बचपन में मैंने एक कहानी पढ़ी थी कि एक राजा राजभवन में नरम, मखमली बिछोने के पलंग पर लेटकर
ईश्वर की खोज कर रहा था। उसका एक मंत्री यह सब देख
रहा था। अचानक वह मंत्री खड़ा हुआ और घड़े में हाथ
डालकर जोर-जोर से हाथ हिलाने लगा, राजा ने पूछा क्या खोज रहे हो? मंत्री
ने कहा, ‘‘राजन, हाथी खोज रहा हूँ, राजा
ने कहा- तुम मुर्ख हो! घड़े में हाथी
कैसे मिलेगा? मंत्री हंसने लगा और बोला, ‘हे राजन,
तू
जिस चित्त दशा में ईश्वर को खोज रहा है वह घड़े में
हाथी खोजने से भी ज्यादा विचित्र नहीं है?
बचपन
से मुझे एक ऐसे पागल राजा की तलाश थी आज लगता है मेरी तलाश फिलीपीन्स
के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतर्ते के रूप में पूरी हुई।
हाल ही
में फिलीपीन्स के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतर्ते ने अपना बयान देकर एक अन्तर्राष्ट्रीय विवाद खड़ा किया है। उन्होंने कहा है कि यदि
कोई ईश्वर के अस्तित्व को साबित कर दे तो वह अपने पद
से इस्तीफा दे देंगे। इससे पहले राष्ट्रपति
रोड्रिगो ने ईश्वर को स्टुपिड (मूर्ख) तक कह डाला था। अब राष्ट्रपति
रोड्रिगो दुतर्ते ने कहा है कि अगर कोई एक भी गवाह मिल जाए जो किसी फोटो अथवा सेल्फी से यह साबित कर सके कि कोई इंसान भगवान
से मिल चुका है या भगवान को देख चुका है तो वह
तत्काल इस्तीफा दे देंगे। शायद राष्ट्रपति
रोड्रिगो दुतर्ते भी राजमहल में बैठकर ईश्वर की खोज करना चाहते हैं।
पर यदि ऐसा हो सकता तो शायद बुद्ध को राजपाट छोड़कर वनों में न जाना पड़ता, स्वामी दयानन्द
सरस्वती, आदि गुरु शंकराचार्य
को भटकना न पड़ता। हालाँकि लोग इस मामले में त्वरित प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कुछ लोग गुस्सा हैं और कुछ दुखी। लेकिन जहाँ इस
बात पर चर्चा होनी चाहिए थी कि रोड्रिगो दुतर्ते
मूर्ख है अथवा नहीं? वहां लोग ईश्वर के होने या न
होने पर चर्चा कर रहे हैं। जबकि ईश्वर के अस्तित्व का विषय मानने या मानने की बहस नहीं है, ईश्वर निजी
एक अनुभूति है, निजी अनुभव का सिद्दांत है
न कि चौराहे पर खड़ा होकर उसे साबित करने का।
यह बिल्कुल
ऐसा है जैसे कोई राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतर्ते से कहे की आप अपने परदादा के दादा के साथ सेल्फी अपनी दिखाओ? आज
शायद वह ऐसा कुछ न दिखा पाए क्या इससे यह
मान लिया जायेगा कि उक्त व्यक्ति से राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतर्ते
का कोई सम्बन्ध नहीं रहा है? शायद नहीं क्योंकि वह उनके पूर्वज रहे हैं और इसका कोई सबूत देने की जरूरत नहीं है। दूसरा कोई उनसे
पूछे क्या हवा का अस्तित्व है? वह
कहेंगे हाँ है। अब प्रश्नकर्ता कहे कि मैं तो नहीं मानता
यदि हवा है चलो उसके साथ अपनी सेल्फी दिखाओ? तो क्या इससे
हवा का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा? इसके
बाद कोई खोलते तेल से उनका हाथ जला कर पूछे क्या
हुआ? वह
कहे जलन है, पीड़ा है। अब प्रश्नकर्ता कहे कि यदि दर्द, पीड़ा
या जलन है तो उस पीड़ा की फोटो दिखाओ? आप ऐसे सवाल करने वाले को क्या कहेंगे मूर्ख या दार्शनिक? जो भी कहेंगे
वही शब्द फिलीपीन्स के राष्ट्रपति रोड्रिगो
दुतर्ते के लिए भी उपयुक्त रहेगा।
शायद फिलीपीन्स
के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतर्ते को ज्ञान न हो कि चित्र या फोटो में भाव प्रदर्शित होते है न कि अनुभूति। अनुभूति का कोई चित्र
नहीं बन सकता है। तपस्या करते हुए ऋषि का चित्र
बन सकता है किन्तु जिस आनन्द की अनुभूति उसका
अनुभव उस समाधि में लीं ऋषि प्राप्त कर रहा है उसका कोई चित्र या गवाह नहीं बन सकता है। ईश्वर के संबंध में कहे गए अनुभव भी
इतने ही व्यक्तिगत हैं। यह एक व्यक्ति के द्वारा
दूसरे व्यक्ति से कहे गए है, हवा में
फेंके गए गोले नहीं हैं, अगर मैं कह भी दूं कि हां, ईश्वर
है, क्या फर्क पड़ेगा? क्या ईश्वर का जन्म हो जायेगा? या
मैं कहूँ ईश्वर नहीं है तो क्या ईश्वर
तत्काल समाप्त हो जायेगा। शायद नहीं क्योंकि मानने या न मानने से ईश्वर के अस्तित्व में कोई परिवर्तन नहीं होगा।
असल में
एक आदमी मंदिर में खड़ा होकर कहे ‘‘मैं ईश्वर को मानता हू’’ ऐसा
कहकर वह ईश्वर को कोई (एन. ओ. सी) नहीं दे
रहा कि ईश्वर उसका धन्यवाद करें कि शाबास तू
मुझे मानता है? यदि दूसरा कहता है, ‘‘मैं तो ईश्वर को नहीं मानता’’ ऐसा कहकर वह भी ईश्वर से कोई उसकी निजी
प्रोपर्टी नहीं छीन रहा है। असल में
दोनों ही सूरत में दोनां ही व्यक्तियों का मन स्थिर नहीं है क्योंकि
किसी मूर्ति को ईश्वर समझ बैठना भी ईश्वर के अस्तित्व का विरोध है, और
जो दूसरा न मानने के बहुत सिद्धांत इकट्ठे कर लेता है, पक्ष में,
विपक्ष
में सोच लेता है, वाद-विवाद करता है, शास्त्रार्थ करता है, वह
भी विरोध में ही जी रहा है। हाँ जो इन
दोनों भावों से दूर है वही ईश्वर की अनुभूति का
साक्षी बन जाता है।
कोई सोचता
है कि अगर ईश्वर हैं तो मेरे पास उसकी चिठ्ठी क्यों नहीं आती ताकि उसे कहते कि अगर आप ईश्वर हैं तो मैं गरीब हूं, मेरी
गरीबी मिटा कर दिखाइए, अगर आप ईश्वर हैं, तो
मै बेरोजगार हूँ, मेरी नौकरी लगवाकर बताइए?
ईश्वर किसी
की आवश्यताओं की पूर्ति का साधन नहीं है, उसके लिए कर्म करने पड़ते है, न ईश्वर को समेटकर चित्रों में समाहित
किया जा सकता है, न ही ईश्वर की प्राण
प्रतिष्ठा की जा सकती क्योंकि समूचे जगत के व्यवस्थापक को आत्मा की गहराई में उतरकर अनुभव किया जा सकता है. क्या जीवन में जो
दिखाई पड़ता है सिर्फ उसी की सत्ता है? नहीं!
असल सत्ता उसकी है जो दिखाई नहीं पड़ता और हमेशा
से दृष्य से अदृष्य की सत्ता बड़ी रही है क्योंकि उसकी सत्ता राष्ट्रों
की सीमाओं में बंधी नहीं होती है।
अटल सत्य
ये है कि उस सत्ता का अनुभव करने के लिए स्वयं के मन की गहराई में उतरना आवश्यक होता है तभी वह अनुभूति उपलब्ध होती है तभी ज्ञात
होता है कि उसे बाहर नहीं देखा जा सकता है वह तो
भीतर है यही केवल एकमात्र संभावना है जिसमें खोज
कम और आत्म-परिवर्तन की आवश्यकता ज्यादा होती है जो उसके लिए
पूर्णतया
से तैयार हो जाता है वह स्वयं इसकी अनुभूति कर लेता है उसे ईश्वर के अस्तित्व को जानने की आवश्यकता नहीं रहती न उसे ईश्वर के
साथ फोटो और गवाहों की आवश्यकता रहती है। हाँ इसका
मार्ग जरुर है जो सिर्फ एक है और वह है “चार
वेद” इसके
अतिरिक्त कोई सम्भावना कोई साधन नहीं है...
लेख-राजीव चौधरी
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