फिर 19 यजीदी लड़कियों को जिंदा जला दिया गया है। अब तलाश है उस मानवाधिकार आयोग की जो
कश्मीर में लगभग दो महीने पहले कश्मीर के हंद्वाडा में सेना के जवान द्वारा एक
लड़की की छेड़छाड की खबर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना खड़े हो गये थे| जबकि बाद में वो
खबर झूठ पाई गयी थी| किन्तु इराक, सीरिया व् अन्य खाड़ी देशों में लगातार इंसानियत पर
एक के बाद एक हो रहे हमलो पर समूचे विश्व में मानव जाति के लिए लड़ने वाला आयोग शतुरमुर्ग
बना बैठा है| सारी दुनिया को इंसानियत का उपदेश देने वाला अमेरिका यजीदी बच्चियों के शोषण व्
जघन्य हत्याओं के सवाल पर मौन है| मानों आई एस आई एस के देत्यों को मानवाधिकार
आयोग ने कत्ल करने का लाईसेंस दे दिया हो।, वहां मानवधिकारों की खुल्लम खुल्लम न सिर्फ धज्जियां
उड़ रही हैं बल्कि गला घौटा जा रहा है मगर उसके बाद भी कहीं कोई हलचल होती नजर नहीं
आती। यह सिलसिला कब रुकेगा इस बारे में भी यकीन के साथ कहा नहीं जा सकता, जो लोग यहाँ मानवता और मानवधिकार के दम घुटने के गीत गाते फिरते है वे भी
इन घटनाओं पर मुंह खोलने से बच रहे हैं|
इस आतंकी संगठन ने एक
बार फिर रौंगटे खड़े कर देने वाली वारदात को अंजाम दिया है। आई.एस.आई.एस. के लड़कों
ने यौन संबंध बनाने और गुलामी स्वीलकार करने से मना करने पर 19 यजीदी लड़कियों को जिंदा जला दिया। आप सुनकर हैरान रह जाएंगे कि आईएसआईएस ने इन
लड़कियों को जलाने से पहले उन्हें लोहे की पिंजड़े में बंद कर दिया था आतंकियों ने इस हैवानियत को सैकड़ों लोगों के
सामने अंजाम दिया। इस वारदात के चश्मदीद ने मीडिया को बताया कि सैकड़ों लोग देखते
रहे और 19 यजीदी लड़कियों को लोहे के पिंजड़ें में बंद कर जला
दिया गया। आपको बताते चलें कि इससे पहले भी आईएसआईएस के लड़कों ने सेक्स स्लेव (यौन
दासी) ना बनने को तैयार होने वाली लड़कियों को जिंदा जलाकर मार डाला
जानकारी के मुताबिक
उत्तरी इराक में आईएसआईएस के हमले के बाद से यजीदी समुदाय को विस्थापित होना पड़ा
था। इस दौरान आईएसआईएस के लड़कों ने भारी संख्या में यजीदी लड़कियों को गुलाम बना
लिया था| इनमें से चरमपंथियों को कई लड़कियां इनाम में दी जाती हैं, या फिर उन्हें
बतौर यौन दासी बेच दिया जाता है| पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र की मदद से चल रहे
क्लीनिक में महिलाओं पर परीक्षण करने वाली एक महिला डॉक्टर के हवाले से बताया गया
था कि इराक में करीब 700 ऐसी महिलाएं पहुंची थीं जिनके साथ बलात्कार हुआ था
संगठनों का कहना है कि इस्लामिक स्टेट 12 साल की लड़कियों तक का
बलात्कार करने से भी नहीं चूकता| किन्तु इसके बाद भी कहीं से किसी ओर से भी मानवाधिकार
आयोग नहीं बोल पा रहा है|
इस प्रसंग में हम एक
बात रखना चाहेंगे कि जब कश्मीर में किसी अल्पसंख्यक हिन्दू या बोद्ध समुदाय पर
हमला होता है तो उस समय भारत समेत पुरे विश्व का मानवाधिकार सो जाता है| किन्तु जब
किसी बहुसंख्यक मुस्लिम आतंकी वारदात में सेना द्वारा मारा या पकड़ा जाता है तो उस
समय यह लोगजाग जाते है| ऐसा क्यों ? क्या मानव के जीने मरने के अधिकार धर्म आधारित
है?
विदेशों से पत्रकार
भारत आते है कश्मीर के अन्दर रुकते है डाक्यूमेंट्री बनाते है| क्या कभी कोई
पत्रकार पाक अधिकृत कश्मीर या बलूचिस्तान में जाकर भी डाक्यूमेंट्री बनाने का साहस
कर सकते है? यहीं नहीं हर एक वो जगह जहाँ
आज मानव के अधिकारों को कुचला जा रहा इसमें बात सीरिया, इराक की हो या नाइजीरिया, सोमालिया आदि की आये
दिन मासूम बच्चियों के साथ इस्लामिक आतंकियों द्वारा अत्याचार, योनाचार किया जाता
है वहां यह लोग गुमशुदा पाए जाते है ऐसी दौगली नीति क्यों? इस प्रकार की मानसिकता
के साथ जीने वाला आयोग क्या इतना भी नहीं जानता कि खून तो सिर्फ खून होता है फिर
वह वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में मरने वाले लोगों का खून हो या फिर इराक में जलाकर मार
दी जाने वाली मासूम बच्चियों का। आखिर कब तक यह जुल्म यूं ही होता रहेगा इसका कोई
जवाब है किसी के पास? पिछले पांच सदियों से ये लोग इराक में रह रहे हैं मगर उसके
बाद भी इराक से लेकर समूचे इस्लामिक जगत से कोई आवाज इनके लिए नहीं उठ रही है| आज
लोहे की सलाखों के बीच जलकर मरती यजीदी समुदाय की चीखें महज चीखें नहीं बल्कि वे
हमसे, मानवधिकार के रखवालों से, यूएनओ से सवाल कर रही हैं कि आखिर उन्हें सजा किस बात की दी जा रही है? आज मानवाधिकार
कहाँ है? लेख राजीव चौधरी
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