छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में अंधविश्वास में लिप्त एक बेटे ने तंत्र क्रिया
के लिए अपनी मां की बलि चढ़ा दी। हत्या कर उसका खुन पीया, शव के टुकड़े
किये और पूजा कर चूल्हे में जला दिया। ये खबर इसी भारत देश से हैं जो पिछले वर्ष 104 सेटेलाइट
अन्तरिक्ष में एक साथ प्रेक्षित कर गर्व से दुनिया को अपने विज्ञान की ताकत से
रूबरू करा रहा था। किन्तु इसके
बावजूद हम शर्मिदा हैं क्योंकि जितने लोग किसी देश में आतंक या युद्ध का शिकार
होते है उससे कहीं ज्यादा लोग हमारे देश में प्रतिवर्ष अंधविश्वास का शिकार हो
जाते है, यदि इस विषय के आंकडें उठाकर देखें तो इस अंधी श्रद्धा
को देखकर सिर शर्म से झुक जाता है। बावजूद इसके अंधविश्वास के इस खेल की दुदंभी बज रही है। जब ऐसे हादसे होते है बड़े-बड़े धर्माचार्य या तो मौन पाए
जाते या फिर एक कातिल को अज्ञानी कहकर मामले को रफा दफा करने की कोशिश करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 1987 से 2003 तक 2
हजार 556 महिलाओं को डायन या चुड़ैल कह कर मार देने के हादसे हुए, एक दूसरी रिपोर्ट
के अनुसार देश में 2011 में 240, 2012 में 119, 2013 में 160
हत्याएं अंधविश्वास के नाम पर की गयी. इसके बाद यदि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड
ब्यूरो द्वारा पेश किये गये आंकडें देखें तो अकेले आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों
राज्यों में साल 2000 से 2012 के दौरान 350 लोगों को इस शक में मार दिया गया कि वो
दूसरों पर काला जादू कर रहे हैं.
इन सब आंकड़ों के बाद पिछले वर्ष की खबरें ही उठाकर देखें बड़ी अफसोस जनक
खबरें मिलती हैं, राजस्थान के भरतपुर के वैर में एक बाबा ने तांत्रिक
विद्या हासिल करने के लिए अपने ही पोते की बलि दे दी थी। जयपुर में पोते की चाह में एक दादी ने अपनी ही एक मासूम
पोती को पानी के टैंक में डुबोकर मार दिया था, तो राजस्थान के ही जोधपुर में रमजान के
महीने में एक शख्स ने अल्लाह को खुश करने के लिए अपनी ही 4 साल की मासूम बेटी की
बलि दे थी।
अंधविश्वास और तंत्र क्रिया का यह खेल हत्या तक ही सीमित नहीं हैं पिछले
वर्ष ही मध्य प्रदेश के शहडोल में कैदी ने जेल के अंदर बने देवी मंदिर में अपनी
जीभ काटकर चढ़ा दी थी, जांजगीर चंपा
में एक महिला ने शिव मंदिर में अपनी जीभ काटकर चढ़ा दी थी। एक घटना बिहार के दरभंगा जिला में हुई जहाँ चैती दुर्गा
पूजा के दौरान अंधविश्वास की पराकाष्ठा का अविश्वसनीय नमूना देखने तब मिला, जब एक युवती ने गाँव में स्थापित मां दुर्गा के चरणों
में अपनी आंख चढ़ाने का प्रयास करने लगी। इसके अलावा तेलंगाना के हैदराबाद में एक शख़्स ने एक
तांत्रिक के कहने पर चंद्र ग्रहण के दिन पूजा की और अपने बच्चे को छत से फेंक दिया।
आधुनिक सदी में समाज में अंधविश्वास घटने के बजाय बढ़ता जा रहा है। अंधविश्वास के अनेकों किस्म हैं, जिनमें भूत, चुड़ैल है, जिन्न हैं, वशीकरण, जादू, टोने टोटके
आदि हैं जिसकी मदद से कुछ ढोंगी बाबाओं, ओझाओं और दरगाहों पर रहने वाले लोगों की
रोजी चल रही है। कोई पंथ-मजहब
इससे अछूता नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अंधविश्वास फैलाने
में विज्ञान से शिक्षा प्राप्त डॅक्टर, इंजीनियर भी शामिल हैं इनके अलावा देश के नेताओं
लिए कुछ कहना सुनना बेकार है क्योंकि उन्हें सिर्फ वोट से मतलब चाहें समाज इससे और
ज्यादा गर्त में क्यों न चला जाये। क्या हम ऐसे डॉक्टरों और इंजीनियरों या नेताओं से यह
अपेक्षा कर सकते हैं कि वे अंधविश्वास के खिलाफ खड़े हो सकेंगे?
शायद इसी कारण सरकारें मौन हैं और मीडिया ऐसे ढोंगियों के प्रसार का बड़ा
माध्यम और सहयोगी बन चुका है। इसी अनदेखी का ही नतीजा है कि अंधविश्वास फैलाने वालों
का बड़ा नेटवर्क इंटरनेट से लेकर मीडिया और प्रिंट मीडिया पर छाया हुआ है। नतीजा ज्यादातर लोग डॉक्टर से अधिक ऐसे ढोंगी तांत्रिकों
पर विश्वास करने लगे हैं। इन
बहुरूपियों की शिकार अधिकांश महिलाएं हो रही है और महिलाओं के जरिए पुरुष भी इनके
शिकार बन रहे हैं। ये किसी
प्रकार के आंतक से कम नहीं है क्योंकि इसमें भी भय का सिद्धांत सर्वोपरी बनाया जा
रहा है इस आतंक की शिकार महिलाओं की आबरू लुटी जा रही और पुरुषों से धन की उगहाई
की जा रही है।
अंधविश्वास के सहारे लूट और हत्याओं का सिलसिला जारी है। विडम्बना देखिये देश में किसी भी साम्प्रदायिक हिंसा या
उसमें हुई किसी एक मौत के लिए महीनों कार्यक्रम चल सकते है, उस पर कड़े कानूनों की मांग हो सकती है, लेकिन अंधविश्वास के कारण लगातार हो रही हत्याओं और लूट
बलात्कारों पर एक कार्यक्रम पेश नहीं किया जा रहा और न मीडिया के बुद्धिजीविओ की
और से किसी कानून की मांग की जा रही हैं।
अंधविश्वास के कारण हालात दिन पर दिन बदतर होते जा रहे है सरकारों को समझना
होगा कि देश में चुनौती सिर्फ सत्ता का निर्माण करना नहीं है बल्कि आज हम जिस
आधुनिक सदी में जीवन जी रहे है, उसके अनुकूल
एक अंधविश्वास रहित समाज का निर्माण करना भी किस चुनौती से कम नहीं हैं। आज हमारा इस गणतंत्र भारत की सभी राज्यों की सरकारों और
केंद्र सरकार से अनुरोध है कि शिक्षा प्रणाली में अंधविश्वास पर एक विषय शामिल
जरुर किया जाना चाहिए ताकि अंधविश्वास और विज्ञान का एक जगह समाहित ना हो सके दूसरा
सभी प्रकार के अंधविश्वासो पर कड़े कानून का भी निर्माण किया जाये। ताकि एक माँ अपने बेटे के हाथों बे मौत न मारी जाये, एक
पोते का काल उसका दादा न बन पाए और किसी मासूम बच्ची को अल्लाह के लिए कुर्बान न
होना पड़ें। राजीव चौधरी
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