रेयान इंटरनेशनल स्कूल में 7 साल के बच्चे के साथ यौन शोषण के बाद
हत्या करने वाले स्कूल बस कंडक्टर अशोक ने अपना गुनाह कबूल करते हुए कहा कि मेरी
बु( भ्रष्ट हो गयी थी इस कारण मैंने इस कृत्य को अंजाम दिया। इसके अगले दिन दिल्ली
के गांधीनगर इलाके के रघुवरपुरा में एक निजी स्कूल में सिक्योरिटी गार्ड द्वारा एक
8 साल की
बच्ची को रेप का शिकार बनाना इन घटनाओं के तमाम बिन्दुओं पर सवाल उठाता है कि
हमारा समाज कहाँ जा रहा है?
बस कंडक्टर अशोक यौन शोषण में नाकामयाब हुआ उसने प्रद्युम्न का गला रेत
दिया, दूसरे
स्कूल में गार्ड कामयाब हुआ उसने एक बच्ची का जीवन तबाह कर दिया। पिछले वर्ष के
आखिर में महाराष्ट्र के नेरुल इलाके में स्थित डळड स्कूल में एक बच्ची के साथ उसका
अध्यापक ही जबरदस्ती करता रहा। आखिर हमारे समाज में बाल यौन शोषण के मामले इस
रफ्तार से क्यों बढ़ रहे है? जैसे-जैसे
हमारा समाज अधिक शिक्षित और प्रगतिशील होता जा रहा है वैसे-वैसे ही समाज में बाल
यौन शोषण, उसके बाद
हत्या के आंकडे़ सरपट भागते दिखाई दे रहे हैं। आखिर क्यों हर रोज लोगों की बुद्धि भ्रष्ट
हो रही है इसका कारण जानना नितांत जरूरी है।
पिछले वर्ष ही एक शर्मनाक खबर आई थी कि एक भाई ने अपनी बहन का रेप इसलिए कर
दिया, क्योंकि
उसने इंटरनेट पर कुछ देखा लेकिन उसे समझ नहीं आया। उस चीज को आजमाने के लिए उसने
ऐसा किया। दरअसल हमारे देश का चाहे प्रिंट मीडिया हो या इलैक्ट्रोनिक, सभी जगह उत्तेजक व उग्र सामग्री की कोई
कमी नहीं है। विज्ञापन चाहे किसी भी वस्तु का हो, लेकिन उस में नारी की कामुक अदाएं व
उसके अधिक से अधिक शरीर को दिखाने पर जोर रहता है। फुटपाथ पर अश्लील साहित्य व
ब्लू फिल्मों की सीडी, डीवीडी
आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। बाकी कसर मोबाइल व फ्री इंटरनैट ने पूरी कर दी है।
जहां प्रतिदिन हजारों लोग अश्लील सामग्री का अवलोकन करते हैं। नकारात्मक विचार
हमेशा मन में जड़ें जल्दी जमाते है। कई बार यह नकारात्मकता प्रयोग को ठेलने लगती
है।
भारत की निर्वाचित सरकारें केवल आर्थिक बदलाव लाना चाहती हैं। स्वतंत्रता
के बाद हमारे देश में विदेशी पूंजी के साथ ही वहां की विकृत संस्कृति भी आ धमकी है, जिसके चलते हमारी दमित इच्छाएं सामने
आने लगी हैं तथा हमारे मनोविकार भी बढ़ते चले जा रहे हैं। हम अपने परम्परागत नैतिक
मूल्यों व समर्द्ध संस्कृति को लेकर बहुत ही आत्ममुग्ध हैं, जबकि हमारी सांस्कृतिक परम्पराएं अब
केवल सांस्कृतिक समारोहों और साहित्य तक ही सीमित रह गई हैं, जोकि आज के इंटरनैट के युग में बहुत
पिछड़ी मानी जाती हैं। जिस कारण आज का युवक गलत आचरण करने से भी नहीं हिचकता।
प्रद्युमन के हत्यारे को कड़ी सजा मिले, स्कूल के खिलाफ भी कड़ी कारवाही हो, लेकिन साथ में चर्चा इस बात पर भी हो
कि फिर ऐसे काम न हों जिससे सभ्य समाज को बार-बार शर्मशार न होना पड़ें। आज
प्रद्युम्न का हत्यारा बस कंडक्टर सलाखों के पीछे है यमुनापार स्कूल में बच्ची से
दुष्कर्म करने वाला गार्ड भी पकड़ा गया। समाज का एक हिस्सा समझ रहा होगा चलो अब कुछ
नहीं होगा तो यह सिर्फ भूल है क्योंकि कल कोई दूसरा किसी मासूम का जीवन वासना की
तृप्ति के लिए लील रहा होगा। दुनिया में यौन शोषण के शिकार हुए बच्चों की सबसे बड़ी
संख्या भारत में है लेकिन फिर भी यहां इस बारे में बात करने में हिचक दिखती है।
भारत में बाल यौन शोषण एक महामारी की तरह बन चुका है। इस समस्या को गोपनीयता और
इन्कार की संस्कृति ने ढं़क रखा है और इस सब में सरकारी उदासीनता भी खारिज नहीं की
जा सकती है।
अभी सितम्बर माह के पहले हफ्ते में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के एक कथित
मामले में दिल्ली पुलिस ने ब्रिटिश नागरिक को पॉस्को एक्ट के तहत गिरफ्तार किया
है। नेत्रहीन तीन नाबालिगों का यौन उत्पीड़न करने का आरोपी ब्रिटिश नागरिक दक्षिणी
दिल्ली के आर के पुरम में स्थित नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्लाइंड (एनएबी) में रहने वाले बच्चों का यौन
उत्पीड़न कर रहा था। वर्ष 2012 में भारत
में बच्चों को यौन हिंसा से बचाने वाला कानून (पॉस्को) बनाया गया ताकि बाल यौन शोषण
के मामलों से निपटा जा सके लेकिन इसके तहत पहला मामला दर्ज होने में दो साल लग गए।
वर्ष 2014 में नए
कानून के तहत 8904 मामले
दर्ज किए गए लेकिन उसके अलावा इसी साल नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने बच्चों के
बलात्कार के 13,766 मामले, बच्ची पर उसका शीलभंग करने के इरादे से
हमला करने के 11,335 मामले, यौन शोषण के 4,593 मामले बच्ची को निर्वस्त्र करने के
इरादे से हमला या शक्ति प्रयोग के 711 मामले घूरने के 88 और पीछा करने के 1,091 मामले दर्ज किए गए।
आखिर आज स्कूल क्यों बताने से कतरा रहा है कि स्कूल में जिन लोगों को
नियुक्त किया गया है उन पर कभी कोई खास ध्यान दिया गया? उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
पर भी नजर डाली है कि वे किस माहौल से आए हैं, इस पहलू को भी दरकिनार नहीं किया जा
सकता है। अपने बच्चों के प्रति यह हमारी जिम्मेदारी है कि उन्हें एक सुरक्षित बचपन
दें। यह सब रुकना ही चाहिए। गलत है या सही, इस पर ज्यादा ध्यान दें और गलत को कभी
न सहें। अब जरूरी है कि आवाज उठाओ, चुप न रहो
और अपने हक के लिए लड़ जाओ, क्योंकि
हमें खुद ही अपने बच्चों के बारे में सोचना होगा। अगर हम इस बात को मानकर बैठ जाएं
कि यह आखिरी प्रद्युम्न था तो यह हमारी सबसे बड़ी भूल होगी। कुछ दिन बाद इसी तरह
कोई और एक खून सनी घटना हमारे सामने मुंह खोले खड़ी होगी और पूछ रही होगी आखिर इस
बच्चे का कसूर क्या था? विनय आर्य
No comments:
Post a Comment