27 जुलाई
की रात गुरु पूर्णिमा पर सदी का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण लगा। इस चंद्र ग्रहण की अवधि 3 घंटे 55 मिनट रही। ग्रहण रात 11 बजकर 54 मिनट से शुरू हुआ जो 28 जुलाई
की सुबह 3 बजकर 49 मिनट पर समाप्त हो गया. लेकिन 28 जुलाई की सुबह समस्त न्यूज
चैनलों पर ज्योतिषियों की भरमार थी। विज्ञान के अनुसार यह एक घटना खगोलीय थी पर
जिस तरीके से ये ज्योतिषी आम मनुष्य के जीवन पर उसके परिणाम और प्रभाव बता रहे हैं
उसे सुनकर लग रहा था आज चंद्रमा किसी खगोलीय घटना से नहीं बल्कि कथित ज्योतिषों से
डरकर इधर-उधर छिप गया हो।
विज्ञान कहता है ये स्थिति तब उत्पन्न होती है जब सूर्य, पृथ्वी और चांद लगभग एक सीधी रेखा में
आते हैं। इस स्थिति में सूरज की रौशनी चांद तक नहीं पहुंच पाती है और चांद पैनंबरा
की तरफ जाता है तो वे हमें धुंधला सा दिखाई देने लगता है। वैज्ञानिक भाषा में
पैनंबरा को ही ग्रहण कहा जाता है। दुनिया के लिए भले ही यह घटना अन्तरिक्ष विज्ञान
से जुड़ी हो पर भारत के लिए यह किसी धार्मिक उत्सव से कम नहीं होती। लम्बे-लम्बे
तिलक लगाये, मुगेम्बो
टाइप कोट पहने पंडित जी इसका असर देश के बजट की तरह पेश कर रहे थे। बस अंतर इतना
है, बजट में
उच्च-माध्यम और निम्न वर्ग का ध्यान रखा जाता है यहाँ नाम और राशि के हिसाब से भय
बांटा जा रहा है।
बता रहे हैं कि पुराणों के अनुसार राहु ग्रह चन्द्रमा और सूर्य के परम
शत्रु हैं। जब सागर मंथन से प्राप्त अमृत कलश प्राप्त हुआ तो राहु अमृत पीने के
लिए देवताओं की पंक्ति में बैठ गया लेकिन सूर्य और चन्द्रमा के इशारे पर भगवान
विष्णु राहु को पहचान गए और अमृत गटकने से पहले ही सुदर्शन चक्र से राहु का गला काट
डाला। इस घटना के बाद से ही समय-समय पर राहु चन्द्रमा और सूर्य को खाने की कोशिश
करता है लेकिन कभी खा नहीं पाता क्योंकि कटे सिर की वजह से राहु के मुंह में जाकर
सूर्य और चन्द्रमा पुनः मुक्त हो जाते हैं। जबकि विज्ञान का मानना है कि जब सूर्य
चन्द्र के मध्य पृथ्वी आ जाती है तो चन्द्रग्रहण लग जाता है।
आधुनिक फलित ज्योतिष विद्या या कहो लूट विद्या के
अनुसार माना जाता है कि ग्रहण का प्रभाव काफी लम्बे समय तक रहता है और इसका प्रभाव
कम करने के लिए स्नान, दान और धार्मिक कार्य करने के लिए कहा जाता है। इस दिन किए गए
दान-पुण्य से मोक्ष का द्वार खुलता है, साथ ही ये भी बता रहे थे कि दान-पुण्य करने वालों को यह ध्यान
रखना चाहिए कि जो भी करना हो वह फला समय से पहले कर लें। एक महाराज बता रहे है कि रहिए
सावधान वरना आपकी लव लाइफ पर इतना बड़ा असर डाल सकता है चन्द्रग्रहण, तो दुसरे ज्योतिष महाराज बता रहे हैं कि इस चन्द्र ग्रहण का हर राशि
पर अलग प्रभाव होगा। किस राशि के लोगों को कितना दान करना चाहिए वे बता रहे थे फला
राशि वाले मंगल से संबंधित द्रव्यों गुड़ और मसूर की दाल का दान करें, इस राशि वाले का धन
व्यर्थ व्यय होगा, मानसिक चिंता से बचने के लिए श्री सूक्त का पाठ करें और मंदिर
में दिल खोलकर दान करें या इस राशि वाले शिव उपासना करें, ग्रहण के बीज मंत्र
का जप करें। वरना रोगों में वृधि होगी, बने काम बिगाड़ जायेंगे, शारारिक कष्ट होगा, संतान सुख नहीं होगा आदि-आदि।
ये लोग हर एक अंधविश्वास फैलाने से पहले यह कहना नहीं भूल रहे थे कि
शास्त्रों के दिशानिर्देश के अनुसार ये करना चाहिए वो करना चाहिए। लेकिन ऐसा झूठ
और भय फैलाने का कौन सा शास्त्र आज्ञा देता है। वेद में तो ऐसा कुछ नहीं है? न गीता में न किसी उपनिषद में फिर वह
कौन सा शास्त्र है? शायद यह
इनका काल्पनिक शास्त्र होगा।
दरअसल हमारी प्राचीन ज्योतिष विद्या समय की गणना का वैज्ञानिक रूप है।
जिसकी सराहना करने और समझने के बजाय लोग उसके अन्धविश्वास से भरे व्यापारिक रूप का
ज्यादा समर्थन करते हैं। आखिर इस पाखण्ड की शुरुआत कहाँ से हुई? प्राचीन समय में राजा होते थे और
राजाओं के बड़े-बड़े राजसी शौक थे, उनका कोई भी कार्य साधारण कैसे हो सकता है तो वे हर कार्य के लिए
ज्योतिषियों से शुभ मुहूर्त निकलवाते थे। अब आज के समय में सभी के लिए यह ज्योतिष
की सुविधा उपलब्ध है हर चौराहे पर ज्योतिषी उपलब्ध है तो सभी इसका आनंद उठा रहे
हैं, आज सभी
राजा हैं। लेकिन आज के समय में ज्योतिष विद्या का पूरी तरह से बाजारीकरण हो चुका
है अब बहुत से पाखण्डी आपको डरा कर अपना उत्पाद आपको बेच रहे हैं। ठीक उसी प्रकार
जिस प्रकार फेयर एण्ड लवली वाले आपको गोरा कर देने का दावा करते हैं।
इस ढोंग का सबसे बड़ा
नुकसान यह है की इंसान यह भूल जाता है कि जीवन, होनी और अनहोनी, सुख और दुःख, कभी अच्छा तो कभी बुरा इन दोनों पहलुओं
को लेकर आगे बढ़ता है। दूसरा एक नुकसान यह भी है कि यदि व्यक्ति से कोई गलती हो भी
जाए तो वह भाग्य या ग्रहों को दोषी ठहरा देता है बजाय इसके कि वह उस पर आत्ममंथन
करके उसके मूल कारण को समझे। जिससे भविष्य में उसी गलती के पुनरावृत्ति होने की
सम्भावना बढ़ जाती है। मतलब ऐसे किसी भी नियम को स्थापित करने के पीछे मुख्य रूप से
दो बातें प्रभावी होती हैं, पहली-भय
और दूसरी-लोभ या लालच। धर्म के नाम इन दोनों बातों का समावेश कर दिया गया है।
इस सत्य से शायद ही कोई इंकार करे कि हम जब भी किसी संकट में घिर जाते हैं
तो अपने से सक्षम का सहारा तलाशते हैं, विशेष रूप से अपने से बड़े का। दैवीय
शक्ति की मान्यता के पीछे भी यही उद्देश्य रहा होगा कि जब इन्सान किसी मुसीबत में
घिर जाये तो उसका स्मरण करके खुद में एक तरह का विश्वास पैदा कर सके। लेकिन इस
मान्यता को भी धार्मिक कर्मकांडियों ने अपनी गिरफ्त में लेकर लोगों के सामने भगवान
का भय जगाना शुरू कर दिया। मुसीबतों से बचाने का कारोबार करना शुरू कर दिया। हर
समस्या का समाधान निकालना शुरू कर दिया। अशिक्षितों की कौन कहे जब पढ़े-लिखे लोग ही
ढ़ोंगियों के चक्कर में फंसकर धर्म को रसातल की ओर ले जाने में कोई कोर-कसर नहीं
छोड़ रहे हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय द्रष्टि से बनाई गई
मान्यताओं को अन्धविश्वास के सहारे पल्लवित-पुष्पित करने लगे। आज हालत ये है कि
अधिसंख्यक व्यक्ति या तो घनघोर तरीके से धर्म के कब्जे में हैं। इसके लिए हमें
अंध-विश्वास से बाहर आना होगा, अंध-श्रद्धा से बाहर आना होगा, अंध-व्यक्ति से बचना होगा। आने वाली
पीढ़ी को उन्नत ज्ञान वेद का मार्ग समझाना होगा वरना अंधविश्वास के इस जाल से न
धर्म बचेगा न विज्ञान।
अंधविश्वास निरोधक वर्ष 2018 दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
-विनय आर्य
No comments:
Post a Comment