पिछले साल जहाँ अंतर्राष्ट्रीय
योग दिवस पर सूर्य नमस्कार को लेकर विवाद जारी रहा था वहीं इस बार आयुष मंत्रालय
के उस बयान के बाद राजनैतिक हलकों में बवाल बढ़ गया जिसमें कहा गया कि अंतर्राष्ट्रीय
योग दिवस पर योग सत्र से 45 मिनट पहले “ओ३म” और कुछ वैदिक मंत्रों के जाप का प्रस्ताव है। इससे पहले यूजीसी के एक दिशा- निर्देष
में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से कहा गया था कि आयुष मंत्रालय के योग प्रोटोकॉल
का पालन करें जो 21 जून को योग
दिवस समारोहों के दौरान ओ३मऔर संस्कृत के कुछ श्लोको के उच्चारण के साथ शुरू होगा। हालाँकि बाद में आयुष मंत्रालय के
संयुक्त सचिव अनिल कुमार गनेरीवाला ने कहा, “योग सत्र से पहले ओ३म
का जाप करने की बाध्यता नहीं है। यह बिल्कुल ऐच्छिक है, कोई चुप भी रह सकता है। कोई इस पर आपत्ति नहीं करेगा।’’ किन्तु इसके बाद भी जिस तरह
राजनेताओं और धर्मगुरुओं के बयान आये वो कहीं ना कहीं योग दिवस को राजनीति दिवस
बनाते नजर आये|
दारुल उलूम देवबंद के
मुफ़्ती अब्दुल कासिम नोमानी ने कहा है ओ३म का जाप, सूर्य नमस्कार, और श्लोकों पढना इसे पूजा में तब्दील करता है जिसकी इस्लाम इजाजत नहीं देता और
फतवा जारी कर दिया| इस बिन सिर पैर के विवाद की जड़ में मीडिया ने जिस प्रकार खबर
बनाई वो देश की सामाजिक समरसता के लिए ठीक नहीं है| पर हम बता दे योग कोई पूजा
पद्धति नहीं है, ना योग का निर्माण किसी राजनैतिक दल की देन बल्कि दुनिया भर के समस्त
सम्प्रदायों से पहले स्वास्थ और चेतना का विषय योग था और आज भी है| पहली बात तो ये
कि योग और धर्म आनंद का विषय है और मात्र कुछ शब्दों के बोलने से धर्म नहीं टुटा
करते| दूसरा योग से ओ३म का हटना बिलकुल ऐसा है जैसे शरीर से एक हाथ काट देना| इस
मामले पर गरीब नवाज़ फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना अंसार रजा ने अपनी राय रखते हुए
कहा कि यह योग को धर्म से जोड़ने की साजिश है जिससे हमारे धर्म को खतरा है| इस पर
योगगुरु आचार्य प्रतिष्ठा ने जबाब देते हुए कहा कि मन की स्थिति को जानना ही योग, वस्ले दीदार है और योग ही सर्वोपरी धर्म है| ओ३म शब्द से अल्लाह के इस्लाम को
कोई खतरा नहीं है हाँ मुल्ला के इस्लाम को खतरा हो तो कहा नहीं जा सकता! बहरहाल यह
सिर्फ एक बहस थी| योग किसी के लिए अनिवार्य नहीं जिसे अच्छा स्वास्थ चाहिए वो योग
करे किन्तु इसमें धर्म को घुसेड कर अपनी राजनीति ना करे| ओ३म केवल किसी शब्द का
नाम नहीं है। ओ३म एक ध्वनि है, जो किसी ने बनाई नहीं है। यह वह ध्वनि है जो
अंतरात्मा से स्वं जागृत होती होती है कण-कण से लेकर पूरे अंतरिक्ष में हो रही है।
समस्त संसार के धर्म ग्रन्थ जिसके गवाह है। योग कहता हैं कि इससे सुनने के लिए शुरूआत
स्वयं के भीतर से ही करना होगी। जब बात अच्छे स्वास्थ की हो ओ३म से एतराज क्यों?
जहाँ तक कुछ मौलवियों
की बात है तो उनके अजीबों गरीब फरमानों से इतिहास भरा पड़ा है| कुछ रोज पहले के
समाचार देखे तो तमिलनाडु और बरेली के एक मुस्लिम संगठन ने योग गुरु रामदेव के
पतंजलि उत्पादों के खिलाफ फतवा जारी किया है, इस पर यदि प्रश्न करे तो क्या आज तक किसी हिन्दू धर्म गुरु ने हमदर्द के
रूहाफ्जा पर आज तक कोई आदेश दिया है कि यह मुस्लिम की कम्पनी है इसके उत्पाद का
इस्तेमाल मत करो? यदि योग और स्वास्थ की बात कि जाये तो 2012 में पाकिस्तान की एक
मस्जिद ने फरमान जारी हुआ था कि बॉडी स्केन कराना इस्लाम में हराम है इस पर
पाकिस्तान के लेखक विचारक हसन निसार ने अपनी बेबाक राय रखते हुए कहा था कि
पाकिस्तान और हिंदुस्तान का इस्लाम दुनिया से अलग है| यह लोग खजूर खाना आज भी
सुन्नत मानते है जबकि यह नहीं जानते कि अरब में सेब और पपीता नहीं होता था जिस वजह
से वो लोग खजूर खाते थे| निसार आगे कहते है कि जब दीन और सियासत अनपढ़ लोगों के
हाथों में हो तो फतवों के अलावा उस देश में कुछ नहीं हो सकता| जिसे स्वास्थ अच्छी
जीवन शेली चाहिए वो विज्ञान पढ़ ले जिसे दीन के सिवा कुछ ना चाहिए वो कुरान पढ़ ले|
किन्तु तस्वीरों को भी मजहब में हराम कहने वाले लोग टीवी पर बैठकर भोले भाले लोगों
को अपने फरमान भी ना सुनाये|....lekh by rajeev choudhary
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