कई दिनों पहले जब इस बात का पता चला तो बड़ा दुःख हुआ कि कई परिवार शुभ
मुहूर्त में बच्चे को जन्म देने के लिए ज्योतिष की गणना का सहारा ले रहे हैं, ताकि बच्चे के जन्म ग्रह बदल जाएं और
बच्चे का भविष्य सुनहरा बन सके लोगों की यह सोच बनती जा रही है कि यदि शुभ समय व
शुभ ग्रह-नक्षत्रों में बच्चा जन्म लेगा तो वह सौभाग्यशाली होगा। इसके लिए बाकायदा
डॉक्टर और ज्योतिष दोनों का सहारा लिया जा रहा है। परन्तु क्या प्रकृति के विरु(
जाकर बिना संस्कार और अच्छी शिक्षा के कोई सौभाग्यशाली हो सकता है? आखिर हमारे समाज में अचानक ये सब
विसंगतियां कैसे उभरकर आई क्योंकि बहुत पहले तक कहीं इक्का-दुक्का शहरों या किसी
गांवों में छोटे-मोटे पंडित थे वे अपने पोथी-पत्रों आदि से भोले-भाले लोगों को
बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा कर लिया करते थे किन्तु आज तो बड़ा भारी तबका जिसमें
पढ़े-लिखे युवा, राजनेता, अभिनेता इनके चरणों में शीश झुकाकर
इनके हर एक आदेश का पालन कर रहे हैं।
असल में देखा जाये तो जब सूचना क्रांति के दौर में भारत ने भी शेष दुनिया
के साथ अगली शताब्दी में कदम रखा था तब अचानक से ये बीमारी हमारे समाज में घर कर गयी
थी। जहाँ यूरोपीय देश-विज्ञान और टैक्नोलॉजी के माध्यम से अपना भविष्य बनाने में
जुटे थे तब हम अपना हाथ ज्योतिषों के हाथ में देकर बैठ गये। जब वहां के लोग टी.वी.
आदि संचार के माध्यमों से विज्ञान का प्रसारण कर अगली पीढ़ी को ज्ञान और आधुनिकता
से जोड़ रहे थे तब भारत को रसातल में पहुँचाने के लिए टी.वी. पर सुबह-सुबह
इक्का-दुक्का ज्योतिषियों का आगमन शुरू हो गया था। सूचना क्रांति के इस माहौल में
दाती महाराज जैसे लोग आधुनिक भारत की उपज थी जो कैमरे और टी.वी. की भाषा और लोगों
की मनोवृति से अच्छी तरह परिचित थे।
धर्म का यह एक ऐसा शार्टकट था कि अन्य बड़े-बड़े चैनल इस बाबा से भविष्य
पूछते रह गये बरहाल देखी-देखी सुबह का एक घंटा ज्योतिष बाबाआें के नाम कर सभी चैनल
धर्म की इस बहती धारा में टी.आर.पी. की डुबकी लगाने लगे। बड़े-बड़े उद्योगपति से
लेकर राजनेता हो या अभिनेता इनमें रूचि लेते दिखाई दिए तो भला मध्यम वर्ग पाखण्ड
की इस खुराक से कहाँ पीछे रहना वाला था। धर्म के सच्चे रक्षक और ज्ञानीजन हैरान थे
तो धर्म की झूठी व्याख्या कर अधर्म और पाखण्ड की एक नई अनोखी स्थापना हो रही थी।
फिर भविष्य बताने वालों की इस दौड़ और अंधी कमाई में अचानक से एक और निर्मल
बाबा नामक व्यक्ति का दरबार सजने लगा, यहाँ भी टी.वी. पर भी विज्ञापनों से
धड़ाधड़ ‘कृपा’ बरसने लगी, बाबा किसी को कोई बड़ी तपस्या या
धार्मिक आचरण की सलाह नहीं देता है बस छुटपुट काम हैं जैसे किस रंग के पर्स में
पैसा रखना और अलमारी में दस के नोट की एक गड्डी रखना, लाल चटनी से समोसा खाना, सोमवार को एक दो लीटर दूध चढ़ाना
आदि-आदि।
किन्तु ये समोसे और चटनी का रंग पूछना, इतना आसान नहीं था बदले में वहां आने
की कीमत 2000 रुपये
प्रति व्यक्ति है जो महीनों पहले बैंक के जरिए जमा करानी पड़ती है। दो साल से अधिक
उम्र के बच्चे से भी प्रवेश शुल्क लिया जाता है। मान लिया जाये अगर एक समागम में
लगभग 20 हजार लोग
जमा होते तो उनके द्वार जमा की गई राशि 4 करोड़ रुपये बैठती है। बाबा की कृपा का
तो पता नहीं, कहाँ
बरसती है पर लोगों के इस पैसे से बाबा पर बरसी इस कृपा का अंदाजा आप स्वयं लगा
सकते हैं। शायद इसी व्यापारवाद के चलते ही कई लोग स्वयंभू बाबा, साधु और संत कुकुरमुत्तों की तरह पैदा
होकर टी.वी. चैनलों पर बैठे हैं। अपने अगले पल की जानकारी इन्हें भले ही न हो पर
लोगों के भविष्य को आर-पार शीशे की तरह देखने का ऐसा ढोंग रचते है कि इन्सान अपनी
जमा पूंजी तक इन्हें सौंप देता है। कहा जाता जब व्यक्ति धर्म के मार्ग से भटक जाते
है तभी ठग लोग बाजार में उतर आते हैं और ये भोली-भाली जनता को भगवान, प्रलय, ग्रह-नक्षत्र और भाग्य से डराकर लुटते
हैं।
सूचना क्रांति का फायदा उठाकर देश के प्रमुख समाचार चैनल अपने धंधे के लिए
जिस तरह लगातार अंधविश्वास को बढ़ावा दिया और जिस हास्यास्पद और फूहड़ तरीके से
ज्योतिष के कार्यक्रमों को परोसा इससे कौन वाकिफ नहीं है। जब टी.आर.पी. गिरती दिखी
तो महिला फैमिली गुरू से भी एंकरिंग करायी। जिसके वक्ष स्थल तक को कम कपड़ों से
उघाड़कर परोसा गया, ज्यादातर
चैनलों ने अब या तो खूबसूरत स्त्रियों को बतौर ज्योतिषी पेश कर दिया है, या फिर ऐसे बाबाओं को जगह दे दी है, जो अक्सर अजीबो-गरीब मेकअप या अत्यधिक
मेकअप में स्क्रीन पर आते हैं। ये दैनिक राशिफल की अलावा परेशान उपभोक्ता को लाइफ
मैनेजमेंट की बूटी बेचते हैं। पैसा कमाते हैं गरीब जब आध्यात्म के नाम पर किसी की
शरण में जाता है तो अंध-विश्वास हो जाता है, अमीर जब आध्यात्म के नाम पर किसी की
शरण में जाता है तो वह अध्यात्म का कोर्स हो जाता है। हिन्दी चैनलों के इन ज्योतिष
कार्यक्रमों के बीच भंयकर प्रतियोगिता बन उठी है। हर कार्यक्रम एक ब्रांड है। हर
किसी के पास अपने-अपने बाबा और पाखण्ड है जहां राशिफल की दुनिया की नई नई कैटगरी
की खोज कर ली गई है। जो देश कभी )षि-मुनियों और वेदों का देश था, ज्ञान और अध्यात्म का देश था, आज वह देश पाखण्ड का देश बनकर रह गया।
अब यदि कोई परिवार ऐसे में शुभ मुहूर्त में बच्चे को जन्म देने के लिए ज्योतिष की
गणना का सहारा ले रहा है तो हम मैं सिर्फ दुःख प्रकट कर सकते हैं किन्तु आश्चर्य
नहीं।.....राजीव चौधरी
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