हम
आज वैज्ञानिक युग में जी रहे है| हमारे जीवन में उपयोग के लगभग सभी साधन भौतिक है|
किन्तु फिर भी हम कभी कभी कल्पना में जीते है और हमारी अधिकतर कल्पना अलौकिक होती
है, जिसमें यथार्थ के जीवन को भूलकर लोग चमत्कारों की आशा में जीते है| अलौकिक
कल्पना में सबसे ज्यादा स्वर्ग नरक आदि के बारे में सोचते है| किन्तु कभी कल्पना की
बहती नदी के किनारे पर खड़े होकर हमने सोचा है| की कहाँ है स्वर्ग नरक? मंदिर में
जाओ, स्वर्गो के नक़्शे टंगे है- पहला स्वर्ग, दूसरा स्वर्ग, पहला खंड, दूसरा खंड
सच खंड तक; स्वर्ग के नक़्शे टंगे मिलेंगे| इन्सान की मूढ़ता की कोई सीमा नहीं है,
कोई अंत नहीं है| बड़ी अजीब विडम्बना है अपने घर के नक्शे दूसरों से बनवाने वाले
पुजारी स्वर्ग के नक़्शे आसानी से बना लेते है| हमेशा कहते है श्रद्धा से स्वर्ग पाना
है तो मंदिर आओ, भगवान पर भोग लगाओ| चलो मान लिया स्वीकार कर लिया है| लेकिन
श्रद्धा से स्वर्ग को पाने से पहले श्रद्धा को भी तो पाना है| पाखंड से श्रद्धा
कैसे मिलेगी?
किन्तु श्रद्धा का नाम लेकर सर्व सम्प्रदाय हमेशा से भयभीत करते आ
रहे है| अग्नि में जलोंगे, आग के उबलते कड़ाहों में डाले जाओंगे| या तो भयभीत करते
है या फिर प्रलोभन देते है कि स्वर्ग में अप्सराएँ, हूरें तुम्हारी प्रतीक्षा कर
रही है| अजीब खेल खेलते है अश्रदा में नरक और श्रद्धा में स्वर्ग खड़ा कर देते है
किन्तु कभी नहीं बताते कि श्रद्धा कहाँ से आयेगी? श्रद्धा आती है, नैतिकता से,
ईमानदारी से, कामवासना की मुक्ति से| चश्मा लगाने से कोई पढ़ा लिखा नही होता उसके
पहले स्वध्याय करना पड़ता है, पढना पड़ता है लेकिन तथाकथित धर्मगुरुओं ने श्रद्धा के
बनावटी चश्मे लगा दिए लोगों के चेहरों पर पहले श्रद्धा बाँट दी फिर स्वर्ग नरक थमा
दिए| लोगों को डरा-डराकर धन इकठ्ठा कर लिया नये नये मत संप्रदाय चला दिए स्वर्ग –नरक
के लिए आत्मघाती तक बना डाला| अधिकतर धर्मगुरु पंडित पुजारी खुद को ब्रह्मा का
नातेदार बताकर वर्षो से स्वर्ग की टिकट बेच रहे है|
जीवित
आदमी के लिए वेद को छोड़कर कोई ग्रन्थ स्वर्ग का निर्माण नहीं कर पाया सब सम्प्रदाय
मृत शरीरों के लिए स्वर्ग लिए बैठे है क्या
कोई धर्मगुरु बता सकता है कैसा होता है स्वर्ग? वैशेषिक दर्शन के आविष्कर्ता कणाद
ऋषि कहते है “बुद्धिपूर्वा
वाक्यकृतिवेदे” अर्थात वेदवाणी की रचना परमेश्वर ने बुद्धिपूर्वक की है| इसलिए मोक्षप्राप्ति के मार्ग में चलने वालों
को दो बातों की आवश्यकता होती है-एक तो स्रष्टि उत्पत्ति के कारणों को जानना और उन
कारणों के अनादी ईश्वर को प्राप्त करना, दूसरा स्रष्टि के उपयोग की विधि का समझना|
स्रष्टि के कारणों और ईश्वर की प्राप्ति के उपायों के ज्ञान से स्रष्टि, प्रलय,
जीव ईश्वर, कर्म कर्मफल और ईश्वर-जीव के संयोग तथा उनकी प्राप्ति से जीवन में जो
सुख प्राप्त होता है वही स्वर्ग है, अन्यथा स्वर्ग कोई विशेष स्थान नहीं है,जिसकी
लालसा में यहाँ वहां भटका जाये| आर्य समाज
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