पिछले महीने एक सवाल के लिखित जवाब में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री
देवेन्द्र फडनवीस ने बताया था कि वर्ष 2016 में 1 जनवरी से 30 जून के बीच 2,881 लड़कियां लापता हुई थीं। इस साल इस अवधि
में यह संख्या बढ़कर 2,965 हो गई है।
हालाँकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के जारी
किए गए आंकड़ों के मुताबिक, देश में
हर आठ मिनट में एक लड़की गायब हो रही है। नेशनल क्राइम ब्यूरो का रिकॉर्ड बताता है
कि बिहार में वर्ष 2016 में 3037 लड़कियां गायब हुईं। 1587 लड़कियों के गायब होने के पीछे का कारण
लव अफेयर बताया गया। इसमें अधिसंख्य गरीब परिवार की हैं। ये लड़कियां कहां और किस
हाल में हैं, किसी को
नहीं पता। हो सकता है कुछ तो इनमें कहीं देह व्यापार की गन्दी गलियों में जिल्लत
भरी जिंदगी जी रही हो या फिर हो सकता है दुनिया में ही नहीं हो?
अब कमाल देखिये! (जेएनयू) से गायब
एक छात्र नजीब अहमद के मामले की जांच तत्काल प्रभाव से सीबीआई को सौंप दी जाती हैं
पर देश में लाखों की संख्या में गायब हो रही बेटियों पर मीडिया चूं तक नहीं करता
क्यों? चलो
इन्हें भी छोड़ दें तो पिछले दिनों की एक घटना को लीजिये मामला था दिल्ली से मुम्बई
जा रहीं बॉलीवुड की यंग एक्ट्रेस जायरा वसीम के साथ हुई छेड़खानी की घटना का। इस
घटना को देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गिर रहे सुरक्षा प्रबन्धों के स्तर का
ये एक बड़ा उदाहरण बताया गया था। इससे पहले की एक दूसरी घटना जब हरियाणा में
वर्णिका कुंडू की गाड़ी का पीछा आधी रात को एक बड़े नेता के बेटे ने किया था। इन
दोनों खबरों ने देश में ऐसा धमाल मचाया कि महिला सुरक्षा के नाम पर सच्चे रोने
वालों से झूठे रोने वाले बाजी मार ले गये। नारीवादी लोग आँखों में आंसू भरकर सामने
आये, खूब ट्वीट
हुए, न्यूज रूम
में बहस हुई, नारी
सुरक्षा, नारी
मुक्ति, नारी
स्वतंत्रता की खूब बात भी हुई। हमेशा की तरह पुरुष समाज को कोसा गया, शो के बीच-बीच में विज्ञापन में
अर्धनग्न लड़की परोसी गयी शो खत्म।
बात और आंकड़े यही खत्म नहीं होते साल 2014 लेकर अगस्त 2017 तक फरीदाबाद और पलवल जिले से तकरीबन 770 महिलाएं लापता हैं। जिसमें ज्यादातर
महिलाएं गरीब तबके से हैं। एनसीआरबी के अनुसार छत्तीसगढ़ में वर्ष 2008 से 2011 तक कुल 17365 युवतियां गायब हुई हैं तो वर्ष 2016-17 मध्यप्रदेश से 75 महिलाएं रोजाना प्रदेश में गायब हुई
हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो पूरे साल के दौरान अकेले मध्य प्रदेश में ही 4 हजार 882 मामले सामने आए। यही नहीं नेशनल क्राइम
रिकार्ड ब्यूरो के साल 2016 के आंकड़े
एक चौंकाने वाली जानकारी का खुलासा कर रहे हैं कि बीते साल बिहार में 3037 अल्प वयस्क लड़कियां गायब हुईं।
वर्ष 2012 में जहां
ऐसी महिलाओं की तादाद 34 हजार थी, वहीं 2015 में यह तादाद चार गुना से भी ज्यादा बढ़
कर 1.35 लाख तक
पहुंच गई है। 2014 के आंकड़ों
के मुताबिक, सबसे
ज्यादा 21,899 महिलाएं
महाराष्ट्र से गायब हुई थीं। 16,266 के साथ
पश्चिम बंगाल दूसरे नम्बर पर था जबकि 15 हजार के साथ मध्य प्रदेश तीसरे पर, देश की राजधानी दिल्ली में भी इस दौरान
7500 महिलाएं
गायब हुईं। इस सूची में कर्नाटक 7,119 पांचवें
नम्बर पर रहा। केरल की बात छोड़ दीजिये वरना साम्प्रदायिकता का टैग लग जाएगा। पर
सवाल जरूर है कि आखिर देश की बेटियां जा कहां रही हैं? क्या इनका कभी पता चल पाएगा? ज्यादातर लड़कियां स्कूल-कॉलेज या
कोचिंग आने-जाने के दौरान ही गुम हो जा रही हैं। अगर इनके साथ पुलिस के पास तक
नहीं पहुंचने वाले मामलों को भी जोड़ लें तो तस्वीर का रूप भयावह नजर आता है।
इन तथाकथित नारीवादियों की बहस का ढ़ोंग सिर्फ रात में घूमने, कपडे़, आजादी, लिव इन रिलेशनशिप तक ही सीमित हो जाता
है। इनके इस ढ़ोंग को जब एक गाँव देहात की लड़की देखती सुनती है वह समझती है अब हमें
कोई दिक्कत नहीं है। वह बाहर निकलती है विश्वास करती है, प्रेम करती है, घर वालां धता बताकर निकल जाती है उसे
क्या पता कदम-कदम पर उसकी स्वतन्त्रता पर घात लगाने को शिकारी बैठे हैं। आखिर एक
नजीर अहमद की घटना पर सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग कहाँ चले जाते
हैं। हम यह नहीं कहते वह प्रदर्शन गलत है बिल्कुल सही हैं लेकिन लगातार देश से
गायब हो रही इन बेटियों के लिए भी तो कोई आवाज उठनी चाहिए.?
आखिर एक रेप की घटना पर सड़कों पर उतरकर ‘वी वांट फ्रीडम’ कहने वाली महिलाओं और नारीवादियों की
भीड़ इन आंकड़ों पर कहाँ गायब हो जाती है, एक लोकतान्त्रिक देश में अपनी मांग
रखने और स्त्री-पुरुष में समानता की बहस होनी चाहिए। लेकिन इसके उलट इन आंकड़ों और
तथ्यों की तरफ न तो लड़कियों का ध्यान है, न शिक्षाविदों का, न सुधारकों का, न संविधान का तथा न ही न्यायपालिका का।
लड़कियां व महिलाएं आज लड़के व पुरुष बनने के पीछे पागलपन में खोती जा रही हैं। क्या
यह अपने अस्तित्व के साथ धोखा नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं हैं कि एक दो घटना पर
मचा शोर कई सौ घटनाओं को चुप करा देता है? महिलाओं के सशक्तिकरण पर बिल्कुल बहस
होनी चाहिए बशर्ते इसमें सभी महिलाएं शामिल हो, पर करेगा कौन? भारत में बेची जाने वाली 60 फीसदी लड़कियां वंचित और उपेक्षित वर्ग
से आती हैं। अधिकतर मामलों में शादी या नौकरी के बहाने उनकी तस्करी की जाती है।कृ
इसके बाद आता है प्रेम जिसके लिए हिन्दी सिनेमा में गाने बने कि ‘अब तीर चले तलवार चले मैंने पकड़ ली
कलाई यार की।’ लेकिन
गायब होने वाली इन लड़कियों में से 16 मिलियन लड़कियों को अब तक देश विदेश के
देह व्यापार में धकेला जा चुका है। कहीं वह यार कलाई छोड़ या मरोड़ तो नहीं रहा है? या जिस्म के बाजार में इस कलाई की कीमत
वसूल रहा हो? चित्र साभार गूगल लेख
-राजीव चौधरी
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