राजनीतिक टकराव और मजहबी
विस्तार की भेट चढ़े केरल प्रान्त में आज जो कुछ भी घट रहा है दरअसल इसकी पटकथा
लगभग एक सदी पहले लिखनी शुरू हो गयी थी. लाशे गिरती गयी. धर्म खंडित होता गया. 1947
में देश के लोगों ने राजनैतिक स्वतंत्रता का सूरज तो देखा पर धार्मिक स्वतंत्रता
के माहौल में खुली साँस ना ला पाए जिस कारण आज भारत के दक्षिण
स्थित केरल आज किस तरह जेहादी विषबेल की जकड़ में फंस चुका
है, वह हाल ही की एक घटना से पुन: रेखांकित हो गया. यहां के कासरगोड़ जिले में कट्टरपंथी विचारधारा के प्रभाव में एक सड़क का नाम ‘‘गाजा स्ट्रीट’’ रखा गया है. भारत के जिस भू-भाग को उसकी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के लिए ‘‘भगवान की धरती’’
की
संज्ञा दी गई, आज वहां मजहबी हिंसा अपने उत्कर्ष पर है. हमेशा
से एक दुसरे के राजनितिक धुर विरोधी दल और मीडिया सच से दूर ले जाती रही जिसका
नतीजा आज हम सबके सामने है और ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सच क्या है और क्या
इसका अतीत से कुछ लेना है?
दरअसल अतीत की घटनाएँ इतना ह्रदय
विदारक रही कि सुनकर खुशनुमा माहौल में भी आँखे गीली कर जाये. तो चलते एक सदी पीछे
जब अगस्त 1921 में केरल के मालाबार में मालाबार में मोपला मुस्लिमों ने स्थानीय हिन्दुओं पर हमला कर दिया. मजहबी उन्माद
में सैंकड़ों हिन्दुओं की नृशंस हत्या कर दी गई.
उन्हें इस्लाम अपनाने या मौत चुनने
का विकल्प दिया गया. हजारों का मतांतरण किया गया, गैर-मुस्लिम
महिलाओं का अपहरण कर बलात्कार किया गया, संपत्ति लूटी और नष्ट कर दी गई.
हिन्दुओ पर जो अत्याचार हो रहा था काफी
समय तक उसकी खबरें पंजाब में प्रकाशित नहीं हुई. हाँ बम्बई के समाचार पत्रों में
कुछ खबर छापी जा रही थी लेकिन उस समय का तथाकथित सेकुलिरज्म लोगों को यह कहकर
गुमराह कर रहा था कि यह काम हिन्दू और मुस्लिमों के बीच परस्पर मेलजोल की खाई
खोदने के लिए किया जा रहा है. इस मजहबी तांडव खबर बम्बई से दीवान राधाकृष्ण जी ने
समाचारपत्रों को इकट्ठा कर पंजाब रवाना की तो यहाँ लोगों के ह्रदय हिल उठे.
16 अक्तूबर 1921 शिमला में आर्य समाज
का अधिवेशन हुआ और अधिवेशन में सभी के द्वारा नम आँखों से एक प्रस्ताव पास किया
गया जिसका उद्देश्य था कि केरल के इलाके मालाबार में मुसलमानों द्वारा जो अत्याचार
करके हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बनाया गया उन्हें फिर शुद्धी करके उनके मूल धर्म
में वापिस लाया जाये. प्रस्ताव के अनुसार यह अपील भी प्रकाशित की गयी कि जितना
शीघ्र हो सके कि पीड़ितों का उचित खर्च भी उठाया जाये ताकि कोई हिन्दू जबरन अपने
धर्म से पतित न किया जाये. इसका दूसरा उद्देश्य यह था कि गृहविहीन, दीनहीन, असहाय
बनाये गये लोगों को सहायता देकर जीवित रखा जाये और भविष्य में ऐसे कारण न उपजे
इसके लिए मालाबार की हिन्दू सोसाइटी को स्थिर किया जाये.
हाय रे भारत के भाग्य तुझे अपने ही देश
अपनी संतान की दुर्दशा पर इस कदर भी रोना पड़ेगा यह सोचकर तत्कालीन आर्य समाज के
पदाधिकारियों ने कार्य करना आरम्भ किया पंडित ऋषिराम जी को 1 नवम्बर को मालाबार
भेजा गया अक्तूबर मास में 371 रूपये दान प्राप्त हुआ अत: उन रुपयों और अपने बुलंद
होसलो के बल पर आर्य समाज के वीर सिपाही मोपला विचाधारा से लड़ने निकल चले.
नवम्बर मास तक वहां हिन्दुओं को एकत्र करने का
कार्य जारी रहा. लेकिन इसमें एक अच्छी खबर यह थी कि आर्य समाज से जुड़े सभी लोगों
ने केरल के पीड़ित समाज के लिए अपने खर्चो में कटोती कर 1731 रूपये ओर भेज दिए. उस
समय लाहौर से प्रकाशित अख़बार प्रताप ने लोगों के मन को हिला डाला और आर्य
समाज के इस कार्य के लिए प्रताप अख़बार ने जो अलख पुरे पंजाब प्रान्त में जगाई वो
अपने में भारतीय पत्रकारिता की सुन्दर मिशाल है. 29 नवम्बर को आर्य समाज ने पुरे
तिर्व वेग से लोगों को जोड़ना आरम्भ कर दिया. लेकिन लोग मोपला विद्रोहियों से इस
कदर डरे हुए थे कि राहत केम्पों में आने से कतरा रहे थे तब ऋषिराज जी ने वहां की
स्थानीय भाषा में पम्पलेट प्रकाशित कराए. अनेक जातीय संगठनो की सभाओं में जाकर
व्याख्यान दिए लोगों को समझाया गया कि शुद्धी द्वारा उनका वापिस अपने मूल धर्म में
आने का द्वार खुला है.
फरवरी 1922 में आर्यगजट में संपादक
लाला खुशहालचंद जी, पंडित मस्ताना जी, पंजाब से मालाबार रवाना हुए आर्य महानुभावों
के इस कार्य से उत्साहित आर्यजन लाहौर, बलूचिस्तान समेत अनेक इलाकों में केरल के
हालात पर सभाए आयोजित कर रहे थे. मालाबार की दशा यह थी कि घरों से भागे हिन्दुओं
के खेत खाली पड़े थे, कुछ घर जले थे और कुछ जले घरों का शमशान बना था. 12 अक्तूबर
1922 तक आर्य समाज से जुडा बच्चा-बच्चा तन-मन-धन से इस पावन कार्य में सहयोग करने
लगा. जिस कारण वहां 70 हजार 911 रूपये खर्च किये जा चुके थे. लगभग तीन हजार से
ज्यादा लोगों की शुद्धी कर उन्हें वापिस अपने धर्म में लाने का कार्य हो चूका था.
मालाबार से कालीकट भागे हिन्दुओं को वापिस बसाया जाने लगा.
शेषांश अगले अंक में- विनय आर्य
लग रहा है हम अपने संकल्प को भूले हैं पुन: संकल्प दोहराने की आवश्यकता है !! इतिहास को जो समाज भूल जाला उस का आस्तित्व खतरे में गेता है !!
ReplyDeleteसही कहा उपेन्द्र जी
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