अपना घर छोडना आसान
नहीं होता साहब, हम वहां जिल्लत की जिंदगी जी रहे थे, हमारे बच्चे स्कूल नहीं जा सकते थे| हमेशा खौफ का साया घेरे रहता था| औरतें
घरों में कैद होकर रह जाती थी, ऐसे माहौल में अब ज्यादा रहना मुश्किल था, लिहाजा मौका मिलते ही भारत चले आए| यह कहते कहते पाकिस्तान से आये हिन्दू रोने
लगे थे| लेकिन भारत के अन्दर किसी भी तथाकथित मानवाधिकारों के रक्षक, वोट बेंक की खातिर आतंकी अफजल को गुरु जी कहने वाले लोगों का दिल नही पसीजा था|
अभी कई रोज पहले पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत में आतंकियों ने प्रांतीय
विधानसभा सदस्य सरदार सूरन सिंह की हत्या कर दी गयी| जिसकी वजह इतनी थी की उसने उस
इलाके में 75 साल से बंद पड़े गुरूद्वारे को खुलवाया था| हम अखलाक या इशरत जहाँ, की तुलना इस हत्या से कर समय बेकार करना नहीं चाहते| बस उन लोगों से सीधा सा सवाल
करना चाहते है जो बाटला हॉउस मुठभेड में शहीद हुए दिल्ली पुलिस निरीक्षक मोहन चंद शर्मा
के शव पर आँखे नम करने के बजाय इंडियन मुजाहिदीन
के आतंकियों की लाश पर आंसू बहा रहे थे, कि क्या पाकिस्तान में हिन्दू या
सिख होकर जन्म लेना पाप है? उस मीडिया से भी प्रश्न है जो
ब्रिटेन दौर पर भारत के प्रधानमंत्री से असहिष्णुता पर प्रश्न करती दिखाई देती है|
किन्तु नवाज शरीफ से पाकिस्तान में लगातार अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले पर कोई
सवाल पूछने से आज पीछे क्यों हट जा रहे है?
पिछले दिनों लाहौर के पब्लिक पार्क में ईस्टर त्योहार मना
रहे ईसाई समुदाय के करीब 72 लोगों को एक आतंकी संगठन का शिकार होना पडा था
जिसमें करीब 300 लोग घायल
हुए थे| विडम्बना देखिये हिसार के अन्दर एक चर्च की दीवार से कुछ पत्थर गिरने की
आवाज तो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को सुन गयी थी किन्तु इन मासूमों की चीख
भारत से लेकर अमेरिका तक शायद नहीं पहुंची? पाकिस्तान में अल्पसंख्यको की दुर्दशा वैसे
तो आम बात है लेकिन हिन्दुओ के साथ जो व्यवहार दूसरे देशो में हो रहा है वो वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है|
लेकिन यदि बात अपने पडोसी मुल्कों की करें तो पकिस्तान हो या बांग्लादेश, हिन्दुओ पर होने वाले अत्याचारो पर कोई कमी नही आ रही है| अपनी आवाज मुखर करने
की कीमत अल्पसंख्यक हिन्दू समुदायो को जान,माल और इज्जत गवां कर चुकानी
पड रही है पिछले दिनों खुद बांग्लादेश का
मिडिया इस बात को कह रहा था कि जिस तरह से कुछ इलाको में अल्पसंख्यको के साथ
व्यवहार हो रहा है उनपर अत्याचार हो रहे है उसने 1971 में पाकिस्तान समर्थक समूहो द्वारा दिखाई गयी बर्बरता की यादे ताजा हो गयी है|
उत्तरी बांग्लादेश के कुछ इलाके और दक्षिणी हिस्से के कई गांवों में जब इस तरह की
वारदातें हुई तब करीब सौ से भी ज्यादा हिन्दू परिवार अपना घर-बार छोड कर भाग गए|
हिन्दू धार्मिक स्थलो पर तोडफोड किया जाना, महिलाओ के साथ जबरन विवाह और अपहरण, अंत्येष्टि स्थलो पर कब्जे की घटनाये लगातार जारी है|
कुछ महीनें पहले
पाकिस्तान से आये गजल गायक गुलाम अली का शिव सेना की धमकी के बाद मुम्बई में शो रद्द
हुआ था, उस समय मीडिया से लेकर तमाम धर्मनिरपेक्ष दल दुखी नजर आये और अपने-अपने
राज्यों में गुलाम अली का कार्यक्रम करने को लालायित भी हुए थे किन्तु इन मुद्दों पर आज तक एक भी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता ने पाकिस्तान
सरकार को चिट्टी लिखकर यह कहने का साहस नहीं किया कि सरदार सुरन सिंह की हत्या पर
पाक सरकार खामोश क्यों है? या फिर पाकिस्तान में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार बंद
करे| 2012 में हिन्दुओ का एक जत्था जब भारत आया था जो इतना डरा हुआ था की वापस
जाने को तैयार नही था| कानाराम भील पहले पाकिस्तान के पंजाब सूबे में रहीमयार खान
जिले में रहते थे, अब वो सदा के लिए अपने घर वतन को छोड
आए थे| खिम्मी भील ने पाकिस्तान से आते समय वचन दिया था कि वो तीर्थ यात्रा
पूरी कर के वापस लौटेंगी लेकिन अब वह भारत में ही रहेगी| इन हिंदुओ के मुताबिक, इनसे यह करार लिया गया था कि वो भारत में नहीं रुकेंगे और अपनी धार्मिक यात्रा
पूरी होते ही, वीजा में दी गई मियाद के भीतर ही पाकिस्तान लौट आएँगें| लेकिन इनमें से हर
हिंदू का कहना था कि चाहे जेल भेज दो लेकिन पाकिस्तान के लिए रेल में मत भेजो|
बांग्लादेश हो या पाकिस्तान या कोई और देश, नागरिकों की हैसियत से अल्पसंख्यको के घरों और परिवारों की सुरक्षा व्यवस्था
की जिम्मेदारी किसकी है?
कितना दुर्भाग्यपूर्ण
है कि भारत के सिविल सोसायटी के संगठन, मानवाधिकार पर शोर मचाने वाली शबाना आजमी, याकूब मेनन की फांसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने वाले लोग, अखलाक के परिजनों पर लाखों रूपये बरसाने वाले तमाम नेता, इस महत्वपूर्ण सवाल पर चुप्पी साध जाते है| क्या आज वोट मानवता से बडी हो गयी? क्या इनकी नजर में एक इन्सान के रूप में दर्द सिर्फ मुसलमान को ही होता है? पाकिस्तान में बलात्कार का शिकार हो रही हिन्दू सिख महिलाएं, ईषनिंदा के झूठे आरोपो में जेलों सड रहे लोगों का दर्द इनसे दूर भाग जाता है|
क्यों यह लोग इन संवेदनशील मुद्दों पर मूक
हो जाते है? यह लोग अपना मत अपना उद्देष्य स्पष्ट करने से हिचकते क्यों है? बहरहाल इन सब प्रश्नों पर हमारा अंत में एक ही प्रश्न है कि सोचों जब ही हम
चुप रहेंगे तो उन लोगों की आवाज कौन बनेगा?....दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा लेखक राजीव चौधरी
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