ऐसा नहीं है कि
मुस्लिम समाज के देशों से हमेशा आतंक, हिंसा या गैरजरूरी फतवों की ही खबर
आती है| कभी- कभी कुछ खबर ऐसी होती है जो समाज को प्रेरणा देने के लायक भी होती है| एक बार
फिर चीन, अफगानिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीचों-बीच बसा मध्य एशियाई देश ताजिकिस्तान से
एक ऐसी ही खबर आई है जो मानवीय समाज में रिश्तों नातों को मजबूत और पवित्र बनाने में
सहयोग करती दिखाई दे रही है| जनवरी माह में ताजिकिस्तान सरकार ने अपने देश में
इस्लामिक आतंक की आहट को रोकने के लिए करीब 13 हजार पुरुषों की दाढ़ी कटवा दी थी|
हजारों लडकियों को बुर्के से आजाद किया था और इस्लामिक परिधान बेचने वाली की दुकानों
को प्रतिबंधित किया था| यहाँ की सरकार का मानना है कि इसके अलावा इस्लामिक अतिवाद को रोकने का और कोई चारा
नहीं है लेकिन अबकी वहां की सरकार ने जो
कदम उठाया वो वाकई इस्लामिक राष्ट्रों के अलावा भारत जैसे देशों को भी सोचने पर
मजबूर कर देगा| बीते महीने को यहां की संसद का एक फैसला अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों
में शामिल हुआ| यह फैसला था देश में कॉन्सेंग्युनियस विवाह यानि की रक्त
सम्बन्धियों पर प्रतिबंध लगाना सही हैद्य दुनिया के कई देशों, विषेशकर मुस्लिम बहुल देशों में कॉन्सेंग्युनियस विवाह बहुत ही आम प्रथा है|
इसीलिए जब मुस्लिम बहुल ताजिकिस्तान ने इस प्रथा पर रोक लगाने का प्रग्रतिशील फैसला
लिया तो इसने दुनिया भर के कई लोगों को हैरत में डाल दिया|
ताजिकिस्तान ने यह
फैसला लेते हुए माना है कि कॉन्सेंग्युनियस विवाह से पैदा होने वाले बच्चों में आनुवांशिक
रोग होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं| यहां के स्वास्थ्य विभाग ने 25 हजार से ज्यादा विकलांग बच्चों का पंजीकरण और उनका अध्ययन करने के बाद बताया
है कि इनमें से लगभग 35 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो कॉन्सेंग्युनियस विवाह से पैदा
हुए हैं| कॉन्सेंग्युनियस विवाह से पैदा होने वाले बच्चों में आनुवांशिक रोग होने
की संभावनाओं पर लंबे समय से चर्चा होती रही है| लेकिन यह चर्चा कभी भी इतने
व्यापक स्तर पर नहीं हुई कि इस तरह के विवाहों पर प्रतिबंध लग सके| अभी हाल ही 11 अप्रैल को अपने ही पडोसी मुल्क पाकिस्तान से खबर आई थी कि 75% पाकिस्तानी अपने घर परिवार में ही शादी करते है यानि के भाई ही अपनी बहनों के
पति है| सुनने में थोडा अटपटा सा लग सकता है किन्तु पाकिस्तान में इस तरह भाई
बहनों के बीच शादियाँ कोई बडी बात नहीं है| ये बहने चाचा, मामा आदि की बेटियां होती है लेकिन भाई बहनों से शादी के कारण पाकिस्तान में
जो नये बच्चे पैदा हो रहे है वो अजीब बिमारियों का शिकार है| जबकि इन बिमारियों से
चिकित्सकीय जाँच से रूबरू होने के बाद कई यूरोपीय देशों ने इस तरह की शादियों पर
प्रतिबंध लगा दिए है|
हमें इस खबर में इस
वजह से दिलचस्पी जागी कि यूरोप का विज्ञानं आज दावे को साबित कर अपनी पीठ थपथपा
रहा है| जबकि यह सब वेदों में हमारे ऋषि मुनि स्रष्टि के आदि में ही लिख गये थे
ऋग्वेद में कहा है “संलक्षमा यदा विषु रूपा भवाती” अर्थात सहोदर बहिन से पीड़ाप्रदय संतान उत्पन्न होने को सम्भावना होती है। एक
ही परिवार, गोत्र में विवाह भारतीय हिन्दू संस्कृति में हमेशा एक विवाद एक विवाद का विषय रहा है| मीडिया इसे
प्रेम पर पहरा व् खाप के तालिबानी फरमान के तौर पर पेश करता है| जिस कारण आज नयी और
पुरानी पीड़ी के बीच टकराव का कारण बना है| सामाजिक और वैदिक द्रष्टि से सगोत्र व्
कॉन्सेंग्युनियस विवाह अनुचित है क्योकि एक ही गोत्र में जन्मे स्त्री व पुरुष को
बहिन व भाई का दर्जा दिया जाता है| वैज्ञानिक द्रष्टिकोण तो इसके भी पक्ष में है
कि एक बहिन व भाई के रिश्ते में विवाह सम्बन्ध करना अनुचित है| विज्ञान का मत है आनुवंशिकी
दोषों एवं बीमारियों का एक पीड़ी से दूसरी पीड़ी में जाना यदि स्त्री व पुरुष का
खून का सम्बन्ध बहुत नजदीकी है| स्त्री व पुरुष
में खून का सम्बन्ध जितना दूर का होगा उतना ही कम सम्भावना होगी आनुवंशिकी दोषों एवं
बीमारियों का एक पीड़ी से दूसरी पीड़ी में जाने से बचने की यह वैदिक और वैज्ञानिक
विधि है| शायद भारत के ऋषि मुनि वैज्ञानिक भी थे जिन्होंने बिना यंत्रो के ही यह
सब जान लिया था तथा यह नियम बना दिया था|
कॉन्सेंग्युनियस विवाह मतलब खून का सम्बन्ध
जितना दूर का होगा संतान उतनी ही वीर, पराक्रमी और निरोगी होगी दूसरे शब्दों में कहें तो
पैदा होने वाले बच्चे उतने ही स्वस्थ व बुद्धिमान होंगे| कॉन्सेंग्युनियस विवाह
अनुचित ही नहीं परिवार का अंत करने वाला कदम होता है नयी पीड़ी को इसे समझना चाहिए|
जिस तरह आज ताजिकिस्तान ने कॉन्सेंग्युनियस विवाह पर रोक लगाई उससे पुरे विश्व को
सबक लेना चाहिए खासकर भारतीय मुस्लिम समाज को तो इससे प्रेरणा लेनी चाहिए| अन्य समाज को भी सोचना चाहिए आज का विज्ञानं हमारे कल के वेदों से ऊपर नहीं है|..दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा..लेखक राजीव चौधरी