पुनर्जन्म एक ऐसा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक विषय
है जो हमेशा से मानने न मानने के विवाद का विषय रहा है. मसलन पुनर्जन्म को मानने
वाले लोग भी रहे है और न मानने वाले भी. पर क्या पुनर्जन्म का कोई वैज्ञानिक आधार
है? यदि इस सवाल पर आगे बढे तो भारतीय फोरेंसिक वैज्ञानिक विक्रम राज
सिंह चौहान यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि पुनर्जन्म वास्तविक है. उन्होंने
भारत में फॉरेन्सिक वैज्ञानिकों के अगस्त 2016 में एक राष्ट्रीय सम्मेलन में अपने
कुछ निष्कर्ष भी प्रस्तुत किए थे.
चौहान ने एक छह वर्षीय लड़के की खोज की थी, जो कहता था कि वह अपने पिछले जन्म को
याद करता था. वह लड़का अपना पूर्व जन्म के साथ अपने माता-पिता और उस विद्यालय का
नाम भी जानता था जहाँ वह पढता था. घटना 10 सितंबर, 1992 की थी उस समय वह अपनी बाइक से घर पर जा रहा था. दुर्घटना हुई
लडकें के सिर में चोटें आई और अगले दिन मर गया.
इस घटना के बाद लड़के का अगला जन्म हुआ और लडकें
ने परिवार को अपनी कहानी सुनाई, उसके पिता ने बताया कि उनके बेटे ने दावा किया कि
जब वह दुर्घटना हुई थी, तब उसकी किताबों पर खून के निशान लगे थे
उसने यह भी बताया कि उसके पर्स में कितना पैसा था. जब यह दावा उसकी पूर्व माँ तक
पहुंचा तो उसने रोना शुरू किया और कहा कि उसने अपने बेटे की याद में उसकी खून के
दाग लगी किताबें और उसका पर्स ज्यों का त्यों रख लिया था. यही नहीं लडकें ने यह भी
बताया था कि उस दुर्घटना के दिन उसनें दुकानदार से उधार में एक रजिस्टर भी खरीदा
था.
सबसे पहले विक्रम चौहान ने इस कहानी पर विश्वास
करने से इनकार कर दिया लेकिन वह अंततः उसने जिज्ञासु बनकर इस मामले की जांच करने
का फैसला किया. चौहान ने उस दुकानदार के उधारी की बही चेक की तो 10 सितंबर, 1992 को लड़के के नाम पर एक रजिस्टर
खरीदा गया था. चौहान ने दोनों लड़कों की लिखावट का नमूना लिया और उनकी तुलना की.
उन्होंने पाया कि वे समान थी. यह फोरेंसिक विज्ञान का एक बुनियादी सिद्धांत है कि
कोई भी दो लिखावट शैली समान नहीं हो सकती है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की लिखावट में विशिष्ट विशेषता होती है. एक
व्यक्ति की लिखावट शैली व्यक्तिगत व्यक्तित्व लक्षणों से तय होती है. चौहान ने
इसके बाद कहा ऐसा माने यदि आत्मा एक व्यक्ति से दूसरे में स्थानांतरित होती तो
मन-और इस तरह लिखावट एक ही रहेगी. कई अन्य फोरेंसिक विशेषज्ञों ने इस हस्तलिपि के
नमूने की जांच की और वे सहमत हुए कि वे समान थे. जाँच जब आगे बड़ी तो वैज्ञानिक जो बच्चे
के बोद्धिक विकास की निगरानी कर रहे थे. के सामने सबसे चौकाने वाला पहलू यह था
बच्चा इस जन्म में गरीब परिवार में था जहाँ वह कभी स्कूल नहीं गया लेकिन जब उसे
अंग्रेजी और पंजाबी वर्णमाला लिखने के लिए कहा गया तो उसने उन्हें सही तरीके से
लिखा.
इयान स्टीवेन्सन एक मनोचिकित्सक थे जिन्होंने
50 वर्षों के लिए वर्जीनिया स्कूल ऑफ मेडिसिन के लिए काम किया था. वह 1957 से 1967
तक मनोचिकित्सा विभाग के अध्यक्ष थे, 1967 से 2001 तक कार्लसन के मनोचिकित्सा के प्रोफेसर और अपनी मौत से
2002 तक मनोचिकित्सा के एक शोध प्रोफेसर थे. उन्होंने अपने पूरे जीवन को पुनर्जन्म
शोध में समर्पित किया था. उन्होंने निम्न
सवाल जैसे क्या मृत्यु के बाद जीवन का कोई ठोस प्रमाण है? क्या पुनर्जन्म वास्तव में होता है? क्या मृत्यु के बाद जीवन है और क्या वह
जीवन वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है? इन सभी सवालों के
बाद वह अंत
में अपना पक्ष रखते हुए कहते है कि मौत का अनुभव, मौत के दृश्य,
आत्मिक चेतना, यादें और शारीरिक चोटें एक जीवनकाल से
दूसरी तक स्थानांतरित हो सकती हैं.
इयान स्टीवेन्सन ने दुनिया भर के बच्चों के
3,000 मामलों की जांच की जो पिछले जन्मों को याद करते हुए पाए गये 40 वर्षों की
लम्बी अवधि में बड़े पैमाने पर इयान ने अनेक देशों की यात्रा की. उनके सूक्ष्म शोध
ने कुछ सबूतों को प्रस्तुत किया कि ऐसे बच्चों में कई असामान्य क्षमताएं, बीमारियाँ, और आनुवंशिक लक्षण पूर्व जन्म के साथ
सामान पाए गये.
स्टीवेन्सन समस्त जन्मों को पूर्वजन्म बताते
हुए अपना पक्ष रखते है कि आमतौर पर बच्चे दो और चार की उम्र के बीच अपनी यादों के
बारे में बात करना शुरू करते हैं जब बच्चा चार और सात साल के बीच होता है तो ऐसे
समय में शिशु की यादें धीरे-धीरे कम होती जाती हैं. हमेशा कुछ अपवाद होते हैं, जैसे कि एक बच्चा अपने पिछले जीवन को
याद रखना जारी रखता है लेकिन इसके बारे में विभिन्न कारणों से नहीं बोल रहा है.
अधिकांश बच्चे अपनी पिछली पहचान के बारे में
बहुत तीव्रता और भावना के साथ बात करते हैं. अक्सर वे खुद के लिए नहीं तय कर सकते
हैं कि दुनिया असली है या नकली. वे एक तरह का दोहरा अस्तित्व अनुभव करते हैं, जहां कभी-कभी एक जीवन अधिक महत्वपूर्ण
होता है, और कभी-कभी दूसरा जीवन. बच्चें की यह
अवस्था उस समय ऐसी होती हैं जैसे एक समय में दो टीवी पर अलग-अलग धारावाहिक देखना.
लेकिन समय के साथ एक स्मृति धुंधली हो जाती है.
इसके बाद अगर व्यवहार से उदाहरण ले तो यदि
बच्चे का जन्म भारत जैसे देश में बहुत गरीब और निम्न जाति के परिवार में हुआ है जबकि
अपने पिछले जीवन में उच्च जाति का वह सदस्य था, तो यह अपने नए परिवार में असहज महसूस कर सकता है. बच्चा किसी के
सामने हाथ पैर जोड़ने से मना कर सकता है और सस्ते कपड़े पहनने से इनकार कर सकता है.
स्टीवनसन इन असामान्य व्यवहारों के कई उदाहरण बताते हैं. 35 मामलों में उन्होंने
जांच की, जिन बच्चों की मौत हो गई उनमें एक
अप्राकृतिक मौत का विकास हुआ था. उदाहरण के लिए, यदि वे पिछली जिन्दगी में डूब गए तो उन्होंने अक्सर पानी में नदी आदि
में जाने के बारे में डर व्यक्त किया. अगर उन्हें गोली मार दी गई थी, तो वे अक्सर बंदूक से डर सकते हैं. यदि
वे सड़क दुर्घटना में मर गए तो कभी-कभी कारों, बसों या लॉरी में यात्रा करने का डर पैदा होता था.
यही नहीं स्टीवेन्सन ने अपने अध्यन में पाया कि
शुद्ध शाकाहारी बच्चा किसी मांसहारी परिवार में जन्म ले तो वह मांसाहार के प्रति
अरुचि पैदा कर अलग-अलग भोजन खाने की इच्छा व्यक्त करता हैं. अगर किसी बच्चे को शराब, तम्बाकू या मादक पदार्थों की लत तो वे
इन पदार्थों की आवश्यकता व्यक्त कर सकते हैं और कम उम्र में अभिलाषाएं विकसित कर
सकते हैं. अक्सर जो बच्चे अपने पिछले जीवन में विपरीत लिंग के सदस्य थे, वे नए लिंग के समायोजन में कठिनाई
दिखाते हैं. लड़कों के रूप में पुनर्जन्म होने वाली पूर्व लड़कियों को लड़कियों के
रूप में पोशाक करना या लड़कों की बजाए लड़कियों के साथ खेलना पसंद हो सकता है.
स्टीवेन्सन कहते है कि पुनर्जन्म सिर्फ एक गान
नहीं है, यह सबूत के छोटे-छोटे टुकड़े जोड़कर एक बड़ा शोध का विषय है. यह अलग-अलग धार्मिक मान्यताओं के मानने न मानने की सिद्धांत नहीं है.
यह एक विषय है जो पुनर्जन्म के सम्बन्ध
में सभी अवधारणाओं के साथ आत्मा स्थानान्तरण के लौकिक सत्य को स्वीकार करता है...चित्र साभार गूगल- लेख राजीव चौधरी
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