ये है 21वीं सदी
का डिजिटल इंडिया. अग्नि-5 और खुद का नेवीगेशन सिस्टम स्थापित करने वाला भारत कौन
कहता है यहाँ ज्ञान की कमी है. अनपढ़ से अनपढ़ और पढ़े लिखे जब एक कतार में खड़े में
हो तो समझ लेना या तो मतदान है या फिर अन्धविश्वास. हमने सुना था समृद्धि
अंधविश्वास भी लेकर आती है. लेकिन गरीबी अन्धविश्वास छोड़ना नही चाहती हम सब की
रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कुछ न कुछ सुख दुःख जरुर होता है. हम इसके बारे में सोचना
छोड़ दें तो शायद ही कुछ बदले किसी भी अन्धविश्वास से अच्छी किस्मत हमेशा नहीं आती.
. इन सबके बाद भी यदि हम कभी न खत्म होने वाले सुख और शांति की तलाश में किसी भोपे
या बाबा की शरण में जा रहे हैं तो ध्यान रखना वहां मौत भी मिल सकती है.
आस्था और
अंधविश्वास के बीच की बारीक लकीर पार करनी हो तो राजस्थान के भोपे (बाबाओं) के
डेरे में आकर देखे. में खुद दैनिक भास्कर की यह रिपोर्ट देखकर सन्न रह गया कि
आधुनिक भारत में आज भी रोग दूर करने के मध्य कालीन हिंसात्मक तरीके और अन्धविश्वास
का साम्राज्य कई जगह ज्यों का त्यों खड़ा है. निश्चित ही यह खबर समाज को पीछे
धकेलने वाले, न जाने कितनी महिलाओं का जीवन बर्बाद कर देने
वाले भोपों अर्थात बाबाओं के सच पर आधारित है. ये भोपे दावा करते हैं कि उनके पास
हर दुख-दर्द की दवा है. चाहे बीमारी हो या डायन का साया. हैरानी तो यह है डायन कौन
है, यह भी ये खुद तय कर देते हैं. इन्हीं के सुनाए फरमानों ने भीलवाड़ा,
चित्तौड़गढ़ व राजसमंद जिलों में पिछले कुछ सालों में 105 महिलाओं को
डायन बना दिया. 22 महिलाओं को गांव से बाहर निकाल दिया गया. आठ को पीट-पीटकर मार
डाला गया.
जहाँ सारा देश
नारी सशक्तिकरण और महिला आरक्षण विधेयक की बात कर रहा वही आज ये भोपे महिलाओं को
देखते ही कह रहे है इनै तो डायन खा री है. अख़बार लिखता है कि चित्तौड़ के पास
पुठोली गांव में बाकायदा वार्ड बनाकर दुख-दर्द के मरीजों का इलाज करने वाला
सिराजुद्दीन भोपा तो इलाज के नाम पर महिलाओं के शरीर पर हाथ घुमाता है तो भीलवाड़ा
के भुणास में देवकिशन भोपा ने तो डायन भगाने के नाम पर डंडे बरसाता है. मामला यही
नहीं कुछ भोपे तो महिलाओं के बाल तक उखाड़ लेते है. भीलवाड़ा जिला मुख्यालय से 40
किलोमीटर दूर चलानिया गांव में खड़ी पहाड़ी पर भैरूजी का मंदिर है, जिसे
चलानिया भैरूजी के नाम से जाना जाता है. बंक्यारानी में भोपों का कारोबार बंद होने
के बाद अब उनका नया ठिकाना चलानियां गांव बना है. यहां घर-घर भोपे हैं, बारी-बारी
से मंदिर में इनकी ड्यूटी लगती है. हर शनिवार को यहां रातभर जागरण चलता है,
शराब के नशे में चूर अनपढ़ भोपे डायन निकालने का दंभ भरते हुए महिलाओं
को जमकर प्रताड़ित करते हैं.
मामला सिर्फ
प्रताड़ना तक ही सिमित नही है कई बार अन्धविश्वास का यह कारोबार महिलाओं की जान तक
लेने से नहीं हिचकता. 3 अगस्त को अजमेर के कादेड़ा में कान्यादेवी को डायन बताकर
मार डाला गया. तो भीलवाड़ा के भौली में डायन बताकर रामकन्या को बीस दिनों तक अंधेरी
कोठरी में कैद रखा. पुलिस ने आरोपियों को तो पकड़ लिया. लेकिन मामले के असली आरोपी
उन भोपों तक नहीं पहुंची, जिन्होंने महिलाओं को डायन करार दिया
था. 23 अप्रैल 2015 को डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम कानून बनने के बावजूद
राजस्थान के 12 जिलों में डायन प्रताड़ना के 50 केस सामने आ चुके हैं. ये वो मामले
हैं, जो दर्ज हैं. जो दर्ज नहीं हो पाए उनका क्या वो मामले नही थे.?
अख़बार लिखता है
कि राजस्थान में 90 फीसदी मामलों में उन्हीं महिलाओं को डायन बनाया गया है जो दलित
और गरीब हैं तथा जिनके पति की मौत हो चुकी है. मात्र तीन जिलों में डायन प्रताड़ना
का शिकार हुई 46 महिलाओं में से 42 महिलाएं ऐसी थी जो दलित, गरीब और
विधवा थी. एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिला जिसमें किसी सवर्ण अथवा अमीर वर्ग की महिला
को डायन बताया गया हो. अब इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि अशिक्षा और
गरीबी का इससे विकृत रूप क्या होगा भला? हालाँकि डायन
प्रताड़ना के अधिकांश मामलों में संपत्ति और जमीन हड़पने के लिए नाते-रिश्तेदार
साजिश रचते हैं. कई जगह पड़ोसियों ने ही अपनी दुश्मनी निकालने के लिए इन पर डायन का
तमगा लगा दिया. गांव में किसी की बकरी मर गई या भैंस बीमार हो गई, किसी
के बच्चा नहीं हुआ या फिर किसी की स्वभाविक मौत हो गई. देखने में चाहे ये बातें
अलग-अलग हो, लेकिन आज भी इन चीजों के लिए गांव की किसी
कमजोर महिला को शिकार बनना पड़ता है
प्रदेश में सख्त
कानून बनने के बावजूद हर साल दर्जनों महिलाओं को अंधविश्वास भरी ज्यादती डायन
प्रथा का शिकार होना पड़ रहा है. डायन के नाम पर नंगा करके गांव में घूमाने,
मुंडन कर देने, गर्म अंगारों में हाथ-पैर जला देने और
पीट-पीटकर मार डालने जैसी भयावह यातनाएं दी जाती हैं. यह कुप्रथा हर साल कई
महिलाओं की जिंदगी लील रही है. स्मरण रहे यह सब घटनाएँ उस देश में घटित हो रही है
जिसमें कुछ दिन बाद बुलेट ट्रेन चलने वाली है. और सोचना मिटटी
की देवी को नौ दिन पूजने वाले आखिर इन जिन्दा देह पर हो
रहे अत्याचार पर मौन क्यों?
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