके पास स्कूली
किताबों में वैदिक इतिहास का चेप्टर जोड़ने की कोई योजना नहीं है। यह बात
संस्थान ने कही है।
सूचना में एनसीईआरटी ने कहा कि 2005 राष्ट्रीय पाठ्यक्रम परिचर्या तैयार किए
जाने के बाद पुस्तकों में बदलाव किया
गया। 2007 में
इतिहास की नई किताबें शामिल की गई जिसमें वैदिक इतिहास को नहीं रखा गया है।
जबकि इससे पहले तक एनसीईआरटी की एक पुस्तक में वैदिक इतिहास पढ़ाया जा रहा
था। लेकिन एनसीईआरटी का कहना है कि विशेषज्ञों की सिफारिश पर
पाठ्यक्रम तैयार हुआ था। जिसमें अब कोई बदलाव होने का प्रस्ताव नहीं है।
वैदिक इतिहास के मुद्दे पर कार्य
कर रहे लोगों का कहना है कि एनसीईआरटी
ने वामपंथी लेखकों के दबाव में वैदिक साइंस के विषय को हटा
दिया। लेकिन आज छात्रों
को यह जानने का हक है कि वेद क्या हैं, वैदिक गणित आज भी सामयिक
है। इसी प्रकार आर्यन सभ्यता के बारे में आज एनसीईआरटी की किताबों में एक
भी लाइन नहीं पढ़ाई जाती है। एक तरफ सरकार ने ऋगवेद को यूनेस्को के
विश्व धरोहरों में
शामिल कराया है तथा दूसरी तरफ इस वेद के बारे में एनसीईआरटी की इतिहास की किताबों में एक
भी लाइन दर्ज नहीं है। आखिर यह काम किसके दबाव में हुआ? तब की तत्कालीन सरकार ने
यह फैसला क्यों लिया और आज मौजूदा सरकार इस पर मौन क्यों है? भारत दुनिया का शायद
अकेला ऐसा देश है, जहां
के आधिकारिक इतिहास की शुरुआत में
ही यह बताया जाता है कि भारत में रहने वाले लोग यहां के मूल निवासी नहीं हैं भारत में
रहने वाले अधिकांश लोग भारत के हैं ही नहीं. ये सब विदेश से आए हैं. वामपंथी
इतिहासकारों ने बताया कि हम आर्य हैं. हम बाहर से आए हैं. कहां से आए? इसका कोई सटीक जवाब
नहीं है. फिर भी बाहर से आए. आर्य कहां से आए,
इसका जवाब ढूंढने के लिए कोई इतिहास के पन्नों को पलटे, तो पता चलेगा कि कोई सेंट्रल
एशिया कहता है, तो
कोई साइबेरिया, तो
कोई मंगोलिया, तो
कोई ट्रांस
कोकेशिया, तो
कुछ ने आर्यों को स्कैंडेनेविया का बताया. आर्य धरती के किस हिस्से के
मूल निवासी थे, यह
इतिहासकारों के लिए आज भी मिथक है.
मतलब यह कि किसी के पास आर्यों का सुबूत नहीं है, फिर भी साइबेरिया से
लेकर स्कैंडेनेविया
तक, हर
कोई अपने-अपने हिसाब से आर्यों का पता बता देता है. भारत में आर्य अगर
बाहर से आए, तो
कहां से आए और कब आए, यह
एक महत्वपूर्ण सवाल
है. यह भारत के लोगों की पहचान का सवाल है. विश्वविद्यालयों में बैठे बड़े-बड़े इतिहासकारों
को इन सवालों का जवाब देना है. सवाल पूछने वाले की मंशा पर सवाल उठाकर
इतिहास के मूल प्रश्नों पर पर्दा नहीं डाला जा सकता है.
एनसीईआरटी से वैदिक इतिहास के हटाये जाने पर सरकार जबाब
देना होगा यह दुनिया की सबसे पुरातन सभ्यता है. इतिहास में रुचि रखने वाले किसी भी
व्यक्ति के लिए यह आश्चर्य का विषय
है कि जब ग्रीस, रोम
और एथेंस का नामोंनिशान नहीं था, तब
यहां के लोग विश्वस्तरीय
शहर बनाने में कैसे कामयाब हो गए, टाउन-प्लानिंग
का ज्ञान कहां
से आया और उन्होंने स्वीमिंग पूल बनाने की तकनीक कैसे सीखी? अफ़सोस इस बात का है कि भारत
के लोग जब अपने ही इतिहास को पढ़ते हैं, तो
उन्हें गर्व की
अनुभूति नहीं होती है. इसका कारण यह भी है कि देश के इन वामपंथी इतिहासकारों ने इस ढंग से इतिहास
लिखा है कि जो एक बार पढ़ ले, तो
उसकी इतिहास से रुचि ही
ख़त्म हो जाती है.
भारतीय इतिहासकारों ने इन्हीं अंग्रेजों के लिखे इतिहास पर आर्यों और द्रविड़ों
का भेद किया. बताया कि सिंधु घाटी में रहने वाले लोग द्रविड़ थे, जो यहां से पलायन कर
दक्षिण भारत चले गए. अब यह सवाल भी उठता है कि सिंधु घाटी से जब वे पलायन कर दक्षिण
भारत पहुंच गए, तो
क्या उनकी बुद्धि
और ज्ञान सब ख़त्म हो गया. वे शहर बनाना भूल गए,
स्वीमिंग पूल बनाना भूल गए, नालियां बनाना भूल गए. और, बाहर से आने वाले
आर्य, जो
मूल रूप से खानाबदोश
थे, कबीलाई
थे, वे
वेदों का निर्माण कर रहे थे. दरअसल, वामपंथी इतिहासकारों ने देश
के इतिहास को मजाक बना दिया. यह भी एक कारण है कि इतिहास को फिर से लिखा जाना चाहिए हमारा सभी
आर्यों से निवेदन है अपने अपने स्तर पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय को
पत्र लिखकर विरोध दर्ज कराए यदि सरकार इस मुद्दे पर आँख बंद कर बैठना चाह रही हो
तो हमारा समस्त भारत विश्व के आर्यों से आह्वान है की आन्दोलन के लिए तैयार रहे है
सरकार चुप बैठ सकती है पर आर्य समाज चुप नहीं बैठेगा हमे वो इतिहास जिसमे एकता का
संचार हो और जो हमारा हौसला बुलंद कर सके कि हम मानव विकास के
मानदंडों पर दुनिया में अग्रणी रहे हैं.....(दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा) लेख राजीव चौधरी
बहुत खूब।
ReplyDeleteआभार
DeleteNice article
ReplyDeleteThanx sunil ji
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