यह
आर्यसमाज के लिए गौरव है कि सबसे अधिक देश , धर्म पर बलिदानी
आर्यसमाज से प्रेरित थे , मेरा
शाहजहांपुर भी आर्यसमाज के तेज से अछूता नही रहा और बलिदानियो की नगरी बनने का
सौभाग्य प्राप्त किया ।
विशेषकर
वर्तमान में जो तिथियां चल रही है वह महान बलिदानों की गवाह है ।
आज
के दिन ही ( ब्रम्हचारी ब्रम्हदत्त ) ने बलिदानी परम्परा
का निर्वहन किया था ।
एक थे ब्रह्मदत्त .....
उनके
समकालीन उन्हे सुखदेव बुलाते थे ..
प्रतिभा
के विलक्षण , साहसी प्रवृति और
ऋषिवरदेवदयानंद के सच्चे सैनिक
बात
उनके अंतिम व सोलहवे बंसत की करते है
स्थान
गुरुकुल महाविद्यालय रुद्रपुर था समय ब्रह्ममुहुर्त का था अग्निहोत्र विधिवत
सम्पन्न कराया लेकिन आज की यज्ञीय व्यवस्था अन्य दिनो की अपेक्षा भिन्न व आकर्षक
थी क्योकि यह यज्ञ उनका अंतिम यज्ञ था इसके उपरान्त तो इन्हे घृत सामग्री की भाँति
अपने जीवन की हवि पक्षियो के परित्राण के लिए बलिदान यज्ञ मे समर्पित करनी थी
गुरुकुलीय छात्रो को स्वाध्याय हेतु बिठाकर एकान्त प्रदेश मे वे अध्ययन के लिए
बैठना चाहते थे कि गुरुकुल के विशाल सरोवर के किनारे मनुष्य की अस्पष्ट आकृति
कुहरे मे दिखाई पङी , कौन है ? कैसे है ? क्या है ? कि जिज्ञासा ने कर्तव्य निर्वाह के लिए प्रेरित किया वह
देवदयानंद का सैनिक अकर्मण्य बन भला कैसे बैठसकता था पास जाकर देखा एक आखेटक अपनी
बन्दूक लिए पक्षियो को निशाना बना रहा था( जानकारी के लिए बता दू गुरुकुल मे पक्षी
विहार था जहा प्रतिवर्ष असंख्य विदेशी पक्षी आते थे ) तत्काल प्रतिकार के ध्येय से
अनुरोध पूर्ण वे बोले कि ये आश्रम है पक्षी विदेशी है इन्हे मारना जघन्य अपराध
होगा अतः आप तत्काल चले जाओ , मुस्लिम आखेटक ने अनसुना कर
बाधक न बनने को कहा अन्यथा मे तुम भी मारे जाओगे ...,
वह
षोडश वर्षीय नवयुवा इस गीदङ भभकी से भयभीत होने वाला कहा और बोले " खबरदार जो
मेरे रहते इन विदेशी पक्षियो पर फायर किया "
पर
उस क्रूर आततायी का हूदय परिवर्तन होने के स्थान पर मात्र लक्ष्य ही परिवर्तित हुआ
अब लक्ष्य पक्षी नही ब्रह्मचारी ब्रह्मदत्त था और पहला प्राण घातक फायर कर दिया जब
उनको शौर्य पराक्रम की खुली चुनौती दी जाने लगी तो उन्होने पक्षियो की प्राणार्पण
से रक्षा करना ही वीरोचित कर्तव्य लगा सो निश्चय कर लिया अब तो किसी भी मूल्य पर
पक्षियो की हत्या नही होने दूगा उस आत्मबल के धनी अदम्य साहसी ब्रह्मचारी ने
निहत्थे व घायल होते हुए भी आततायी को भगाना चाहा पर आततायी ने कुछ दूर जाकर दूसरा
फायर भी कर लिया जो हृदय विदीर्ण कर गया रक्तधारा ने परिधान व भूमि को रंजित कर
दिया इतना सबकुछ होते हुये भी कोई व्यथा कथा नही और अपने बङे भाई (मेरे पिता जी )
की गोदमे "ओ3म् " ध्वनि कर जाचुके
थे एक असीम और हृदय विदारक माहौल चहुओर करुणा विलाप की ध्वनिया पर ब्रह्मदत्त तो
अपने पार्थिव शरीर से असंख्य पक्षियो की जीवन रक्षा करके कर्तव्य निर्वाह का पाठ
पूरा कर चुके थे .....22 दिसम्बर के दिन मात्र 16 वर्ष की अवस्था मे ही
......है लिए हथियार दुश्मन ताक
में बैठा उधर,
और
हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर
जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और
भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी
की तमन्ना अब हमारे दिल में है.......
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