संयुक्त राष्ट्र
महासभा में कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा है कि
बुरहान वानी एक नौजवान नेता थे जिनकी भारतीय सेना ने जान ले ली, वो
हालिया कश्मीरी स्वतंत्रता के प्रतीक के तौर पर उभरे थे जो कि एक लोकप्रिय और
शांतिपूर्ण आजादी मांगने का अभियान है जिसकी अगुवाई कश्मीर के नौजवान और बुजुर्ग,
पुरुष और महिला कर रहे हैं. नवाज अपने भाषण में कश्मीर के मुद्दे को
कश्मीर की स्वतंत्रता से जोड़कर बता रहे थे जबकि बीते महीने नवाज शरीफ ही पाकिस्तान
में नारे लगा रहे थे की कश्मीर बनेगा पाकिस्तान. हालाँकि भारतीय विदेश मंत्रालय के
प्रवक्ता विकास स्वरूप ने “पाकिस्तान
के प्रधानमंत्री शरीफ को जबाब देते हुए कहा है कि संयु्क्त राष्ट्र महासभा में
हिज्बुल चरमपंथी बुरहान वानी का शरीफ द्वारा जो महिमामंडन किया, इससे
पाकिस्तान का चरमपंथ से संबंध जाहिर होता है.” सब जानते है बुरहान वानी हिजबुल
मुजाहिदीन का एक घोषित कमांडर था जो कि एक आतंकी संगठन है.”
नवाज शरीफ के
भाषण पर अमेरिका में रहे पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी के अनुसार नवाज
शरीफ के भाषण को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत ज्यादा तव्वजो नहीं मिली. क्योंकि
संयुक्त राष्ट्र में 1947 से लोग ये सुन रहे है. “रह गया आतंकवाद का मामला तो उस पर पूरी
दुनिया सहमत है कि आतंकवाद का कोई औचित्य नहीं है. पाकिस्तान को अब ये कारोबार बंद
करना होगा. दुनिया सब कुछ जानती है.”
पाकिस्तान का जिक्र करते हुए हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तान के आतंकवाद पर अब दुनिया
खुल कर बोलती है. यदि इसके बाद भी पाकिस्तान आतंकवाद से पल्ला झाड़ता है तो ये
पाकिस्तान के लिए पछतावे के सिवा कुछ नहीं होगा. सर्वविदित है कि दिसम्बर 2014
पाकिस्तान के पेशावर के एक स्कूल में आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान द्वारा करीब 141
बच्चें मारे गए थे जबकि पाक सुरक्षाबलों की कार्रवाई में सभी 6 हमलावर भी मारे गए
हैं। उस समय भारत में भी शोक व्यक्त किया गया था. एक अच्छे पड़ोसी का धर्म निभाते
हुए हमने स्कूलों की एक दिन छुट्टी के साथ पुरे भारत ने इस दुःख की घड़ी में
पाकिस्तान का साथ दिया था. तब भारत ने तहरीक-ए- तालिबान के कमांडर “फेजुल्लाह” जोकि इस हमले
का मास्टर माइंड था उसे मासूम और युवा नेता कहने के बजाय आतंकी ही कहा था. यदि आज
पाकिस्तान की नजर में हिजबुल आतंकी बुरहान वानी मासूम नेता है, तो फिर उत्तरी
वजीरिस्तान में अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे तहरीक-ए-तालिबान के लड़ाके भी मासूम कहे
जा सकते है? जिन पर पाकिस्तान की सेना लड़ाकू विमानों से बम बरसा रही है.
यह कोई नहीं बात
है. पाकिस्तान हमेशा से विश्व समुदाय के सामने आतंक के प्रति दो मुखोटे रखता रहा
है. जिसे पाकिस्तान ने गुड तालिबान और बेड तालिबान में विभक्त कर परिभाषित किया.
मसलन जो आतंकवादी पाकिस्तान से बाहर हमले को अंजाम दे वो अच्छा तालिबान और
पाकिस्तान में मासूम लोगों की हत्या करे वो बुरा तालिबान. शायद इसी वजह से आज
विश्व में जब भी कहीं आतंक पर चर्चा होती है तो चर्चा में पाकिस्तान का नाम भी
जरुर लिया जाता है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कई अंतर्राष्ट्रीय और
क्षेत्रीय आतंकी पाकिस्तान की पनाह में मारे जा चुके जबकि कईयों का अभी भी सबसे
सुरक्षित ठिकाना पाकिस्तान आज भी में बना हुआ है. जिनमें कई आतंकी संगठनों का
रवैया पाकिस्तान के प्रति उदार रहा है. जबकि तहरीक-ए-तालिबान
पाकिस्तान का रुख शुरू से कड़ा रहा है. उसका मानना है कि पाकिस्तान अमेरिका का
गुलाम है और उसके नेता देश के गद्दार हैं. यही वजह है कि यह संगठन पाकिस्तानी
नेताओं का दुश्मन नंबर वन है. उसका मानना है कि कबाइली इलाकों में अमेरिकी फौज के
हमले पाकिस्तानी नेताओं की सहमति से हो रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार इसके करीब
30000 से 35000 सदस्य हैं. प्रतिबंध लगने के बाद अल-कायदा, सिपह-ए-साहबा,
लश्कर-ए-झांगवी, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद,
हरकत-उल-मुजाहिदीन और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी जैसे कई बड़े आतंकी
संगठन भी पाकिस्तानी तालिबान में शामिल हो गए हैं.
दरअसल, पाकिस्तान
ने पिछली सदी के 80 के दशक में आतंक के जहरीले नाग को दूध पिलाना शुरू किया था.
पाकिस्तानी शासकों ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को इन विवशताओं के समीकरण में मिलाकर
आतंक को न सिर्फ शह दी बल्कि उसको पाला पोसा. जिस कारण आज पाकिस्तान आतंक के अपने
ही जाल में बुरी तरह फंस गया है. उसने जो गड्ढा पूरी दुनिया के लिए खोदा था. अब
उसमें खुद ही आ धंसा है. लेकिन इन सबके बावजूद भी पाकिस्तान भारत के साथ मिलकर
आतंकवाद के विरूद्घ ईमानदाराना लड़ाई लड़ने के लिए तैयार नहीं है. यदि भारत में
आतंकी पठानकोट, गुरदासपुर, मुंबई,
या उडी में हमला करते है, तो पाकिस्तान की नजर में वो हीरो होते है, किन्तु
वहीं आतंकी जब लाहौर के पार्क में धमाका करते है, पेशावर
या बाघा बोर्डर पर हमला कर पाकिस्तानी अवाम को मारते है तो आतंकवादी या बुरे
तालिबानी हो जाते है. क्यों? गुलाम कश्मीर में जब कोई पाकिस्तान से
अपने भू-भाग से मुक्ति चाहता है तो वो आतंकी होता है किन्तु जब कोई जिहाद की आड़
लेकर भारतीय सेना या समुदाय पर हमला करता है. उसे आजादी का परवाना कहा जाता है. युवा नेता कहा
जाता है. यह दोहरा मापदंड किस लिए? हो
सकता है इसी कारण लादेन और मुल्ला मंसूर जैसे आतंकी, जो अमेरिका में 3 हजार
निर्दोष लोगों के हत्यारे थे वो भले ही समस्त विश्व के आतंकी रहे हो पर वो
पाकिस्तान के हीरो रहे होंगे थे.
. इस सब के बावजूद
पाकिस्तान चाहें तो बर्मा से सीख ले सकता है. उसने किस तरह पिछले वर्ष नागालेंड
में भारतीय सेना के 18 जवानों की हत्या के बाद अपने देश में भारत को कार्रवाही के
लिए खुली छुट दी थी. जिस कारण वहां आतंकी केम्प तबाह हुए थे. किन्तु पाकिस्तान इस
मामले में भारत के खिलाफ आतंकियों को न केवल अपनी जमीन और हथियार उपलब्ध कराता
बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पैरोकारी कर उन्हें हीरो बताता है. हालाँकि
पाकिस्तान की यह परम्परा कोई नई नहीं है. पाक शासकों की भारत के प्रति यह
दुर्भावना पुरानी है पाकिस्तान ने जिस तरह अपनी मिसाइल और अधिकतर युद्धक सामग्री
को उन लोगों के नाम पर बनाया है जो कभी भारत को लुटने आया करते है. उसने गोरी,
गजनवी आदि मिसाइल का निर्माण किया. उससे यह साबित होता है कि इस
दुर्भावना का शिकार सभी पूर्व शाशक रहे है जो पाकिस्तान की राजनीति को विरासत में
मिलती है. पाकिस्तान ने आज तक किसी भी मकान, मस्जिद
या किसी सेवा को दाराशिकोह जैसे धर्मनिरपेक्ष लोगों का नाम नहीं दिया. क्या
दाराशिकोह भी बुरा तालिबान था? और गोरी, गजनवी
ओरंगजेब अच्छे तालिबानी हीरो? भारत सरकार को अब समझ जाना चाहिए कि
सुरक्षा के मोर्चे पर कुछ नहीं बदला है.पाकिस्तान में भारत के प्रति दुर्भावना
बहुत गहरी है जो कुछ मुलाकातों या से समाप्त नहीं हो सकती है. इससे आगे भी पाकिस्तान
का दुहरा खेल अब उससे भी अधिक घिनौना होगा. कौन विश्वास करेगा कि पाकिस्तान सरकार
और खुफिया सेवा को ओसामा बिन लादेन के छुपे होने की खबर नहीं थी? पाकिस्तान
आज विश्व के लिए विस्फोटक बना हुआ है, जो आगे एक-एक
दिन भारत समेत पुरे विश्व के लिए खतरनाक होता जा रहा है...दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा लेख्र राजीव चौधरी
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