रक्षा मामलों के विश्लेषक राहुल बेदी
के मुताबिक, “सेना
इस हालिया हमले के जवाब देने के लिए आतुर है. इससे परमाणु हथियारों से लैस दोनों
पड़ोसियों के बीच तनाव बढ़ जाएगा.” तो
सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता राम माधव ने कहा है कि भारत के “तथाकथित रणनीतिक संयम रखने के दिन लद
गए.” सेना के पूर्व
अफसरों ने सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि भारत को पलटवार करना चाहिए. इसके जबाब
में पाकिस्तान के पूर्व गृहमंत्री अब्दुल रहमान मलिक भारतीय प्रधानमंत्री के लिए
अपशब्द बोलकर परमाणु हमले की धमकी दे रहे है. इस सारी उपापोह के बीच भारतीय जनता
एक सवाल होटों पर लिए खड़ी है कि क्या युद्ध होगा?
तो में आपको बता
दूँ. जब कृष्ण अंतिम कोशिश के रूप में
शांति संधि के लिए हस्तिनापुर
जा रहे थे तो द्रोपदी
ने बड़ी ही व्याकुलता से
कृष्ण से पूछा था कि ‘हे केशव, तो
अब युद्ध नहीं
होगा?” कृष्ण ने उस
समय द्रोपदी से कहा था तुम मुझ से ज्यादा दुर्योधन पर विश्वास रखो, वो मेरी हर
कोशिश को नाकाम कर देगा, इसलिए, हे द्रोपदी,
निश्चिंत
रहो, युद्ध तो अवश्य होगा। तो
यहाँ भी सब भारतीय नरेंद्र मोदी से ज्यादा पाकिस्तान
पर विश्वास रखे. युद्ध तो अवश्य होगा। पर कैसे होगा इसका अभी सिर्फ आकलन ही किया जा सकता
है. किन्तु इसमें अहम और ज्यादा गंभीर सवाल पर यह सोचना है कि क्या भारत के पास यह
क्षमता है कि वह पाकिस्तान के अंदर पहले से तय ठिकानों पर हमला कर दे या उसकी जमीन
पर सीमित युद्ध छेड़ दे? सोशल मीडिया में इस पर बहस छिड़ी हुई है कि
भारतीय वायु सेना को पाकिस्तान स्थित ठिकानों पर क्यों अचूक और सटीक हमले करने
चाहिए या नहीं.” पर ज्यादातर रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि
ऐसा करना आसान नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान के पास हवाई सुरक्षा के
पुख़्ता इंतजाम हैं. इस पर भी संदेह जताया जा रहा है कि क्या भारत ने गैर पारंपरिक
शक्ति संतुलन की क्षमता विकसित की है.
ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि युद्ध
होगा या नहीं होगा? तो लोगों को सोचना होगा कि युद्ध न कोई तमाशा
है और न ही कोई मनोरंजन का साधन. युद्ध में मासूम लोग मरते है युद्ध से जमीने बंजर
होती है. घायलों की कराह होती है. हर एक घटना के बाद भारत और पाकिस्तान की जनता
युद्ध-युद्ध चिल्लाती है. कारण इन दोनों देशो ने अभी तक युद्ध देखा ही नहीं है.युद्ध
के बारे में सिर्फ पढ़ा है. यदि युद्ध देखा भी है तो टीवी के सीरियल और फिल्मों में
या फिर तीन चार बार सीमा पर फौजी जंगे देखी है. युद्ध देखा है लाओस वियतनाम इराक
ने या युद्ध की त्रासदी झेली है जापान ने उनसे पूछो क्या होता है युद्ध? यूरोप
के देशों से पूछो क्या होता युद्ध? मैं ये नहीं कहता कि इस डर से नपुंशक
बन कर जियो. नहीं! जैसी स्थिति हो ऐसा प्रहार करो जरूरी नहीं कि सभी युद्ध
हथियारों ही जीते जाते हो दुश्मन को भूखा मारकर भी युद्ध जीता जा सकता है!
बहरहाल कुल
मिलाकर विदेश नीति के संबंध में हमें यह समझने की जरूरत है कि पहले विश्व दो
ध्रुवीय था, लेकिन 21वीं शताब्दी में पूरा विश्व एक दूसरे
पर ज्यादा निर्भर है. दुश्मन की निर्भरता के रास्ते रोक कर भी उसे कमजोर, पंगु
किया जा सकता है. समझोते तोड़े जा सकते है. संधियाँ भी एक तरफा समाप्त की जा सकती है.
उस अवस्था में हम भले ही ना भी लड़े पर भूगोल और परिस्थिति अपने शिकार को पकड़ लेती है.
किसी भी देश की विदेश नीति उसके उसके भूगोल द्वारा निर्धारित होती है और हम
पाकिस्तान की भोगोलिक स्थिति से भलीभांति परिचित है. हमेशा इस तर्क के सहारे युद्ध किये
जाते रहे है कि शांति के लिए युद्ध जरूरी है. किन्तु युद्ध के बाद अमन या शांति का
केवल नाम होता दरअसल उसके पीछे खामोशी छिपी होती है. न हमे अभी तक नाभकीय युद्ध का
अंदाजा है न पाकिस्तान को दोनों देशों की मीडिया रात दिन युद्ध पर बहस कर रही है
जबकि इस बात का सबको पता है कि दुसरे विश्व युद्ध को करवाने में यदि सबसे अहम रोल
किसी का रहा था तो वो उस समय की मीडिया का रहा था. जो राजनेताओं को ताने देने लगी
थी. नपुंशक और कायर तक लिखने लगी थी. आज भी मुझे कुछ ऐसा ही दिखाई दे रहा है. आज
फिर मीडिया मानचित्रो को लेकर उन पर हमले कर रही है पर भूल जाती है कि मानचित्रो
पर कलम चलाने से भूगोल नहीं जीते जाते उसके लिए रक्त से धरा लाल होती है. माओं को
लाल बहनों को भाई और पत्नी को अपनी मांग का सिंदूर लुटाना पड़ता है. किन्तु इस
युद्ध को तो हम धरा को लाल किये बिना भी दुश्मन से जीत सकते है उसकी निर्भरता पर
वार कर सकते है.
अभी में एक रिपोर्ट पढ़ रहा कि क्या
बलूचिस्तान का मामला उठानेवाले भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सिन्धु जल संधि
के मुद्दे को आतंकवाद, दाउद इब्राहीम और हाफिज सईद से जोड़ने का साहस
करेंगे! अंतर्राष्ट्रीय कानून की मान्यता है कि बदली हुई परिस्थितियों या घटनाओं
के आधार पर कोई संधि भंग की जा सकती है. जिस प्रकार पाकिस्तान अपनी सीमा में भारत
के खिलाफ आतंकवादी समूहों को पाल पोस रहा है, यह अपने आप में
सिन्धु जलसन्धि (आईडब्ल्यूटी) भंग करने का पर्याप्त आधार है. सिंधु पाकिस्तान के
गले की नस है. यदि भारत पाकिस्तान को अपने व्यवहार में सुधार लाने और आतंकवादियों
का निर्यात रोकने के लिए विवश करना चाहता है तो आईडब्ल्यूटी भंग करने से अच्छा
कारगर उपाय कोई नहीं! भारत के पास इस एकतरफा लेकिन अनिश्चितकालीन संधि को भंग करने
के पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय कानूनी विकल्प मौजूद है. अमेरिका और रूस के बीच हुई ऐसी
ही एक अनिश्चितकालीन अवधि की एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल संधि को अमेरिका ने भी बाद में
वापस लिया था.
ऐसे समय में जब दोनों देशों के पास परमाणु शस्त्र हैं, और
पाकिस्तान का रक्षा मंत्री खुलकर उनके प्रयोग की धमकी देता रहता है, उडी
आतंकी हमले के बाद पानी कार्ड का अस्त्र ही भारत के लिए सबसे कारगर उपाय हो सकता
है. दक्षिण एशिया के विशेषज्ञ स्टीफन कोहन का मानना है कि भारत-पाकिस्तान का कलह
दुनिया के उन विवादों में एक है, जिनका निपटारा नहीं हो सकता है. हो
सकता है कि कभी ख़त्म ही न हो. उन्होंने बीबीसी से कहा है, ‘यह ऐसा विवाद
है जो पाकिस्तान जीत नहीं सकता और भारत हार नहीं सकता.” इसके बाद भी सब जानते है भारत की
विदेश नीति के निर्धारण में एतिहासिक परम्पराओं की भूमिका सराहनीय है. भारतीय
दर्शनशास्त्र की सद्भावना उदारता और मानवतावादी सिद्धांत पर आधारित है. हम कमजोर
नहीं किन्तु फिर भी अपनी इस परम्परागत नीति का अनुसरण करते है कि जियो और जीने दो.
यदि इस सब के बावजूद भी कौरवो की समझ में नही आता तो पांड्वो को युद्ध के लिए
तैयार रहना होगा........दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा लेख राजीव चौधरी
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