पिछले कई दिन से भारत के नेता एसी रूम में बैठकर
भले ही मोदी की डिग्री को लेकर ट्विटर पर शोर मचा रहे हो! किन्तु इन दिनों चीन
अपनी नापाक चाल के जरिये जल थल और नभ में भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है| पर
इसमें एक है कि भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं भारत देश 100 करोड़ से ज्यादा
देशवासियों की माँ है| लेकिन सत्य यह भी है जिस माँ के बच्चे अपने अपने स्वार्थ के
लिए हरदम लड़ते है, उस माँ की ममता का क्या हाल होता है सब जानते है? और हम गुलामी
के रूप में भुगत भी चुके है आज विश्व स्तर पर भारत के बढ़ते क़दमों को चीन और पाक
देख नहीं पा रहे है| दरअसल चीन खुद को अमेरिका के समकक्ष रखना चाह रहा है लेकिन जब
उसकी तुलना भारत की जाती है तो वो बोखला सा जाता है| यही हाल अपने दुसरे पड़ोसी
पाकिस्तान का है जो बिलकुल उन दो भाइयों में एक उसके जैसा है जो बटवारे में मिली पैत्रक
सम्पत्ति नशे और जुए में उड़ाकर दुसरे भाई की सम्पन्नता से जलन करने लगता है और नेपाल
की हालत आज एक कुपुत्र जैसी है जो माँ को साथ तो नहीं रख सकता लेकिन माँ पर अपना
हक बताकर बीच चोराहे पर उसकी ममता पर हमला कर सकता है| जिसका ताजा उदहारण नेपाल के
राष्ट्रपति द्वारा भारत का दौरा रद्द करना और अपने राजदूत को वापिस बुलाया जाना
है|
वर्षो से भारत के पालने में पला नेपाल, आज
धार्मिक, सांस्कृतिक समानता को भूल पीढ़ियों से एक रीतिरिवाज, रामायण महाभारत व्
पुराणों की कहानियों से लेकर भारत के साथ अपने मिलते जुलते धार्मिक सामाजिक अस्तित्व
को नकारने चला है| किसके लिए, चीन के कम्यूनिस्ट शासन के लिए? पर जिस शाशन ने अपने
लोगों के अधिकार जीने की स्वतंत्रता छीन ली हो वो भला नेपाल को क्या दुलार देगा?
बस भारत को नीचा दिखाने के लिए नेपाल का इस्तेमाल करेगा| जैसे पाकिस्तान का कर रहा
है| पाकिस्तान तो एक किस्म से साहूकार के पैसे से अय्याशी करता हुआ अय्याश है यह
में नहीं बल्कि पाकिस्तान के ही विचारक हसन निसार का कहना है वो कहते है कि आज जिस
चीनी निवेश के नाम पर पाक की सरकारे और फौज खुश हो रही है वो दिन भी जल्दी ही आएगा
जब पाकिस्तान में हर पांचवा आदमी चीन का दिखाई देगा|
हाल ही में नेपाली प्रधानमंत्री केपी
शर्मा ओली ने चीन के साथ दस समझौतों पर हस्ताक्षर किये। चीन अब नेपाल को तेल की आपूर्ति
करने के लिए तैयार हो गया है। साथ ही चीनी रेलवे का विस्तार भी तिब्बत नेपाल
बॉर्डर के रास्ते काठमांडू, पोखरा और उसके आगे लुंबिनी तक किया जाएगा।
लुंबिनी भारत नेपाल सीमा से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर
स्थित है। खास बात यह है कि भारत में कुछ लोग इस समझौते
को मधेसी आंदोलन से भी जोड़ कर देख रहे हैं। उनका सोचना है कि अगर मधेस
आंदोलन की वजह से जरूरी वस्तुओं का अभाव नहीं होता तो नेपाल का रुख चीन की
ओर नहीं होता। किन्तु सत्य यह है कि भौगोलिक-आर्थिक कठिनाइयों की वजह
से चीन से वस्तुओं का आयात नेपाल को भारत की तुलना में बहुत महंगा पड़ेगा|
क्योकि अभी तक नेपाल भारत का कोलकाता बंदरगाह इस्तेमाल करता था जो नेपाल से 1000
किमी. दूर किन्तु अब नेपाल ने चीन के ग्वंग्झू बंदरगाह के लिए समझोता किया है वो
नेपाल से 3000 हजार किमी. दूर है|
एक अजीब शोर सुनाई देता है कि चीन भारत
से काफी मजबूत देश है| हो सकता है पर इतना भी मजबूत नही जितना शोर है| भारत से 60
अरब डालर प्रतिवर्ष कमाने वाले चीन को या उसकी कम्युनिस्ट प्रणाली को रोकना इतना
बड़ा काम भी नहीं है| जितना भारत में वामपंथी इसका प्रचार कर रहे है| तराई के
इलाकों में बसे मधेसी एक तरह से भारत की दीवार है जिसे भेदना इतना आसान नहीं है|
समय के साथ भारत ने हमेशा नेपालियों के हितों की रक्षा की उन्हें रोजगार दिया
बराबरी का सम्मान सत्कार दिया| किन्तु अब नेपाल जिस तरीके से चीन की गोद में खेल
रहा है उसका परिणाम नेपाल को चीन द्वारा भुगतना पड़ेगा| अब यह सिर्फ समय ही
बताएगा कि नेपाल और पाक किस तरह से उसके दो बड़े पड़ोसी देशों के हितों के बीच
समन्वय बना पाएगा। किसी भी तरह का असंतुलन उनके लिए विनाशकारी साबित
हो सकता है। अगर दो हाथी लड़ाई या प्रेम करते हैं तो नुकसान वहां मौजूद
घास का ही होता है। लेख राजीव चौधरी
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