धर्म की आड़ में पाखंडियों द्वारा नारी का शोषण अभी भी जारी
है, परन्तु पता नही किस लालसा में सत्ता और
सरकारी तंत्र मौन है| पर दुखद अभी भी परम्पराओं के नाम पर तो कभी चमत्कारों की आशा
में भोले-भाले लोग अंधविश्वास की चपेट में आते रहते है| आर्य समाज आवाज अपनी आवाज
मुखर करें तो ये पाखंडी एक सुर में आरोप लगाते है कि आर्य समाज भगवान को नहीं
मानता| किन्तु इससे भी बड़ा आश्चर्य तो तब होता है जब खुद को पढ़ा लिखा समझने वाले
लोग परंपराओं के नाम पर अंधमान्यताओं को लेकर खासे गंभीर दिखाई देते हैं। आज ही दैनिक
भास्कर समाचार पत्र की यह खबर पढ़कर बड़ा दुःख हुआ कि आधुनिकता के इस परिवेश में भी
लोग अभी भी आदिम रूढ़ियों के साये में जी रहे हैं। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के
आसिंद के नजदीक बंक्याराणी माता मंदिर यहां हर शनिवार और रविवार को हजारों भक्तों
के हुजूम के बीच 200-300 महिलाओं को ऐसी यातनाओं से गुजरना पड़ता है, जिसे देखकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
पीठ और सिर के बल रेंगकर ये महिलाएं 200 सीढ़ियों से इसलिए नीचे उतरती हैं, ताकि इन्हें कथित भूत से मुक्ति मिल
जाए।
इतना ही नहीं सफेद संगमरमर की सीढ़ियां गर्मी में भट्टी की तरह गर्म हो जाती
हैं। कपड़े तार-तार हो जाते हैं। शरीर जख्मी हो जाता है। सिर और कोहनियों से खून तक
बहने लगता है। किस्सा यहीं खत्म नहीं होता। इसके बाद महिलाओं को चमड़े के जूतों से
मारा जाता है। मुंह में गंदा जूता पकड़कर दो किमी चलना पड़ता है। उसी गंदे जूते से गंदा
पानी तक पिलाया जाता है जबकि कुंड का पानी इतना गंदा होता है कि हाथ भी नहीं धो
सकते है। वो भी एक-दो बार नहीं, बल्कि
पूरे सात बार पिलाया जाता है। झाड़फूंक करने ओझा यह ध्यान रखता है कि महिला पानी पी
रही है या नहीं। यदि नहीं पीती है तो जबरदस्ती की जाती है। पूरे वक्त ज्यादातर
महिलाएं चीख-चीखकर ये कहती हैं कि उन पर भूत-प्रेत का साया नहीं, वो बीमार हैं, लेकिन किसी पर कोई असर नहीं होता।
छह-सात घंटे तक महिलाओं को यातनाएं सहनी पड़ती हैं।
यह एक जगह की कहानी नहीं है| ना एक हादसा|
बल्कि देश के अनेक राज्यों में सालों से ऐसी परंपराएं चली आ रही हैं, जिनका पालन करने में लोग खासी गंभीरता
दिखाते हैं। जहां भारत में आधुनिकतावादी एवं पश्चिमी संस्कृति हावी होती जा रही है, वहीं आज के कम्प्यूटराइज्ड युग में भी
ग्रामीण समाज अंधविश्वास एवं दकियानूसी के जाल से मुक्त नहीं हो पाया है। देश के कई
हिस्सों में जादू-टोना, काला जादू, डायन जैसे शब्दों का महत्व अभी भी बना
हुआ है।
आज के आधुनिक माहौल में भी देश के पूर्वोतर राज्यों में महिलाओं को
पीट-पीट कर मार डालने जैसी ह्रदय व्यथित कर देने वाली घटनाएं जारी हैं। इन महिलाओं
में अधिकांश विधवा या अकेली रहने वाली महिलाएं शामिल होती हैं। हालांकि इन महिलाओं
का लक्ष्य किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं होता है, पर किसी कारण यदि ओझाओं द्वारा किसी महिला को डायन करार दे दिया तो
इसके बाद उसके शारीरिक शोषण का सिलसिला शुरू हो जाता है। ओझा इन महिलाओं को लोहे
के गर्म सरिए से दागते हैं,
उनकी पिटाई करते
हैं, उन्हें गंजा करते हैं और फिर इन्हें
नंगा कर गांव में घुमाया जाता है। यहां तक कि इस कथित डायन महिला को मल खाने के
लिए भी विवश किया जाता है।
इन राज्यों में बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश,
असम, पश्चिम बंगाल आदि प्रमुख रूप से शामिल
हैं विश्लेषकों का मानना है कि आदिवासी-बहुल राज्यों में साक्षरता दर का कम होना
भी अंधविश्वास का एक प्रमुख कारण है। यहां महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान दिए जाने की
जरूरत है। हालाँकि ये ओझा महिलाओं को भूत-प्रेत का शिकार बताकर अच्छी रकम ऐंठते
हैं। ओझा पुरुष एवं औरत दोनों हो सकते हैं। ग्रामीण समुदाय के लोग किसी बीमारी से
छुटकारा पाने के लिए डॉक्टर पर कम, इन ओझाओं पर अधिक विश्वास करते हैं। ये ओझा इन लोगों की बीमारी का
जादू-टोने के माध्यम से इलाज का दावा करते हैं। कुछ समय पहले ही पुरी जिले में एक
युवक ने अंधविश्वास से प्रेरित होकर रोग से छुटकारा पाने के लिए अपनी जीभ काटकर
भगवान शिव को चढा दी। उडीसा के एक आदिवासी गांव की आरती की कहानी तो और भी दर्दनाक
है। कई वर्ष पहले एक ओझा द्वारा आरती की हत्या का मामला सुर्खियों में आया था।
जादू-टोने के सिलसिले में आरती का इस ओझा के यहां आना-जाना था। एक दिन ओझा ने जब
आरती के साथ शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की तो आरती ने इसका विरोध किया।
उसके इनकार के बाद इस ओझा ने आरती के साथ बलात्कार किया और बाद में उसकी हत्या कर
दी थी।
इसमें अकेला अशिक्षा का भी दोष नहीं है दरअसल
जिस देश के नेतागण ही अंधविश्वास में जी रहे हो उस देश का क्या किया जा सकता है?
कई रोज पहले की ही घटना ले लीजिये कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की गाड़ी पर
एक कौआ बैठ गया जिसके बाद उस कौवे को शनि का प्रतीक मानते हुए मुख्यमंत्री के लिए
नई गाड़ी खरीदने का आदेश जारी कर दिया गया| यहीं नही यदि बात पढ़े लिखे वर्ग की करे
तो सोशल मीडिया पर कोबरा सांप की, साईं बाबा या बन्दर आदि
की फोटो, डालकर उस पर लिखा होता है जल्दी लाइक
करने से बिगड़े काम बनेगे और देश का दुर्भाग्य उसपर हजारों लाइक मिलते है ये लाइक
करने वाले कोई विदेशी नहीं वरन अपने ही देश के पढ़े लिखे लोग होते है| अंधविश्वास
को वैज्ञानिकों ने निराधार साबित कर दिया है| आर्य समाज ने धार्मिक पाखंडों की
अंधेरी गलियों से ठोस व तार्किक आधार द्वारा बाहर निकालने के लिए रास्ते बता दिए|
लेकिन इसके बाद भी पोंगापंथी धर्मगुरुओं ने अपने धार्मिक अंधविश्वासों की रक्षा के
लिए सचाई को ही सूली पर चढ़ा दिया| हमें यह कहने को मजबूर होना पड़ रहा है कि
परीक्षा में पेपर खराब हो जाने का डर हो या व्यापार में घाटे का या फिर परिवार के
किसी सदस्य की गंभीर बीमारी का डर, कमजोर इंसान आज भी भगवान, मंदिर या फिर किसी धर्मगुरु की शरण में पहुंच जाता है और शायद इसलिए
तथाकथित बाबा, ओझा, ढोंगी धर्मगुरु लोगों को बेवकूफ बना कर उन से करोड़ों रुपए बटोरने में
कामयाब हो जाते हैं| जो इनके चक्कर में एक बार आ जाता है वह एक बार लुट जाने पर
बार-बार जुआरी की तरह लुटने की आदत सी बन जाती है| सरकारों को इस तरह कृत्य को
धार्मिक अपराध के शोषण शारीरिक की श्रेणी में लाया जाना चाहिए| महिलाओं के अधिकार
पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली महिला आयोग ऐसे गंभीर मामलों पर चुप क्यों पाई जाती है? सविंधान कहता है यदि किसी महिला को
लगातार 20 या 30 सेकंड से ज्यादा देखा जाता है तो वो छेड़छाड के दायरे में आता है
किन्तु भीलवाडा में जूतों से पानी पिलाने, पिटाई करने के और ढोंगी बाबाओं के महिला उत्पीडन के कृत्य को चुपचाप
देखने की सविंधान और राज्य सरकारों की क्या मजबूरी है? लेख राजीव चौधरी
No comments:
Post a Comment