राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के
हिन्दुओं की आबादी के सिलसिले में दिये गये बयान को लेकर मीडिया को तो मानों बारूद
मिल गया न्यूज रूम में समाचारों के लगातार विस्फोट से हो रहे है जिनकी धमक राजनीति
के गलियारों में भी सुनी जा सकती है| मालूम हो कि भागवत ने शनिवार को आगरा में
शिक्षकों के एक कार्यक्रम में देश में मुसलमानों के मुकाबले हिन्दुओं की आबादी
वृद्धि दर में कमी संबंधी एक सवाल पर कहा था, “कौन सा कानून कहता है कि हिन्दुओं की
आबादी नहीं बढ़नी चाहिये। जब दूसरों की आबादी बढ़ रही है तो हिन्दुओं को किसने रोका
है।“ मोहन के इस भागवत ज्ञान को लेकर कई राजनैतिक दल फैलते नजर आये यहाँ
तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल व बसपा प्रमुख मायावती द्वारा भागवत के बयान
की कड़ी आलोचना के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव गुलाम नबी आजाद ने यहां प्रेस
कांफ्रेंस में भागवत के मुसलमानों की जनसंख्या दर ज्यादा होने संबंधी सवाल पर कहा, श्श्वह (भागवत) तो धर्म की ही खाते
हैं...वह और क्या बात करेंगे। उन्होंने कहा कि भागवत अपनी हर बात और हर शब्द में
तोड़ने की ही बात करते हैं। खैर यह भी सही कहा कि भागवत धर्म की खाते है वरना इसी
देश में रहकर बहुतेरे लोग अधरम की भी खा रहे है|
चलो इस देश में अभिव्यक्ति की आजादी है जिस
कारण हम भी अपनी बात रख सकते है| प्रश्न है कि जब हिन्दुओं द्वारा ज्यादा बच्चे
पैदा करने वाला बयान विवादित हो सकता है तो धर्म विशेष की वो किताब क्यों विवादित
नहीं जो ज्यादा बच्चे पैदा करने की नेक सलाह देती है? हालाँकि मोहन के इस बयान को शिव सेना
द्वारा भी ‘दकियानूसी’ बताते हुए कहा कि मुस्लिमों की बढ़ती
आबादी से निपटने के लिए हिंदुओं की आबादी को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, नरेंद्र मोदी की सरकार को जल्दी से
जल्दी समान नागरिक संहिता लागू करनी चाहिए। ‘सरकार परिवार नियोजन पर बहुत धन खर्च कर रही है। मुस्लिम आबादी में
बढ़ोत्तरी से निश्चित तौर पर देश का सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन प्रभावित होगा
लेकिन हिंदुओं को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए कहना इस समस्या का समाधान नहीं
है।’ हो सकता है भागवत का तर्क यही हो कि
अगर हिन्दुओं ने अपनी आबादी तेजी से न बढ़ायी तो एक दिन वह ‘अपने ही देश में अल्पसंख्यक’ हो जायेंगे!
यदि ऐसा है तो इसे गलत भी नहीं कहा जा सकता
क्योंकि यह रिपोर्ट 2011 की जनगणना की है| देश की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा
किस तरह बढ़ गया है इसमें स्पष्ट दिखाई देता है 2001 में कुल आबादी में मुसलमान
13.4 प्रतिशत थे, जो 2011 में बढ़ कर 14.2 प्रतिशत हो
गये! असम, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, केरल, उत्तराखंड, हरियाणा और यहाँ तक कि दिल्ली की आबादी
में भी मुसलमानों का हिस्सा पिछले दस सालों में काफी बढ़ा है! असम में 2001 में
करीब 31 प्रतिशत मुसलमान थे, जो
2011 में बढ़ कर 34 प्रतिशत के पार हो गयेद्य पश्चिम बंगाल में 25.2 प्रतिशत से बढ़
कर 27, केरल में 24.7 प्रतिशत से बढ़ कर 26.6, उत्तराखंड में 11.9 प्रतिशत से बढ़ कर
13.9, जम्मू-कश्मीर में 67 प्रतिशत से बढ़ कर
68.3, हरियाणा में 5.8 प्रतिशत से बढ़ कर 7 और
दिल्ली की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा 11.7 प्रतिशत से बढ़ कर 12.9 प्रतिशत हो
गया| हो सकता है इन आंकड़ों के बाद हिन्दू समुदाय के चिन्तक अपनी चिंता जता रहे हो
पर क्या चिंता भी अब विवादित हो गयी? यह बात सब जानते है कि जिस देश में मुस्लिम बहुसंख्यक होता है वहां
क्या होता है इस्लामिक कानून की मांग होती है, हर एक बात में शरियत कानून के फतवे जारी होते है लोकतंत्र नहीं रहता
समाजवाद और समानता जैसी चीजें बुनयादी रूप से गायब होकर सारी कानून व्यवस्था
मुल्ला मौलवियों के हाथों में चली जाती है|
हाँ यदि भारत को इस टकराव से बचना है
तो समान नागरिक सहिंता का लागू होना लाजिमी है एक मिथक यह है कि मुसलमान परिवार
नियोजन को नहीं अपनाते तो अब यह मिथक भी पूरी तरह गलत हो गया है कुछ मुस्लिम देशों
की मुसलिम आबादी बड़ी संख्या में परिवार नियोजन को अपना रही है| तो भारत का इस्लाम
कोई अलग तो नहीं है ईरान और बांग्लादेश ने
तो इस मामले में कमाल ही कर दिया है. 1979 की धार्मिक क्रान्ति के बाद ईरान ने
परिवार नियोजन को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया था, लेकिन दस साल में ही जब जनन दर आठ बच्चों तक पहुँच गयी, तो ईरान के इसलामिक शासकों को परिवार
नियोजन की ओर लौटना पड़ा और आज वहाँ जनन दर घट कर सिर्फ दो बच्चा प्रति महिला रह
गयी है इसी प्रकार बांग्लादेश में भी जनन दर घट कर अब तीन बच्चों पर आ गयी है हम यह बात केवल भारतीय मुस्लिम की बढती आबादी
के संदर्भ में नहीं बल्कि विश्व के उन खंडहर हुए देशों के संदर्भ में कह रहे है
जिनका जन जीवन आज नरक से भी बदतर हो रहा है| क्या हुआ ट्युनिसिया का, सीरिया, यमन, सोमालिया, अफगानिस्तान और इराक को देखों और वहां
के अल्पसंख्यक समुदाय यजीदी को देखों जिनकी स्त्रियाँ को इस्लामिक स्टेट के आतंकी
धर्म की आड़ लेकर कोडियों के दामों में यौनदासी बनाकर बेच रहे हैद्य यह सब कुछ
देखकर क्या किसी की चिंता विवादित हो सकती है? शायद नहीं क्योंकि जो लोग इस देश को लोकतान्त्रिक देश देखना चाहते
हैं वो कुछ भी करके हिन्दू की जनसंख्या के अनुपात को कभी न कम होने दें। यदि यह
देश हिन्दू बाहूल्य नहीं रहेगा तो लोकतान्त्रिक भी नहीं रहेगा। (दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा) लेख राजीव चौधरी
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