दिल्ली अपराध शाखा ने देह व्यापार के जरिए
रोजाना दस लाख रुपए कमाने वाले एक बड़े अंतरराष्ट्रीय गिरोह का पर्दाफाश किया है।
मुरादाबाद का अफाक और हैदराबाद की सायरा
इन दोनों के छह कोठों में 40 कमरों में ढाई सौ लड़कियों को बंधक
बनाकर इस गोरखधंधे को अंजाम देने वाले पति-पत्नी सहित आठ लोगों को गिरफ्तार कर
पुलिस ने इनके खिलाफ मकोका एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है। वैसे देखा जाये तो कई
बार तो हमारा देश राह चलती एक लड़की की छेडछाड़ पर भी शर्मसार हो जाता है और कई बार
इस तरह की बड़ी से बड़ी घटना पर भी शर्मसार नहीं होता| मतलब हम ज्यादातर सिर्फ उन्ही खबरों
पर शर्मसार होते है जिन पर न्यूज एंकर होते दिखाई देते है| रोहित वेमुला की आत्महत्या पर देश
शर्मसार हुआ, अखलाक की हत्या पर हुआ, इतना तक हुआ कि अवार्ड, पदक तक सरकार के ऊपर फेंक दिए कलमकार, कथाकार, कलाकार इस घटना पर हर कोई शर्मसार हुआ था| यदि हम कभी शर्मसार नहीं
हुए और ना होते इस मानव तस्करी कर कोठे पर बैठा दी जाने वाली नाबालिग बच्चियों को
लेकर| आज हमारा समाज वेश्याओं को सोसायटी का सबसे
तुच्छ
हिस्सा मानता है लेकिन क्या
ये बात सच नहीं कि इस भाग की रूपरेखा का निर्माण करने वाला भी स्वयं हमारा
समाज ही है। हम अक्सर महिलाओं और पुरुषों से भरे कमरे में नारीवादी आंदोलन की बातें करते
हैं, उसके विकास की, उसकी स्वतंत्रता के मूल्यों की| यदि कभी बात नहीं होती तो बस
इस व्यभिचार की| या फिर इसे गन्दा विषय समझकर दूर खड़े हो जाते जबकि पुरुषवादी समाज
बहुत अच्छे से समझता है। इसी समाज ने उन्हें
घर की चारदीवारी
से निकालकर सड़क पर खड़ा कर दिया है।
पिछले दिनों राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक
अध्ययन के मुताबिक भारत में 68 प्रतिशत लड़कियों को रोजगार के झांसे में फंसाकर
वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है। 17 प्रतिशत शादी के वायदे में फंसकर आती हैं।
वेश्यावृत्ति में लगीलड़कियों और महिलाओं की तादाद 30 लाख है। सयुक्त राष्ट्र की
परिभाषा के अनुसार ‘किसी व्यक्ति को डराकर, बलप्रयोग कर या दोषपूर्ण तरीके से
भर्ती, परिवहन या शरण में रखने की गतिविधि
तस्करी की श्रेणी में आती है’।
दुनिया भर में 80 प्रतिशत से ज्यादा मानव तस्करी यौन शोषण के लिए की जाती है, और बाकी बंधुआ मजदूरी के लिए। भारत में
दिल्ली मानव तस्करी का गढ़ बनता जा रहा है|सवाल है कि जब सारा समाज सभ्य है तो यह स्थिति
क्यों बनती है| कहीं ऐसा तो नहीं कि इस स्थिति पर भी मांग और आपूर्ति का सिद्धांत
लागू होता है। पुरुष काम करने के लिए बड़े व्यवसायिक शहरों की ओर पलायन करते हैं, जिससे व्यापारिक सेक्स की मांग पैदा
होती है। इस मांग को पूरा करने के लिए सप्लायर हर तरह की कोशिश करता है जिसमें
अपहरण भी शामिल है।
गरीब परिवार की छोटी लड़कियों और युवा महिलाओं पर यह खतरा
ज्यादा होता है। यदि आप किसी गरीब परिवार में पैदा हों या लड़की हों तो खतरा और बढ़
जाता है। कभी कभी पैसों की खातिर मां बाप भी बेटियों को बेचने पर आमादा हो जाते
हैं। सामाजिक असमानता, क्षेत्रीय लिंग वरीयता, असंतुलन और भ्रष्टाचार मानव तस्करी के
प्रमुख कारण हैं। हमे आजाद हुए एक अरसा बीत गया किन्तु जब तरह कि घटना होती है तो
हम कहीं ना कहीं खुद को लचर कानून व्यवस्था वाले देश के लाचार से नागरिक महसूस
करते है| सडको, मेट्रो, बस आदि में सब लोग
होर्डिंग देखते होंगे जिनमें दो चुटिया कर एक बच्ची हाथ में स्लेट लिए बैठी रहती
है जिसके नीचे लिखा होता है बेटी बचाओं-बेटी पढाओं, बेटी है तो कल है, भूर्ण हत्या
पाप है आदि-आदि बहुतेरे स्लोगन दिखाई पड़ते है| पर क्या कभी सरकारें वो पोस्टर भी
लगाती है जिनमें कोठों की खिडकियों से क्रीम, पाउडर से रंगी पुती मासूम बेटी
मज़बूरी में ग्राहकों को आकर्षित करती दिखाई देती है? शायद नहीं कारण वो बेबस है,
अपनी गरीबी में देह बेचने के लिए| कहा जाता है बेटी है तो कल है पर उस बेटी का कल
क्या है? यही कि यदि वो कोख से बच गयी तो तस्कर उसे जिस्म बेचने के लिए किसी कोठे
पर बैठा देंगे यदि हाँ तो फिर यह हमारे सभ्य संस्कारी समाज पर काला धब्बा उसका कोख
में ही मर जाना सही है वरना हर रोज हर पल मारना पड़ेगा|
अनैतिक तस्करी निवारण अधिनियम के तहत व्यवसायिक
यौन शोषण दंडनीय है। इसकी सजा सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की है। दिसंबर
2012 में हुए जघन्य बलात्कार मामले में सरकार ने एक विधेयक पारित किया जिससे यौन
हिंसा और सेक्स के अवैध कारोबार से जुड़े कानूनों में बदलाव हो सके। लेकिन इन
कानूनों के बनने और लागू होने में बड़ा अंतर है। हर तरफ फैले भ्रष्टाचार और रिश्वत
के कारण इन एजेंटों का लड़के और लड़कियां को बेचना आसान है। लेकिन इन लोगों के खिलाफ
सख्त कार्रवाई करने की जरुरत है जिससे इस समस्या को खत्म किया जा सके। साथ ही
लोगों को उनके इलाके में अच्छी शिक्षा और बेहतर सुविधाएं देने की जरुरत है, जिससे मां बाप अपने बच्चों को इस तरह
ना बेच सकें। इसके साथ ही लड़कियों और महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की भी जरुरत
है। पिछले दिनों एक न्यूज़ रिपोर्ट में मेने पढ़ा था कि पॉर्न के नाम पर लड़कियों का
किस तरह शोषण किया जाता है। उनके साथ कैसी हैवानियत की जाती है और जिसे सब लोग सहज -सेक्स कहकर पल्ला जाड़ देते हैं वह बेहद
दर्दनाक होता है। फर्ज कीजिए,मेकअप लगाकर,दवाएं खाकर, बगैर
किसी भावनात्मक तत्व के घंटों कैमरे
के सामने सिर्फ शरीर के दो अंगों का घर्षण कितना दुखद और दर्दनाक होता होगा। मेरी बस एक छोटी
सी गुजारिश है, सेक्स को प्रेम और प्रकृति का हिस्सा
रहने दीजिए। प्रकृति को ही सेक्स मत बना दीजिए। हवस से हत्या ही होगी। किसी के
चाहत की, किसी के सपने की तो किसी के अहसास की।
सामने से इन्हें भला बुरा कहने वाले भी कहीं ना कहीं इन वेश्याओं से आकर्षित हो ही
जाते है. शायद नसीब की मारी इन लड़कियों की हालत देखकर अगली बार इन्हें देखकर मुहं
से गाली नहीं शायद सांत्वना के दो बोल निकल जाए...(दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा) लेख राजीव चौधरी
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